Wednesday, August 17, 2016

संकल्पशक्ति का प्रतीक : रक्षाबंधन 18 अगस्त 2016

🚩#संकल्पशक्ति का प्रतीक : #रक्षाबंधन 18 अगस्त  2016
🚩#भारतीय_संस्कृति में #श्रावणी_पूर्णिमा को मनाया जानेवाला रक्षाबंधन पर्व भाई-बहन के पवित्र स्नेह का प्रतीक है । यह पर्व मात्र #रक्षासूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन देने का ही नहीं, वरन् प्रेम, स्नेह, समर्पण, संस्कृति की रक्षा, निष्ठा के संकल्प के जरिये हृदयों को बाँधने का वचन देने का भी पर्व है ।
🚩‘#रक्षासूत्र' बाँधने की परम्परा तो वैदिक काल से रही है, जिसमें यज्ञ, युद्ध, आखेट, नये संकल्प और धार्मिक #अनुष्ठान के आरम्भ में कलाई पर सूत का धागा (मौली) बाँधा जाता है ।
Jago Hindustani - Symbol of determination: Raksha Bandhan 

🚩सब कुछ देकर त्रिभुवनपति को अपना द्वारपाल बनानेवाले बलि को लक्ष्मीजी ने राखी बाँधी थी । राखी बाँधनेवाली बहन अथवा हितैषी व्यक्ति के आगे कृतज्ञता का भाव व्यक्त होता है । राजा बलि ने पूछा : ‘‘तुम क्या चाहती हो ?'' लक्ष्मीजी ने कहा : ‘‘वे जो तुम्हारे नन्हे-मुन्ने द्वारपाल हैं, उनको आप छोड़ दो ।'' भक्त के प्रेम से वश होकर जो द्वारपाल की सेवा करते हैं, ऐसे भगवान नारायण को द्वारपाल के पद से छुड़ाने के लिए लक्ष्मीजी ने भी रक्षाबंधन-महोत्सव का उपयोग किया ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩भारतीय संस्कृति का रक्षाबंधन-महोत्सव, जो श्रावणी पूनम के दिन मनाया जाता है, आत्मनिर्माण, #आत्मविकास का पर्व है । अपने हृदय को भी प्रेमाभक्ति से, सदाचार-संयम से पूर्ण करने के लिए प्रोत्साहित करनेवाला यह पर्व है ।
🚩रक्षाबंधन के पर्व पर एक-दूसरे को आयु, आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि की भावना से राखी बाँधते हैं ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩रक्षाबंधन का उत्सव श्रावणी पूनम को ही क्यों रखा गया ? भारतीय #संस्कृति में #संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था है । ब्राह्मण कोई शुभ कार्य कराते हैं तो कलावा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं ताकि आपके शरीर में छुपे दोष या कोई रोग, जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहे हों, उनके कारण आपका मन और बुद्धि भी निर्णय लेने में थोडे अस्वस्थ न रह जायें । सावन के महीने में सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं, किस्म-किस्म के जीवाणु बढ़ जाते हैं, जिससे किसीको दस्त, किसीको उलटियाँ, किसीको अजीर्ण, किसीको बुखार हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने लगता है । इसलिए रक्षाबंधन के दिन एक-दूसरे को रक्षासूत्र बाँधकर तन-मन-मति की स्वास्थ्य-रक्षा का संकल्प किया जाता है । रक्षासूत्र में कितना #मनोविज्ञान है, कितना #रहस्य है !
🚩अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढाँचे की #व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह श्रावणी #पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩‘रक्षाबंधन के दिन रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे'- ऐसा एक-दूसरे के प्रति सत्संकल्प करते हैं ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘जैसे #शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी विवेक-वैराग्य बढ़े, मोक्ष का #ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश आये' ।
🚩रक्षाबंधन के दिन #बहन #भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि ‘मेरा भाई इस सपने जैसी दुनिया को सच्चा मानकर न उलझे, मेरा भैया साधारण चर्मचक्षुवाला न हो, दूरद्रष्टा हो ।'
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है कि  ‘मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें ।'
🚩रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोड़ने का सुंदर अवसर है । इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है । (ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩बहनें रक्षाबंधन के दिन ऐसा संकल्प करके रक्षासूत्र बाँधें कि ‘हमारे भाई भगवत्प्रेमी बनें ।' और भाई सोचें कि ‘हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी, भगवत्प्रेमी बने ।' अपनी सगी बहन व पड़ोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई व पड़ोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें । आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका भी भला हो जाता है । संकल्प में बड़ी शक्ति होती है । अतः आप ऐसा संकल्प करें कि हमारा आत्मस्वभाव प्रकटे । (ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩सर्वरोगोपशमनं    सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
‘इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित हो जाता है ।'  (भविष्य पुराण)
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल ।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे । शिष्य गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय ‘अभिबध्नामि' के स्थान पर ‘रक्षबध्नामि' कहे ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
🚩उपाकर्म #संस्कार : इस दिन #गृहस्थ #ब्राह्मण व #ब्रह्मचारी #गाय के दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र को मिलाकर पंचगव्य बनाते हैं और उसे शरीर पर छिड़कते, मर्दन करते व पान करते हैं, फिर जनेऊ बदलकर शास्त्रोक्त विधि से हवन करते हैं । इसे उपाकर्म कहा जाता है । इस दिन ऋषि उपाकर्म कराकर शिष्य को विद्याध्ययन कराना आरम्भ करते थे ।
🚩उत्सर्जन क्रिया : श्रावणी पूर्णिमा को #सूर्य को जल चढाकर सूर्य की स्तुति तथा अरुंधतीसहित सप्त #ऋषियों की पूजा की जाती है और दही-सत्तू की आहुतियाँ दी जाती हैं । इस क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं । (लोक कल्याण सेतु :  जुलाई २०११)
(संत आसारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से)
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