Thursday, May 31, 2018

पाकिस्तान में हिन्दुओं व अल्पसंख्यकों पर भयंकर अत्याचार जारी है

🚩भारत में अक्सर हिन्दुओं से सबंधित संस्थाएं, मंदिर, आश्रम, मठ और डेरे इत्यादि भ्रष्टाचार, यौनाचार, अनैतिक आचरण और रूढि़वादी प्रथाओं आदि के कारण चर्चा में आते रहते हैं। जब-जब हिन्दू साधु-संतों से जुड़े मामले प्रकाश में आए तब-तब अधिकतर को समाचार पत्रों में बड़ी-बड़ी सुर्खियों के साथ श्रृंखलाबद्ध रूप से प्रस्तुत किया जाता है और कई दिनों तक यह न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम शो का मुख्य मुद्दा भी बना रहता है। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती, संत आसाराम बापू, स्वामी नित्यानंद, बाबा गुरमीत राम रहीम, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, स्वामी असीमानन्द आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। 
🚩यूं तो सभ्य समाज में कोई भी संस्था-चाहे वह बहुराष्ट्रीय कम्पनी हो, निजी कार्यालय हो, मॉल हो, सरकारी दफ्तर हो या फिर किसी का भी निजी आवास ही क्यों न हो वहां किसी भी प्रकार का अपराध अस्वीकार्य और कानून-विरोधी है किन्तु जो संस्थाएं लोगों को अध्यात्म से जोडऩे का दावा करती हैं वहां इस तरह का आचरण न केवल अशोभनीय बल्कि असहनीय भी है। ऐसा क्यों है कि जब भी हिन्दू साधु-संतों से जुड़ी आपराधिक खबरें सामने आती हैं वे एकाएक सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा बन जाती हैं किन्तु अन्य मजहबों से संबंधित मामलों में सन्नाटा पसरा मिलता है?                                                   
Why 'double standards' on crimes like
sexual exploitation and corruption in the church

🚩गत दिनों भारत में किसी चर्च के वरिष्ठ पदाधिकारी द्वारा भारी भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ। अब क्योंकि मामला अधिकांश समाचारपत्रों और न्यूज चैनलों पर नहीं आया तो ऐसे में अधिकतर लोगों को इस मामले कि जानकारी नहीं है। केरल के एर्नाकुलम में लाट पादरी के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत जमीन समझौते के लेन-देन में चर्च कि एक समिति को जांच में करोड़ों की वित्तीय गड़बडिय़ां मिली हैं। समिति ने चर्च प्रमुख जॉर्ज एलनचेरी के खिलाफ  चर्च और दीवानी कानूनों के अंतर्गत कार्रवाई करने कि अनुशंसा की है। आरोपी जॉर्ज एलनचेरी भारत के उन चर्च प्रमुखों में से हैं जो पोप का चुनाव करने कि योग्यता रखते हैं इसलिए जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट रोम भेजी है। 
🚩जांच रिपोर्ट के अनुसार 5 भूमि सौदों में लाट पादरी को लगभग 27 करोड़ रुपए मिले थे किन्तु उन्होंने 9 करोड़ रुपए मिलने कि बात बताई। रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘यह चर्च कानूनों का गंभीर उल्लंघन है जो कि संपत्तियों के लिए आपराधिक दुर्व्यवहार और भरोसा तोडऩे का नग्न कृत्य है।’’ क्या लाट पादरी एलनचेरी के भ्रष्टाचार संबंधी मामले में उस प्रकार कि उग्र मीडिया रिपोर्टिंग या फिर स्वघोषित सैकुलरिस्टों कि तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली, जैसा अक्सर अन्य साधु-संतों के मामलों में देखा जाता है? चर्चों में उपदेशों और व्यावहारिकता के बीच का अंतर केवल भ्रष्टाचार और काली कमाई अर्जित करने तक सीमित नहीं है।
🚩अनगिनत बार ईसाइयों का यह पवित्रस्थल यौन उत्पीडऩ के मामलों से भी कलंकित हुआ है। हाल ही के वर्षों में भारत सहित शेष विश्व में जिस तीव्र गति से इस तरह के मामले सामने आए हैं उससे स्पष्ट है कि रूढि़वादी सिद्धांत, परंपराओं और प्रथाओं के नाम पर चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाएं महिलाओं व बच्चों के यौन शोषण के अड्डे बन गए हैं। चर्च अपने पादरियों व ननों के ब्रह्मचर्यव्रती होने का दावा करता है किन्तु यथार्थ यही है कि दैहिक जरूरतों कि पूर्ति न होने के कारण अधिकतर कुंठित हो जाते हैं। यहां बाल यौन शोषण से लेकर समलिंगी यौन संबंध आम बात है। जब भी इस तरह कि घटना जहां कहीं भी प्रकाश में आती है चर्च अपने ब्रह्मचर्य विधान पर ङ्क्षचता करने के विपरीत उसे दबाने कि कोशिश में जुट जाता है। 
🚩हाल ही में पोप फ्रांसिस एक इसी तरह के मामले में आरोपी का पक्ष लेने के कारण चर्चा में आए। कड़ी प्रतिक्रिया के बाद उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगी। मामला चिली के पादरी फर्नांडो कार्डिमा से संबंधित है जिन्हें वैटिकन द्वारा फरवरी 2011 में 1980 के दशक में चर्च के भीतर बच्चों का यौन शोषण करने के मामले में दोषी ठहराया गया था। मामले में बिशप जुआन बैरोस मैड्रिड का नाम भी प्रकाश में आया है जो अपने संरक्षक कार्डिमा का पक्ष लेने और उनका बचाव करने के आरोपी हैं। 
🚩इसी पृष्ठभूमि में गत दिनों एक पीड़ित व्यक्ति ने पोप फ्रांसिस को पत्र लिखा और कहा, ‘‘जब वह और पादरी कार्डिमा एक कमरे में होते थे तब उन्हें चुंबन के लिए विवश किया जाता था। ऐसा उनके और उनके अन्य साथियों के साथ कई बार हुआ। जब भी कार्डिमा उनका यौन शोषण करते थे तब बिशप जुआन बैरोस मैड्रिड न केवल वहीं खड़े होकर चुपचाप सब देखते रहते थे बल्कि स्वयं भी पादरी कार्डिमा को चुंबन देते थे।’’ उलटा इसके पोप फ्रांसिस ने न केवल बैरोस को वैटिकन में पदोन्नत कर दिया साथ ही उनके विरुद्ध सामने आए आरोपों को भी झूठा बता दिया। 
🚩विश्व में कैथोलिक पादरियों द्वारा हजारों यौन उत्पीडऩ के मामले सामने आ चुके हैं। अकेले 2001-10 के कालखंड में 3 हजार पादरियों पर यौन उत्पीडऩ और कुकर्म के आरोप लग चुके हैं जिनमें अधिकतर मामले 50 साल या उससे अधिक पुराने हैं। रोमन कैथोलिक चर्च एक कठोर सामाजिक संस्था है जो हमेशा अपने विचार और विमर्श को गुप्त रखती है। अपनी नीतियां स्वयं बनाती है और मजहबी दायित्व कि पूर्ति कठोरता से करवाती है। जब कोई पादरी कार्डिनल बनाया जाता है तो वह पोप के समक्ष वचन लेता है, ‘‘वह हर उस बात को गुप्त रखेगा जिसके प्रकट होने से चर्च कि बदनामी होगी या नुक्सान पहुंचेगा।’’ इन्हीं सिद्धांतों के कारण पादरियों, बिशप और कार्डिनलों द्वारा किए जाते यौन उत्पीडऩ के मामले दबे रह जाते हैं और चर्च या फिर अन्य कैथोलिक संस्थाओं को बदनामी से बचाना मजहबी कर्तव्य बन जाता है। 
🚩इस विकृति से भारत भी अछूता नहीं है। देश में ईसाइयों कि आबादी लगभग 3 करोड़ है जिसमें काफी बड़ी संख्या उन आदिवासियों और दलितों की है, जो मतांतरण से पहले हिन्दू थे। जिन राज्यों में ईसाई अनुयायी बड़ी संख्या में हैं वहां सत्ता अधिष्ठानों और राजनीतिक व्यवस्था में कैथोलिक चर्च का व्यापक प्रभाव है। यही कारण है कि जब गत वर्ष केरल में एक पादरी द्वारा नाबालिग लड़की से बलात्कार का मामला प्रकाश में आया तब आरोपी को बचाने के लिए सर्वप्रथम स्थानीय प्रशासन और चर्च ही सामने आया। पीड़िता के पिता ने भी चर्च और पादरी को बदनामी से बचाने के लिए बलात्कार का आरोप अपने सिर ले लिया।
🚩प्रारंभिक काल में ‘गोपनीयता की संस्कृति’ से बंधी रही भारत में काम कर चुकी सिस्टर जेसमी ने कुछ वर्ष पहले अपनी पुस्तक द्वारा चर्च के भीतर के काले सच को सार्वजनिक किया है। ‘‘आमीन-द ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए नन’’ नामक पुस्तक  में सिस्टर जेसमी लिखती हैं कि एक पादरी द्वारा पहली बार यौन शोषण करने पर वह खामोश रह गई थीं किन्तु जब एक नन ने उनसे समलैंगिक संबंध बनाए तो उन्होंने इसकी शिकायत एक वरिष्ठ नन से की। तब जेसमी को सलाह दी गई कि ऐसे संबंध बेहतर हैं क्योंकि इससे गर्भवती होने का खतरा नहीं है। चर्च में बढ़ते यौन उत्पीडऩ के मामलों को लेकर सभी कैथोलिक संस्थाओं में महिलाओं को पुरुषों के समान भूमिका और अधिकार देने की मांग तेज हो गई है। जब भी विश्व में इस पर चर्चा होती है, बाईबल का उल्लेख कर महिलाओं को पादरी बनने से रोक दिया जाता है। 
🚩पोप फ्रांसिस भी कह चुके हैं कि कोई भी महिला कभी भी रोमन कैथोलिक चर्च में पादरी नहीं बन सकती। हिन्दू समाज में महिला संबंधी प्रथाओं और परंपराओं के परिमार्जन का एक लंबा व सफल इतिहास है। जिस प्रकार मुस्लिम समाज के भीतर से महिलाओं द्वारा मजहबी ट्रिपल तलाक से मुक्ति हेतु आवाज उठाई गई और उन्हें अंतत: न्यायिक सफलता भी मिली- उसी तरह ईसाई महिलाओं को भी इस ओर विचार करने कि आवश्यकता है।-बलबीर पुंज स्त्रोत : पंजाब केसरी
🚩आपको बता दे कि पवित्र हिन्दू साधु-संतों को बदनाम करने और उनके ऊपर झूठे मुकदमे चलाने के लिए विदेशी ताकते काम कर रही है जो भारत से हिन्दू धर्म को मिटाने के लिए कार्य कर रहे है इसलिए ईसाई पादरियों के कुकर्म छुपाते है और हिन्दू धर्मगुरुओं को बदनाम करते है ।
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Tuesday, May 29, 2018

मीडिया को खानी पड़ी मुँह की, बापू आसारामजी के प्रति महिलाओं की और बढ़ी आस्था

29 May 2018

🚩मीडिया ने दिन-रात हिन्दू संत बापू आसारामजी के खिलाफ समाज को भ्रमित किया, उनकी छवि को धूमिल करने का भरसक प्रयास किया लेकिन उनको मानने वाले करोड़ों अनुयायियों की आज भी उनमें अटल श्रद्धा देखने को मिल रही है । 
The media has eaten the mouth, and
the increased faith of women towards Bapu Asaramji

🚩मीडिया और कुप्रचारकों ने भले ही हिन्दू संत बापू आसारामजी व उनके आश्रमों को बदनाम करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया हो लेकिन उनके शिष्यों एवं समर्थकों की श्रद्धा आज भी देखते ही बनती है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है संत आशारामजी बापू द्वारा प्रेरित “महिला उत्थान मंडल” की ओर से हरिद्वार में साध्वी रेखा बहन के सानिध्य में 23 मई से 29 मई 2018 तक आयोजित किया गया 7 दिवसीय “चलें स्व की ओर जप-अनुष्ठान शिविर ।"

🚩इस शिविर में देश के अनेक राज्यों से आई बहनें सम्मिलित हुई । हरिद्वार आश्रम का पंडाल पूरा भरा हुआ नजर आया, जो कहीं न कहीं ये दर्शाता है कि मीडिया द्वारा भले बापू आसारामजी को कितना भी बदनाम किया गया हो या न्यायपालिका द्वारा कोई भी फैसला आया हो पर वो अपने अनुभवों से बापू आसारामजी से जुड़ें हैं ।  मीडिया द्वारा कितनी भी झूठ समाज के सामने परोसा गया पर उनके भक्तों पर रत्तीभर भी असर देखने को नही मिल रहा ।

🚩शिविर में ब्रह्ममुहूर्त में जागरण, भगवन्नाम-जप, ध्यान, कीर्तन, सत्संग-श्रवण, विभिन्न स्तोत्रों एवं श्लोकों का पाठ, प्रार्थना, योगासन, प्राणायाम व सूक्ष्म क्रियाएँ भी करवाई गयी । शिविरार्थी बहनें ईश्वरीय प्रेम में गोपी रूप धारण कर गरबा नृत्य में झूमती हुई आनंद के सागर में ओत-प्रोत नजर आयी । महिलाओं के जीवन के लिए प्रेरणादाई नाटिका भी प्रस्तुत की गई ।

🚩शिविर में 93 वर्षीय विरक्त परमेश्वरानन्दजी सरस्वती जी ने बताया कि संत आसाराम बापू पर जो आरोप लगाये हैं वे सब झूठे हैं, कोई सिद्ध करने वाला नही है कि दुराचार किया है, ना ही कोई प्रमाण है । जल्द ही सब ठीक हो जाएगा ।

🚩काशी से आये स्वामी दिव्य चैत्यन्यजी महाराज ने कहा कि यह विदेशियों की चाल है और वे ही सब कर रहे है परंतु जीत होगी सत्य की, सत्य को दबा सकते है, नष्ट नही कर सकते है । अंततः सत्य की जीत होगी ।

🚩शिविर में आई महिलाओं ने बताया कि हमारे गुरुदेव (संत आसाराम बापू) पूर्ण निर्दोष हैं उनको षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है, उच्च न्यायालय में उन षड्यंत्रों का पर्दाफाश होगा और हमारे बापूजी निर्दोष बाहर आयेगें ।

🚩महिलाओं ने आगे ये भी बताया कि मीडिया विदेश से फंड लेकर हमारे गुरुदेव के खिलाफ कितनी भी झूठी कहानियां बनाएं लेकिन हमें हमारे गुरुदेव पर पूर्ण भरोसा है हमें मीडिया से प्रमाण नहीं चाहिए, हमारे पास हमारा अनुभव है कि हमारे गुरुदेव ने हमें कितना दिया है वे हम जानते हैं, हमने मीडिया को पूछकर उन्हें गुरु नही बनाया । जिससे हमारी श्रद्धा हिल जाए, हमारी श्रद्धा कभी कोई डिगा नही सकता है हमारे गुरुदेव में हमारी पूरी निष्ठा है ।

🚩गौरतलब है कि हिन्दू संत बापू आसारामजी को छेड़छाड़ के मामले में पिछले 5 साल से बिना जमानत दिए जेल में बंद कर रखा गया था और अभी हाल ही में 25 अप्रैल 2018 को उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी गई है जबकि मेडिकल रिपोर्ट में साफ आया है कि लडकी को स्पर्श नहीं किया गया है दूसरी ओर लड़की की कॉल डिटेल से ये स्पष्ट हुआ है कि लड़की उस रात किसी संदिग्ध व्यक्ति के साथ सतत संपर्क में थी और  बापू आसारामजी भी उस समय एक मंगनी कार्यक्रम में व्यस्त थे, जहां 50-60 लोग और भी थे । 

🚩ये सब देखकर किसी के दिमाग में भी ये प्रश्न उपजेगा कि वास्तव में न्याय हुआ है या अन्याय है ???

🚩82 वर्षीय एक संत जिनके सत्संग सुनने मात्र से आज हजारों नहीं, लाखों नहीं, करोड़ों लोग संयम के रास्ते अग्रसर हैं । उन्हें सिर्फ एक लड़की के बोलने मात्र पर उम्रकैद की सजा दे देना क्या उनके साथ अन्याय नहीं ???

🚩एक तरफ तो कोर्ट बापू आसारामजी के सेवादार शिवा को निर्दोष बरी कर देता है और बापू आसारामजी को उम्रकैद दे देता था जबकि लड़की ने अपने बयान में शिवा पर ये आरोप लगाया है कि शिवा ने उसे बुलाया था । जब शिवा निर्दोष तो बापू आसारामजी दोषी कैसे ???

 🚩कोर्ट द्वारा आया ये निर्णय किसी के दबाव में आकर तो नहीं लिया गया ??? आज 80% जनता के मन में ये प्रश्न घर कर चुका है ।

🚩हिन्दुस्तान की जनता का अब #इलेक्ट्रॉनिक और #प्रिंट मीडिया पर से भी #भरोसा #उठता #जा #रहा है क्योंकि पैसे और टीआरपी के लिए मीडिया इतनी गिर गई है कि उसे सत्य से कुछ लेना-देना ही नहीं रहा है । हर खबर के दाम फिक्स होते हैं, नहीं देने पर झूठी खबरों को सच और सच्ची खबरों को झूठा दिखाकर समाज को गुमराह करती है । यही आज की मीडिया का धंधा बन गया है कोई-कोई सुदर्शन न्यूज़ जैसे सज्जन मीडियाकर्मी होंगे जो सच्चाई दिखाते होंगे बाकि तो लगभग सभी मीडिया हाउस बिके हुए हैं ।

🚩अगर आप गौर करेंगे तो जबसे बापू आसारामजी को सजा का ऐलान हुआ है तबसे धर्मान्तरण ने गति पकड़ ली है । आज जितना खुलेआम धर्मान्तरण हो रहा है उतना तो पिछले 10 साल में भी नहीं हुआ था । ये सब देखकर लगता है कि कहीं न कहीं बापू आसारामजी को फंसाने में हिन्दू विरोधी तत्वों का बड़ा हाथ है ।

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Monday, May 28, 2018

ब्रिटिश शासन को हिलाने वाले वीर सावरकर जी का जानिए इतिहास

श्री विनायक दामोदर वीर सावरकर जी जयंती 28 मार्च (दिनांक अनुसार)
🚩#सावरकर जी #भारतीय स्वतन्त्रता #आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के #सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः #वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की #राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर जी को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान #क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे #इतिहासकार भी हैं जिन्होंने #हिन्दू #राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढँग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था ।
🚩जीवन वृत्त !!
Know the history of Veer Savarkar who moved the British rule

🚩विनायक #सावरकर का जन्म 28 मई 18 1883 में महाराष्ट्र (तत्कालीन नाम बम्बई) प्रान्त में नासिक के निकट भागुर गाँव में हुआ था।
🚩उनकी माता जी का नाम राधाबाई तथा पिता जी का नाम दामोदर पन्त सावरकर था। इनके दो भाई गणेश (बाबाराव) व नारायण दामोदर सावरकर तथा एक बहन नैनाबाई थी। जब वे केवल नौ वर्ष के थे तभी हैजे की महामारी में उनकी माता जी का देहान्त हो गया। इसके सात वर्ष बाद सन् 1899 में प्लेग की महामारी में उनके पिता जी भी स्वर्ग सिधारे। इसके बाद #विनायक के बड़े भाई गणेश ने परिवार के पालन-पोषण का कार्य सँभाला। दुःख और कठिनाई की इस घड़ी में गणेश के व्यक्तित्व का विनायक पर गहरा प्रभाव पड़ा। विनायक ने #शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की #परीक्षा पास की। बचपन से ही वे पढ़ाकू तो थे ही अपितु उन दिनों उन्होंने कुछ #कविताएँ भी लिखी थी । आर्थिक संकट के बावजूद बाबाराव ने विनायक की उच्च #शिक्षा की इच्छा का समर्थन किया। इस अवधि में विनायक ने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके मित्र मेलों का आयोजन किया। शीघ्र ही इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना के साथ क्रान्ति की ज्वाला जाग उठी।सन् 1901 में रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ। उनके ससुर जी ने उनकी विश्वविद्यालय की शिक्षा का भार उठाया। 1902 में मैट्रिक की पढाई पूरी करके उन्होने पुणे के फर्ग्युसन कालेज से बी०ए० किया।


🚩लन्दन प्रवास !!
🚩1904 में उन्हॊंने अभिनव #भारत नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की। 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद उन्होने पुणे में #विदेशी #वस्त्रों की #होली #जलाई। फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे में भी वे राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत ओजस्वी भाषण देते थे। बाल गंगाधर तिलक के अनुमोदन पर 1906 में उन्हें श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति मिली। इंडियन सोशियोलाजिस्ट और तलवार नामक पत्रिकाओं में उनके अनेक लेख प्रकाशित हुये, जो बाद में कलकत्ता के युगान्तर पत्र में भी छपे। सावरकर रूसी क्रान्तिकारियों से ज्यादा प्रभावित थे।
🚩10 मई, 1907 को इन्होंने इंडिया हाउस, लन्दन में प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की #स्वर्ण जयन्ती मनाई। इस अवसर पर विनायक सावरकर ने अपने ओजस्वी भाषण में प्रमाणों सहित 1857 के संग्राम को गदर नहीं, अपितु भारत के स्वातन्त्र्य का प्रथम संग्राम सिद्ध किया। जून, 1908  में इनकी पुस्तक द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस : 1857 तैयार हो गयी परन्तु इसके मुद्रण की समस्या आयी। इसके लिये लन्दन से लेकर पेरिस और जर्मनी तक प्रयास किये गये किन्तु वे सभी प्रयास असफल रहे। बाद में यह पुस्तक किसी प्रकार गुप्त रूप से हॉलैंड से प्रकाशित हुई और इसकी प्रतियाँ फ्रांस पहुँचायी गयी। इस पुस्तक में सावरकर ने 1857 के सिपाही विद्रोह को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ स्वतन्त्रता की पहली लड़ाई बताया। मई 1909 में इन्होंने लन्दन से बार एट ला (वकालत) की परीक्षा उत्तीर्ण की, परन्तु उन्हें वहाँ वकालत करने की अनुमति नहीं मिली।

🚩लाला हरदयाल से भेंट !!
🚩लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। #1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एस०एस० मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले।  14 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन #कारावास की #सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया । इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार -
🚩"मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी #सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की।"
🚩सेलुलर जेल में !!
🚩नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक #षडयंत्र काण्ड के अंतर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां #स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थी। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था।।सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे।
🚩स्वतन्त्रता संग्राम !!
🚩1921 में मुक्त होने पर वे स्वदेश लौटे और फिर 3 साल जेल भोगी। जेल में उन्होंने हिंदुत्व पर शोध ग्रन्थ लिखा। इस बीच 7 जनवरी 1925 को इनकी पुत्री, प्रभात का जन्म हुआ। मार्च, 1925 में उनकी भॆंट राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक, डॉ॰ हेडगेवार से हुई। 17 मार्च 1928 को इनके बेटे विश्वास का जन्म हुआ। फरवरी, 1931 में इनके प्रयासों से बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना हुई, जो सभी हिन्दुओं के लिए समान रूप से खुला था। 25 फरवरी 1931को सावरकर ने बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की।
🚩1937 में वे अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के कर्णावती (अहमदाबाद) में हुए 19वें सत्र के अध्यक्ष चुने गये, जिसके बाद वे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष चुने गये। 15 अप्रैल 1938 को उन्हें मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। 13 दिसम्बर 1937 को नागपुर की एक जन-सभा में उन्होंने अलग पाकिस्तान के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी। 22 जून 1941 को उनकी भेंट #नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई। 9 अक्टूबर 1942 को भारत की स्वतन्त्रता के निवेदन सहित उन्होंने चर्चिल को तार भेज कर सूचित किया। सावरकर जीवन भर #अखण्ड भारत के पक्ष में रहे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के माध्यमों के बारे में गान्धी और सावरकर का एकदम अलग दृष्टिकोण था। 1943 के बाद दादर, बम्बई में रहे। 16 मार्च 1947 को इनके भ्राता बाबूराव का देहान्त हुआ। 19 अप्रैल 1945 को उन्होंने अखिल भारतीय रजवाड़ा हिन्दू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी वर्ष 8 मई को उनकी पुत्री प्रभात का #विवाह सम्पन्न हुआ। अप्रैल 1946 में बम्बई सरकार ने सावरकर के लिखे साहित्य पर से प्रतिबन्ध हटा लिया। 1947 में इन्होंने भारत विभाजन का विरोध किया। 🚩महात्मा रामचन्द्र वीर नामक (हिन्दू महासभा के नेता एवं सन्त) ने उनका समर्थन किया।
🚩स्वातन्त्र्योपरान्त जीवन !!
🚩15 अगस्त1947 को उन्होंने सावरकर सिद्धान्तों में भारतीय तिरंगा एवं #भगवा, दो-दो ध्वजारोहण किये। इस अवसर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दु:ख है। उन्होंने यह भी कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धि-पत्रों से निर्धारित नहीं होती, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं । 5 फरवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के उपरान्त उन्हें प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के अन्तर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। 19 अक्टूबर 1949 को इनके अनुज नारायणराव का देहान्त हो गया। 4 अप्रैल 1950 को पाकिस्तानी प्रधान मंत्री लियाकत अली खान के दिल्ली आगमन की पूर्व संध्या पर उन्हें सावधानीवश बेलगाम जेल में रोक कर रखा गया। मई, 1952 में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को उसके उद्देश्य (भारतीय स्वतन्त्रता प्राप्ति) पूर्ण होने पर भंग किया गया। 10 नवम्बर1957 को नई दिल्ली में आयोजित हुए, 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के शाताब्दी समारोह में वे मुख्य वक्ता रहे। 8 अक्टूबर 1959 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०.लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया। 8 नवम्बर 1963 को इनकी पत्नी यमुनाबाई चल बसी। सितम्बर, 1966 से उन्हें तेज ज्वर ने आ घेरा, जिसके बाद इनका स्वास्थ्य गिरने लगा। 1 फरवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया। 26 फरवरी 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया ।
🚩सावरकर साहित्य !!
🚩वीर सावरकर ने 10,000 से अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा 1500  से अधिक पन्ने अंग्रेजी में लिखा है।
🚩'द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस -1857' सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक है, जिसमें उन्होंने सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिख कर ब्रिटिश शासन को हिला डाला था। अधिकांश इतिहासकारों ने 1857 के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक सिपाही विद्रोह या अधिकतम भारतीय विद्रोह कहा था। दूसरी ओर भारतीय विश्लेषकों ने भी इसे तब तक एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर किया गया था।
🚩जीवन के अन्तिम समय में वीर सावरकर !!
🚩सावरकर एक प्रख्यात #समाज #सुधारक थे। उनका दृढ़ विश्वास था, कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं व एक दूसरे के पूरक हैं। उनके समय में समाज बहुत सी कुरीतियों और बेड़ियों के बंधनों में जकड़ा हुआ था। इस कारण हिन्दू समाज बहुत ही दुर्बल हो गया था। अपने भाषणों, लेखों व कृत्यों से इन्होंने समाज सुधार के निरंतर प्रयास किए। हालांकि यह भी सत्य है, कि #सावरकर ने सामाजिक कार्यों में तब ध्यान लगाया, जब उन्हें राजनीतिक कलापों से निषेध कर दिया गया था। किंतु उनका समाज सुधार जीवन पर्यन्त चला। उनके सामाजिक उत्थान कार्यक्रम ना केवल हिन्दुओं के लिए बल्कि राष्ट्र को समर्पित होते थे। 1924 से 1937 का समय इनके जीवन का समाज सुधार को समर्पित काल रहा।
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🚩जरा विचार कीजिये कि देश को #आजादी दिलाने के लिए अपने समग्र जीवन की आहुति देनेवाले इन #वीर #शहीदों के सपने को हम कहाँ तक साकार कर सके हैं..???
🚩हमने उनके बलिदानों का कितना आदर किया है...???
🚩वास्तव में, हमने उन अमर शहीदों के बलिदानों को कोई सम्मान ही नहीं दिया है । तभी तो स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी हमारा देश पश्चिमी संस्कृति की गुलामी में जकड़ा हुआ है।
🚩इन #महापुरुषों की सच्ची जयंती तो तभी मनाई जाएगी, जब प्रत्येक भारतवासी उनके जीवन को अपना आदर्श बनायेंगे, उनके सपनों को साकार करेंगे तथा जैसे #भारत का निर्माण जैसा वे महापुरुष करना चाहते थे, वैसा ही हम करके दिखायें । यही उनकी जयंती मनाना है ।
🚩जयहिंद!!
🚩जय भारत!!
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