Sunday, June 30, 2019

कश्मीर, कैराना के बाद अब मेरठ से हिंदू पलायन, सोचिए आगे क्या होगा....?

28 जून 2019
🚩दुनिया में किसी भी देश मे हिंदू चाहे उसदेश में अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक पर उन्हें प्रताड़ित किया जाता है, उसपर अत्याचारों की बोसर लगाई जाती है, आज बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान आदि में हिंदू नहीं के बराबर होते जा रहे हैं क्योंकि वहाँ उनको धार्मिक स्वतंत्रता नहीं दी जा रही है, बहु-बेटियों को उठाकर ले जाते हैं, संपति हड़प लेते हैं, घर, मंदिर, दुकानें जला देते हैं या तोड़ देते हैं, वहाँ उनकी न सरकार सुनती है न न्यायालय, बस अत्याचार सहन करते रहते हैं ।

कुछ हिंदू भारत में भी आ रहे हैं पर भारत में भी कुछ हिन्दू पलायन कर रहे हैं ।
🚩आज से 71 वर्ष पहले जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ तब हिंदू मुस्लिम के नाम पर हुआ था, धर्म के नाम पर हुआ था पर आज भी भारत में करोड़ों मुसलमान रह रहे हैं, जिस इलाके में मुसलमानों की संख्या ज्यादा है, उस जगह से हिन्दू पलायन कर रहे हैं । भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय लाखों हिंदुओं की हत्या कर दी गयी । फिर 1990 में सैकड़ों पंडितों की हत्या की, हिंदू बहु-बेटियों का बलात्कार किया, मासूम बच्चों को मारा गया, उसके बाद खबर आई कि उत्तर प्रदेश के कैराना में हिंदू पलायन हुए और अब मेरठ से पलायन कर रहे हैं ।

🚩बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि देश में हिंदुओं पर अत्याचार हो रहा है तो भारत में आ रहे हैं पर भारत में भी 8 राज्यो में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं, बाकी बंगाल, केरला आदि में हिंदुओं की हत्या जारी है और उत्तरप्रदेश में भी हिन्दू पलायन कर रहे हैं फिर अब हिन्दू कहा जाएंगे ? केंद्र और राज्य में हिंदूवादी सरकार होते हुए भी हिंदूओ को पलायन करना पड़ रहा है तो सोच लीजिये हिंदुओं का आगे क्या होगा?
🚩मेरठ से भी हिंदू पलायन इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हिंदू बहु-बेटियों की सरेआम मुसलमान लड़के इज्जत लूट रहे हैं, मारपीट कर रहे हैं । हिंदु बहु-बेटियां अकेली बाहर नहीं निकल सकती हैं उन्हें धमकियां दी जाती है।
पुलिस एवं जिलाधिकारी को बताया पर वे सुनते नही हैं।
🚩हिन्दुओं का पलायन क्यों आरम्भ हुआ?
🚩1947 में देश का विभाजन हुआ।  उसका मुख्य कारण भी हिन्दू बनाम मुस्लिम था। विभाजन के समय गाँधी और नेहरू की जिद के चलते अनेक मुसलमान इस देश में रुक गए। न यह देश हिन्दू देश घोषित हुआ।  न बहुसंख्यक  हिन्दुओं को उनके अधिकार प्राप्त हुए। उल्टे मुसलमानों को अल्पसंख्यक के नाम पर विशेष अधिकार देने की परम्परा चलाई गई। यह हिन्दुओं के साथ छल नहीं तो क्या है ? संसार के किसी भी मुस्लिम देश में गैर मुसलमानों को अल्पसंख्यक के नाम पर कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं हैं। फिर भी अनेक भारतीय मुसलमानों की मनोवृति इस्लाम सदा खतरे में। यह मुल्ला-मौलवियों की देन हैं। हमारे देश के चिंतक वर्ग ने इस्लाम के विस्तारवादी स्वरुप को कभी समझा ही नहीं। अन्यथा वह ऐसी गंभीर गलतियां कभी न करते। आज भी समय है। जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद के नाम पर विभाजित होकर नेताओं के हाथ की कठपुतली बनने के स्थान पर अपने और अपनी संतानों के भविष्य को लेकर चिंतन करने की आवश्यकता हैं। अन्यथा इतनी देर न हो जाये कि आप कुछ करने लायक भी न बचो। इस लेख में जनसंख्या समीकरण और पलायन क्यों होता हैं। इस विषय पर गंभीरता से चर्चा की गई हैं।

🚩2005 में समाजशास्त्री डा. पीटर हैमंड ने गहरे शोध के बाद इस्लाम धर्म के मानने वालों की दुनियाभर में प्रवृत्ति पर एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक है ‘स्लेवरी, टैररिज्म एंड इस्लाम-द हिस्टोरिकल रूट्स एंड कंटेम्पररी थ्रैट’। इसके साथ ही ‘द हज’के लेखक लियोन यूरिस ने भी इस विषय पर अपनी पुस्तक में विस्तार से प्रकाश डाला है। जो तथ्य निकल कर आए हैं, वे न सिर्फ चौंकाने वाले हैं, बल्कि चिंताजनक हैं।
उपरोक्त शोध ग्रंथों के अनुसार जब तक मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश-प्रदेश क्षेत्र में लगभग 2 प्रतिशत के आसपास होती है, तब वे एकदम शांतिप्रिय, कानूनपसंद अल्पसंख्यक बन कर रहते हैं और किसी को विशेष शिकायत का मौका नहीं देते। जैसे अमरीका में वे (0.6 प्रतिशत) हैं, आस्ट्रेलिया में 1.5, कनाडा में 1.9, चीन में 1.8, इटली में 1.5 और नॉर्वे में मुसलमानों की संख्या 1.8 प्रतिशत है। इसलिए यहां मुसलमानों से किसी को कोई परेशानी नहीं है।
🚩जब मुसलमानों की जनसंख्या 2 से 5 प्रतिशत के बीच तक पहुंच जाती है, तब वे अन्य धर्मावलंबियों में अपना धर्मप्रचार शुरू कर देते हैं। जैसा कि डेनमार्क, जर्मनी, ब्रिटेन, स्पेन और थाईलैंड में जहां क्रमश: 2, 3.7, 2.7, 4 और 4.6 प्रतिशत मुसलमान हैं।
जब मुसलमानों की जनसंख्या किसी देश या क्षेत्र में 5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब वे अपने अनुपात के हिसाब से अन्य धर्मावलंबियों पर दबाव बढ़ाने लगते हैं और अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करने लगते हैं।
🚩इस तरह अधिक जनसंख्या होने का फैक्टर यहां से मजबूत होना शुरू हो जाता है, जिन देशों में ऐसा हो चुका है, वे फ्रांस, फिलीपींस, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, नीदरलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो हैं। इन देशों में मुसलमानों की संख्या क्रमश: 5 से 8 फीसदी तक है। इस स्थिति पर पहुंचकर मुसलमान उन देशों की सरकारों पर यह दबाव बनाने लगते हैं कि उन्हें उनके क्षेत्रों में शरीयत कानून (इस्लामिक कानून) के मुताबिक चलने दिया जाए। दरअसल, उनका अंतिम लक्ष्य तो यही है कि समूचा विश्व शरीयत कानून के हिसाब से चले।
🚩जब मुस्लिम जनसंख्या किसी देश में 10 प्रतिशत से अधिक हो जाती है, तब वे उस देश, प्रदेश, राज्य, क्षेत्र विशेष में कानून-व्यवस्था के लिए परेशानी पैदा करना शुरू कर देते हैं, शिकायतें करना शुरू कर देते हैं, उनकी ‘आॢथक परिस्थिति’ का रोना लेकर बैठ जाते हैं, छोटी-छोटी बातों को सहिष्णुता से लेने की बजाय दंगे, तोड़-फोड़ आदि पर उतर आते हैं, चाहे वह फ्रांस के दंगे हों डेनमार्क का कार्टून विवाद हो या फिर एम्सटर्डम में कारों का जलाना हो, हरेक विवाद को समझबूझ, बातचीत से खत्म करने की बजाय खामख्वाह और गहरा किया जाता है। ऐसा गुयाना (मुसलमान 10 प्रतिशत), इसराईल (16 प्रतिशत), केन्या (11 प्रतिशत), रूस (15 प्रतिशत) में हो चुका है।
जब किसी क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या 20 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब विभिन्न ‘सैनिक शाखाएं’ जेहाद के नारे लगाने लगती हैं, असहिष्णुता और धार्मिक हत्याओं का दौर शुरू हो जाता है, जैसा इथियोपिया (मुसलमान 32.8 प्रतिशत) और भारत (मुसलमान 22 प्रतिशत) में अक्सर देखा जाता है। मुसलमानों की जनसंख्या के 40 प्रतिशत के स्तर से ऊपर पहुंच जाने पर बड़ी संख्या में सामूहिक हत्याएं, आतंकवादी कार्रवाइयां आदि चलने लगती हैं। जैसा बोस्निया (मुसलमान 40 प्रतिशत), चाड (मुसलमान 54.2 प्रतिशत) और लेबनान (मुसलमान 59 प्रतिशत) में देखा गया है। शोधकत्र्ता और लेखक डा. पीटर हैमंड बताते हैं कि जब किसी देश में मुसलमानों की जनसंख्या 60 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है, तब अन्य धर्मावलंबियों का ‘जातीय सफाया’ शुरू किया जाता है (उदाहरण भारत का कश्मीर), जबरिया मुस्लिम बनाना, अन्य धर्मों के धार्मिक स्थल तोडऩा, जजिया जैसा कोई अन्य कर वसूलना आदि किया जाता है। जैसे अल्बानिया (मुसलमान 70 प्रतिशत), कतर (मुसलमान 78 प्रतिशत) व सूडान (मुसलमान 75 प्रतिशत) में देखा गया है।
🚩किसी देश में जब मुसलमान बाकी आबादी का 80 प्रतिशत हो जाते हैं, तो उस देश में सत्ता या शासन प्रायोजित जातीय सफाई की जाती है। अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों को उनके मूल नागरिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता है। सभी प्रकार के हथकंडे अपनाकर जनसंख्या को 100 प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा जाता है। जैसे बंगलादेश (मुसलमान 83 प्रतिशत), मिस्र (90 प्रतिशत), गाजापट्टी (98 प्रतिशत), ईरान (98 प्रतिशत), ईराक (97 प्रतिशत), जोर्डन (93 प्रतिशत), मोरक्को (98 प्रतिशत), पाकिस्तान (97 प्रतिशत), सीरिया (90 प्रतिशत) व संयुक्त अरब अमीरात (96 प्रतिशत) में देखा जा रहा है।
🚩पलायन का कारण आपको समझ आ गया होगा। कभी कैराना,कभी कश्मीर, कभी केरल, कभी बंगाल, कभी असम से पलायन होता आया है और अब मेरठ भी इस सूची में जुड़ गया हैं ।
🚩अभी अगर जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाया गया है जबतक जनसंख्या नियंत्रण कानून नहीं बनाता है तब तक हिंदुओं ने ज्यादा बच्चे पैदा नहीं किये तो देशभर मे ऐसे ही हालात बनते जायेंगे।
🚩एक तरफ ईसाई मिशनरियां जोर-शोर से हिंदुओं का धर्मांतरण करवा रही हैं दूसरी तरफ मुस्लिम जनसंख्या बढ़ा रहे हैं और लव जिहाद अभियान चला रहे हैं, तीसरी तरफ हिंदू सेक्युलर बनते जा रहे हैं, आपस में ही जात-पात में बंट रहे हैं, हिन्दू धर्मगुरुओं को झूठे केस में जेल भेजा जा रहा है और हिन्दू ही उनका मजाक उड़ाते हैं, फिर धर्म का ज्ञान कौन देगा ? इसलिए एक हो जाओ, संगठित होकर धर्मगुरुओं पर हो रहे षडयंत्र का विरोध करें।
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सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही फैसला बदला, इस घटना से आपकी भी रूह कांप जाएगी

28 जून 2019
🚩इस साल मार्च महीने में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही एक फ़ैसला पलटते हुए, छह लोगों को क़त्ल के आरोप से बरी कर दिया था । इससे पता चलता है कि नाइंसाफ़ी के इस ज़ुल्म ने उन छह लोगों और उनके परिवारों पर क्या असर डाला ? और इस कहानी से भारत की आपराधिक न्याय व्यवस्था के बारे में क्या पता चलता है ?

🚩जिन पांच लोगों को सर्वोच्च अदालत ने बरी किया, उनमें से पांच लोगों ने जेल में गुज़ारे 16 बरसों में से 13 साल मौत की सज़ा के ख़ौफ़ में गुज़ारे । बरी किए गए लोगों में से छठवां एक नाबालिग़ था । पहले उस पर भी वयस्क के तौर पर मुक़दमा चला था और मौत की सज़ा सुनाई गई थी, लेकिन 2012 में जब ये साबित हो गया कि वो नाबालिग़ है और क़त्ल के वक़्त केवल 17 साल का था, तो उसे रिहा कर दिया गया था ।
🚩मौत की सज़ा पाने वाले ये लोग छोटी सी, अंधेरी बंद कोठरी में वक़्त गुज़ार रहे थे । फांसी का फंदा हर वक़्त उनके सिर पर लटकता रहता था । काल कोठरी के बाहर बल्ब की रोशनी लगातार उन्हें डराती रहती थी । कोठरी के इर्द-गिर्द पसरा सन्नाटा कई बार आस-पास रहने वाले क़ैदियों की चीख़ों से सिहर जाता था ।
🚩बरी किए गए छह लोगों में से एक ने कहा, ''मौत की सज़ा पाने के बाद उन्हें लगता था कि कोई काला नाग उनके सीने पर सवार है''।
🚩एक दूसरे व्यक्ति ने कहा कि उसे रात में ''फांसी की सज़ा पाने वाले लोगों के भूत'' डराया करते थे । दिन में जब कुछ घंटों के लिए उन्हें काल-कोठरी से बाहर निकाला जाता था, तो, बाहर का मंज़र तो और भी डरावना लगता था ।
🚩उसे साथी क़ैदियों को दौरे पड़ते देखकर और भी डर लगता था । उनमें से एक क़ैदी ने तो ख़ुदकुशी कर ली थी । उस आदमी को लंबे वक़्त तक पेट के ज़ख़्म का दर्द सहना पड़ा । उस दौरान उसे कई बार तो मामूली इलाज मिल जाता था । पर, कई बार तो वो भी मुहैया नहीं कराया जाता था ।
🚩उस युवा व्यक्ति की सेहत की पड़ताल करने वाले दो डॉक्टरों ने बताया, ''वो मौत से डरने की बहुत ही अमानवीय परिस्थितियों में कई बरस तक रहा था''।
🚩जिन छह लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया उनके नाम हैं- अंबादास लक्ष्मण शिंदे, बापू अप्पा शिंदे, अंकुश मारुति शिंदे, राज्य अप्पा शिंदे, राजू म्हासू शिंदे और सुरेश नागू शिंदे ।
🚩जब इन सब को मौत की सज़ा सुनाई गई थी, तो इनकी उम्र 17 से 30 बरस के बीच थी । इन्हें, वर्ष 2003 में महाराष्ट्र के नासिक में अमरूद तोड़ने वाले एक परिवार के पांच सदस्यों की एक बाग़ में हत्या के जुर्म में सज़ा सुनाई गई थी । इनमें से 17 साल का अंकुश मारुति शिंदे सबसे कम उम्र का सदस्य था ।
🚩ये सभी लोग शिंदे नाम की घुमंतू आदिवासी जनजाति से ताल्लुक़ रखते हैं । ये भारत के सबसे ग़रीब समुदायों में से एक हैं । वो मिट्टी खोदते हैं । कचरा उठाते हैं । नालियां साफ़ करते हैं और दूसरों के खेतों में काम कर के ज़िंदगी बसर करते हैं । तीन अदालतों के सात जजों ने 13 बरस के अंतराल में उन्हें मुज़रिम ठहराया ।
🚩और वो सारे के सारे जज ग़लत थे ।
🚩जब सुप्रीम कोर्ट ने अपना ही फ़ैसला पलटते हुए इन सभी को बरी किया, तो वो एक ऐतिहासिक फ़ैसला कहा गया था । आज़ाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जब देश की सर्वोच्च अदालत ने मौत की सज़ा के अपने पुराने फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया था ।
🚩माननीय न्यायाधीशों ने अपने फ़ैसले में माना कि इन सभी छह लोगों को ग़लत तरीक़े से फंसाया गया था । अदालतों ने उन्हें दोषी मानने की भयंकर भूल की थी । सर्वोच्च अदालत ने कहा कि इस मामले की 'न तो ईमानदारी से जांच हुई और न ही निष्पक्षता से मुक़दमा चलाया गया' । सुप्रीम कोर्ट ने 75 पन्नों के अपने असाधारण फ़ैसले में लिखा कि, 'इस मामले के असली अपराधी बच निकले' ।
🚩सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी लोगों की अपील को ख़ारिज करने के एक दशक बाद इन्हें बरी किया है ।
🚩माननीय न्यायाधीशों ने कहा कि इस मामले की तफ़्तीश में 'बहुत से अहम पहलुओं की अनदेखी हुई और पूरी तरह लापरवाही बरती गई' ।
🚩अदालत ने अपने फ़ैसले में लिखा है कि गड़बड़ी करने वाले पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्यवाही होनी चाहिए । अपने फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने रिहा किए गए सभी लोगों को 5 लाख रुपए हर्ज़ाना एक महीने के भीतर अदा करने का आदेश भी दिया । अदालत ने महाराष्ट्र सरकार से उनके 'पुनर्वास' के लिए ज़रूरी क़दम उठाने के लिए भी कहा । (जो जुर्माना अदालत ने तय किया वो जेल में बिताए हर महीने के बदले 2600 रुपए बैठते हैं)
🚩जब मैं बरी किए गए इन छहों लोगों से महाराष्ट्र के जालना ज़िले के एक सूखाग्रस्त गांव भोकर्दन में मिला, तो वो डिप्रेशन और फ़िक्र के शिकार दिखे । इन छह लोगों में से दो सगे भाई हैं और बाक़ी सभी चचेरे भाई । तब तक इन्हें मुआवज़े की रक़म भी नहीं मिली थी ।
🚩उन्होंने मुझे बताया कि मौत की सज़ा ने समय को लेकर उनकी समझ को ही गड़बड़ कर दिया है उनकी संवेदनाएं मर चुकी हैं । उनकी ज़िंदादिली कहीं गुम हो गई है । उनके लिए काम पर वापस जाना भी मुश्किल हो रहा है । उन्हें हाई ब्लड प्रेशर, अनिद्रा, डायबिटीज़ और आंखों की कमज़ोर रोशनी जैसी कई बीमारियां लग गई हैं । उनके दिन सस्ती शराब के नशे की मदद से जैसे-तैसे गुज़र रहे हैं । उनमें से कुछ तो नींद की गोलियां और डिप्रेशन से लड़ने वाली दवाएं भी ले रहे हैं ।
🚩49 बरस के बापू अप्पा शिंदे कहते हैं, ''जेल आप को धीरे-धीरे गुपचुप तरीक़े से मारती है । जब आप जेल से छूटते हैं, तो आज़ादी अखरने लगती है'' ।
🚩जब ये लोग जेल चले गए, तो इनकी बीवियों और बच्चों को काम करना पड़ा । उन्हें नालियां और कुएं साफ़ करने पड़े और कूड़ा बीनना पड़ा । ज़्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जा सके । वो जिस इलाक़े में रहते हैं, वो कई साल से सूखे का शिकार है । ऐसे में खेती में रोज़गार ही नहीं है ।
🚩अब, रिहा किए गए ये लोग कहते हैं कि कोई भी हर्ज़ाना, कोई मुआवज़ा उन्हें खोया हुआ वक़्त नहीं वापस दे सकता । उनके जेल में रहने का जो नतीजा परिजनों ने भुगता, उसकी पैसे से भरपाई नहीं हो सकती ।
🚩राज्या अप्पा कहते हैं, ''हम अब आज़ाद तो हैं, पर बेघर हो गए हैं ।''
🚩2008 में बापू अप्पा के 15 साल के बेटे राजू की करंट लगने से मौत हो गई थी । वो जिस फावड़े से नाले की सफ़ाई कर रहा था, वो बिजली के नंगे तार से छू गया था ।
🚩बापू अप्पा बताते हैं, ''वो मेरे परिवार का सबसे समझदार बच्चा था । अगर मैं जेल में नहीं गया होता, तो उसे ये काम करते हुए जान नहीं गंवानी पड़ती ।''
🚩जब बापू अप्पा और उनके भाई राज्या अप्पा जेल से छूटकर घर लौटे, तो उन्होंने अपने परिवारों को बहुत बुरी हालत में पाया । उनका घर मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका था । उनके परिवार के सदस्य खुले में एक पेड़ के नीचे सोने को मजबूर थे । उन्होंने एक ख़ाली पड़ी सरकारी इमारत में अपना ठिकाना बनाया हुआ था । उनके बच्चों ने अपने पिता के स्वागत के लिए टीन की झोपड़ी तैयार की थी ।
🚩राज्या अप्पा कहते हैं, ''हम अब आज़ाद तो हैं, पर बेघर हो गए हैं ।''
🚩राजू शिंदे की शादी जेल जाने से तीन महीने पहले ही हुई थी । जब पुलिस ने राजू को गिरफ़्तार किया तो, उनकी पत्नी उन्हें 12 बरस पहले छोड़कर किसी और आदमी के पास चली गई ।
🚩राजू शिंदे बताते हैं, ''मुझे छोड़कर जाने से 12 दिन पहले वो मुझसे मिलने जेल में आई थी । लेकिन उसने मुझे ये नहीं बताया कि वो मुझे छोड़कर किसी और के साथ रहने जा रही है । शायद उस पर अपने परिवार का दबाव बहुत ज़्यादा था'' । राजू शिंदे ने हाल ही में दोबारा शादी की है ।
🚩बरी होने वाले छह में से दो लोगों के मां-बाप की मौत उनके जेल में रहने के दौरान हो गई । बेटों को मौत की सज़ा सुनाए जाने की ख़बर सुन कर उन्हें दिल का दौरा पड़ गया था ।
🚩उनके ग़रीब परिवारों को अक्सर नागपुर की जेल में मुलाक़ात के लिए बिना टिकट ट्रेन का सफ़र करना पड़ता था ।
🚩इनमें से एक की पत्नी रानी शिंदे बताती हैं, ''अगर टिकट कलेक्टर हमें पकड़ लेता था, तो हम उसे बताते थे कि हमारे पति जेल में हैं और हम बहुत ग़रीब हैं । हमारे पास टिकट के पैसे नहीं हैं । कभी कोई टिकट कलेक्टर भला मानुस होता था, तो उन्हें गाड़ी से नहीं उतारता था । लेकिन कई बार उन्हें ट्रेन से उतार भी दिया जाता था । ग़रीब की कोई इज़्ज़त नहीं है ।''
🚩राजू शिंदे कहते हैं, ''हमारा सब-कुछ छीन लिया गया । हमारी ज़िंदगी, हमारी रोज़ी । हमारा सब-कुछ लुट गया । और ऐसे अपराध के लिए जो हमने किया ही नहीं था ।''
🚩इन छहों लोगों को 5 जून 2003 की रात को नासिक के एक अमरूद के बाग़ में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या का दोषी पाया गया था । जहां ये लोग रहते हैं, नासिक वहां से क़रीब 300 किलोमीटर दूर है ।
🚩मारे गए लोगों के परिवार के केवल दो लोग इस हत्याकांड में बचे थे । इनमें एक आदमी और उसकी मां थे ।
🚩उन्होंने पुलिस को बताया कि सात से आठ लोगों ने उनके बाग़ पर हमला किया था । जब वो झोपड़ी में घुसे, तो, उनके पास चाकू, हंसिया और डंडे थे । झोपड़ी में बिजली नहीं थी । वो सभी हिंदी बोलने वाले थे और कह रहे थे कि वो मुंबई से आए हैं । उन्होंने बैटरी से चलने वाले टेप रिकॉर्डर को बहुत तेज़ आवाज़ में बजाना शुरू किया । इसके बाद उस बाग़ में रहने वाले परिवार से उनके पैसे और गहने मांगे ।
🚩दो चश्मदीदों के मुताबिक़, उन्होंने हमलावरों को क़रीब 6500 रुपए के पैसे और गहने दे दिए । इसके बाद हमलावरों ने शराब पी और फिर उनके परिवार पर हमला किया और पांच लोगों को मार डाला । इसके बाद उन्होंने मर चुकी औरत से बलात्कार भी किया । मारे गए सभी लोगों की उम्र 13 से 48 साल के बीच थी ।
🚩पुलिस ने अगली सुबह पूरे बाग़ में बिखरा हुआ ख़ून देखा था । उन्होंने वारदात वाली झोपड़ी से कैसेट के टेप, लकड़ी का डंडा, एक हंसिया और 14 जोड़ी सैंडल बरामद किए थे । उन्होंने ख़ून के धब्बे और हाथ के निशान भी दर्ज किए ।
🚩क़त्ल के एक दिन बाद पुलिस ने कुछ स्थानीय अपराधियों की फोटो पीड़ित चश्मदीद महिला को दिखाई । वो मुख्य गवाह बन चुकी थी । पुलिस ने उन तस्वीरों में से 19 से 35 साल के चार लोगों की शिनाख़्त की ।
🚩एक वक़ील ने बताया, ''वो सभी स्थानीय अपराधी थे और पुलिस रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज़ था'' ।
🚩सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़, पुलिस और सरकारी वक़ील ने ''इस सबूत को दबा दिया और चारों ही संदिग्धों को गिरफ़्तार नहीं किया गया'' ।
🚩इसके बजाय, घटना के तीन हफ़्ते बाद पुलिस ने शिंदे परिवार के सदस्यों को हिरासत में ले लिया । जबकि शिंदे परिवार घटनास्थल से सैकड़ों किलोमीटर दूर रहता था । वो कभी भी नासिक नहीं गए थे ।
🚩इन लोगों का कहना है कि पुलिस ने उन पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढाए । बिजली के झटके दिए और बुरी तरह पीटा ताकि वो जुर्म क़बूल कर लें' ।
🚩इसके बाद अजीबोगरीब घटना ये हुई कि वारदात की इकलौती चश्मदीद महिला ने भी उन लोगों की थाने में अपराधियों के तौर पर 'शिनाख़्त' कर दी ।
🚩2006 में निचली अदालत ने इन सभी को हत्या का दोषी माना और मौत की सज़ा सुना दी । इस मामले की जांच चार अलग-अलग पुलिसवालों ने की थी । मुक़दमे की सुनवाई के दौरान सरकारी वक़ील ने 25 गवाहों के बयान भी दर्ज कराए थे ।
🚩इसके बाद अगले एक दशक या उससे भी ज़्यादा समय के दौरान, पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने और फिर सुप्रीम कोर्ट ने, इन सभी लोगों को मुजरिम ठहराने के फ़ैसले को बरक़रार रखा । बॉम्बे हाई कोर्ट ने मौत की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दिया । लेकिन, देश की सर्वोच्च अदालत ने इसे पलटते हुए फांसी की सज़ा बहाल कर दी ।
🚩अदालतों ने इन लोगों को बेगुनाह साबित करने वाले सबूतों के ढेर को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया ।
🚩जहां वारदात हुई थी, उस झोपड़ी के अंदर और बाहर जो हाथ के निशान मिले थे, वो शिंदे परिवार के सदस्यों से नहीं मिले थे । उनके ख़ून और डीएनए के नमूने भी लिए गए । मगर, इनकी रिपोर्ट कभी अदालत में नहीं रखी गई ।
🚩सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2019 को दिए गए अपने फ़ैसले में कहा, ''ख़ून और डीएनए सैंपल के नतीजों से शिंदे भाइयों का जुर्म बिल्कुल भी साबित नहीं होता था'' ।
🚩चश्मदीदों ने पहले पुलिस को बताया था कि हमलावर हिंदी बोल रहे थे । जबकि शिंदे परिवार के सदस्यों को हिंदी आती ही नहीं । वो मराठी में बात करते हैं ।
🚩मुंबई के वक़ील युग चौधरी ने सबूतों की पड़ताल की । उन्हें साफ़ दिखा कि शिंदे परिवार के सदस्यों के ख़िलाफ़ तो कोई सबूत ही नहीं । इसके बाद युग चौधरी ने इन सभी की जान बचाने की लड़ाई क़रीब एक दशक तक लड़ी ।
🚩पहले युग चौधरी ने इन सभी की तरफ़ से पहले महाधिवक्ता, फिर राज्यपाल और आख़िर में राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दाख़िल की । युग चौधरी ने शिंदे परिवार के इन सदस्यों की तरफ़ से पूर्व न्यायाधीशों की एक चिट्ठी भी भारत के राष्ट्रपति के पास भिजवाई कि वो उनकी मौत की सज़ा को उम्र क़ैद में बदल दें ।
🚩सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने अपने फ़ैसले में लिखा है, ''ग़लत तरीक़े से सज़ा पाने वाले इन लोगों को अगर फांसी दे दी जाती, तो देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठ सकते थे'' ।
🚩इस अनसुलझी वारदात के 16 साल बाद बहुत से सवालों के जवाब अब तक नहीं मिले हैं ।
🚩आख़िर अदालतों ने शिंदे भाइयों को किस आधार पर दोषी पाया और मौत की सज़ा सुनाई? उन्हें चश्मदीद के बयान पर भरोसा कैसे हो गया, जबकि वो अपने बयान बदल रही थी । क्या शिंदे भाइयों को इस चश्मदीद के शिनाख़्त परेड में पहचानने के आधार पर ही सज़ा दे दी गई?
🚩वक़ील कहते हैं कि ये एक 'भयंकर अपराध' था । इसलिए पुलिस पर जनता और मीडिया का भारी दबाव था । तो, उन्होंने शिंदे भाइयों को पकड़कर हत्या के केस को सुलझाने का दावा किया और अपनी पीठ थपथपा ली ।
🚩आख़िर पुलिस ने उन चार लोगों के ख़िलाफ़ जांच क्यों नहीं की, जिन्हें चश्मदीद ने पुलिस फ़ाइल देखकर पहचाना था? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है ।
🚩आख़िर चश्मदीद ने अपना बयान बदलकर ग़लत आदमियों की शिनाख़्त क्यों ही? क्या ये मामला याददश्त जाने का था या फिर ग़लत पहचान का? या फिर चश्मदीद ने पुलिस के दबाव में बयान बदला? किसी को भी इन सवालों के जवाब नहीं पता ।
🚩सबसे अहम बात ये है कि आख़िर पुलिस ने इन छह बेगुनाह लोगों को क्यों गिरफ़्तार किया? ये तो घटनास्थल से क़रीब 300 किलोमीटर रह रहे थे । फिर पुलिस ने इन्हें क्यों फंसाया?
🚩ख़ास निगरानी
🚩वक़ील कहते हैं कि शिंदे भाइयों को पुलिस ने इसलिए फंसाया क्योंकि उनकी बिरादरी को अपराधी समुदाय माना जाता है । ये सोच अंग्रेज़ों के ज़माने से चली आ रही है । जब अंग्रेज़ों ने इस ग़रीब आदिवासी जनजाति को आपराधिक प्रवृत्ति का माना था । अंग्रेज़ों ने एक क़ानून बनाया था जिसमें इस जनजाति के सदस्यों को जन्मजात अपराधी बताया गया था । भारत के पुलिस मैनुअल में साफ़ लिखा है कि ऐसे आपराधिक समुदाय पर लगातार निगरानी रखी जानी चाहिए । उनके परिवार के सदस्यों को संदेह की नज़र से देखा जाना चाहिए ।
🚩इनमें से तीन लोगों को नासिक हत्याकांड से एक महीने पहले हुई हत्या में भी फंसाने की कोशिश की गई थी । लेकिन, पुलिस ने उन्हें इस मामले में निर्दोष मानकर 2014 में बरी कर दिया था ।
🚩उन्हें बरी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज भी इस बात को मानते हैं । इसीलिए उन्होंने अपने फ़ैसले में लिखा, ''आरोपी घुमंतू क़बीलों से ताल्लुक़ रखते हैं और समाज के निचले तबक़े से आते हैं । वो बहुत ग़रीब मज़दूर हैं । इसी वजह से उन्हें ग़लत तरीक़े से फंसाए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि गंभीर अपराधों में बेगुनाहों को फंसाए जाने की घटनाएं आम हैं ।''
🚩आख़िर में शिंदे भाइयों के साथ हुआ, वो हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था की गंभीर ख़ामी को उजागर करता है । इससे साफ़ है कि अपराधों से निपटने की हमारी न्यायिक व्यवस्था ग़रीब विरोधी है ।
🚩दिल्ली स्थित नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में क़ानून पढ़ाने वाले अनूप सुरेंद्रनाथ कहते हैं, ''शिंदे भाइयों ने जो तकलीफ़ झेली, वो मौत की सज़ा पाने वाले हर अपराधी की दास्तान है । हमारी न्यायिक व्यवस्था में बहुत सी खामियां हैं । वो ऐसी भयंकर ग़लतियां अक्सर कर बैठती है'' ।
🚩वो आगे कहते हैं, ''अगर सुप्रीम कोर्ट समेत इस देश की तीन अदालतें, जांच एजेंसियों की तरफ़ से पेश किए गए सबूतों में गड़बड़ी को पकड़ नहीं सकीं । वो ये नहीं देख सकीं कि इन छह लोगों को ग़लत तरीक़े से फंसाया गया है । तो हम ये कैसे मान लें कि हमारी न्यायिक व्यवस्था के तहत जिन लोगों को मौत की सज़ा मिली है, वो सही है''। -सौतिक बिस्वास, बीबीसी
🚩ऐसे फैसले सुनकर लगता है कि अब अंग्रेजो के कानून बदलकर भारतीय कानून बनाने चाहिए नहीं तो निर्दोष लोग जेल में ही सड़ते रहेंगे और अपराधी मजे से घूमते रहेंगे।
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अमेरिका झूठी रिपोर्ट दिखाकर भारत में अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है ?

27 जून 2019
🚩एक समय भारत देश सोने की चिड़िया कहलाता था, लेकिन आक्रमणकारी, लुटेरे मुग़ल व अंग्रेज भारत की अधिकतर संपत्ति को लूटकर ले गए । उसके बाद भी समृद्धि के मामले में भारत ने विश्व मे अपना स्थान अद्वितीय रखा है । इसलिए आज भी विदेशी लोगों की दृष्टि भारत पर है ।

🚩भारत देश हिंदू बाहुल्य देश है उसपर हमेशा विदेशी लोगों की गिद्ध दृष्ट रही है, वे हमेशा भारत पर अपना कब्जा करना चाहते हैं इसलिए हिन्दूद्वेष और भारतद्वेष के कारण अमेरिका द्वारा झूठी शिकायत की गई है।
🚩पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि देशों में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर भयंकर अत्याचार हो रहे हैं उसपर अमेरका कोई रिपोर्ट जारी नहीं कर रहा है पर भारत के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए चिंता जता रहा है बड़ा आश्चर्य है।
🚩आपको बता दें कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अपनी वार्षिक 2018 अन्तर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट में आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भाजपा के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए । रिपोर्ट में कहा गया कि ‘हिंसक चरमपंथी हिंदू समूहों द्वारा अल्पसंख्यकों समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों के खिलाफ भीड़ का हमला पूरे साल जारी रहा !’
🚩विदेश मंत्रालय ने उस अमेरिकी रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया है । विदेश मंत्रालय ने रविवार को जारी किए गए बयान में कहा कि, ‘भारत को अपनी धर्मनिरपेक्ष साख पर गर्व है, यह सहिष्णुता और समावेशन की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के साथ सबसे बड़े लोकतंत्र और बहुलतावादी समाज के रूप में स्थित है !’
🚩विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार-
मंत्रालय ने कहा कि, ‘भारतीय संविधान अपने अल्पसंख्यक समुदायों सहित अपने सभी नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है। हम अपने नागरिकों के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों में किसी अन्य देश का हस्तक्षेप नहीं बर्दाश्त करेंगे !’ स्त्रोत : न्यूज 18
🚩बड़ा आश्चर्य तो ये है कि गत कुछ शतकों से अमेरिका के स्वयं के देश में चल रहा वर्णद्वेषी हिंसाचार रोकने में असफल सिद्ध हुई है । अमेरिका ने रेड इंडियन लोगों का (अमेरिका के मूल निवासी) वंशसंहार कर वहां बस्ती बनाई, यह इतिहास कोई भूला नहीं है, यह वह सदैव ध्यान रखे !
🚩संसारभर में अमेरिका ने स्वयं का वर्चस्व बनाने के लिए कितने देशों पर आक्रमण किए, यह भी कोई भूला नहीं है । छोटे से वियतनाम के विरोध में 9 वर्ष किया हुआ युद्ध अमेरिका का कौन सा हिंसाचार था, क्या वह यह बताएगा ?
🚩भारत के कश्मीर में 3 दशकों पूर्व धर्मांधों ने धर्म के आधार पर हिन्दुआें पर आक्रमण किया तथा उन्हें कश्मीर से बाहर खदेड़ दिया एवं भारत में अनेक वर्षों से धर्मांधों द्वारा हिन्दुआें पर अत्याचार हो रहे हैं, क्या उस विषय में अमेरिका ने कभी अपना मुंह खोला है ?
🚩उत्तरप्रदेश कैराना में मुस्लिम समुदाय से प्रताड़ित करने पर हिंदुओं को पलायन करना पड़ा। बंगाल में सैंकड़ो हिंदुओं की हत्या कर दी गई, देशभर में अनेक स्थान पर हिंदुओं की हत्या हो रही है, लव जिहाद में हिंदू युवतियों को फँसाया जा रहा है, लैंड जिहाद किया जा रहा है फिर भी अमेरिका इसपर रिपोर्ट जारी नही करती है और कुछ अल्पसंख्यको की हटे हुई तो हिंदूओं को हिंसक बता दिया।
🚩पाकिस्तान में तो हिंदुओं को अपना कोई अधिकार ही नहीं दिया गया, नाबालिग लड़कियों को उठा ले जाते हैं, जमीन हड़प लेते हैं, पुलिस और सरकार उनकी सुनती नहीं है । यहां तक ही मुर्दो को जलाने के लिए श्मशान तक नहीं है, यही ही हालत बांग्लादेश और अफगानिस्तान में है । इसपर अमेरिका रिपोर्ट क्यो जारी नही करती है?
🚩चीन में 10 लाख मुसलमान को कैदी बनाया गया है, दाढ़ी नहीं रख सकते, बुरखा नहीं पहन सकते कोई धार्मिक आज़ादी नहीं है फिर भी अमेरिका उनके खिलाफ रिपोर्ट जारी नहीं कर रही है और हिंदुओं के खिलाफ रिपोर्ट जारी कर रही है बड़ा आश्चर्य है।
🚩जैसे भगवा आतंकवाद का नाम लेकर हिंदुओं को बदनाम करने की साजिश रची गयी थी ऐसे ही अमेरिका की साजिश लग रही है सहिष्णु हिंदू समाज को बदनाम करने की, इसलिए मीडिया, सेकुलर, गद्दार लोग हमेंशा हिंदुओं के खिलाफ एजेंडा चलाते रहते हैं ।
🚩हिंदुओं को सावधान रहने की आवश्यकता है, राष्ट्रविरोधी ताकतें पहले हिन्दू साधु-संतों को फिर हिंदुनिष्ठ नेता एवं हिंदूवादी संस्थाओं और फिर हिंदुओं को बदनाम कर रहे हैं । यह साज़िश इसलिए रची जा रही है ताकि हिंदू कमजोर हो तो देश में धर्मान्तरण आसानी से कर सकें और फिर से देश पर राज कर सकें पर हिंदुओं को जात-पात में न बंटकर एक होकर इस षडयंत्र का मुकाबला करना चाहिए।
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जानिए बाबा राम रहीम की पेरोल की बात सुनते ही मीडिया शोर क्यों मचाने लगी ?

26 जून 2019
http://azaadbharat.org

🚩जिस देश में मीडिया ही सब फैसले करती हो, उस देश में जज या सरकार की जरूरत नहीं है । स्वतंत्रता के नाम पर कुछ मीडिया चैनल टीआरपी और पैसे के लिए पक्षपाती खबरें दिखाकर देशवासियों को गुमराह कर रही हैं और अन्तर्राष्ट्रीय लेवल पर भारत की छवि धूमिल करने का घिनौना कार्य कर रही है।


🚩आपको पता होगा कि अभिनेता सलमान खान ने जब फुटपाथ पर सोए गरीबों को दारू पीकर कुचल दिया था, उस केस में सेशन कोर्ट से सजा सुनाई जानी थी, लेकिन सजा सुनाने से पहले ही मीडिया सलमान खान के पक्ष में खबरें दिखाकर न्यायालय पर दबाव डालना चाह रही थी फिर भी न्यायालय ने अडिग रहकर सजा सुनाई, जैसे ही सजा सुनाई तो मीडिया उनके किये गए अच्छे कार्य गिनाने लग गई, समर्थक मर जाएंगे, करोड़ों का नुकसान होगा, सलमान बहुत अच्छे हैं आदि आदि ऐसा बताकर कुछ मीडिया ने सलमान खान के पक्ष में इतना दिखाया कि हाईकोर्ट ने 2 घण्टे में ही जमानत दे दी, 1 मिनिट के लिए भी जेल नहीं जाने दिया । अगर मीडिया सहीं होती तो जो गरीब मर गए उनके पक्ष में दिखाकर उनको न्याय दिलवाती पर ऐसा नहीं किया क्योंकि उसके लिए पैसे नहीं मिलते है, सलमान से मिल जाते होंगे।

🚩दूसरा मामला था कि संजय दत्त का, जिसने आतंकवादियों के हथियार अपने घर में रखे थे जो एक देशविरोधी कार्य था फिर भी उसको सजा के दौरान बार-बार पेरोल मिल रही थी, पता है क्यों ? क्योंकि मीडिया हमेशा संजय दत्त गुणगान करती रहती थी।

🚩तीसरी घटना है जालंधर के ईसाई पादरी बिशप फ्रैंको की, जिसके खिलाफ 13 बार बलात्कार करने का आरोप है, कई महीनों तक ननों ने न्याय पाने के लिए अनशन किया फिर भी 21 दिनों में ही बिशप को जमानत मिल गई क्योंकि मीडिया बिशप के पक्ष में खबरें दिखा रही थी, ननों को न्याय दिलाना उसका मकसद नहीं था। अगर निष्पक्ष होती तो ननों का समर्थन करती।

🚩अब खबर आ रही है कि बाबा राम रहीम ने पेरोल की मांग की है। अभी तो पेरोल का सिर्फ आवेदन किया है और मंत्री ने सिर्फ इतना बोला कि उनका आचरण अच्छा रहा है उसपर मीडिया ने हल्ला शुरू कर दिया। बोलने लगी कि चुनाव आ रहे हैं इसलिए BJP छोड़ रही है अगर ऐसा होता तो BJP लोकसभा चुनाव के समय ही रिहा कर देती, क्या लोकसभा के लिए BJP को सीटें नहीं चाहिए थी?

🚩यही मीडिया आरुषि कांड में तलवार दंपति को हत्यारा बता रही थी । निचली अदालत ने उम्रकैद की सजा भी सुना दी, लेकिन हुआ क्या 9 साल बाद हाईकोर्ट ने निर्दोष बरी किया, तबतक मीडिया इनको पूरी दुनिया मे हत्यारा बता चुकी थी पर जैसे ही निर्दोष बरी हुए तो मीडिया ने खबर गायब कर दी । एक दो निष्पक्ष मीडिया चैनल ने किसी कोने में थोड़ा सा बताया था ।

🚩बाबा राम रहीम को भी निचली अदालत ने सजा सुनाई है हो सकता है कि ऊपरी कोर्ट से निर्दोष बरी भी हो जाये, न्यायालय एवं सरकार अपना काम कर रहे हैं, लेकिन मीडिया उनको बलात्कारी, हत्यारा बोलकर जनता के मन मे जहर घोल रही है, जबकि बाबा राम रहीम के जेल जाने के बाद कई ईसाई पादरी और मौलवियों ने बलात्कार किये और जेल गए पर उनकी कहीं भी खबर नहीं है पर बाबा पानी भी पिएं तो खबरें आ जाती हैं, कहीं ये एक सोची समझी साजिश तो नहीं है ? हम चाहते हैं कि न्यायालय और सरकार को इसमें काम करने देना चाहिए मीडिया को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। अगर मीडिया उनके खिलाफ दिखाती भी है तो उनके व्यसन मुक्ति, सफाई अभियान, ब्लड डोनेट आदि अच्छे सेवाकार्य भी दिखाएं एकतरफा न्यूज दिखाकर जनता को गुमराह करने का कार्य न करे ।

🚩मीडिया अगर बलात्कार की घटनाएं से इतना ही खफा है तो पहले अपने चैनल पर जो अश्लीलता वाले विज्ञापन दे रही है उसको दूर करे, दूसरा 2.5 साल की मासूम बच्ची के साथ जो दरिदंगी हुई है उसका मामला उठाए, मदरसे एवं चर्च में जो छोटे बच्चों का यौन शोषण हो रहा है उस मुद्दे को हाईलाइट करें केवल एक बाबा के पीछे अपनी समय शक्ति बर्बाद न करें।

🚩देश में गरीबो, किसानों, भ्रष्टाचार, धारा 370, कश्मीर पंडित, श्री राम मंदिर, गौहत्या आदि बहुत मुद्दे हैं उनपर भी मीडिया को बहस करना चाहिए इन सबको भी न्याय दिलवाना चाहिए।

🚩मीडिया के अंदर भी क्या-क्या होता है वे अगर उनकी खुद की सच्चाई दिखाने लग जाएं तो किसी के सामने मुँह उठाने लाइक नहीं रहेंगे, कई बार मीडिया मालिको एवं पत्रकारों पर उनको ही सहयोगी महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाए हैं, लेकिन वे सब खबरें छुपा दी जाती हैं ।

🚩कुछ मीडिया मोब लॉन्चिंग में भी केवल हिंदुओं को कोसने का कार्य करती है जबकि हिंदू बहुत सहिष्णु हैं, उनके ऊपर बहुत अत्याचार होते हैं तभी हिंसा करते है, फिर भी ये कहते हैं कि हिंसा नहीं करनी चाहिए, लेकिन जब मुसलमान समुदाय से हिंदुओं की सरेआम हत्या कर दी जाती है तब चुप क्यों हो जाते है, जैसे आसिफा पर हल्ला, लेकिन ट्वींकल पर चुप्पी, अखलाक पर शोर पर धुव त्यागी पर मौन, तवरेज पर हलाल पर गंगाराम पर मौन ऐसा दोगलापन कौन सिखाता है?

🚩मीडिया से प्रार्थना है कि आपको स्वतंत्रता मिली है उसका दुरुपयोग नही करें । निष्पक्ष खबरें दिखाकर स्वतंत्रता का सदुपयोग करे। जबतक मीडिया ऐसा नहीं करती है तब तक देशवासियों को ऐसी मीडिया का बहिष्कार करना चाहिए।

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मॉब लिंचिंग को हमेशा एक तरफा ही क्यों हाईलाइट किया जाता है ?


25 जून 2019
🚩देश में भीड़ द्वारा हत्या की जो घटनाएं सामने आई हैं, उसमें अधिकतर मरने वाले हिन्दू समुदाय से ही हैं और मारने वाले मुसलमान समुदाय से हैं, कुछ गिनी चुनी घटनाएं है जिसमें मरने वाले मुस्लिम हैं पर मीडिया और सेक्युलर लोग केवल तभी शोर शराबा करते हैं जब कोई मुसलमान मरता है, पर जब किसी हिन्दू की हत्या होती है तब एक छोटी सी खबर भी नहीं दिखाते हैं । भीड़ द्वारा किसी भी समुदाय के व्यक्ति की हत्या हुई हो उन सबका विरोध होना चाहिए, लेकिन यह जो दोगलापन है वह देश के लिए नुकसानदायक है, मीडिया ही धर्म के नाम पर उकसाती है और फिर बोलती है धर्म के नाम पर हत्या नहीं होनी चाहिए ।

🚩तबरेज़ अंसारी की घटना-
पिछले कुछ समय से तबरेज़ अंसारी का नाम मीडिया में छाया हुआ है । मोटरसाइकल चोरी के आरोप में तबरेज़ को भीड़ ने पीटा । घटना के 4 दिन बाद 22 जून को 24 साल के तबरेज़ की मृत्यु हो गई । इस घटना ने तूल पकड़ा मीडिया, सेक्युलर लोग शोर मचाने लगे । तबरेज़ अंसारी पर हमला करने वालों पर 302 (हत्या) और 295A (जानबूझ कर धार्मिक भावनाएं आहत करने और उसके खिलाफ हरकत करने) को लेकर धाराएं लगाई गई हैं ।
🚩दूसरी घटना गंगाराम की-
उत्तरप्रदेश पीपली उमरपुर निवासी गंगाराम की 15 वर्षीय बेटी 18/19 जून की रात को गायब हो गई थी । गंगाराम ने गांव के ही मुस्लिम समुदाय के युवक व उसके साथियों पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते हुए डिलारी पुलिस से शिकायत की थी । शिकायत पुलिस से करने पर आरोपियों ने उसके पिता गंगाराम को पीट-पीटकर मार डाला । गंगाराम के परिवार वालों की भी पिटाई की। पुलिस का कहना है कि किशोरी को गांव का ही नदीम फुसलाकर ले गया था । नदीम को गिरफ्तार कर किशोरी को बरामद कर लिया गया है।
🚩अब प्रश्न उठता है कि बेटी के अपहरण की शिकायत करने पर गंगाराम की पीटकर हत्या कर दी तो कोई खबर मीडिया में नहीं आई और ना ही किसी सेक्युलर ने शोर मचाया, लेकिन एक बाइक चोर को भीड़ पिटती है उसके बाद जेल जाता है और जेल जाने के बाद हॉस्पिटल में 4 दिन के बाद मौत होती है उसके लिए बहुत शोर मचाते हैं । नेता घर पहुँच जाते हैं पर गंगाराम के घर कोई नहीं जाता है और ना ही पूछता है।
🚩बता दें गाय का मांस घर में रखने वाले अखलाक पर बहुत शोर मचा था पर लस्सी के पैसे मांगने पर भरत यादव की पीटकर हत्या कर दी तब किसी ने भी आवाज नहीं निकाली । वैसे ही जम्मू की आसिफ़ा के केस में कई महीनों तक मीडिया ट्रायल चला पर ट्विंकल के लिए कोई मीडिया ट्रायल नहीं चला और ना ही कोई नेता घर गया और सेकुलर लोगों ने भी मौन धारण कर लिया ।
🚩जहां एक ओर तबरेज़ अंसारी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है वहीं ट्विटर पर #BharatYadav ट्रेंड करने लगा था । भरत यादव मथुरा का वो लस्सी बेचने वाला था जिसे मुस्लिम भीड़ ने एक छोटे से विवाद के चलते मार डाला था।
🚩ट्विटर का ये सवाल एक तीखा प्रहार भी है । क्या वाकई भारत में अब सब कुछ मतलब से होने लगा है ? क्या सेक्युलर होना सिर्फ हिंदुओं को सिखाया जाता है ? जो भी घटनाएं हुईं वो गलत थी । चाहें वो हिंदू ने की या मुस्लिम की तरफ से हुई या ऐसी कोई घटना किसी और धर्म की तरफ से होती है तो भी वो गलत ही रहेगी ।
🚩पर Selective Outrage का मसला भारत में काफी समय से चला आ रहा है और इसे लेकर पहले भी काफी बहस हो चुकी है। जब तक इस तरह का सिलेक्टिव आउटरेज चलता रहेगा तब तक इस तरह की घटनाओं का होना चलता रहेगा। ट्विटर पर भरत यादव के ट्रेंड होने का भी यही कारण है।
🚩क्या ये ट्रेंड सही है?
ये एक बहुत बड़ी बहस का हिस्सा है और ये बिलकुल सहीं है कि अगर तबरेज़ को लेकर लोग दुःखी हो रहे हैं तो उन्हें भरत यादव को लेकर भी दुःखी होना चाहिए। दोनों ही मामलों में दो लोगों की जान गई है । अगर तबरेज़ को 'जय श्री राम' बोलने को कहा गया तो भरत यादव को भी 'काफिर' कहा गया । ये दोनों ही मामले एक ही जैसे थे । गलती किसकी, किसे दोष दिया जाए? भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, लेकिन इन सब मामलों में कम से कम मरने वालों के लिए एक समान शोक तो व्यक्त किया ही जा सकता है। भरत यादव ने भी एक तरह से अपना काम ही किया था, लेकिन उसे किस बात की सज़ा मिली?
🚩बता दें कि 1 फरवरी 2018 को दिल्ली के अंकित सक्सेना को मार डाला गया था । बीच चौराहे उसका गला काट दिया गया था क्योंकि वो एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था । 23 साल का अंकित अपने घर में एकलौता लड़का था ।
दिल्ली में बेटी छेड़ने का विरोध करने पर पूरा परिवार मिलकर ध्रुव त्यागी और उसके बेटे को चाकुओं से गोद देता है जिसनें ध्रुव त्यागी की मृत्यु हो जाती है ।
🚩यूपी के शिकोहाबाद में दलित युवक विद्याराम की घर से खींचकर हत्या परवेज रेहान और युसूफ हत्या कर देते हैं।
कर्नाटक में गौ तस्करी विरोध करने पर शिवू को बस स्टैंड में फांसी पर लटकाकर मार देते हैं ।
🚩जहां एक ओर तबरेज़, मोहम्मद अखलाख, पहलू खान की मौत पर बाकायदा डिबेट होती है, मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले अपराधों को गिनवाया जाता है। पर हिंदुओं की हत्या क्यों नहीं गिनवाई जा रही है? वहां इतना सिलेक्टिव विरोध क्यों?
🚩मृत्यु चाहे जिस भी पक्ष के इंसान की हो हमला करने वाली तो भीड़ ही होती है । क्यों नहीं ये कहा जा सकता कि इन मामलों में मरने वाले इंसान थे । मीडिया, सेकुलर लोगों द्वारा जबतक एक तरफा रंग ऐसे मामलों को दिया जाता रहेगा तब तक ऐसे किस्से बढ़ते रहेंगे । ये सोचने वाली बात है कि क्या वाकई हम इसे रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं या फिर इस तरह के मुद्दों से अपना गुस्सा बढ़ा रहे हैं और नफरत पैदा कर रहे हैं?
🚩पहले तो ऐसे मामले होने नहीं चाहिए, अगर होते हैं तो उसको रोकने के लिए कानून है, उसे काम करने देना चाहिए । एक तरफा डिबेट बैठाकर हिंदुओं को नीचा दिखाना आपस मे लड़ना-भिड़ना यह उचित नहीं है। इसपर रोक लगनी चाहिए ।
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नारी है महान : रानी दुर्गावती ने तीन बार मुगल सेना को रौंद दिया था

24 जून 2019

🚩 *भारत में शूर, बुद्धिमान और साहसी कई वीरांगना पैदा हुई, जिनके नाम से ही मुगल सल्तनत काँपने लगती थी पर दुर्भाग्य की बात यह है कि भारत के इतिहास में उनको कहीं स्थान नहीं दिया गया इसके विपरीत क्रूर, लुटेरे, बलात्कारी मुगलों व अंग्रेजो का इतिहास पढ़ाया जाता है । आज अगर सही इतिहास पढ़ाया जाए तो हमारी भावी पीढ़ी पश्चिमी संस्कृति की तरफ मुड़कर भी नही देखेगी इतना महान इतिहास है अपना ।*

🚩 *भारत की नारियों में अथाह सामर्थ्य है, अथाह शक्ति है। अपनी छुपी हुई शक्ति को जाग्रत करके अवश्य महान बन सकती है । आज स्वतन्त्रता और फैशन के नाम पर नारियों का शोषण किया जा रहा है। नारी अबला नही बल्कि सबला है । नारी कितनी महान है उसका आपको एक महान नारी की याददाश्त को ताजा कराते हैं।* 

🚩 *रानी दुर्गावतीका जन्म 10 जून, 1525 को तथा हिंदु कालगणनानुसार आषाढ शुक्ल द्वितीयाको चंदेल राजा कीर्ति सिंह तथा रानी कमलावतीके गर्भसे हुआ । वे बाल्यावस्थासे ही शूर, बुद्धिमान और साहसी थीं । उन्होंने युद्धकलाका प्रशिक्षण भी उसी समय लिया । प्रचाप (बंदूक) भाला, तलवार और धनुष-बाण चलानेमें वह प्रवीण थी । गोंड राज्यके शिल्पकार राजा संग्रामसिंह बहुत शूर तथा पराक्रमी थे । उनके सुपुत्र वीरदलपति सिंहका विवाह रानी दुर्गावतीके साथ वर्ष 1542 में हुआ । वर्ष 1541 में राजा संग्राम सिंहका निधन होनेसे राज्यका कार्यकाज वीरदलपति सिंह ही देखते थे । उन दोनोंका वैवाहिक जीवन 7-8 वर्ष अच्छेसे चल रहा था । इसी कालावधिमें उन्हें वीरनारायण सिंह नामक एक सुपुत्र भी हुआ ।*

🚩 *रानी दुर्गावतीने राजवंशवकी बागडोर थाम ली*

*दलपतशाहकी मृत्यु लगभग 1550 ईसवी सदीमें हुई । उस समय वीर नारायणकी आयु बहुत अल्प होनेके कारण, रानी दुर्गावतीने गोंड राज्यकी बागडोर (लगाम) अपने हाथोंमें थाम ली । अधर कायस्थ एवं मन ठाकुर, इन दो मंत्रियोंने सफलतापूर्वक तथा प्रभावी रूपसे राज्यका प्रशासन चलानेमें रानीकी मदद की । रानीने सिंगौरगढसे अपनी राजधानी चौरागढ स्थानांतरित की । सातपुडा पर्वतसे घिरे इस दुर्गका (किलेका) रणनीतिकी दृष्टिसे बडा महत्त्व था।*

🚩 *कहा जाता है कि इस कालावधिमें व्यापार बडा फूला-फला । प्रजा संपन्न एवं समृद्ध थी । अपने पतिके पूर्वजोंकी तरह रानीने भी राज्यकी सीमा बढाई तथा बडी कुशलता, उदारता एवं साहसके साथ गोंडवनका राजनैतिक एकीकरण ( गर्‍हा-काटंगा) प्रस्थापित किया । राज्यके 23000 गांवोंमेंसे 12000 गांवोंका व्यवस्थापन उसकी सरकार करती थी । अच्छी तरहसे सुसज्जित सेनामें 20,000 घुडसवार तथा 1000 हाथीदलके साध बडी संख्यामें पैदलसेना भी अंतर्भूत थी । रानी दुर्गावतीमें सौंदर्य एवं उदारताका धैर्य एवं बुद्धिमत्ताका सुंदर संगम था । अपनी प्रजाके सुखके लिए उन्होंने राज्यमें कई काम करवाए तथा अपनी प्रजाका ह्रदय (दिल) जीत लिया । जबलपुरके निकट ‘रानीताल’ नामका भव्य जलाशय बनवाया । उनकी पहलसे प्रेरित होकर उनके अनुयायियोंने चेरीतल का निर्माण किया तथा अधर कायस्थने जबलपुरसे तीन मीलकी दूरीपर अधरतलका निर्माण किया । उन्होंने अपने राज्यमें अध्ययनको भी बढावा दिया ।*

🚩 *शक्तिशाली राजाको युद्ध में हराया*

*राजा दलपतिसिंहके निधनके उपरांत कुछ शत्रुओंकी कुदृष्टि इस समृद्धशाली राज्यपर पडी । मालवाका मांडलिक राजा बाजबहादुरने विचार किया, हम एक दिनमें गोंडवाना अपने अधिकारमें लेंगे । उसने बडी आशासे गोंडवानापर आक्रमण किया; परंतु रानीने उसे पराजित किया । उसका कारण था रानीका संगठन चातुर्य । रानी दुर्गावतीद्वारा बाजबहादुर जैसे शक्तिशाली राजाको युद्धमें हरानेसे उसकी कीर्ति सर्वदूर फैल गई । सम्राट अकबरके कानोंतक जब पहुंची तो वह चकित हो गया । रानीका साहस और पराक्रम देखकर उसके प्रति आदर व्यक्त करनेके लिए अपनी राजसभाके (दरबार) विद्वान `गोमहापात्र’ तथा `नरहरिमहापात्र’को रानीकी राजसभामें भेज दिया । रानीने भी उन्हें आदर तथा पुरस्कार देकर सम्मानित किया । इससे अकबरने सन् 1540 में वीरनारायणसिंहको राज्यका शासक मानकर स्वीकार किया । इस प्रकारसे शक्तिशाली राज्यसे मित्रता बढने लगी । रानी तलवारकी अपेक्षा बंदूकका प्रयोग अधिक करती थी । बंदूकसे लक्ष साधनेमें वह अधिक दक्ष थी । ‘एक गोली एक बली’, ऐसी उनकी आखेटकी पद्धति थी । रानी दुर्गावती राज्यकार्य संभालनेमें बहुत चतुर, पराक्रमी और दूरदर्शी थी।*

🚩 *अकबरका सेनानी तीन बार रानिसे पराजित*

*अकबरने वर्ष 1563 में आसफ खान नामक बलाढ्य सेनानीको (सरदार) गोंडवानापर आक्रमण करने भेज दिया । यह समाचार मिलते ही रानीने अपनी व्यूहरचना आरंभ कर दी । सर्वप्रथम अपने विश्वसनीय दूतों द्वारा अपने मांडलिक राजाओं तथा सेनानायकोंको सावधान हो जानेकी सूचनाएं भेज दीं । अपनी सेनाकी कुछ टुकडियोंको घने जंगलमें छिपा रखा और शेषको अपने साथ लेकर रानी निकल पडी । रानीने सैनिकोंको मार्गदर्शन किया । एक पर्वतकी तलहटीपर आसफ खान और रानी दुर्गावतीका सामना हुआ । बडे आवेशसे युद्ध हुआ । मुगल सेना विशाल थी । उसमें बंदूकधारी सैनिक अधिक थे । इस कारण रानीके सैनिक मरने लगे; परंतु इतनेमें जंगलमें छिपी सेनाने अचानक धनुष-बाणसे आक्रमण कर, बाणोंकी वर्षा की । इससे मुगल सेनाको भारी क्षति पहुंची और रानी दुर्गावतीने आसफ खानको पराजित किया । आसफ खानने एक वर्षकी अवधिमें 3 बार आक्रमण किया और तीनों ही बार वह पराजित हुआ।*

🚩 *स्वतंत्रताके लिए आत्मबलिदान*

*अंतमें वर्ष 1564 में आसफखानने सिंगारगढपर घेरा डाला; परंतु रानी वहांसे भागनेमें सफल हुई । यह समाचार पाते ही आसफखानने रानीका पीछा किया । पुनः युद्ध आरंभ हो गया । दोनो ओरसे सैनिकोंको भारी क्षति पहुंची । रानी प्राणोंपर खेलकर युद्ध कर रही थीं । इतनेमें रानीके पुत्र वीरनारायण सिंहके अत्यंत घायल होनेका समाचार सुनकर सेनामें भगदड मच गई । सैनिक भागने लगे । रानीके पास केवल 300 सैनिक थे । उन्हीं सैनिकोंके साथ रानी स्वयं घायल होनेपर भी आसफखानसे शौर्यसे लड रही थी । उसकी अवस्था और परिस्थिति देखकर सैनिकोंने उसे सुरक्षित स्थानपर चलनेकी विनती की; परंतु रानीने कहा, ‘‘मैं युद्ध भूमि छोडकर नहीं जाऊंगी, इस युद्धमें मुझे विजय अथवा मृत्युमें से एक चाहिए ।” अंतमें घायल तथा थकी हुई अवस्थामें उसने एक सैनिकको पास बुलाकर कहा, “अब हमसे तलवार घुमाना असंभव है; परंतु हमारे शरीरका नख भी शत्रुके हाथ न लगे, यही हमारी अंतिम इच्छा है । इसलिए आप भालेसे हमें मार दीजिए । हमें वीरमृत्यु चाहिए और वह आप हमें दीजिए”; परंतु सैनिक वह साहस न कर सका, तो रानीने स्वयं ही अपनी तलवार गलेपर चला ली।*

🚩 *वह दिन था 24 जून 1564 का, इस प्रकार युद्ध भूमिपर गोंडवानाके लिए अर्थात् अपने देशकी स्वतंत्रताके लिए अंतिम क्षणतक वह झूझती रही । गोंडवानापर वर्ष 1549 से 1564 अर्थात् 15 वर्ष तक रानी दुर्गावतीका अधिराज्य था, जो मुगलोंने नष्ट किया । इस प्रकार महान पराक्रमी रानी दुर्गावतीका अंत हुआ । इस महान वीरांगनाको हमारा शतशः प्रणाम !*

🚩 *जिस स्थानपर उन्होंने अपने प्राण त्याग किए, वह स्थान स्वतंत्रता सेनानियोंके लिए निरंतर प्रेरणाका स्रोत रहा है ।*

🚩 *उनकी स्मृतिमें 1883 में मध्यप्रदेश सरकारने जबलपुर विश्वविद्यालयका नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा ।*

🚩 *इस बहादुर रानीके नामपर भारत सरकारने 24 जून 1988 को डाकका टिकट प्रचलित कर (जारी कर) उनके बलिदानको श्रद्धांजली अर्पित की ।*

🚩 *गोंडवानाको स्वतंत्र करने हेतु जिसने प्राणांतिक युद्ध किया और जिसके रुधिरकी प्रत्येक बूंदमें गोंडवानाके स्वतंत्रताकी लालसा थी, वह रणरागिनी थी महारानी दुर्गावती । उनका इतिहास हमें नित्य प्रेरणादायी है।*

🚩 *आज की भारतीय नारियाँ इन आदर्श नारियों से प्रेरणा पाकर आगे बढ़े, पाश्चात्य संस्कृति की तरफ न भागे । भारत की नारियां अपने बच्चों में सदाचार, संयम आदि उत्तम संस्कारों का सिंचन करें तो वह दिन दूर नहीं, जिस दिन पूरे विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की दिव्य पताका पुनः लहरायेगी। भारतकी नारियों आपमें बहुत महानता छुपी है आप चाहे तो शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह जैसे महान पुत्रो को जन्म देकर अपनी कोख को पावन कर सकती है, आप पाश्चात्य संस्कृति अपनाकर अपने को दिन-हीन नही बनाना बल्कि ऋषि-मुनियों एवं भगवद्गीता के अनुसार आचरन करके अपने को महान बनाना।*

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आज से बच्चियों से रेप की सजा होगी फांसी, पर क्या इससे रेप बंद होंगे ?

23 जून 2019
🚩देश में कुछ दिनों में बच्चियों के साथ दरिंदगी वाली ऐसी घटनाएं घटी हैं जिससे देशभर में रोष व्याप्त था । इसके मद्देनजर शनिवार को प्रधानमंत्री आवास पर हुई केंद्रीय मंत्रीमंडल की बैठक में 0-12 साल की बच्चियों के साथ बलात्कार करने वालों को सजा-ए-मौत देने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी गई ।
 रविवार को इस अध्यादेश को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी है। इसके बाद यह 6 महीनों के लिए कानून बन गया है । इन 6 महीनों के बीच सरकार इस अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों में पास कराएगी । बच्चियों से रेप के गुनहगारों को अब सख्त कैद से लेकर फांसी तक की सजा देने का रास्ता साफ हो गया है । साथ ही यह कानून आज से पूरे देश में लागू हो गया ।

🚩अध्यादेश के प्रावधानों के तहत अब 16 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से रेप के मामले में अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी । इस उम्र की लड़कियों से बलात्कार के मामले में न्यूनतम सजा 10 वर्ष कैद से बढ़ाकर 20 वर्ष की गई है वहीं ऐसे मामलों में अधिकतम उम्रकैद होगी, यानी स्वाभाविक मौत तक कैद । 16 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के साथ रेप की सज़ा 10 साल से बढ़ाकर 20 साल तक की गई।
🚩बलात्कार के कड़े कानून से हम खुश तो गये और होना भी चाहिए क्योंकि हमारी छोटी मासूम बच्चियों के साथ कोई दरिदंगी करेगा तो उसको माफ नहीं करना चाहिए उसको तुरंत फाँसी की सजा होनी चाहिए इससे हम भी सहमत हैं, लेकिन ऐसे कड़े कानून से फायदे की जगह नुकसान होने की संभावना भी तो है और क्या इन कड़े कानूनों से बलात्कार की घटनाएं बंद हो जाएंगी ?
🚩कड़े कानून से रेप बंद होंगे ?
बलात्कार के कड़े कानून बनाने के साथ-साथ जो फिल्मों, सीरियलों, विज्ञापनों, अखबारों, टीवी चैनलों, मीडिया, नावेल, संगीत, इंटरनेट, ऑफलाइन डीवीडी, पेनड्राइव आदि के द्वारा जो अश्लीलता परोसी जा रही है उसपर भी कड़े कानून बनने चाहिए,  सबसे पहले इसपर रोक लगनी चाहिए क्योंकि बलात्कार की घटनाओं को अंजाम देने में इनका सबसे ज्यादा हाथ है, जबतक इनपर रोक नहीं लगेगी और इनकी जगह धार्मिक फिल्में, सीरियलें, साहित्य, संगीत, अख़बार, विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे, तब तक ऐसी घटनाएं कम नहीं होंगी । इंटरनेट पर तो इतनी गंदगी छाई है कि उसको देखने के बाद तो नाबालिग बच्चे भी महिलाओं को पवित्र भाव से नहीं देख पा रहे हैं । बलात्कार के कड़े कानून के साथ इनपर भी शीघ्र कड़े कानून बनने चाहिए और साधु-संतों द्वारा दी जा रही संयम की शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए, तभी देश में महिलाओं के प्रति पवित्रता का भाव बढ़ेगा और रेप जैसी घिनौनी घटनाओं को रोकने में सफलता मिलेगी।
🚩इसका गलत दुरुपयोग होगा?
निर्भया कांड के बाद बलात्कार के कड़े कानून बने पर रिपोर्ट के अनुसार 2012 में दर्ज किये गए रेप केसों में से ज्यादातर केस बोगस पाए गए । 2013 की शुरुआत में यह आँकड़ा 75% तक पहुँच गया ।
🚩दिल्ली महिला आयोग की जाँच के अनुसार अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 तक बलात्कार की कुल 2,753 शिकायतों में से 1,466 शिकायतें झूठी पायी गयीं ।
🚩हर साल घट रही है दोष सिद्धि
रेप के मामलों में आरोपियों को दोषी करार दिए जाने की दर साल-दर-साल घटती जा रही है। 2016 में महिलाओं से रेप के महज 24 फीसदी मामलों में ही आरोपी दोषी साबित हो सके । वहीं, पॉक्सो के तहत 20 फीसदी से भी कम मामलों में दोष सिद्धि हो सकी ।
🚩दहेज कानून की तरह बलात्कार कानून का भी भयंकर दुरूपयोग हो रहा है उनपर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि पैसे ऐंठने के लिए कई गिरोह काम कर रहे हैं, जो नाबालिग बच्चियों को फुसलाकर केस करवा देते हैं । बाद में लाखों रुपये ऐंठने के बाद मामला रफा-दफा कर दिया जाता है । दूसरी तरफ कुछ मनचली लड़कियां भी बदला लेने की भावना से या पैसे ऐंठने के चक्कर में झूठे केस कर देती हैं । तीसरी तरफ राष्ट्रविरोधी ताकतें हिंदुनिष्ठ लोग एवं साधु-संतों को फंसाने के लिए इस कानून का भयंकर दुरुपयोग कर रहे हैं इसपर भी रोक लगनी चाहिए।
🚩हमारा कहना ये नहीं है कि बलात्कार के कड़े कानून न बनें पर हमारा यही कहना है कि बलात्कार के कड़े कानून के साथ जो अश्लीलता परोसी जा रही है उनपर भी कड़े कानून बनें और जो इस कानून का दुरूपयोग कर रहे हैं उनको भी कड़ी सजा का प्रावधान होना चाहिए, नहीं तो अश्लीलता परोसने पर न रेप कम होंगे और ना ही कानूनों का दुरुपयोग करने वालों को सजा होगी तो निर्दोष पुरूष फँसते जाएंगे ।
🚩सरकार से यही प्रार्थना है कि एक साथ तीनो कड़े कानून बनाओ बलात्कार करने वालों को फाँसी, अश्लीलता फैलाने वालों को उम्रकैद और झूठे केस करने वालो भी उम्रकैद हो तभी ऐसी घटनाएं रुकेंगी औए निर्दोष पुरुषों पर भी अन्याय नहीं होगा ।
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सेठ अमरचन्द ने फाँसी की सजा स्वीकार की पर राष्ट्रसेवा नहीं छोड़ी

22 जून 2019

🚩भारत को मुगलों ने 700 साल और अंग्रेजों ने 200 साल तक गुलाम रखा और खजाना लूटते रहे, देशवासियों पर अत्याचार करते रहे, लेकिन फिर भी मुट्ठीभर देश के वीरों ने उनको खदेड़कर रख दिया लेकिन अंग्रेज जाने के बाद इतिहासकारों ने हमारे वीर देशभक्तों के साथ बड़ा अन्याय किया, जिन्होंने हमें गुलाम बनाया, देश को लूटा उनका इतिहास तो हमें पढ़ाया जाता है और इतिहास में भी गुणगान किया गया हैं, लेकिन जिन वीरों ने हमें स्वतंत्रता दिलवाने के लिए अपनी जवानी का बलिदान दे दिया, सुख-सुविधाओं का त्याग करके अनेक कष्ट सहन किये और हँसते-हँसते अपने प्राणों की बलि दे दी, जिनके कारण हम चैन से जीवन जी रहे हैं उनका इतिहास आज पढ़ाया नहीं जा रहा है, कितना अन्यायपूर्ण इतिहास लिखा गया है ।


🚩आपको एक और जीवंत उदाहरण के तौर पर भामाशाह का दृष्टांत दे रहे हैं, जिन्होंने 1857 की क्रांति में अपना सर्वस्व इस राष्ट्र के लिए लुटा दिया । भामाशाह ने पहले अपना धन और बाद में अपना जीवन इस राष्ट्र के नाम कर दिया पर उनके चेहरे पर सदा रही एक मुस्कान क्योंकि उन्होंने दिया था इस देश के लिए प्राण । पर तथाकथित चाटुकार इतिहासकारों और नकली कलमकारों ने उन्हें कभी भी सच्चे मन से याद करना तो दूर उनका नाम थी ठीक से लेना भी उचित नहीं समझा और कर दिया गया उन्हें गुमनाम ।

🚩स्वाधीनता समर के अमर सेनानी सेठ अमरचन्द मूलतः बीकानेर (राजस्थान) के निवासी थे । वे अपने पिता श्री अबीर चन्द बाँठिया के साथ व्यापार के लिए ग्वालियर आकर बस गये थे । जैन मत के अनुयायी अमरचन्द जी ने अपने व्यापार में परिश्रम, ईमानदारी एवं सज्जनता के कारण इतनी प्रतिष्ठा पायी कि ग्वालियर राजघराने ने उन्हें नगर सेठ की उपाधि देकर राजघराने के सदस्यों की भाँति पैर में सोने के कड़े पहनने का अधिकार दिया। आगे चलकर उन्हें ग्वालियर के राजकोष का प्रभारी नियुक्त किया।

🚩अमरचन्द जी बड़े धर्मप्रेमी व्यक्ति थे । 1855 में उन्होंने चातुर्मास के दौरान ग्वालियर पधारे सन्त बुद्धि विजय जी के प्रवचन सुने । इससे पूर्व वे 1854 में अजमेर में भी उनके प्रवचन सुन चुके थे । उनसे प्रभावित होकर वे विदेशी और विधर्मी राज्य के विरुद्ध हो गये । 1857 में जब अंग्रेजों के विरुद्ध भारतीय सेना और क्रान्तिकारी ग्वालियर में सक्रिय हुए तो सेठ जी ने राजकोष के समस्त धन के साथ अपनी पैतृक सम्पत्ति भी उन्हें सौंप दी ।

🚩उनका मत था कि राजकोष जनता से ही एकत्र किया गया है। इसे जनहित में स्वाधीनता सेनानियों को देना अपराध नहीं है और निजी सम्पत्ति वे चाहे जिसे दें; पर अंग्रेजों ने राजद्रोही घोषित कर उनके विरुद्ध वारण्ट जारी कर दिया। ग्वालियर राजघराना भी उस समय अंग्रेजों के साथ था।

🚩अमरचन्द जी भूमिगत होकर क्रान्तिकारियों का सहयोग करते रहे; पर एक दिन वे शासन के हत्थे चढ़ गये और मुकदमा चलाकर उन्हें जेल में ठूँस दिया गया। सुख-सुविधाओं में पले सेठ जी को वहाँ भीषण यातनाएँ दी गयीं । मुर्गा बनाना, पेड़ से उल्टा लटका कर चाबुकों से मारना, हाथ पैर बाँधकर चारों ओर से खींचना, लोहे के जूतों से मारना, अण्डकोषों पर वजन बाँधकर दौड़ाना, मूत्र पिलाना आदि अमानवीय अत्याचार उन पर किये गये । अंग्रेज चाहते थे कि वे क्षमा माँग लें; पर सेठ जी तैयार नहीं हुए। इस पर अंग्रेजों ने उनके आठ वर्षीय निरपराध पुत्र को भी पकड़ लिया।

🚩अब अंग्रेजों ने धमकी दी कि यदि तुमने क्षमा नहीं माँगी, तो तुम्हारे पुत्र की हत्या कर दी जाएगी । यह बहुत कठिन घड़ी थी; पर सेठ जी विचलित नहीं हुए । इस पर उनके पुत्र को तोप के मुँह पर बाँधकर गोला दाग दिया गया । बच्चे का शरीर चिथड़े-चिथड़े हो गया । इसके बाद सेठ जी के लिए 22 जून, 1858 को फाँसी की तिथि निश्चित कर दी गयी। इतना ही नहीं, नगर और ग्रामीण क्षेत्र की जनता में आतंक फैलाने के लिए अंग्रेजों ने यह भी तय किया गया कि सेठ जी को 'सर्राफा बाजार' में ही फाँसी दी जाएगी ।

🚩अन्ततः 22 जून भी आ गया । सेठ जी तो अपने शरीर का मोह छोड़ चुके थे । अन्तिम इच्छा पूछने पर उन्होंने नवकार मन्त्र जपने की इच्छा व्यक्त की । उन्हें इसकी अनुमति दी गयी; पर धर्मप्रेमी सेठ जी को फाँसी देते समय दो बार ईश्वरीय व्यवधान आ गया । एक बार तो रस्सी और दूसरी बार पेड़ की वह डाल ही टूट गयी, जिस पर उन्हें फाँसी दी जा रही थी । तीसरी बार उन्हें एक मजबूत नीम के पेड़ पर लटकाकर फाँसी दी गयी और शव को तीन दिन वहीं लटके रहने दिया गया ।

🚩सर्राफा बाजार स्थित जिस नीम के पेड़ पर सेठ अमरचन्द बाँठिया को फाँसी दी गयी थी, उसके निकट ही सेठ जी की प्रतिमा स्थापित है । हर साल 22 जून को वहाँ बड़ी संख्या में लोग आकर देश की स्वतन्त्रता के लिए प्राण देने वाले उस अमर हुतात्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं ।

🚩ऐसे महान वीरों का न इतिहास में नाम लिखा गया और ना ही मीडिया बताती है तो आनेवाली पीढ़ी को पता कैसे चलेगा कि हमारे पूर्वज कितने महान थे और प्राण त्यागा पर देश की सेवा नहीं छोड़ी ।

🚩वर्तमान केंद्र सरकार से आशा है कि पाठ्यक्रम का इतिहास में से लुटेरे क्रूर, आक्रमणकारी मुगलों और अंग्रेजों का इतिहास हटाकर देशभक्तों, वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, रामायण, महाभारत, श्रीमद्भागवत गीता पढ़ाई जाए ।

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संजीव पुनाळेकर की रिहाई के लिए आजाद मैदान में हुआ विराट आंदोलन

21 जून 2019
🚩प्रखर राष्ट्रवादी, हिंदुनिष्ठ अधिवक्ता श्री संजीव पुनालेकर ने डॉ. दाभोलकर की हत्या की जांच की तथा असली दिशा न्यायालय के सामने रखकर जांच यंत्रणाओं की पोल खोल दी इसलिए बदले की भावना रखकर अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और सूचना अधिकार कार्यकर्ता श्री. विक्रम भावे इन को गिरफ्तार किया गया । हिंदुत्वनिष्ठो की आवाज को इस प्रकार दबाना हिंदू समाज कदापि सहन नहीं करेगा ।
🚩इस अन्यायकारक बंदीवास सेे अधिवक्ता संजीव पुनालेकर और श्री. विक्रम भावे की तत्काल मुक्तता हो, इस मांग को लेकर समस्त हिंदुत्वनिष्ठों और राष्ट्रप्रेमियों की ओर से मुंबई आज़ाद मैदान में घंटानाद आंदोलन किया गया । इस आंदोलन में एकत्रित विविध हिंदुत्वनिष्ठ संगठन के सैकड़ों कार्यकर्ता और पदाधिकारियों ने पुनालेकर को मुक्त करो ऐसी एक साथ मांग कर संजीव पुनालेकर को अन्यायपूर्वक बंधक बनाए जाने का विरोध कर असंतोष व्यक्त किया ।

🚩इस आंदोलन में बड़ी मात्रा में महिला एवं युवक सहभागी हुए थे । सभी ने अपने चेहरों पर अधिवक्ता पुनालेकर का मुखौटा लगाकर उनको दृढ़ता पूर्वक समर्थन देने का संदेश सबको दिया आंदोलकों ने ने संविधान का सम्मान करो, पुनालेकरजी जी को मुक्त करो, हिंदूओ पर अन्याय नहीं सहेंगे इस प्रकार के फलक हाथों में लेकर सीबीआई द्वारा किए गए इस अन्याय पूर्वक व्यवहार का तीव्र निषेध किया ।
🚩डॉ. दाभोलकर की हत्या में उपयोग लाया गया पिस्तौल नष्ट करने हेतु अधिवक्ता पुनालेकरजी ने आरोपी को मार्गदर्शन किया, ऐसा आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार किया गया है । प्रत्यक्ष देखा जाए तो इन हत्याओं में अब तक अलग-अलग आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है और अन्वेषण यंत्रणा द्वारा दी प्रत्येक बार की जानकारी एक दूसरे से मिलती-जुलती नहीं है । साथ ही जिस पिस्तौल सेे डॉ दाभोलकर की हत्या हुई है, जिसका दावा जांच यंत्रणा कर रही है उस शस्त्र का भी अब तक पता नहीं चला है, इस प्रकार के तथ्य हीन सूत्रों के आधार पर आरोपी के वकील और उनके सहकारी को बंधक बनाना यह एक प्रकार से उनकी आवाज को दबाना ही है ऐसा मत सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता भारद्वाज चौधरी ने कहा ।
🚩हिन्दू जनजागृति समिति के प्रवक्ता डॉ. उदय धुरी ने कहा, आधुनिकतावादी लोगों की हत्या के आरोप में हिंदुत्ववादी कार्यकर्ताओं को फँसाने का प्रयास कर हिंदुओं को आतंकवादी ठहराने की साज़िश पहले काँग्रेस शासन कर चुकी है । इन हत्याओं की जांच की दिशा जानबूझकर हिंदुत्वनिष्ठ संगठन की ओर मोड़ने का प्रयास करने का पाप काँग्रेस शासन ने किया । काँग्रेस द्वारा हिंदुओं के सिर पर मढ़ा यह पाप आज की हिंदुत्वनिष्ठ सरकार मिटा दे । अधिवक्ता संजीव पुनालेेकर और श्री. विक्रम भावे को सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किया जाना यह भटकी हुई जांच की दिशा का ही एक भाग है।
🚩अंत में अपने विचार व्यक्त करते हुए लष्कर-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री. ईश्‍वरप्रसाद खंडेलवाल ने कहा, वकील पुनालेकर ने जाँच में पुलिस को सहयोग ही किया है । हिंदुत्वनिष्ठ व्यक्ति और संगठन पर लगाया हत्या का कलंक मिट जाए, इसलिए उन्होने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर की हत्या प्रकरण की न्यायालयीन प्रक्रिया जल्दी से हो, इस हेतु न्यायालय को विनती की है; मात्र जांच यंत्रणांओं के पास ठोस सबूत न होने के कारण यह जांच अटकी पड़ी है । जांच यंत्रंणाओं का यह अपयश अब जनता के सामने आया है । न्यायालया ने भी जांचयंत्रणा के अधिकारियों को कड़ी भाषा में फटकारा है । पुनालेकर जी ने एकप्रकार से जांच यंत्रणाओं का झूठ जनता के सामने लाया है । इसलिए जांच यंत्रणांओं की इस अवमानकारक पोलखोल के कारण ही पुनालेकर को झूठे आरोप लगाकर फंसाने का यह प्रकार है । न्यायालय में अधिवक्ता संजीव पुनालेकर का निर्दोषत्व सिद्ध होगा ही, यह हम जानते है। मात्र जांचयंत्रणा द्वारा हो रहा यह अन्याय जनतंत्र का गला घोटने वाला है ।
🚩इस आंदोलन के बाद धर्मप्रेमीयो ने मंत्रालय में जाकर संजीव पुनालेकर जी पर हो रही अन्यायपूर्वक कार्यवाही के विषय में जानकारी देनेवाला और उनकी तुरंत रिहाई की मांग करनेवाला निवेदन सरकार को दिया गया ।
🚩मंदिरों के घोटाले, भगवा आतंकवाद की पोल खोलने वाले प्रखर हिंदुनिष्ठ वरिष्ठ अधिवक्ता संजीव पुनालेकरजी को CBI द्वारा गिरफ्तार करने पर जनता, वकील एसोशिएशन, शिवसेना एवं हिंदू सगठनों ने विरोध जताया।
🚩आज़ाद मैदान में बड़ा आंदोलन भी किया गया, सबकी एक ही मांग थी पुनालेकरजी निर्दोष है, उनको फँसाया जा रहा है, शीघ्र रिहा किया जाए।
🚩अकोला बार एसोसिएशन का विरोध
अकोला (महाराष्ट्र) बार एसोसिएशन की ओर से 17 जून को हिन्दू विधिज्ञ परिषद के राष्ट्रीय सचिव अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को अन्यायपूर्ण पद्धति से बंदी बनाए जाने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित किया गया । इस समय उपस्थित 170 से भी अधिक अधिवक्ताआें ने इस प्रस्तावपर हस्ताक्षर कर समर्थन व्यक्त किया ।
🚩वड़गांव मावळ बार एसोसिएशन का विरोध
वड़गांव मावळ (जनपद पुणे) की ओर से 18 जून को अधिवक्ता पुनाळेकर को बंदी बनाए जाने की कार्यवाही की निंदा की । इस प्रस्ताव के माध्यम से अधिवक्ताआें को सुरक्षा देने की भी मांग की गई है । लगभग 50 अधिवक्ताआें ने इस प्रस्ताव के समर्थन में हस्ताक्षर किए ।
🚩विधानसभा में उठेगी आवाज
अधिवक्ता संजीव पुनाळेकर को बंदी बनाए जाने के प्रकरण में मैं विधानसभा में आवाज उठा कर इस संदर्भ में विधानसभा में चर्चा कराऊंगा और इस संदर्भ में मुझे जो भी संभव है, वह मैं करूंगा ! कोल्हापुर के शिवसेना विधायक श्री. राजेश क्षीरसागर ने ऐसा आश्वासन दिया।
संदर्भ : दैनिक सनातन प्रभात
🚩आपको बता दें कि अधिवक्ता संजीव पुनालेकर जी एक प्रखर राष्ट्रवादी एवं हिंदुनिष्ठ है उन्होंने न्यायालय में भगवा आतंकवाद को बेनकाब किया, लव जिहाद के लिए लड़े, धर्मान्तरण के खिलाफ एवाज उठाई, मदिरों में हो रहे अरबों रुपये के घोटाले सामने लाये इसके कारण उनको फँसाया जा रहा है ऐसा लग रहा है, अतः जनता को ऐसे हिंदुनिष्ठ लोगो का साथ देना होगा, नहीं तो एक के बाद एक निर्दोष फंसते जायेंगे और हमारी संस्कृति बचाने कोई आगे नहीं आयेगा और विधर्मी फायदा उठाकर देश को गुलामी की तरफ लेकर जायेंगे।
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