Monday, November 30, 2020

गुरु नानकजी प्रकाशोत्सव पर विशेष रूप से प्रकाशित लेख..

30 नवंबर 2020


गुरु नानक ने बाबर नामक राक्षस को भारत की प्रजा पर अकथनीय अत्याचार करते अपनी आँखों से देखा था। गुरु नानक ने इस अत्याचार से व्यथित होकर अपने मन की इच्छाओं को अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया था। यह रचनायें उस काल में देश तथा समाज की तत्कालीन समस्याओं के प्रति उनकी जागरुकता को प्रकट करती है। ‘उस समय में देश के शासक भोग- लिप्सा तथा मातृभूमि के प्रति अकर्मण्यता के भाव से पीड़ित थे। विदेशियों और विधर्मियों का प्रतिरोध करने के बजाय वे अपनी स्वार्थ पूर्ति और रंगरेलियों में लगे रहते थे। यह देखकर गुरू नानक ने उनको बड़े रोषपूर्वक फटकारा।




गुरु नानक लिखते है-*
*राजा सिंह मुकद्दम कुत्ते- जाइ जगाई बैठे सुत्ते ।।
चाकर नहंदा पाईन्ह घाउ- रत पितु कुतिहां चटि जाहु।
जिथै जींआ होसी सार- नकी बड़ी लाइन बार॥
अर्थात्- ‘‘वर्तमान समय के राजा शेर- चीतों की तरह हिंसक हैं और उनके अधिकारी कुत्तों की तरह लालची हैं और निर्दोष जनता को अकारण ही पीड़ित करते रहते हैं। राजकर्मचारी अपने नाखूनों से जनता को घायल करते रहते हैं और उसका खून कुत्तों की तरह ही चाट जाते हैं। परलोक में जब इनकी जाँच की जायेगी तो इनकी नाक काटी जायेगी।’’

बाबर के सैनिकों ने चारों तरफ तबाही पैदा कर दी और लोगों के धन, मान तथा इज्जत को मिट्टी में मिला दिया। उस भयंकर काल में भारतीय नारियों की दुर्दशा का चित्रण करते हुए उन्होंने लिखा है-

जिन सिरि सोहनि पाटियाँ माँगी पाई संधूर ।।
से सिर काती मुनीअन्हि गल बिच आवे धूड़ि। ।।
महला अंदरि होदीआ हुणि वहणिन मिलन्ह हटूरि॥१
जदहु सीआ बिआहीआ लाड़े सोहनि पासि।
हीडोली चढ़ि आईआ दंद खंड दीदे रासि।
उपपहु पाणी बीरिऐ झले झपकनि पासि।।२
इक लखु लहन्हि बहिठीआ लखु लहन्हि खड़ी आ।
गरी छुहारे खाँदीआ माणन्हि से जडीआ ।।
तिन्ह गलि सिलका पाईया तुरीन्ह मोत सरी आ॥३
धनु जोवन दुइ वैरी होए जिन्ही रखे रंगु लाइ ।।
दुता नो फुरमाइया लै चले पति गवाई ।।
अर्थात्- ‘‘जिन स्त्रियों के सिर में सुंदर पट्टियाँ शोभित होती थीं, जिनकी माँग में सिंदूर भरा हुआ था, अत्याचारियों ने उनके केश काट डाले और उन्हें भूमि पर इस तरह घसीटा कि गले तक धूल भर गई। जो महलों में निवास करती थीं, उनको अब बाहर बैठने को भी जगह नहीं मिलती। विवाहित स्त्रियाँ जो अपने पतियों के पास सुशोभित थीं, जो पालकियों में बैठकर आई थीं, जिन पर जल न्यौछावर करते थे, जड़ाबदार पंखों से हवा करते थे, जिन पर लाखों रूपये लुटाये जाते थे, जो मेवा मिठाई खाती थीं, सेजों पर सुख भोगती थीं, अब अत्याचारी उनको गले में रस्सी डालकर खींच रहे हैं और उनके गले की मोतियों की मालाएँ टूट गई हैं अभी तक धन और यौवन ने उन्हें अपने रंग में रंग रखा था, अब वह दोनों उनके बैरी हो गये। सिपाहियों को आज्ञा मिली और वे उनकी इज्जत को लूटकर चले गए।’’ अपने देश के संपन्न वर्ग की उस कठिन समय में कैसी दुर्गति हुई, उसकी एक झलक इस कविता में मिलती है।

जब मनुष्य इस प्रकार विवश हो जाता है और अत्याचार का कुछ प्रतिकार नहीं कर सकता तो वह भगवान् को उलाहना देने लगता है कि तुम कैसे न्यायकारी और करुणासिंधु हो जो संसार में ऐसा अंधेरखाता मचवा रहे हो। इस भाव से प्रेरित होकर नानक जी ने आदिग्रंथ में लिखा-

खुरासान खसमान कीआ हिंदुस्तानु डराइआ।
आपै दोसु न देई करता जमु का मुगल चढ़ाइआ।
एती मार पई कर लणे तैं की दरदु न आइआ।
करता तू समना का सोई।
जो सकता सकते कउ मारे ता मनि रोसु न होई।
सकता सीहू मारे पै वर्ग खसमै सा पुरसाई ।।
अर्थात्- ‘‘हे भगवान् ! बाबर ने खुरासान को बर्बाद किया,पर तुमने उसकी रक्षा न की और अब हिंदुस्तान को भी उसके आक्रमण से भयभीत कर दिया है। तुम स्वयं ही ऐसी घटनाएँ कराते हो, परंतु तुमको कोई दोष न दे इसलिए तुमने मुगलों को यमदूत बनाकर यहाँ भेज दिया। सर्वत्र इतनी अधिक मार- काट हो रही है कि लोग त्राहि- त्राहि पुकार रहे हैं। पर तुम्हारे मन में इन निरीह लोगों के प्रति तनिक भी दर्द पैदा नहीं होता। हे भगवान् ! तुम तो सभी प्राणियों के समान रूप से पालनकर्ता कहलाते हो, फिर यदि एक शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली सिंह, निरपराध पशुओं के झुंड पर आक्रमण करे तो उनके स्वामी को कुछ तो पुरूषार्थ दिखाना चाहिए।’’

इस तरह परमात्मा को जोरदार उलाहना देकर नानक जी ने इस देश के प्रमुख शासकों तथा बड़े लोगों को भी फटकारा है कि तुमने अपने कर्तव्य को बिसरा दिया और भोग- विलास में डूब गए, उसी का नतीजा इस तरह भोग रहे हो-

रतन बिगाड़ बिगोए कुतीं मुइआ सार न काई।
आगो देजे चेतीए तो काइतु मिलै सजाइ।
शाहां सुरति गबाईआ रगि तमासै चाइ।
बाबर वाणी फिरि गई कुइरा न रोटी खाई।
इकता बखत खुआई अहि इकंहा पूजा खाई।
चउके विणु हिंदवाणीआ किउ टिके कढहि नाइ ।।
राम न कबहू चेतिओ हुणि कहणि न मिलै खदाई।
अर्थात्- ‘‘इन नीच कुत्तों (विलासी शासकों) ने रतन के समान इस देश को बिगाड़कर रख दिया। इनके मरने के बाद कोई इनकी बात भी नहीं पूछेगा। अगर ये पहले से ही सावधान हो जाते तो हमको ऐसी सजा क्यों मिलती? पर यहाँ के शासक तो सदा रंग तमाशों में ही डूबे रहे, उन्हें अपने कर्तव्य का ध्यान ही न था। नतीजा यह हुआ कि इस समय चारों ओर बाबर की दुहाई फिर गई है, किसी को रोटी तक खाने को नहीं मिलती। मुसलमानों (पठानों) की नमाज का समय जाता रहा और हिंदुओं की पूजा छूट गई। अब चौके के बिना हिंदू स्त्रियाँ किस प्रकार अपनी पवित्रता की रक्षा करेंगी? जिन्हें कभी राम शब्द भी याद नही आया था, अब वे आक्रमणकारियों के भय से खुदा को याद करना चाहते हैं, परंतु जालिम लोग उनको खुदा भी नहीं कहने देते।’’

खेद का विषय है कि इस प्रकार की जिल्लत उठाकर और अमानुषी दंड सहन करके भी हिंदुओं की आँखें नहीं खुलीं। उसके पश्चात् भी मानसिंह, जयसिंह, यशवंतसिंह आदि प्रमुख राजपूत नरेश मुगल बादशाहों के अनुचर बनकर अपने ही भाइयों को पराधीन बनाने का पाप- कर्म करते रहे। उसके बाद जब अंग्रेज आए तब भी हिंदुओं ने ही उनके सहायक बनकर शासन- कार्य में हर तरह से सहयोग दिया और आज के दिन भी इस जाति की पारस्परिक फूट, मत- विरोध, कर्तव्यहीनता स्पष्ट दिखाई पड़ रही है।

यह अकर्मण्यता, विलासिता, चिरनिंद्रा, जातिवाद का रोग आज भी वैसा का वैसा अपितु पहले से भी भयंकर बना हुआ है। पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिंदुओं की हालात का तो विचार कब होता। अपने ही देश में कश्मीर,असम, बंगाल, केरल, कैराना उत्तर प्रदेश में हिन्दू चंद वर्षों में अल्पसंख्यक हो गए मगर तब इनकी आंख नहीं खुली। जागो अब तो जागो। नानक के सन्देश को समझो। और अपनी जाति, अपने वेद, अपने राम और कृष्ण की रक्षा करो।

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Sunday, November 29, 2020

जानिए भारत की व्यवस्था ने कैसे बना दिया हिन्दू को दूसरा दर्जे का नागरिक..

29 नवम्बर 2020


दुनिया में अभी 2-3 तरीके के राज्य हैं एक तो खुद बोलते हैं, हम क्रिश्चियन हैं । ईसाई धर्म पर आधारित राज्य हैं, बाइबल को मानते हैं, हाथ में बाइबल लेकर शपथ ली जाती है राज्य व्यवस्था उसके आधार पर की जाती है । अपना एक स्टेंडर्ड कंटूटिशन भी होता है । दूसरे इस्लामिक राज्य हैं, तीसरे कुछ कम्युनिस्ट राज्य हैं । लेकिन दुनिया में एक अकेला राज्य भारत ऐसा है जो किसीके पक्ष में है या नहीं ये तो नहीं पता लेकिन हिंदुओं के विरोध में पूरी व्यवस्था है ।




हमारा कोई सेक्युलर राज्य नहीं है हिन्दू राज्य बनाने की बात लोग करते हैं, लेकिन अभी जो हमारी राज्य व्यवस्था है कि हिन्दू विरोधी राज्य व्यवस्था है ये राज्य व्यवस्था आपको मोटिवेट करती है कि आप हिन्दू धर्म को छोड़े, ये राज्य व्यवस्था आपको इस प्रकार का रोज सुबह उठने के साथ सोने तक ये एहसास कराती है कि आप इस देश में सेकंड क्लास है डिवीजन है, दूसरे दर्जे के नागरिक हैं । आप देश के अन्य नागरिकों के बराबर नहीं है । आपका बच्चा अगर पैदा होगा तो उसके अधिकार किसी अन्य धर्म में पैदा होने वाले बच्चों से कम होंगे । किसी अन्य धर्म में पैदा होता है तो सरकार उसे पैसा देगी, पढ़ने जाएगा तो सरकार उसे बस्ता देगी, किताब देगी, स्कॉलरशिप देगी, रिजर्वेशन देगी, नौकरी केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, व्रोटेशन, मोटिवेशन केवल और केवल धर्म आधारित पैसा रिजर्वेशन, प्रोक्शन, संगठन , मोटिवेशन इस देश की राज्य व्यवस्था दे रही है । उसमें भी शब्द यूज़ करते है कि minority अल्पसंख्यक। मेरे को लगता है पूरे ब्रह्मांड में 25 करोड़ वाला अल्पसंख्यक केवल भारत में ही बैठा हुआ है । और वो इतना अल्पसंख्यक है कि उसके हर बच्चे के 7-8 बच्चे पैदा हो रहे हैं । जब ये कहा गया कि मुसलमानों  की तरक्की के लिए योजना लाओ तो मुझे लगता है कि नसबन्दी की योजना सबसे बड़ी योजना है जिससे मुसलमानों की तरक्की हो सकती है । 

एक ही योजना ऐसी है जिससे तरक्की हो सकती है। लेकिन उनका विश्वास नहीं है उनका विश्वास है कि पॉपुलेशन देहात में । मैं अपना व्यक्तिगत तौर पे ये उदाहरण देता हूँ कि विधायक होने के नाते मैं अपने दफ्तर में बैठा था सरकार विधवा महिलाओं को पेंशन देती है। तो मेरे पास एक 24 वर्ष की एक महिला आई जो विधवा थी और विधवा की बेटी थी, शादी के लिए भी सरकार सहायता देती है । तो वो मुझसे ये कहने आई कि मेरी बेटी की शादी में सरकार सहायता देगी क्या? तो मैंने कहा आपकी बेटी की उम्र कितनी है? तो उसने कहा 12 साल है शादी की बात चल रही है मैने कहा 18 साल से पहले शादी गैरकानूनी है । करना भी मत कोई कानूनी कार्यवाही हो जाएगी और सरकारी सुविधा कुछ मिल ही नहीं सकती क्योंकि कागज पे सर्टिफिकेट होना चाहिए कि 18 से ज्यादा उम्र है। फिर मैंने उससे पूछा कि 12 साल की बेटी की शादी की बात कर रही हो तुम्हारे और कितने बच्चे है? 24 साल में विधवा हो चुकी उस बहन के 8 बच्चे हैं । और जिसकी वो 12 साल में शादी की बात कर रही है उसके भी 24 की होते होते 8 बच्चे हो जाएंगे । 

तो इतने में हमारे बच्चे कॉलेज पास करके सोचते हैं कि आगे जिंदगी में क्या करना है उसमें इनके 8×8=64 बच्चे उनके घर में खेलते होते हैं । और उन 64 बच्चों के पैदा होने पर भारत की सरकार पैसा देती है । स्कूल जाएंगे तो पैसा देगी, नौकरी करेंगे तो लोन भारत की सरकार देगी रिजर्वेशन देगी और सिंदे साहब की बात पर अगर कोई ज्यादा पढ़ना लिखना शुरू कर दे तो उसकी उच्च शिक्षा में या नौकरी में इतिहास में भारत की आज़ादी के बाद upsc में सबसे ज्यादा मुस्लिम हाईएस्ट अधिकारियों का चयन हुआ है । 

ये कोई सहयोग नहीं है प्रॉपर योजना बना के प्लानिंग से ट्रेनिंग देकर उनके बच्चों को निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क आवास, निःशुल्क प्रशिक्षण देकर उत्साहित किया जाता है कि हर साल ज्यादा से ज्यादा लोग IAS बने और ये भारत की सरकार की नीति है । ये कोई धर्म की अपनी संस्था की नीति नहीं है भारत की सरकार की नीति है । तो धर्म आधारित भेदभाव इस हद तक हो चुका है कि साउथ के आफ्रीका में काले और गोरे का भेद, हमें ये बात कहनी होगी, हम ये बात कहने में झिझकते हैं हिंदुओं की मेजोरिटी है कि काले और गोरे बीच में किया गया था अधिकार का साउथ अफ्रीका में, वो भेद हिंदुओं में और अन्य धर्म के अंदर आज भी किया जा रहा है । दूसरे दर्जे की नागरिकता दे दी गई है ।


हमारे मंदिरों के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है हमारी परंपराओं के बारे में कोई भी निर्णय ले सकता है । ये कोई मजाक नहीं है आपका इतिहास ही आपको नहीं बताया जा रहा है । आपका इतिहास आपसे छुपाया जा रहा है आपका वर्तमान अटकाया जा रहा है राज्यव्यवस्था है । क्यों रामकृष्ण समाज मजबूर हो गया कोर्ट जाने के लिए ? कि हमें अल्पसंख्यक घोषित करो । क्यों आई ये स्थिति क्योंकि अल्पसंख्यक कराके वो अपनी परंपरा बना सकता है वो अपना एक मिशन चला सकता है । लेकिन वो अल्पसंख्यक नहीं है तो वो अपने ही बच्चों को अपने ही धर्म के बारे में ज्ञान नहीं दे सकता । अपनी परंपरा का संगठन नहीं कर सकता ।

सबरीमाला पर न्यायालय बोला महिला जाएगी ये महिलाओं के अधिकारों की बात है कल को कोर्ट बोलेगा नवरात्रि में दुर्गा पूजा में लड़कों का भी पूजन करो कन्या पूजा क्यों करते हो? ये भी समानता की बात है कि अपने हमारे धर्म को नहीं मानो, आस्था को नहीं मानो, परंपरा को नहीं मानो । और मंदिर के अंदर बैठे देवता के प्राणप्रतिष्ठा की ये मानने से आपने इनकार कर दिया क्योंकि वो देवता जीवित है प्राण की प्रतिष्ठा की हुई है, उसकी मर्जी से किसीसे मिलेगा नहीं मिलेगा और आपने ये मान लिया कि देवता के प्राण के प्राण ही नहीं है वो एक निर्जीव है तो उसमें आपने पब्लिक से emporiums secular spare is public spare ये कोर्ट बोल रहा है। भाई जाके कोर्ट में याचिका डाल दी मुझे तो ठंड लगती है नंगे पैर जूता पहन के जाऊंगा तो कोर्ट बोलेगा नंगे पैर जूता पहन के जा क्योंकि पब्लिक स्पेयर है । 

इस प्रकार के वातावरण तक हम पहुंच चुके हैं हमारी संस्कृति की न्यायपालिका चुप है क्योंकि वोट बैंक सबसे बड़ी कमजोरी है क्योंकि वोट बैंक कहाँ बढ़ाया जा रहा है रणनीति के तहत दिल्ली में एक डेमोग्राफिक है जिसमें अगले दस साल के बाद दिल्ली की 70 विधानसभाओं में से 48 विधानसभाओं में वही व्यक्ति चुनाव जीत पाएंगे जिनको मुस्लिम समाज समर्थन देंगे । 70 में से 48 ये दिल्ली के अंदर होगा अगले 10 सालो में इसप्रकार से डेमिग्राफिक चेंज हो रही है । हो सकता है पूरे भारत में भी ये स्थिति आ सकती है धीरे धीरे 5 साल, 10 साल, 15 साल या 20 साल इस देश की ऐसी ही कोई लोकसभा या विधानसभा की सीट बचेगी जिसमें धर्म के आधार पर चुनाव और धर्म के नाम पर 15-20 साल के बाद ऐसी कोई सरकार आती है तो केवल मुस्लिम वोट के आधार पर आती है इसको एक टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है । 

हिन्दू चार्टर की जब हम बात करते हैं तो ये एक इस देश में हिंदुओं की मांग तो रखी जाए बोला तो जाए। अगर हम कहते हैं हिंदुओं को मुसलमान के समान अधिकार दिया जाए तो कहेंगे सम्प्रदायी हो । भड़काऊ बातें करते हो तुम्हारी बातों से दंगा फैल सकता है । तुम आतंकवादी हो केवल समान अधिकार मांगने पर इतनी बात बोल दी जाती है, लेकिन बचपन में एक बात सीखा दी गई थी कि बिना रोये माँ भी दूध नहीं देती तो अपनी बात कहने का, अपनी बात मांगने का बार-बार कहने का की हमें सेकंड क्लास के डिवीजन मत बनाओ बराबरी का अधिकार दो । 

ये ये अधिकार दो इलीगल है ये कोई आज सार्वजनिक मंच पर आकर देश का राजनेता बोल ही नहीं रहा मिनोरटी कमीशन इलीगल है, मिनोरटी को दिये जाने वाली सारी सुविधाएं इलीगल है, गैरसंवैधानिक है, उनप्रोसेक्यूशन है । हमारा संविधान बनाने वालों को मेरा ये मानना है, ये मन में आस्था अभी भी है कि जिन्होंने संविधान बनाया शायद उनकी नियत नहीं थी ऐसा करने की वो तो शायद ये सोचते थे कि हिंदुओं को तो अधिकार मिल ही जायेगा । हिन्दू राष्ट्रमंत्री, हिन्दु  सरकार हिंदुओं को तो मिल ही जाएगा बाकियों के लिए लिख दो उनकी नियत तो शायद ऐसी होगी, लेकिन उसके बाद जो व्याख्या की गई इस संविधान की वो ये कह दी गई कि हिंदुओं को ही नहीं दिया जाएगा बाकी सबको दे दो। 

और इस प्रकार से ये देश चलाया गया संविधान में सब्सिडी डाल दिये गए जो ना हमारी परंपरा में आते हैं ना धार्मिक परंपरा में आते हैं,  ना आध्यात्मिक, न सामाजिक देश की संस्कृति में ही नहीं आते । ये संविधान उनको हमारे संविधान में डाल दिया गया और उसके आधार पर ये सारे कमिश्नर रिपोर्ट को बार बार कहना, हक से कहना और मांगना और ये सुरक्षित करना कि इस देश के जितने भी लोग सरकारों पर पदों पर बैठे हैं, जिस चीज पर बैठे हैं उनको पता लगे, भारतीय जन मानस को पता लगे कि उसके साथ अन्याय हुआ है । लोग अन्याय देख रहें है अन्याय के प्रत्यक्ष भी गवाह है विटनेस हैं । ये अगर बार बार बोलेंगे तो इसका एक दबाव जरूर बनेगा । कपिल मिश्रा, विधायक, दिल्ली

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Saturday, November 28, 2020

जानिए धर्मांतरण रोकने के लिए देर से बने कानून कितने दुरुस्त?

28 नवंबर 2020


बराबरी का अधिकार संविधान ही छीन लेता है। जब अनुच्छेद 25(1) में कहा जाता है कि “सभी लोग”, ध्यान दीजिये, सभी लोग, सिर्फ “भारतीय नागरिक” नहीं, कोई भी अपने पंथ को मानने, उसका अभ्यास करने और उसके प्रचार के लिए स्वतंत्र है तो ये भारत में बाहर कहीं से आकर धर्म प्रचार करने वाले प्रचारकों को अनैतिक छूट देना ही है।




विश्व में जहाँ कोई भी हिन्दुओं का, ईरान से भगाए गए विस्थापितों का, बहाई समुदाय का, सिखों का, जैनियों का कोई देश है ही नहीं, वहाँ ऐसी छूट का मतलब क्या है ? सीधी सी बात है विदेशी प्रचारकों के पास जहाँ कई-कई देशों का खुला समर्थन है वो बेहतर स्थिति में आ जाएँगे और भारत में बसने वाले कई दबे-कुचले समुदाय हाशिए पर धकेल दिए जाएँगे। प्रचारकों के पास देशों की अर्थव्यवस्था का समर्थन होगा और हाशिए पर के इन समुदायों के पास सिर्फ आत्मरक्षा की नैतिक जिम्मेदारी। हमलावरों के खिलाफ ये लड़ाई कभी बराबर की तो थी ही नहीं!

केंद्र में ज्यादातर कांग्रेस का शासन रहा है, कई राज्य भी लगातार कांग्रेस शासित रहे हैं। धर्म परिवर्तन पर चर्चा तो काफी पहले, संविधान बनते समय ही शुरू हो गई थी, मगर जबरन धर्म परिवर्तन पर कांग्रेस ने नियम-कानून आश्चर्यजनक रूप से पचास साल तक नहीं बनाए थे। धर्म और रिलिजन पर संविधान सभा की बैठकों में इस परिवर्तन के बाबत चर्चाएँ हो रही थी (6 दिसम्बर, 1949)। इस दिन चर्चा करते हुए पंडित लक्ष्मी कान्त मिश्रा ने कहा था कि भारत में अभी रिलिजन ज्यादा से ज्यादा अज्ञान, गरीबी और महत्वाकांक्षा को कट्टरपंथ के झंडे तले भुनाने का तरीका है। उनकी सलाह थी कि अपनी रिलीजियस-मजहबी आबादी को बढ़ा कर उसका राजनैतिक लाभ उठाने का मौका किसी को नहीं दिया जाना चाहिए।

ध्यान रहे कि ये दिसंबर 1949 की चर्चा है। उनके तुरंत बाद बोलते हुए एच.वी. कामथ ने कहा था कि सरकार किसी रिलिजन को अनैतिक लाभ ना दे, लेकिन उसके काम से किसी के अपने धर्म के प्रचार-प्रसार और अभ्यास में दिक्कत भी नहीं आनी चाहिए। उन्होंने “रिलिजन” के “वास्तविक अर्थ” की बात करते हुए ये बताने की कोशिश की थी कि कैसे “धर्म” वास्तविक अर्थों में धार्मिकता की सही परिभाषा देता है। धर्म परिवर्तन के मामले में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चाओं में रहे ग्राहम स्टेंस नाम के मिशनरी की हत्या का मामला देखें तो भी इस सम्बन्ध में कई बातें खुलेंगी। इस मामले का फैसला सुनाते हुए जस्टिस पी.सदाशिवम लिखते हैं, “ये निर्विवाद सत्य है कि किसी और की आस्थाओं में दखलंदाजी, किसी भी किस्म का बल प्रयोग, उकसावे, लालच, या इस वहम में कि उसका मजहब, दूसरे के मजहब से बेहतर है, सरासर गलत है।” इसके अलावा यही बात चीफ़ जस्टिस ए.एन.रे भी रेवरेंड स्टेनिस्लौस बनाम मध्य प्रदेश सरकार के मुक़दमे में कर चुके हैं। इस मुक़दमे में 1960 के दौर के दो कानूनों, मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम और ओडिशा फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट को संवैधानिक माना गया था, जिसे इसाई मिशनरी अपने काम में एक बड़ी बाधा मानते हैं।

अदालतों ने बार-बार ये स्पष्ट किया है कि आपको अपने पंथ-मजहब के प्रचार का अधिकार तो है, लेकिन किसी भी तरह से धर्म परिवर्तन करवाने को मौलिक अधिकार नहीं कहा जा सकता। राज्यों के स्थानीय नियम देखें तो जबरन धर्म परिवर्तन को भारतीय दंड संहिता की धारा 295A और 298 में संज्ञेय अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इन प्रावधानों की वजह से इस धूर्ततापूर्ण और जान-बूझकर दूसरों की भावना को ठेस पहुँचाने वाली हरकत को दंडात्मक अपराध माना गया है।

आजादी के पहले बनाए गए, राजाओं के ज़माने के कानून देखें तो रायगढ़ स्टेट कन्वर्शन एक्ट (1936), पटना फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट (1942), सरगुजा स्टेट अपोस्टेसी एक्ट (1945) या उदयपुर स्टेट एंटी कन्वर्शन एक्ट (1946) वगैरह में धोखे से या लालच देकर ईसाई बनाए जाने के खिलाफ कम और ईसाइयों के प्रति होने वाली हिंसा के कानून ज्यादा हैं।

पक्षपातपूर्ण रवैए से काफी नुकसान होने के बाद जब हिन्दुओं ने आवाज उठानी शुरू की तब, आजादी के कई साल बाद, धार्मिक आजादी से सम्बंधित विधेयकों को जगह मिली है । अरुणाचल प्रदेश में 1978 में धार्मिक स्वतंत्रता सम्बन्धी विधेयक आया और गुजरात में ये 2003 में आया ।

हिमाचल प्रदेश फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट (2006) के साथ हिमाचल प्रदेश जबरन धर्म परिवर्तन रोकने का प्रयास करने वाला पहला कॉन्ग्रेस शासित राज्य बना।छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी नियमों में संशोधन कर के 2006 में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास तीस दिनों में धर्म परिवर्तन की सूचना देने का नियम लागू किया गया। https://twitter.com/OpIndia_in/status/1332489387104407553?s=19

मगर इतने दिनों की देर के बाद अब पहला सवाल तो ये है कि जिस विषय में संविधान निर्माताओं को 1949 से पता था, उस पर कानून बनाने में नेताओं ने इतनी देर आखिर की क्यों? फिर सवाल ये भी है कि अब जब ये नियम बनने शुरू भी हुए हैं तो क्या ये काफी हैं, या हमें बहुत देर से और बहुत थोड़ा देकर बहलाया जा रहा है?

गांधीजी कहते थे कि "हमें गोमांस भक्षण और शराब पीने की छूट देने वाला ईसाई धर्म नहीं चाहिए। धर्म परिवर्तन वह ज़हर है जो सत्य और व्यक्ति की जड़ों को खोखला कर देता है।

जनता की मांग है कि पूरे देश में धर्मांतरण पर रोक लगनी चाहिए।

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Friday, November 27, 2020

गीता का जिसने भी अनुवाद अपनी भाषा में किया उसने अपना लिया हिन्दुधर्म

27 नवंबर 2020


जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए श्रीमद्भगवद्गीता ग्रंथ अदभुत है। विश्व की 578 से अधिक भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है। हर भाषा में कई चिन्तकों, विद्वानों और भक्तों ने मीमांसाएँ की हैं और अभी भी हो रही हैं, होती रहेंगी। क्योंकि इस ग्रन्थ में सब देशों, जातियों, पंथों के तमाम मनुष्यों के कल्याण की अलौकिक सामग्री भरी हुई है।




आपको यहाँ कुछ विद्वानों के नाम बता रहे हैं जिन्होंने गीता का अनुवाद किया बाद में उन्होंने सनातन हिंदू धर्म अपना लिया।

★ जिस व्यक्ति ने श्रीमदभगवद गीता का पहला उर्दू अनुवाद किया वो था मोहम्मद मेहरुल्लाह! बाद में उसने सनातन धर्म अपना लिया!

★पहला व्यक्ति जिसने श्री गीताजी का अरबी अनुवाद किया वो एक फिलिस्तीनी था अल फतेह कमांडो नाम का! जिसने बाद में जर्मनी में इस्कॉन जॉइन किया और अब हिंदु धर्म अपना लिया हैं।

★पहला व्यक्ति जिसने इंग्लिश अनुवाद किया उसका नाम चार्ल्स विलिक्नोस था! उसने भी बाद में हिन्दू धर्म अपना लिया उसका तो ये तक कहना था कि दुनिया में केवल हिंदुत्व बचेगा!

★हिब्रू में अनुवाद करने वाला व्यक्ति Bezashition le fanah नाम का इज़रायली था जिसने बाद में भारत मर आकर हिंदुत्व अपना लिया था ।

★पहला व्यक्ति जिसने रूसी भाषा मे गीता का अनुवाद किया उसका नाम था नोविकोव जो बाद में भगवान कृष्ण का भक्त बन गया था!

★आज तक 283 से अधिक बुद्धिमानों ने 578 से अधिक भाषाओं में श्रीमद्भगवद्गीता का अनुवाद किया हैं। जिनमें से 58 बंगाली, 44 अंग्रेजी, 12 जर्मन, 4 रूसी, 4 फ्रेंच, 13 स्पेनिश, 5 अरबी, 3 उर्दू और अन्य कई भाषाएं थी ओर इन सब में दिलचस्प बात यह है कि इन सभी ने बाद मैं हिन्दू धर्म को अपना लिया था।

★जिस व्यक्ति ने कुरान को बंगाली में अनुवाद किया उसका नाम गिरीश चंद्र सेन था! लेकिन वो इस्लाम मे नहीं गया शायद इसलिए कि वो इस अनुवाद करने से पहले श्रीमद भागवद गीता को भी पढ़ चुके थे !

इंग्लैंड के विद्वान एफ.एच.मोलेम ने लिखा की बाईबल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। उसमें जो दिव्यज्ञान लिखा है वह केवल गीता के उद्धरण के रूप में है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना सारा आदरभाव इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का समाधान पाश्चात्य लोग अभी तक नहीं खोज पाये हैं, उनका समाधान गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दिया है। उसमें कई सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरूपूर लगे इसीलिए गीता जी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन रही हैं। वह तो विश्व के तमाम धन से भी नहीं खरीदा जा सके ऐसा भारतवर्ष का अमूल्य खजाना है।

श्रीमद्भगवद्गीता की इतनी महिमा है फिर भी हिंदू लोग नही पढ़ते है जिसके कारण हिंदू जिनती अपनी उन्नति करना है उतना  नही कर पाते है, गीता में अपने जीवनशैली का पूरा ज्ञान है उससे हर व्यक्ति स्वस्थ, सुखी और सम्मानित जी सकता है, मदरसों में अगर कुरान पढ़ाई जाती है, मिशनरियों स्कूलों में बाइबल पढ़ाई जाती है तो फिर विधायलयों में गीता क्यो नही पढ़ाई जाती है इसमे तो सभी मनुष्यों के लिए उपयोगी बाते लिखी है अतः सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

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Thursday, November 26, 2020

वामपंथी बोल रहे हैं लव जिहाद नहीं है, जानिए लव जिहाद की भयंकर घटनाएं

 

26 नवंबर 2020


‘लव जिहाद’ के नाम पर आज कल वामपंथी गिरोह ने एक नया एजेंडा चलाना शुरू किया है। अपने इस एजेंडे के तहत ये लोग इस बात को साबित करना चाहते हैं कि समाज में ऐसी कोई अवधारणा मौजूद ही नहीं है जो लव जिहाद की प्रमाणिकता को सिद्ध करे। ये मात्र सियासी फितूर है जिसे दक्षिणपंथियों ने फैलाया है और अब उनका (सेकुलर) समाज इससे प्रभावित हो रहा है।




इन लोगों का दावा है कि हिंदू इस लव जिहाद को इसलिए इतना गंभीर बता रहे हैं क्योंकि वह अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह के विरुद्ध हैं। अब अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह की परिभाषा बहुत व्यापक है इसलिए इसे केवल हिंदू-मुस्लिम तक सीमित कर देना कितना गलत है, ये बताने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है।

हम बात करेंगे केवल मीडिया में प्रचलित लव जिहाद शब्द की परिभाषा पर जिसमें वास्तविकता में लव का नामों निशान तक नहीं होता। मौजूद होता है यदि कुछ, तो वो एक पैटर्न होता है, जिसे देखने समझने परखने के बाद ही उसे लव जिहाद का केस कहा जाता है। इस पैटर्न में मुस्लिम युवक पहले अपना नाम छिपाकर हिंदू लड़कियों से प्रेम का ढोंग करते हैं और फिर उन्हें अपने जाल में फँसाकर उनका धर्म परिवर्तन करवाते हैं। बाद में कभी खुद उसका रेप करते हैं तो कभी अपने ही रिश्तेदार से उसका गैंगरेप भी करवाते हैं। जरूरत न होने पर उसे मारने से भी गुरेज नहीं करते।

25 अगस्त को लव जिहाद का एक मामला यूपी के लखीमपुर से सामने आया था। इस केस में मोहम्मद दिलशाद ने एक दलित लड़की को अपने प्रेम जाल में फँसाया और अपने मंसूबे नाकाम होता देख उससे बलात्कार करके बेहरमी से मार डाला। दरअसल, दिलशाद को गुस्सा इस बात का था कि उसने जिस लड़की के साथ प्रेम जाल रचा, उसके घरवालों ने उसकी शादी कहीं और तय कर दी थी। पर दिलशाद चाहता था कि लड़की धर्म परिवर्तन करके उससे निकाह करे।

23 जुलाई को मेरठ के ही परतारपुर में लव जिहाद का वीभत्स चेहरा सामने आया था। प्रिया नाम की महिला को पहले शमशाद ने कुछ साल पहले अमित गुर्जर बनकर फँसाया और फिर हकीकत खुलने पर उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए कहने लगा। हालाँकि, प्रिया खुद को और अपनी बेटी को इन चीजों से बचाती रही। मगर, लॉकडाउन का फायदा उठाकर शमशाद ने दोनों को जान से खत्म कर दिया और घर में गड्डा खोद कर दफना दिया। इस केस का खुलासा प्रिया की सहेली चंचल के कारण पूरे 4 महीने बाद हुआ था।

अपने लेख में आगे हम ऐसे वीभत्स मामलों पर चर्चा जरूर करेंगे क्योंकि द प्रिंट में प्रकाशित हुए जैनब सिकंदर के लेख ने हिंदुओं पर आरोप लगाया है कि लव जिहाद के भूत के ईर्द गिर्द अपनी सोच को रखकर दक्षिणपंथी ‘हिंदू राष्ट्र’ के निर्माण की परिकल्पना कर रहे हैं। इस लेख का शीर्षक है, “राम मंदिर नहीं, ‘लव जिहाद’ के खिलाफ कानून है हिंदू राष्ट्र का असली आधार।”

द प्रिंट पर प्रकाशित जैनब सिकंदर के लेख के शीर्षक से स्पष्ट है कि उनकी दिक्कत राम मंदिर से तो है ही लेकिन अब उसका कुछ किया नहीं जा सकता इसलिए हिंदू राष्ट्र के नाम से सेकुलरों को डराने के लिए वह लव जिहाद कानून का उपयोग कर रही हैं। वह इस कानून को हिंदू राष्ट्र का आधार बता रही हैं जबकि हकीकत यह है कि लव जिहाद कानून हिंदू राष्ट्र का आधार नहीं, बल्कि हिंदुओं को बचाने का प्रयास है। यहाँ राजनीति और धर्म आपस में गड्डमड्ड नहीं हो जाएँगे यहाँ कानून बन जाने से न केवल इस्लामी कट्टरपंथ से अन्य धर्मों की रक्षा होगी बल्कि उन लड़कियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी, जिनका धर्मपरिवर्तन करवाने के बाद उन्हें मारकर फेंक दिया जाता है या समाज में ठोकरें खाने को मजबूर कर दिया जाता है।

लव जिहाद कोई काल्पनिक राक्षस नहीं है। ये वीभत्स हकीकत है। मेरठ में हुआ प्रिया का केस शायद जैनब ने पढ़ा ही नहीं या निकिता के साथ जो तौसीफ ने किया उससे वो आजतक अंजान हैं। राक्षस हैं ये जिन्हें इंसान बनाने के लिए लव जिहाद कानून के रूप में केवल एक रूपरेखा तैयार हो रही है। मुझे यकीन है कि कानून आने के बाद भी हम इससे जल्दी निजात नहीं पाएँगे। आखिर तीन तलाक के बाद कौन सा इन ‘प्रेमियों’ ने बीवियों को तलाक-तलाक-तलाक कहना छोड़ दिया है।

लेखिका चाहती हैं कि लव जिहाद की सच्चाई को स्वीकृति न मिले, तो क्या उनको चाहिए कि हिंदू लड़कियाँ उस बर्बरता की शिकार होती रहें जिसकी नींव धर्म परिवर्तन के साथ रख दी जाती है। जैनब के लेख में लिखा है;
“मोदी के भारत में एक नई फतह का परचम लहराया जा रहा है, यह हिंदू महिलाओं पर मुस्लिम मर्दों की फतह का परचम है; तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नज़रों से यह कैसे बच सकता है।“

आप खुद के लिए कि महिला पत्रकार के लिए ऐसे विवाह खुद जंग का विषय हैं, जिसमें उन्हें मुस्लिम पुरुषों की फतह चाहिए। अब जिनके मन में वाकई ‘जिहाद’ चलता होगा वो इसके लिए क्या नहीं कर गुजरते होंगे ये कल्पना से परे है।

उक्त वाक्य का मतलब क्या निकाला जाए, इसका निर्णय भी पाठक अपने विवेक पर करें। क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि मुस्लिम मर्दों की हकीकत योगी सरकार से नहीं बच पाई या फिर ये निकालें कि अंतरधार्मिक विवाह का अर्थ लेखिका के लिए फतह का विषय तभी तक है जब तक हिंदू लड़की मुस्लिम परिवार को भागकर स्वीकार ले? क्या मुस्लिम महिलाओं का हिंदू युवकों से शादी करना अंतर-धार्मिक विवाह में नहीं आएगा।

तमाम केस हैं जब मुस्लिम महिलाओं ने हिंदू लड़कों से शादी की और बकायदा अपने मजहब के साथ अपनी पहचान बनाए रखते हुए जीवन व्यतीत किया। दूसरी ओर ऐसे सैंकड़ों मामले हैं जब हिंदू लड़की कई सपने लेकर मुस्लिम युवक के साथ जिंदगी शुरू करना चाहा लेकिन शुरुआत हुई कहाँ से? धर्म परिवर्तन से।

राम मंदिर के प्रति कुंठा का अर्थ यह नहीं कि अपनी नफरत की उल्टी कहीं भी कर दी जाए। राम मंदिर धर्म आस्था का विषय है। उसे भी हिंदुओं ने लंबे संघर्ष के बाद न्यायालय के जरिए पाया है। इसलिए सैंकड़ों वर्षों पहले जो हिंदुओं के 40 हजार मंदिर पर आक्रमण करके उन्हें मिटा दिया गया, उसका दुख अब भी इनके ‘राम मंदिर’ के दुख से ज्यादा ही है। एक मंदिर की नींव इनसे देखी नहीं जा रही जाहिर है ‘लव जिहाद’ के ख़िलाफ़ कानून कैसे पच पाएगा।

वामपंथी गिरोह का लव जिहाद को भूत बताने का पैटर्न बिल्कुल एक साथ सामने आया है। उधर रवीश कुमार के प्राइम टाइम की भाषा सुनाई पड़ी और दूसरी वामपंथियों पोर्टल पे प्रकाशित होते ऐसे लेख पढ़ने को मिले…ऐसा लग रहा है मानो एजेंडा का रिबन काटने से पहले एक मीटिंग में बकायादा ऐसे शब्दों के साथ किसी टीचर ने इन्हें बिंदू समझाए हों और फिर सभी लगे हुए हैं एक ही सवाल करने में।

जैनब सिकंदर को दुख यह है कि हरियाणा और मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार ने भी यूपी की योगी सरकार की तरह लव जिहाद पर कानून बनाने का निर्णय ले लिया है। उनका कहना है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के ये तीन राज्य बड़ी बेशर्मी से धार्मिक कानून बनाने की घोषणा कर रहे हैं। हमारा पूछना है कि धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में निकाह से पहले धर्म परिवर्तन करवाया ही क्यों जा रहा है? पहचान छिपाकर प्रेम का ढोंग हो ही क्यों रहा है?

मेरठ मे 16 सितंबर को कंकरखेड़ा से एक अब्दुल्ला नाम का युवक गिरफ्तार हुआ। उस पर आरोप था कि वह अमन बनकर लड़कियों को फँसाता और फिर उनका अपहरण करके उनके साथ दुष्कर्म करता। उसने हाल में 3 सितंबर को एक युवती का अपहरण किया था। जिसकी बरामदगी 13 दिन बाद हुई। 42 वर्षीय अब्दुल्ला 4 बच्चों का अब्बा था।

बताइए, अब्दुल्ला को क्या जरूरत थी ये सब करने की। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से पीड़ित बताया जाएगा। इस जैसों के लिए भी सरकार न बनाए कानून तो क्या करे? केरल में यदि पादरी तक लव जिहाद के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के लिए गृह मंत्रालय को पत्र लिख रहे हैं तो सोचिए ये दक्षिणपंथियों के फितूर की उपज नहीं है। इसे समाज का हर तबका कोढ़ मान रहा है।

जैनब पूछती हैं कि अगर ऐसा ही होना है तो सऊदी अरब में वहाबिया पुलिस आतंक में क्या फर्क है? आप खुद सोचिए पाठक को बरगलाना ऐसी बातों को करना नहीं कहते तो किसे कहते हैं, क्या सरकार किसी प्रकार के कपड़ों को पहनने में प्रतिबंध लगा रही है? किसी को प्रेम विवाह करने से रोक रही है? नहीं, सरकार का कदम सिर्फ कट्टरपंथ के ख़िलाफ है। आपके मौलिक अधिकार छीनने के लिए कोई राज्य सरकार आतुर नहीं है।

धर्म या मजहब के नाम पर कोई फरमान नहीं सुनाया जा रहा बल्कि मजहब के नाम पर हो रहे अपराध से नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास हो रहा है। आपके ऊपर है कि आप इसे कैसे लेंगी। भाजपा और आरएसएस के प्रति नफरत ने आपकी सोच को गर्त में लाकर छोड़ दिया है।

आप इसे फेमिनिस्टों का मुद्दा बनाने के लिए इसे पितृसत्ता से जोड़ रही है और यह हिंदू महिलाओं की समझ पर सवाल उठाकर उसे अस्मिता का सवाल बना रही हैं कि वो खुद का बुरा भला सोचने में अक्षम हैं।

विचार करिए! ब्रेन वॉश शब्द के मायने क्या होते हैं। कुछ दिन कानपुर के गोविंदनगर इलाके में एक आसिफ शाह नाम के युवक ने पहले एक हिंदू युवती को अपने जाल में फँसाया फिर उसका ब्रेनवॉश करके जबरन उसका धर्म परिवर्तन करवाया। बाद में लड़की खराब और मानसिक रूप से अस्थिर हालत में पाई गई। परिजनों की शिकायत पर इस मामले को धारा 366 के तहत दर्ज किया गया है। कौन लड़की आतंकी बनना चाहती है और यदि किसी लड़के से प्रेम करने के बाद वह आईएसआईएस से जुड़ रही है तो इतने के बाद भी उसमें लड़के की गलती न समझी जाए। हर चीज पर पितृसत्ता का तेल लगाने से आपका एजेंडा तेजी से नहीं फैलेगा।

लड़का कम उम्र का हो तब भी माता-पिता उसका ध्यान उतनी सख्ती से देते हैं जितनी सख्ती से एक लड़की के लिए रोक-टोक करते हैं। हर चीज में पितृसत्ता घुसा देने से इसकी गंभीरता वाकई मरती जा रही हैं। महिलाओं के लिए फेमिनिज्म का मतलब पुरुष विरोधी होना हो गया या अधिकार के नाम पर केवल मनमानियां मनवाना। इसके अलावा ये भी समझने की जरूरत है कि पितृसत्तात्मक समाज के दोषी केवल हिंदू पुरुष नहीं है। इसे परिभाषित करना है तो आप किसी भी धर्म मजहब में इसके अनेको उदाहरण देख सकते हैं लेकिन लव जिहाद की अवधारणा इससे बहुत अलग है। इसलिए इन दोनों को जोड़ना बेवकूफी से ज्यादा कुछ नहीं है।

पिछले दिनों बिहार के बेगूसराय एक हिंदू ब्राह्मण ने अपनी मर्जी ने मुस्लिम युवक आफताब से कोर्ट मैरेज की। लड़की के घर तक ने लड़के को स्वीकार, लेकिन शादी के 16 साल बाद युवक ने अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया और महिला पर आए दिन हमले करने लगा, उसके परिवार वाले उसे गलत शब्द बोलने लगे।

ये उदाहरण इस बात का सबूत हैं कि बिहार जैसे इलाकों में भी हिंदू धर्म में लड़कियाँ ही नहीं उनके परिवार भी हर धर्म मजहब को लेकर लिबरल हो रहे हैं, लेकिन वहीं दूसरा समुदाय घूम फिराकर पिछड़ी सोच से ऊपर नहीं उठ पा रहा और हास्यास्पद यह है कि जैनब जैसे पढ़े लिखे लोग इसे ‘प्रेम’ का देकर इसपर स्पष्टीकरण दे रहे हैं।

उन मौलवियों की बातें शायद जैनब ने नहीं सुनी जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ये कहते हैं कि भारत में हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवाना बेहद आसान काम है या उन बच्चों की वायरल वीडियो सोशल मीडिया पर कभी नहीं देखी कि जो ये बताते हैं कि उन्हें मदरसों में हिंदू लड़कियों के लिए क्या सिखाया जाता है।

जैनब का लेख में कहना है कि साल 2009 में निराधार ही एबीवीपी ने ऐसा झूठ फैलाया कि लव जिहाद के तहत 4000 लड़कियों का धर्मांतरण हुआ लेकिन वह ये नहीं बताती कि इस पर्चे में और क्या लिखा था और इसका संदर्भ क्या था। उनके लिए यही तर्क का आधार है कि वो कानपुर में जिन लव जिहाद के मामलों जाँच हो रही थी उनमें से आधे ऐसे निकल आए हैं जो रजामंदी से हुए। उनका इससे सरोकार नहीं है पिछले दिनों में मुस्लिम युवकों ने पहले पहचान छिपाकर, फिर धर्म बदलवाकर, बाद में निकाह करके कैसे हिंदू महिलाओं के साथ बर्बरता की या फिर उन्हें मौत के घाट उतारा।

लव जिहाद की जगह ऑपइंडिया करेगा ग्रूमिंग जिहाद इस्तेमाल

यहाँ गौरतलब हो कि ऑपइंडिया ने अपने इस लेख में लव जिहाद शब्द का प्रयोग सिर्फ इसलिए किया है क्योंकि द प्रिंट ने इसका इस्तेमाल करके अपना आर्टिकल लिखा। वरना ऑपइंडिया की ओर से स्टैंड लिया गया है कि हम अपनी रिपोर्ट में ‘लव जिहाद’ शब्द के इस्तेमाल से दूरी बनाएँगे। इस प्रकार जिहाद में कोई ‘लव’ नहीं है और अगर इस शब्द को इसके जटिल वाक्य-विन्यास के साथ स्वीकार करते हैं, तो यह जिहाद की गंभीरता को दिखाने में विफल रहता है, जो कट्टरपंथी मुस्लिमों द्वारा विशेष रूप से गैर-मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाता है। हमारा मानना है कि इसके लिए ‘ग्रूमिंग जिहाद’ शब्द कहीं अधिक उपयुक्त है क्योंकि यह उन सभी अपराधों की श्रेणी में आता है, जो महिलाओं को इस जिहाद के केंद्र में रखते हैं। https://twitter.com/OpIndia_in/status/1331432420621516802?s=19

गैर-मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों के हाथों अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए तैयार किया जा रहा है। उनका अपहरण कर लिया जाता है, उनका बलात्कार किया जाता है, लालच दिया जाता है, उन्हें इस्लाम में परिवर्तित कर दिया जाता है, दंडित किया जाता है और उनका ब्रेनवॉश किया जाता है। मानवता के खिलाफ इन अपराधों में कोई ‘प्यार’ नहीं है। इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है कि यह जिहाद का ही एक रूप है। अब यह कहने का समय आ गया है कि यह ग्रूमिंग जिहाद है। यह ग्रूमिंग शब्द हमने यूनाइटेड किंगडम की ग्रूमिंग गैंग से जोड़ते हुए लिया है। जो एक मुस्लिम पुरुषों का गिरोह होता है और वह वहाँ लड़कियों व महिलाओं का शिकार करते हैं।

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Wednesday, November 25, 2020

पादरी करता रहा दो बच्चियों का रेप, मीडिया में सन्नाटा, पुलिस भी शांत है...

 

25 नवंबर 2020


वर्तमान में देश में एक बड़ा षड्यंत्र चल रहा है। जो साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा आश्रम जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षडयंत्र को सहन कर लेते हैं।




आपको बता दें कि महाराष्ट्र के संभाजीनगर में ईसाई पादरी अमित शंकर पिछले 2 सालों से एक लड़की के साथ बलात्कार कर रहा था इतना ही नहीं उसकी हवस नहीं बुझी तो उस लकड़ी की नाबालिग छोटी बहन को भी बना लिया हवस का शिकार।

दोनो बहनों ने संबंधित पुलिस स्टेशन उस्मानपुरा में 3 महीने पहले पोक्सो एक्ट के तहत बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवाया है। लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नहीं कर रही है और न ही कोई मीडिया दिखा रहा है केवल सुदर्शन न्यूज़ के अलावा। पीड़िता अपना दर्द बता रही है चक्कर लगा रही है लेकिन पादरी की गिरफ्तारी नहीं हो रही है।

अगर किसी साधु-संत पर साजिश के तहत झूठा मुकदमा दर्ज किया गया होता तो मीडिया 24 घण्टे खबरे दिखाती, अनेक डिबेट करती झूठी कहानियां बनाती और पुलिस आधी रात को गिरफ्तार कर लेती यही एक दो घटना नही अनेकों साधु-संतों के साथ हुआ हैं और चल रहा हैं।

आपको बता दें कि पादरियों के कुकर्म को छिपाना और हिंदू साधु-संतों को झूठे बदनाम करने के पीछे का कारण यह है कि करोडों लोग साधु-संतों के प्रति श्रद्धा रखते हैं और उनके आश्रम में जाते हैं और वहाँ उनको भारतीय संस्कृति के अनुसार जीने का सही तरीका मिलता है फिर वे अपने धर्म के प्रति आस्थावान हो जाते हैं जिसके कारण वे ईसाई मिशनरियों के चुंगल में नहीं आते हैं औऱ वें विदेशी प्रोडक्ट भी नहीं खरीदते जिसके कारण ईसाई मिशनरियों का जो लक्ष्य है भारत में धर्मांतरण करके अपनी वोटबैंक बढ़ाकर सत्ता हासिल करना और जो विदेशी कंपनियों के सामान नहीं बिकने पर उनको अरबो-खरबों रूपये का घाटा होना। इसके कारण ये लोग अनेक प्रकार के षड्यंत्र रचकर हिंदुओं की आश्रम व साधु-संतों के प्रति आस्था को नष्ट करने के लिए साज़िशें रच रहे हैं और प्रकाश झा जैसे जयचंद गद्दारी करके अपने ही धर्म के खिलाफ फिल्में बनाते हैं और मीडिया भी उनके पैसे मिलने पर साधु-संतों को बदनाम करते हैं।

यहाँ आपको ईसाई पादरियों के दुष्कर्मों की लिस्ट दे रहे है इससे आप अनुमान लगा सकते है कि ये लोग समाज को कैसे बर्बाद कर रहे है।

★2017 में केरल के वायनाड में चिल्ड्रन होम चलाने वाला फादर साजी जोसफ दर्जनों नाबालिग लड़कों का बलात्कार करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★जुलाई 2018 में फादर जॉनसन मैथ्यू एक विवाहित महिला का रेप करने में अपराध में पकड़ा गया था।

★फरवरी 2018 मेंगलुरु में 3 ईसाई पादरी एक किशोरी का सामूहिक बलात्कार करने के अपराध में पकड़े गए थे।

★ 2018 आंध्रा में एक 45 वर्षीय क्रिश्चन पादरी 11 वर्षीय बच्ची का रेप करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★असम में 60 वर्षीय चन्द्र कुमार नामक ईसाई पास्चर 10 वर्षीय बालिका का बलात्कार करने के आरोप में पकड़ा गया था।

★मध्यप्रदेश के झबुआ में 33 वर्षीय ईसाई प्रीस्ट फादर प्रकाश डामोर 17 वर्षीय बालिका का बलात्कार करने और उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने के अपराध में पकड़ा गया था।

★ 30 वर्षीय चर्च के एक पादरी और चर्च के 9 अन्य कर्मचारियों को 2014 के तित्ताकुड़ी में 2 नाबालिग लड़कियों के रेप केस में आजीवन कारावास की सजा हुई है।

★ केरल के एर्नाकुलम जिले में पुलिस ने सिरो मालाबार चर्च के फादर जॉर्ज पडायततिल को चर्च में तीन 9 वर्षीय बच्चियों का बलात्कार करने के अपराध में गिरफ्तार किया था।

★एशिया, उत्तर अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप से ये शर्मनाक समाचार निकल रहे हैं कि कैथोलिक चर्च के अंदर दशकों से हजारों बच्चों का यौन-शोषण होता रहा है और अधिकारियों ने पहले यह समाचार दबाने का प्रयास किया ।

★जर्मनी के प्रमुख अखबारों ने यह समाचार दिया है कि 1600 पादरियों ने 3677 नाबालिगों का यौन-शोषण किया ।

ईसाई पादरियों के दुष्कर्म की यह तो मात्र कुछ घटनाएं हैं, पूरी लिस्ट बनाएंगे तो एक बड़ी पुस्तक भी छोटी पड़ेगी।

कई ईसाई पादरी हैं जिन्होंने कई छोटे बच्चों के साथ और कई नन के साथ रेप किया है पर मीडिया इस पर मौन रहती है। दूसरी तरफ न्यायालय भी उनको तुरंत राहत दे देती है। बिशप फ्रैंको को 21 दिन में ही जमानत हासिल हो गई थी जबकि 85 वर्षीय हिंदू संत आसाराम बापू के खिलाफ 5 साल तक न्यायालय में सुनवाई होती रही पर 1 दिन भी जमानत नहीं दी गई, हर बार खारिज कर दिया गया ।

हिंदू धर्मगुरुओं पर हो रहे षड्यंत्र को समझना होगा और सावधान रहना होगा।

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Tuesday, November 24, 2020

भीष्मपंचक व्रत करने से मिलेंगे अनेक फायदे, जानिए कैसे करें ?

 

24 नवम्बर 2020


भीष्म पंचक का हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्व है। पुराणों तथा हिन्दू धर्म ग्रंथों में कार्तिक माह में 'भीष्म पंचक' व्रत का विशेष महत्व कहा गया है। इस साल यह व्रत 25 नवम्बर से 29 नवम्बर तक है।




 सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।

 माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।

 कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करने वाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नी सहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।

 भीष्मपंचक व्रत कथा:

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पड़े हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अर्घ्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।

 इसी संदर्भ में एक और कथा है...

महाभारत का युद्ध समाप्त होने पर जिस समय भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर शयन कर रहे थे। तब भगवान कृष्ण पाँचों पांडवों को साथ लेकर उनके पास गये थे। ठीक अवसर मानकर युधिष्ठर ने भीष्म पितामह से उपदेश देने का आग्रह किया। भीष्म जी ने पाँच दिनों तक राज धर्म ,वर्णधर्म मोक्षधर्म आदि पर उपदेश दिया था । उनका उपदेश सुनकर श्रीकृष्ण सन्तुष्ट हुए और बोले, ”पितामह! आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक पाँच दिनों में जो धर्ममय उपदेश दिया है उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। मैं इसकी स्मृति में आपके नाम पर भीष्म पंचक व्रत स्थापित करता हूँ । जो लोग इसे करेंगे वे जीवन भर विविध सुख भोगकर अन्त में मोक्ष प्राप्त करेंगे।

भीष्म पंचक व्रत में क्या करना चाहिए ? 

इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।

 इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए :
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने । भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अर्घ्य देता हूँ ।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

अर्घ्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवड़ा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ़ रहे, मैं कामविकार से बचूँ... - ऐसी प्रार्थना अवश्य करें जिससे वीर्यवान व्यक्ति बनेगा।

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है ।

गौमूत्र का पान करें तथा पानी में थोड़ा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है ।

इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अर्घ्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।

‘जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अर्घ्य देता हूँ ।

 इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है l इस दिन भगवान नारायण जागते हैं l इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द उत्तिष्ठ गरुडध्वज l
उत्तिष्ठ कमलाकान्त त्रैलोक्यमन्गलं कुरु ll

'हे गोविन्द ! उठिए, उठिए , हे गरुड़ध्वज ! उठिए, हे कमलाकांत ! #निद्रा का त्याग कर तीनों लोकों का मंगल कीजिये l'
(ऋषि प्रसाद : नवम्बर 2007)

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