Wednesday, August 17, 2016

संस्कृत दिवस : 18 अगस्त 2016

🚩#संस्कृत_भाषा की उपयोगिता
🚩#संस्कृत_दिवस : 18 अगस्त 2016
🚩#संस्कृत का अध्ययन मनुष्य को सूक्ष्म विचारशक्ति प्रदान करता है । मन स्वाभाविक ही अंतर्मुख होने लगता है । इसका अध्ययन मौलिक चिंतन को जन्म देता है । #संस्कृत भाषा के पहले की कोई अन्य भाषा, संस्कृत वर्णमाला के पहले की कोई अन्य वर्णमाला देखने-सुनने में नहीं आती । इसका व्याकरण भी अद्भुत है । ऐसा सर्वांगपूर्ण व्याकरण जगत की किसी भी अन्य भाषा में देखने में नहीं आता । यह संसार भर की भाषाओं में #प्राचीनतम और समृद्धतम है ।
🚩#महात्मा #गाँधीजी के अनुसार #‘संस्कृत-ज्ञान के बिना हिन्दू तो असंस्कृत ही हैं ।'
🚩स्वामी #विवेकानंदजी के शब्द हैं : ‘#संस्कृत शब्दों की ध्वनिमात्र से इस जाति को शक्ति, बल और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है ।'
🚩#संस्कृत-ज्ञान से प्रभावित #विलियम_थियॉडोर का कहना है कि ‘#भारत तथा संसार का उद्धार और सुरक्षा #संस्कृत-ज्ञान के द्वारा ही संभव है ।'
Jago Hindustani - Sanskrit Divas

🚩#संस्कृत का अखंड प्रवाह पाली, #प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं से होता हुआ आज तक समस्त भारतीय भाषाओं में बह रहा है । चाहे तमिल, कन्नड़ या बँगला हो, #मलयालम, उड़िया, तेलगू, मराठी या पंजाबी हो - सभी #भारतीय भाषाओं के लिए #संस्कृत ही अन्तःप्रेरणा-स्रोत है । आज भी इन भाषाओं का पोषण और #संवर्धन #संस्कृत द्वारा ही होता है । संस्कृत की सहायता से कोई भी उत्तर #भारतीय व्यक्ति तेलगू, कन्नड़, उड़िया, #मलयालम आदि दक्षिण एवं पूर्व भारतीय भाषाओं को #सरलतापूर्वक सीख सकता है ।
🚩यदि इसके महत्त्व को समझकर इसका प्रयोग किया जाये तो इसके अगणित लाभ हो सकते हैं।
🚩#संस्कृत की भाषा विशिष्टता को समझकर लन्दन के बीच बनी एक पाठशाला ने अपने जूनियर डिविजन में इसकी शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। श्री आदित्य घोष ने सन्डे हिंदुस्तान टाइम्स ( १० फरवरी, २००८ ) में इससे सम्बंधित एक लेख प्रकाशित किया था। उनके अनुसार लन्दन की उपर्युक्त पाठशाला के अधिकारीयों की यह मान्यता है कि #संस्कृत का ज्ञान होने से अन्य #भाषाओँ को सिखने व समझने की शक्ति में अभिवृद्धि होती है। इसको सिखने से #गणित व #विज्ञान को समझने में आसानी होती है। Saint James Independent school नामक यह #विद्यालय #लन्दन के #कैनिंगस्टन ओलंपिया क्षेत्र की डेसर्स स्ट्रीट में अवस्थित है। पाँच से दस वर्ष तक की आयु के इसके अधिकांश छात्र काकेशियन है। इस #विद्यालय की आरंभिक कक्षाओं में संस्कृत #अनिवार्य विषय के रूप में सम्मिलित है।
🚩इस #विद्यालय के बच्चे अपनी पाठ्य पुस्तक के रुप में #रामायण को पढ़ते हैं। बोर्ड पर सुन्दर देवनागरी लिपि के अक्षर #शोभायमान होते हैं। बच्चे अपने शिक्षकों से संस्कृत में प्रश्नोत्तरी करते हैं और अधिकतर समय संस्कृत में ही वार्तालाप करते हैं। कक्षा के उपरांत समवेत स्वर में श्लोकों का पाठ भी करते हैं। दृश्य ऐसा होता है मानो यह पाठशाला #वाराणसी एवं #हरिद्वार के कसीस स्थान पर अवस्थित हो और वहां पर किसी कर्मकांड का पाठ चल रहा हो। इस पाठशाला के शिक्षकों ने अनेक शोध-परीक्षण करने के पश्चात् अपने निष्कर्ष में पाया कि #संस्कृत का ज्ञान बच्चों के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। संस्कृत जानने वाला छात्र अन्य भाषाओँ के साथ अन्य विषय भी शीघ्रता से सीख जाता है। यह निष्कर्ष उस विद्यालय के विगत बारह वर्ष के अनुभव से प्राप्त हुआ है।
🚩#Oxford_University से संस्कृत में #Ph.D करने वाले #डॉक्टर वारविक जोसफ उपर्युक्त विद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष हैं। उनके अथक लगन ने संस्कृत भाषा को इस विद्यालय के ८०० विद्यार्थियों के जीवन का अंग बना दिया है। डॉक्टर जोसफ के अनुसार संस्कृत विश्व की सर्वाधिक पूर्ण, परिमार्जित एवं तर्कसंगत भाषा है। यह एकमात्र ऐसी भासा है जिसका नाम उसे बोलने वालों के नाम पर आधारित नहीं है। वरन संस्कृत शब्द का अर्थ ही है "पूर्ण भाषा"। इस विद्यालय के #प्रधानाध्यापक पॉल मौस का कहना है कि संस्कृत अधिकांश यूरोपीय और भारतीय भाषाओँ की जननी है। वे संस्कृत से अत्यधिक प्रभावित है। प्रधानाचार्य ने बताया कि प्रारंभ में संस्कृत को अपने पाठ्यक्रम का अंग बनाने के लिए बड़ी चुनौती झेलनी पड़ी थी।
🚩#प्रधानाचार्य मौस ने अपने दीर्घकाल के अनुभव के आधार पर बताया कि #संस्कृत सिखने से अन्य लाभ भी हैं। देवनागरी लिपि लिखने से तथा संस्कृत बोलने से बच्चों की जिह्वा तथा उँगलियों का कडापन समाप्त हो जाता है और उनमें लचीलापन आ जाता है। यूरोपीय भाषाएँ बोलने से और लिखने से जिह्वा एवं उँगलियों के कुछ भाग सक्रिय नहीं होते है। जबकि #संस्कृत के प्रयोग से इन अंगों के अधिक भाग सक्रिय होते हैं। संस्कृत अपनी विशिष्ट #ध्वन्यात्मकता के कारण प्रमस्तिष्कीय (Cerebral) क्षमता में वृद्धि करती है। इससे सिखने की क्षमता, स्मरंशक्ति, निर्णयक्षमता में #आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है। संभवतः यही कारण है कि पहले बच्चों का विद्यारम्भ संस्कार कराया जाता था और उसमें मंत्र लेखन के साथ बच्चे को जप करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता था। संस्कृत से छात्रों की गतिदायक कुशलता (Motor Skills) भी विकसित होती है।
🚩आज #आवश्यकता है संस्कृत के विभिन्न आयामों पर फिर से नवीन ढंग से अनुसन्धान करने की, इसके प्रति जनमानस में जागृति लाने की; क्योंकि संस्कृत हमारी संस्कृति का प्रतीक है। संस्कृति की रक्षा एवं विकास के लिए संस्कृत को महत्त्व प्रदान करना आवश्यक है। इस विरासत को हमें पुनः शिरोधार्य करना होगा तभी इसका विकास एवं उत्थान संभव है।
🚩#भारतीय संस्कृति की सुरक्षा, चरित्रवान नागरिकों के निर्माण, प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति एवं विश्वशांति हेतु संस्कृत का अध्ययन अवश्य होना चाहिए ।
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