Sunday, August 21, 2016

मुख्य न्यायाधीश श्री तीरथ सिंह ठाकुर :वर्तमान समय की माँग है कि न्याय प्रणाली में सुधार हो !!

🚩वर्तमान समय की माँग है #न्याय_प्रणाली में सुधार
🚩#भारत के #मुख्य_न्यायाधीश #न्यायमूर्ति #तीरथ_सिंह ठाकुर ने कहा कि 'तीव्र व निष्पक्ष #न्याय का सपना आज भी दूर है, जिसके कारणों की #खोज करना आवश्यक है । जहाँ देश विकास के क्षेत्र में तेजी से प्रगति कर रहा है, ऐसे में #न्यायिक प्रणाली में सुधार की भी नितांत आवश्यकता है।' 
🚩वर्तमान न्याय प्रणाली हमें #अंग्रेजों से विरासत में मिली है। गांधीजी ने कहा था, 'यह प्रणाली अंग्रेजों ने नेटिव #इंडियंस (मूलनिवासी भारतीयों) को न्याय देने के लिए प्रस्थापित नहीं की थी, बल्कि अपना साम्राज्य मजबूत करने के लिए इस न्याय प्रणाली का गठन किया गया था । इस न्याय प्रणाली में '#स्वदेशी' कुछ भी नहीं है । इसकी #भाषा, पोशाक तथा चिंतन सब कुछ विदेशी है। 'अतीत में भारत में जो न्याय दिलाने वाली #संस्थाएँ विद्यमान थीं, उन्हें पूर्णत: समाप्त कर एक केंद्रीभूत तथा सर्वव्यापी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों ने स्थापित की। गांधीजी ने यह भी कहा था, 'जिसकी थैली बड़ी होगी, उसी को यह न्याय प्रणाली सुहाती है।'

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🚩प्रतिपक्षीय न्याय प्रणाली में न्याय या निर्णय करने की प्रक्रिया गवाहों पर आधारित है और सौ फीसदी सच बोलनेवाला गवाह इस धार्मिक देश में कहीं अस्तित्व में ही नहीं है । ईश्वर की सौगंध लेकर गीता पर हाथ रखकर भी झूठ कहना अदालत की चारदीवारी में आसान हो गया है । वर्तमान न्याय प्रणाली का इस देश की मानसिकता या मिट्टी से कुछ भी संबंध नहीं है। इस प्रणाली में वैयक्तिक न्याय या सामाजिक न्याय मिलता ही है, यह कह पाना मुश्किल है। इसमें तो सिर्फ निर्णय मिलता हैल।
🚩#विनोबा जी ने कहा था कि'#भारत का अपना एक न्याय था और बाहर से आया हुआ एक न्याय। भारत का न्याय था पंच परमेश्वर द्वारा न्याय। आजकल अपने यहाँ जो बाहर का चलता है । यह इंपोर्टेड (आयातित) न्याय है । उसे'एक्सपोर्ट' कर देना चाहिए (बाहर भेज देना चाहिए।)'
🚩#गांधीजी ने कहा है, 'इस प्रणाली में कुछ पापमूलक तत्त्व हैं, जिनके कारण #वकीलों को भरपूर कमाई करने का अवसर मिलता है ।'संविधान के अनुसार जिस #संवैधानिक_संस्था को निष्पक्ष न्याय देने की जिम्मेदारी दी गई थी आज वही न्याय के कटघरे में कई फैसले व व्यवस्था के कारण खड़ी होती दिखाई दे रही है । जजों के चुनने की व्यवस्था कोलेजियम पर कई जाने माने जज भी गलत मान चुके हैं लेकिन यह आँकड़ा और भी चौका देता है कि देश के भीतर उपस्थित १३ उच्च #न्यायालयों में ५२ प्रतिशत जज, बड़े वकीलों के रिश्तेदार चुने गए । यह आँकड़ा न्यापालिका के #भ्रष्टाचार को साबित करने के लिए पर्याप्त है और पिछले २२ सालों से देश में जजों को इसी तरह चुना गया ।
🚩अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने उदाहरण दिया था कि कोलेजियम सिस्टम से चुने गए जज अदालतों में देर से आते हैं और सहयोगी बेंच के जजों को भी धमकाते हैं। जज कुरियन जोसेफ ने माना कि कॉलेजियम प्रणाली विफल हो गई, जहाँ दिशा-निर्देशों की अनदेखी कर चहेते और नाकाबिल जजों का चयन होता है । पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस भरूचा ने १५ वर्ष पहले कहा था कि #हाईकोर्ट के २० फीसदी जज भ्रष्ट हैं वहीं एक पूर्व न्यायाधीश ५० फीसदी जजों को भ्रष्ट करार दिया था । पूर्व कानून मंत्री #शांतिभूषण ने तो सुप्रीम कोर्ट के आठ पूर्व चीफ जस्टिसों को भ्रष्ट बताते हुए हलफनामा ही दायर कर दिया परंतु सुप्रीम कोर्ट और सरकार प्रभावी कार्यवाही करने में विफल रही क्योंकि गलत जजों की नियुक्ति में दोनों शामिल थे । आईबी की प्रतिकूल रिपोर्ट के बावजूद तमिलनाडु में #डीएमे के भ्रष्ट नेता को जमानत देने वाले व्यक्ति को #यूपीए_सरकार द्वारा हाईकोर्ट का जज बनवाकर सुप्रीमकोर्ट के तीन पूर्व #प्रधान न्यायाधीशों से अनुचित सेवा-विस्तार दिलवा दिया गया ।
🚩न्यायमूर्ति #चेलमेंश्वर ने माना कि सिर्फ स्वतंत्र और सक्षम न्यायपालिका ही समाज में भरोसा कायम रखने का काम कर सकती है परंतु देश की अदालतों में लंबित ३.५ करोड़ से अधिक मुकदमों का बढ़ता ढेर जजों की दक्षता का प्रमाण तो नहीं देते । कॉलेजियम प्रणाली के बदले राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी)  के  मामले में छह महीने के भीतर सुनवाई कर निर्णय देनेवाले जज, आम जनता के मामलों को सालों-साल क्यों लटकाते हैं?कातिलों के लिए आधी रात में सुनवाई करने वाले जजों को ४ लाख गरीब अनपढ़ कैदियों को जेल से निकालने के लिए समय क्यों नहीं है ? #सुप्रीम_कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस वी. एन. खरे ने खुद स्वीकार किया था कि 'हमारे देश में गरीबों के लिए न्याय के रास्ते करीब-करीब बंद हो चुके हैं। बिना पैसों के अदालत की ओर देखना भी गुनाह है ।' गांधीजी ने कहा था कि 'अदालतें न हों तो हिंदुस्तान में गरीबों को बेहतर न्याय मिल सकता है ।'
🚩अंग्रेजों की मानसिकतावाली मी लार्ड्स को आम जनता के साथ जोड़ना पड़ेगा, इसके लिए संविधान में परिवर्तन करने की आवश्यकता है । अगर आजादी का संपूर्ण आशय स्थापित करना है तो जनता की भाषा में शासन व्यवहार और न्यायालय से संबंधित व्यवहार अनिवार्य किया जाना चाहिए। कामयाब होने के लिए जनता की भाषा में यानी लोकभाषा में लोकतंत्र का न्याय व्यवहार कार्य करे । वरना इसमें सिर्फ 'तंत्र' रह जाएगा और 'लोक' गायब हो जायेंगे । उनका व्यवहार में कोई स्थान ही नहीं रहेगा। यदि लोकभाषा व्यवहार की भाषा नहीं होगी तो सामान्यजनों की न्याय व्यवहार में कोई सहभागिता या हिस्सा हो ही नहीं सकता ।
🚩पुराना न्यायिक नुस्खा है कि भले ही कई अपराधी छूट जाये पर एक भी बेकसूर को सजा नहीं होनी चाहिए। बावजूद इसके वर्तमान न्यायिक प्रक्रिया का शिकार ज्यादातर बेकसूर ही हो रहे हैं। आज न्यायालय का क्षेत्र सामान्यजन के लिए अछूता है। वहाँ बिचौलियों का महत्त्व और मूल्य अधिक है। #कानून हाथ में लेने की वृत्ति भी बढ़ रही है। सभी #राजनीतिक पक्ष ऐसी संपूर्ण #स्वतंत्र और निष्पक्ष न्याय प्रणाली चाहते हैं, जिन्हें सिर्फ उनके ही पक्ष में निर्णय देने की स्वतंत्रता रहे। भारत में कुशासन की जड़ में सिर्फ धूर्त #राजनेता और #उद्योगपति ही नहीं, गलत नीयत से बनाए गए बुरे कानून भी हैं । अदालतों में लंबे खिंचते मुकदमें हर क्षेत्र में कानून तोडऩे वालों को बढ़ावा देते हैं । प्रजातंत्र और कानून का राज तभी कायम रह सकता है जब नागरिकों की न्यायिक व्यवस्था में #आस्था हो और पीड़ितों को त्वरित व निष्पक्ष न्याय मिल सके।
🚩सिर्फ #कानून से समाज परिवर्तन नहीं हो सकता। यदि उसे लोकमत और लोकशक्ति का सहारा नहीं मिलेगा तो वह लूढ़क जाता है। कानून रास्ता खोलता है, पर उस रास्ते से जाने की प्रेरणा नहीं दे सकता। इसलिए आज की न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है, तभी सामाजिक न्याय की स्थापना हो सकेगा ।
🚩न्यायाधीशों के लिए न्याय में देरी #लोकतंत्र का सबसे बड़ा अपराध ही माना जाएगा । कुछ लोगों के मामले में आज जिस प्रकार न्यायपालिका अपना काम कर रही है वो आम लोगों के मन में उसकी प्रतिष्ठा को तो कम करता ही है, निष्पक्ष न्याय को लेकर आशंका और अविश्वास को भी बल देता है। अगर समय रहते हम नहीं सँभले तो इसके दूरगामी परिणाम निश्चित तौर पर बहुत घातक होंगे । अतः समय रहते सरकार व न्यायपालिका को सावधान हो जाना चाहिए ।

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