Sunday, July 24, 2016

23जुलाई 2016 बाल गंगाधर तिलक जी की जन्म जयंती की

23जुलाई 2016
बाल गंगाधर तिलक की जन्म जयंती की
तिलकजी की सत्यनिष्ठा
बाल गंगाधर तिलकजी के बाल्यकाल की यह घटना हैः
एक बार वे घर पर अकेले ही बैठे थे कि अचानक उन्हें चौपड़ खेलने की इच्छा हुई। किंतु अकेले चौपड़ कैसे खेलते? अतः उन्होंने घर के खंभे को अपना साथी बनाया। वे दायें हाथ से खंभे के लिए और बायें हाथ से अपने लिए खेलने लगे। इस प्रकार खेलते-खेलते वे दो बार हार गये।
दादी माँ दूर से यह सब नजारा देख रही थीं। हँसते हुए वे बोलीः
"धत् तेरे की... एक खंभे से हार गया?"
तिलकजीः "हार गया तो क्या हुआ? मेरा दायाँ हाथ खंभे के हवाले था और मुझे दायें हाथ से खेलने की आदत है। इसीलिए खंभा जीत गया, नहीं तो मैं जीतता।"
Jago Hindustani-Lokmaanytilak Jayanti-Balgangadhar Tilak

कैसा अदभुत था #तिलकजी का न्याय ! जिस हाथ से अच्छे से खेल सकते थे उससे खंभे के पक्ष में खेले और हारने पर सहजता से हार भी स्वीकार कर ली। महापुरुषों का बाल्यकाल भी नैतिक गुणों से भरपूर ही हुआ करता है।
इसी प्रकार एक बार छः मासिक परीक्षा में तिलकजी ने प्रश्नपत्र के सभी प्रश्नों के सही जवाब लिख डाले।
जब परीक्षाफल घोषित हुआ तब विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के लिए भी बाँटे जा रहे थे। जब तिलक जी की कक्षा की बारी आयी तब पहले नंबर के लिए तिलकजी का नाम घोषित किया गया। ज्यों ही अध्यापक तिलकजी को बुलाकर इनाम देने लगे, त्यों ही बालक तिलकजी रोने लगे।
यह देखकर सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ ! जब अध्यापक ने तिलकजी से रोने का कारण पूछा तो वे बोलेः
"अध्यापक जी ! सच बात तो यह है कि सभी प्रश्नों के जवाब मैंने नहीं लिखे हैं। आप सारे प्रश्नों के सही जवाब लिखने के लिए मुझे इनाम दे रहे हैं, किंतु एक प्रश्न का जवाब मैंने अपने मित्र से पूछकर लिखा था। अतः इनाम का वास्तविक हकदार मैं नहीं हूँ।"
अध्यापक प्रसन्न होकर तिलकजी को गले लगाकर बोलेः
"बेटा ! भले तुम्हारा पहले नंबर के लिए इनाम पाने का हक नहीं बनता, किंतु यह इनाम अब तुम्हें सच्चाई के लिए देता हूँ।"
ऐसे सत्यनिष्ठ, न्यायप्रिय और ईमानदार बालक ही आगे चलकर महान कार्य कर पाते हैं।
प्यारे विद्यार्थियो ! तुम ही भावी भारत के भाग्य विधाता हो। अतः अभी से अपने जीवन में सत्यपालन, ईमानदारी, संयम, सदाचार, न्यायप्रियता आदि गुणों को अपना कर अपना जीवन महान बनाओ। तुम्हीं में से कोई लोकमान्य तिलक तो कोई सरदार वल्लभभाई पटेल, कोई शिवाजी तो कोई महाराणा प्रताप जैसा बन सकता है। तुम्हीं में से कोई ध्रुव, प्रह्लाद, मीरा, मदालसा का आदर्श पुनः स्थापित कर सकता है।
उठो, जागो और अपने इतिहास-प्रसिद्ध महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को भी दिव्य बनाने के मार्ग पर अग्रसर हो जाओ.... भगवत्कृपा और संत-महापुरुषों के आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं।

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