Monday, August 22, 2016

आखिर किसान क्यों हुए खुदकुशी करने को मजबूर और कब मिलेगी राहत !!!

🚩#भारत में #किसानों के #आत्महत्या की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है !
🚩आखिर क्यों..???
🚩कब लगेगी किसानों की आत्महत्या पर रोक...???
🚩किसान #मिट्‌टी से सोना उपजाते हैं। वे अपने श्रम से #संसार का पेट भरते हैं। कितने भी #आधुनिक विकास कर लो लेकिन जब #किसान खेती नही करेगा तो हम क्या खायेंगे ?
🚩किसान बहुत परिश्रमी होते हैं । वे खेतों में जी-तोड़ श्रम करते हैं । वे मेहनत करके अनाज, फल और #सब्जियाँ उगाते हैं । तभी हम अन्य काम कर पाते है इसलिए देश में किसान हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण है ।
🚩#देश में किसानों की बढ़ती जा रही हैं आत्महत्याएं...!!!
🚩1995 से  31 मार्च 2013 तक के आंकड़े बताते हैं कि अब तक 2,96 438 किसानों ने आत्महत्या की है ।
🚩देश में 2014 और 2015 में किसानों की खुदकुशी के मामले में 40 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।
🚩 #सरकारी #सूत्रों के अनुसार, 2014 में 5650 और 2015 में 8000 से अधिक मामले सामने आए। 
🚩एक #अंग्रेजी_समाचार पत्र में छपी खबर के अनुसार #महाराष्ट्र में किसानों की खुदकुशी के मामले सबसे अधिक हैं। यहाँ कमी नहीं आ रही है।

Jago Hindustani - After-all-why-farmers-forced-to-commit-suicide

🚩2014 से 2015 के बीच राज्य में 18 फीसदी मामले बढ़े हैं। किसानों की खुदकुशी की संख्या 2568 से बढ़कर 3030 हो गई। वहीं #तेलंगाना 2015 में दूसरे स्थान पर रहा। वहां 898 से बढ़कर 1350 मामले सामने आए। 
🚩#कर्नाटक में 2014 से 2015 के बीच चौंकाने वाले आंकड़े सामने आये। 2014 में 231 किसानों ने खुदकुशी की थी वहीं 2015 में 1300 से अधिक किसानों ने आत्महत्या कर ली। यह राज्य सभी #राज्यों में तीसरे स्थान पर आ गया। 
🚩सूत्रों का कहना है कि 2015 में एमपी और #छत्तीसगढ़ में 100 से अधिक मामले सामने आए। #गुजरात, उत्तर प्रदेश, #पंजाब , #बिहार, #हरियाणा, #राजस्थान, #झारखंड, #पश्चिम_बंगाल और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों से किसानों की खुदकुशी के मामले भी मिले है ।

🚩आखिर किसान क्यों हुए खुदकुशी करने को मजबूर...???
🚩सूखे से प्रभावित होती फसल और बढ़ते कर्ज के बोझ से अन्नदाताओं की सांसें फूलने लगी हैं। 2014 और 2015 में #मध्य_भारत के राज्यों को सूखे का सामना करना पड़ा। इससे निपटने के लिए सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नही उठाएं है ।
आंकड़ों को आधार बनाकर ब्यानबाजी जरूर होती रही बस ।
🚩असल में खेती की बढ़ती लागत और #कृषि_उत्पादों की गिरती कीमत किसानों की निराशा की सबसे बड़ी वजह रही है ।
🚩किसानों के खर्च में बहुत तेजी से बढ़ोतरी हुई है इसमें सिंचाई के लिए बनाने वाले बोरवेल के लिए भूजल स्तर में भारी गिरावट के चलते महंगे हो गए,  बोने वाले बीज महंगे हो गये , बिजली महँगी हो गई उसके बाद भी जब फसल आती है तब दाम बहुत कम हो जाते है जिससे किसानों को घाटा होता है और किसान आत्महत्या कर लेते है ।
🚩बे-मौसम की बारिश, ओले और तेज हवाओं ने किसानों की तैयार फसलों को बर्बाद किया, उसका झटका बहुत से किसान नहीं झेल पाए हैं।
🚩#सरकार से लोन नही मिलती है लोन भी मिलती है तो बहुत कम ।
नीचे गिरते #जल स्तर के चलते वहां बोरवेल के लिए #बैंकों से कर्ज नहीं मिलते है और साहूकारों से कर्ज लेना किसानों के लिए घातक साबित होता है ।
🚩कई किसानों के #बच्चों की #शिक्षा से लेकर लड़कियों की शादियां तक अटकी हुई हैं ।
🚩फसलों की गिरती कीमतें !
🚩जब किसानों की फसलें तैयार होती है तो कीमतों में भारी गिरावट आती है इसलिए किसानों की आय बहुत कम होती है ।
🚩किसानों ने आत्महत्याएं की, इससे साफ है कि आर्थिक रूप से उनका बहुत कुछ दाँव पर लगा था, जो बर्बाद हो गया । केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम ब्यानों में भी उसे भरोसा नहीं दिखा क्योंकि ये कभी किसान की मदद के लिए बहुत कारगर कदम नहीं उठा पाई हैं ।
🚩इस तरह की आपदा के बाद किसानों को राहत के लिए दशकों पुरानी व्यवस्था और मानदंड ही जारी हैं ।
🚩सरकार ने इस व्यवस्था को व्यवहारिक बनाने और वित्तीय राहत प्रक्रिया को तय समय सीमा में करने के लिए कदम नहीं उठाए हैं ।
🚩भले ही जनधन में 13 करोड़ से ज्यादा खाते खुल गये हों, आधार नंबर से जुड़ने वाले #बैंक खाते लगभग पूरी आबादी को कवर करने की ओर जा रहे हों, लेकिन किसानों की मदद के लिए अभी भी बेहद पुरानी, लंबी और लचर व्यवस्था ही जारी है ।
🚩किसानों के बढ़ते संकट का निवारण करने के लिए सरकार द्वारा किसानों का कर्ज माफ किया जाये , सिंचाई के लिए बोरवेल बनवाकर दिये जाएँ और फसल के दाम में वृद्धि हो ।
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