आज आप चुप रहेंगे तो कल आप भी इसके शिकार हो सकते है !
#सुप्रीम_कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने स्वास्थ्य के आधार पर संत आसारामजी बापू की अंतरिम जमानत पर रिहाई का आदेश देने का #सर्वोच्च_न्यायालय से अनुरोध किया था । वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने #न्यायालय को बताया कि #राजस्थान_हाईकोर्ट ने उनके मुवक्किल की अंतरिम जमानत #खारिज करते समय उनकी बीमारी को ध्यान में नहीं रखा । उनके मुवक्किल को एक या दो माह की अंतरिम जमानत दी जाए, ताकि वह केरल जाकर #पंचकर्म #आयुर्वेद पद्धति से इलाज करा सकें।
सुप्रीम कोर्ट के ऑडर अनुसार #न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर और न्यायमूर्ति आर.के. अग्रवाल की पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (#एम्स) को तीन-सदस्यीय मेडिकल बोर्ड गठित करने तथा संत #आसारामजी_बापू की #मेडिकल जाँच करने का आदेश दिया । #न्यायालय ने एम्स को 10 दिन के भीतर जाँच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है । संत आसारामजी बापू की जमानत पर इस #रिपोर्ट के बाद 14 दिन में #उच्चतम_न्यायालय अन्य कोई फैसला लेगा ।
Jago Hindustani - Why Media Pressurizes The Judicial System Against Saints |
इस #समाचार को #धंधा, दलाली, #प्रेस्टीच्यूट, #चापलूस और पाठकों के साथ गद्दारी करनेवाले नामों को सार्थक करनेवाली मीडिया ने अलग ही अंदाज में प्रस्तुत किया - सुप्रीम कोर्ट ने आसाराम #बापू की अंतरिम जमानत याचिका खारिज कर दी - दैनिक भास्कर
-#अंतरिम_जमानत_याचिका खारिज - #AajTak
-#SC ने अंतरिम जमानत याचिका खारिज ... - #Patrika
-#सुप्रीम_कोर्ट ने बड़ा झटका दिया है – #न्यूज_24
-सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत याचिका खारिज – #बीबीसी
इनके साथ एनडीटीवी खबर, #ibn_7, #इंडिया_न्यूज, #अमर_उजाला, #पंजाब_केसरी, #प्रभात_खबर, #जागरण, आदि लगभग सभी अखबरों और चैनल ने ऐसा ही प्रस्तुत किया है ।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में ऐसा नही कहा कि अंतरिम जमानत खारिज की जाती है । उसके बावजूद भी इस तरह का #समाचार फैलाकर जनमानस को गुमराह करना क्या कोई अपराध की श्रेणी में नहीं आता है ? कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से पेश करना क्या यह अपराध नहीं है ? करोड़ों लोगों के आस्था के साथ खिलवाड़ करना अपराध नहीं है क्या ? करोड़ों नागरिकों को धार्मिक अधिकार से वंचित रखने का साजिश करना यह जुर्म नहीं है ? क्यों फैसला आने से पहले #भविष्यवाणियाँ की जा रही है ? क्या ये #मीडिया_ट्रायल नहीं है ?
यह आरोप अक्सर लगता है कि किसी अपराध को सनसनीखेज बना कर #मीडिया खुद ही जाँचकर्ता, #वकील और जज बन जाता है । इस मीडिया ट्रायल का नतीजा यह होता है कि पुलिस याने जाँचकर्ता हीं नहीं जज भी दबाव में आ जाते हैं और हकीकत और फैसला सब कुछ उलटा-पुल्टा हो जाता है ।
#दिल्ली_हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि "मीडिया ट्रायलों से जज प्रभावित होते हैं । अनजाने में ही एक दबाव सा बन जाता है और इसका असर आरोपी या दोषी के लिए सजा तय करने पर भी पड़ता है ।"
मीडिया ट्रायल पर चिंता व्यक्त करते हुए #उच्चतम_न्यायालय के पूर्व #मुख्य_न्यायाधीश #न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर ने कहा कि 'मीडिया ट्रायल काफी चिंता का विषय है। मेरा कहना है कि यह नहीं होना चाहिए । मीडिया ट्रायल होने से अभियुक्त के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित धारणा बनती है। फैसला अदालतों में ही होना चाहिए।'
#गुजरात उच्च
न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन ने कहा कि ‘मीडिया ट्रायल’ अच्छा नहीं है क्योंकि कई बार इससे दृढ़ सार्वजनिक राय कायम हो जाती है जो न्यायपालिका को प्रभावित करती है। मीडिया ट्रायल के कारण कई बार आरोपी की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाती ।’
न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन ने कहा कि ‘मीडिया ट्रायल’ अच्छा नहीं है क्योंकि कई बार इससे दृढ़ सार्वजनिक राय कायम हो जाती है जो न्यायपालिका को प्रभावित करती है। मीडिया ट्रायल के कारण कई बार आरोपी की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाती ।’
इसे कौन-सी #पत्रकारिता कहेंगे । अदालत के बदले में मीडिया किसी गिरफ्तार आरोपी व्यक्ति के चारों तरफ़ गोल घेरा, तीर या आयाताकार बक्सा बनाकर अपना फ़ैसला पहले ही सुना देता है कि यह अपराधी है । ये घेरा निर्दोष साबित होने की गुज़ाइश ही समाप्त कर देते हैं । इन घेरों के कारण आरोपी और अपराधी के बीच का फ़ासला समाप्त हो जाता है । ये सोची-समझी मीडिया की बनाई हथकड़ी है जो कल किसी को पहना दी गई थी और आज किसी और को और भविष्य में किसी ओर को भी पहनायी जा सकती है । यही नहीं #पुलिस के पकड़ने या अदालत का फैसला सुनाने से पहसे ग्राफिक्स #आर्टिस्ट से सलाखें बनवा कर उसके पीछे व्यक्ति का चेहरा लगा दिया जाता है । लगे कि #जेल हो गई है ।
#अभिव्यक्ति के आधार पर स्वतंत्रता के कारण विदेशी फंडेड अधिकांश मीडिया हाउस साधु-संतों, #भारतीय_संस्कृति के खिलाफ विष वमन करता है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर आजकल #समाचार पत्र और #इलेक्ट्रॉनिक मीडिया कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है । उनको कोई पूछनेवाला नहीं है और न उन्हें किसी प्रकार का डर है #हिन्दूवादी लोगों से । उन्हें विश्वास हो गया है कि हिन्दुवादी लोग तो भोले-भाले, सीधे-सादे है, वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं । क्या इससे आप का भविष्य सुरक्षित लग रहा हो तो बेशक निश्चिंत रहिये । यदि असुरक्षित लग रहा हो तो अन्याय के खिलाफ आवाज उठाइये नहीं तो बार-बार अपमानित व गुलाम होकर जीवन जीने को बाध्य होना पड़ेगा ।
#मीडिया को #लोकतंत्र का चौथा खंभा कहा जाता है । पर जहां तक लोकतंत्र के तीन खंभों का सवाल है तो संविधान में तीनों के लिए अलग-अलग अधिकार व कर्तव्य दिये गये पर तथाकथित चौथे खंभे को संविधान और कानून अलग से एक भी अधिकार नहीं दिया है । मीडिया को वही अधिकारों व कर्तव्य मिले है जो आम नागरिकों को मिले हुए हैं। चाहे वह अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार हो या फिर सूचना का अधिकार जैसे कानून। मीडिया की ऐंठ और अकड़ वहीं तक रहती है जहां तक उसके खिलाफ कानून का इस्तेमाल नहीं होता ।
वरना, #मानहानि, #अदालत की
तौहीन और अश्लीलता से लेकर सरकारी गोपनीयता कानून तक ढेर सारे ऐसे प्रावधान हैं जिनकी मदद से किसी भी अखबार या समाचार चैनल को #नियंत्रित किया जा सकता है । आज आप चुप रहेंगे तो कल आप भी इसके शिकार हो सकते है । अतः इन पर नियंत्रण करने के लिए अपने सांवैधानिक अधिकार का उपयोग करे व इनके खिलाफ आवाज बुलंद करें ।
तौहीन और अश्लीलता से लेकर सरकारी गोपनीयता कानून तक ढेर सारे ऐसे प्रावधान हैं जिनकी मदद से किसी भी अखबार या समाचार चैनल को #नियंत्रित किया जा सकता है । आज आप चुप रहेंगे तो कल आप भी इसके शिकार हो सकते है । अतः इन पर नियंत्रण करने के लिए अपने सांवैधानिक अधिकार का उपयोग करे व इनके खिलाफ आवाज बुलंद करें ।
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