#21वीं सदी में #भारतीय_न्याय की सबसे बड़ी निष्फलता
अपने #देश में 2.78 लाख विचाराधीन #ट्रायल के समाप्त होने की प्रतीक्षा में वर्षों से जेल में हैं । स्टेट ऑफ केरल बनाम रनीफ (2011 (1) एस.सी.सी. 784) में सर्वोच्च #न्यायालय ने स्वीकार किया है कि ‘ट्रायल के दौरान अभियुक्त को जमानत न मिल पाने के कारण उनकी व्यक्तिगत #स्वतंत्रता के अधिकार का हनन होता है ।’ यदि अभियुक्त निर्दोष छूटते हैं तो फिर बीच में लम्बे कालखंड के लिए जेल में रखने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है । संत #आसारामजी_बापू के केस में न कोई ठोस सबूत, न कोई मेडिकल आधार है बल्कि षड्यंत्र में फँसाने के अनेक प्रमाण हैं । केवल एक लड़की और एक महिला के आरोप पर पूज्य #बापूजी को 36 महीनों से जेल में रखा गया है । किसी व्यक्ति को केवल आरोपों के आधार पर लम्बे समय तक जेल में रखे जाने के विषय में अधिवक्ता #अजय_गुप्ता कहते हैं : ‘‘ट्रायल के दौरान आरोपी को जेल में रखना समय से पूर्व सजा देने से कम नहीं है ।”
जेल में रहने के कारण अभियुक्त (आरोप लगानेवाले पक्ष से तुलना करें तो) अपने बचाव के समान अवसरों से वंचित हो जाता है । संत आसारामजी बापू के जोधपुर केस में करीब तीन साल से ट्रायल चल रहा है, अभी पता नहीं कितने और साल लगेंगे जबकि #अहमदाबाद केस में 33 महीने हो गये, अभी तक ट्रायल प्रारम्भ भी नहीं हुआ । दोनों केसों में संत आसारामजी बापू को जमानत नहीं मिली है । जमानत न मिलने के बाद दोषमुक्त हो जाने की दशा में जेल में बिताये गये उनके समय को कोई वापस नहीं दे पायेगा । जेल में रहने के कारण उनके स्वास्थ्य की जो हानि हुई है, उनके सेवाकार्यों में जो रुकावट आयी है, जिसके कारण करोड़ों #देशवासियों को #आध्यात्मिक, #नैतिक और सर्वांगीण प्रगति से वंचित रहना पड़ा है, उसका मूल्य कोई नहीं चुका पायेगा । #उच्चतम_न्यायालय ने एक महत् वपूर्ण निर्णय में कहा है कि‘मु ख्य आवेदन के निपटारा होने तक कोई व्यक्ति अंतरिमजमानत का हकदार है जो कि संविधान के अनु च्छेद 21 केतहत प्रदत्तसंवैधानि क अधिकार है क्योंकि जेल में रहने सेव्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है ।’
अधिकांशतः देखा जाता है कि अभियोजन पक्ष की तरफ से किसी सुसंगत आधार के बिना भी जमानत प्रार्थना-पत्रों का विरोध किया जाता है । पटना उच्च #न्यायालय के अधिवक्ता श्री रविशेखर सिंह कहते हैं : ‘‘जमानत किसी व्यक्तिका प्रक्रियागत अधिकार नहीं है बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त मौलिक अधिकार है । जब किसी केस में लम्बा समय लग रहा हो तो न्यायालय को अभियुक्त की जमानत पर गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए । अभियुक्त की उम्र व स्वास्थ्य भी एक विचारणीय पहलू है ।”
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में एक व्यक्ति की औसत आयु 65 वर्ष है तथा #वृद्धावस्था जमानत देने के लिए प्रासंगिक एवं महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि 2009(11)एस.सी.सी. 363 एवं अन्य निर्णयों में कहा गया है ।
पाँच #प्रधानमंत्रियों, कई #राष्ट्रपतियों, #मुख्यमंत्रियों और #राज्यपालों ने पूज्य #बापूजी के सत्संग और दैवी कार्यों की सराहना की है । पूज्य बापूजी ने 1993 में विश्व #धर्म_संसद,शिकागो में #भारत का प्रतिनिधित्व किया । ऐसे 80 वर्षीय संत की लड़खड़ाती तबीयत के बावजूद वे 36 महीने से जेल में हैं ।
#स्टेट_ऑफ_राजस्थान विरुद्ध बालचंद (ए.आई.आर. 1977 एस.सी. 2447) में मा. सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत का मूलभूत सिद्धांत ‘बेल नॉट जेल’ बतलाया है । वीभत्स अपराध के केस में भी तुरंत जमानत भले न हो लेकिन जाँच #एजेंसी द्वारा चार्जशीट दायर किये जाने के बाद जमानत मिलनी चाहिए । संत आसारामजी बापू पर मनगढंत आधारहीन झूठे आरोप लगाये गये हैं । आरोप-पत्र दाखिल किये जोधपुर पुलिस को 34 महीने व अहमदाबाद पुलिस को 32 महीने हो गये हैं ।
प्रसिद्ध #न्यायविद् डॉ. #सुब्रमण्यम स्वामी ने पूज्य बापूजी के केस के संबंध में कहा : ‘‘केस को लम्बा खींच रहे हैं । जो शर्तें सर्वोच्च न्यायालय ने रखी थीं बापूजी की जमानत के लिए, वे पूरी हो गयी हैं । जो गवाह हैं, सबकी जाँच हो गयी है और इसलिए अब आशारामजी बापू को जेल में रहने का कोई कारण नहीं है । उन्हें न्यायालय को जमानत देनी चाहिए ।” उच्चतम न्यायालय ने एक फैसले में कहा : “सुनवाई के दौरान कैद एक निश्चित अवधि तक के लिए ही होनी चाहिए और अगर अवधि समाप्त हो जाती है और सुनवाई समाप्त नहीं होती है तो अभियुक्त को रिहा कर देना चाहिए ।”
अपने देश में अदालत द्वारा दोष सिद्ध न किये जाने तक अभियुक्तको निर्दोष माना जाता है परंतु जमानत न मिलने की दशा में निर्दोषता की मान्यता का उल्लंघन होता है ।
अदालतों में जमानत देने के मापदंड बेहद अलग हैं। अक्सर सुनने में आता है कि अमुक व्यक्ति को कोर्ट ने जमानत दे दी और किसी और की जमानत नहीं हुई। एक लड़के को चोरी का षड्यंत्र करते हुए पकड़ा गया। अदालत उस लड़के को जमानत पर छोड़ा क्योंकि उसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं था। एक अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सहारा के सुब्रत राय को दस हजार करोड़ रुपए के भुगतान पर रिहा नहीं किया, लेकिन माँ की मृत्यु पर उन्हें मानवीय आधार पर जमानत दी गई। जब कैदी के परिवार में किसी की मौत हो गई हो फिर परिवार में कोई सख्त बीमार हो, उस वक्त उसे कस्टडी पैरोल दिया जाता है। लेकिन संत आशारामजी बापू को अपने भाँजे शंकर पगरानी के अंतिम #संस्कार में शामिल होने के लिए भी न्यायालय ने जमानत नहीं दी ।
कोई #कैदी #जेल में गंभीर रूप से बीमार है और वो जेल के बाहर उसकी सेहत में सुधार होता है तो उसे जमानत दी जाती है । लेकिन ट्राई जेमिनल न्यूरॉल्जियाँ जैसी भयंकर बीमारियों होने पर संत आशारामजी बापू को जमानत नहीं दी जा रही है । संत आशारामजी बापू का पीछे कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है फिर अभी तक जमानत नहीं मिला है ।
18 अगस्त 2016 डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने ट्वीटर पर लिखा है कि 21वीं सदी में #भारतीय न्याय की सबसे बड़ी निष्फलता, 77 साल के आसारामजी को जमानत से निरंतर न्यायिक इंकार! मामला फर्जी है ! (The greatest Indian misfire of justice in the 21st century is the continued judicial refusal of bail to 77 year old Asaram Bapu. Bogus case!
The greatest Indian misfire of justice in the 21st century is the continued judicial refusal of bail to 77 year old Asaram Bapu. Bogus case!— Subramanian Swamy (@Swamy39) August 18, 2016
सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य #न्यायाधीश न्यायमूर्ति टी. एस. ठाकुर ने वर्तमान #न्यायवस्था पर कहा कि आम आदमी का #न्याय_प्रणाली पर विश्वास निम्नतर स्तर पर पहुँच चुका है ।
कई प्रावधान और उदाहरण हैं, जिनके आधार पर #राष्ट्रहितैषी व लोक-मांगल्य के कार्यों में रत संत आसारामजी बापू को जमानत मिलनी चाहिए । #प्रसिद्ध #न्यायविदों, हस्तियों व करोड़ों नागरिकों को यह उम्मीद है कि दोषी लोगों को भी जमानत मिल सकती है तो एक निर्दोष संत को भी तो जमानत मिल सकती है ।
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