क्या है #मदर_टेरेसा का पूरा सच...???
1910 में #युगोस्लाविया में जन्मी मदर टेरेसा 1929 में #भारत आकर #कोलकाता में बस गई थी । साल 1950 में उन्होंने #मिशनरीज_ऑफ_चैरिटी की स्थापना की ।
कुछ समय पहले मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने का रास्ता साफ हो गया । #पोप #फ्रांसिस ने उन्हें यह दर्जा देने के लिए औपचारिक रूप से स्वीकृति दे दी । 04/09/2016 को वेटिकन मदर टेरेसा को संत घोषित कर देगा ।
पिछले साल पोप ने उनके दूसरे चमत्कार को मान्यता दी थी ।इस #चमत्कार की खबर #ब्राजील से आई थी ।
बताया जाता है कि वहां एक व्यक्ति के सिर का ट्यूमर मदर टेरेसा की कृपा से ठीक हो गया ।
मदर टेरेसा पर आरोप है कि
1. #इसाई धर्म का प्रचार कर रही थी ।
2. #हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा रही थी ।
3. #धर्मान्तरण के लिए #इसाई_देशों से पैसा आता था ।
1. #इसाई धर्म का प्रचार कर रही थी ।
2. #हिंदुओं का धर्म परिवर्तन करा रही थी ।
3. #धर्मान्तरण के लिए #इसाई_देशों से पैसा आता था ।
आखिर वास्तविक सत्य क्या है जाने महान हस्तियों द्वारा....
Jago Hindustani - Whole Truth About Mother Teresa |
अरूप चटर्जी की चर्चित किताब मदर टेरेसा : द फाइनल वरडिक्ट मदर टेरेसा के काम पर कई सवाल उठाती है ।
पेशे से #डॉक्टर और कुछ समय मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी में काम कर चुके चटर्जी का दावा है कि मदर ने गरीबों के लिए किए गए अपने काम को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया । कोलकाता में ही पैदा हुए चटर्जी अब #इंग्लैंड में रहते हैं । उनके मुताबिक मदर टेरेसा अक्सर कहती रही कि वे कलकत्ता की सड़कों और गलियों से बीमारों को उठाती थी । लेकिन असल में उन्होंने या उनकी सहयोगी ननों ने कभी ऐसा नहीं किया । लोग जब उन्हें बताते थे कि फलां जगह कोई बीमार पड़ा है तो उनसे कहा जाता था कि 102 नंबर पर फोन कर लो ।
चटर्जी के मुताबिक संस्था के पास कई #एंबुलेंस थी लेकिन उनका मुख्य काम था ननों को प्रार्थना के लिए एक जगह से दूसरी जगह ले जाना । चटर्जी ने #संस्था के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि वह कोलकाता में रोज हजारों लोगों को खाना खिलाती है ।
#चटर्जी की #किताब के मुताबिक संस्था के दो या तीन किचन रोज ज्यादा से ज्यादा 300 लोगों को ही खाना देते हैं, वह भी सिर्फ मुख्य रूप से उन गरीब ईसाइयों को जिनके पास संगठन द्वारा जारी किया गया फूड कार्ड होता है ।
जीवन से ज्यादा मृत्युदान के मिशन..!!!
अपने एक लेख में वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु नागर लिखते हैं कि, 'यह कहना कि मदर टेरेसा सड़क पर पड़े, मौत से जूझ रहे सभी गरीबों की मसीहा थी, गलत है। उन्होंने गरीबों-बीमारों के लिए 100 देशों में 517 चैरिटी मिशन जरूर स्थापित किए थे मगर ऐसे कई मिशनों का दौरा करने के बाद डॉक्टरों ने पाया कि ये दरअसल जीवनदान देने से ज्यादा मृत्युदान देने के मिशन हैं । इन मिशनों में से ज्यादातर में साफ-सफाई तक का ठीक इंतजाम नहीं था, वहां बीमार का जीना और स्वस्थ होना मुश्किल था, वहां अच्छी देख-रेख नहीं होती थी । भोजन तथा दर्द निवारक औषधियां तक वहां नहीं होती थी'।
#ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका लैंसेट के सम्पादक डॉ रॉबिन फॉक्स ने भी 1991 में एक बार मदर के कोलकाता स्थित केंद्रों का दौरा किया था । फॉक्स ने पाया कि वहां साधारण दर्दनिवारक दवाइयाँ तक नहीं थी ।
उनके मुताबिक इन #केंद्रों में बहुत से मरीज ऐसे भी थे जिनकी बीमारी ठीक हो सकती थी । लेकिन वहां सबको इसी तरह से देखा जाता था कि ये सब कुछ दिनों के मेहमान हैं और इनकी बस सेवा की जाए ।
एक #टीवी_कार्यक्रम के दौरान अरूप चटर्जी का भी कहना था कि संस्था के केंद्रों में मरीजों की हालत बहुत खराब होती थी । वे रिश्तेदारों से नहीं मिल सकते थे, न ही कहीं घूम या टहल सकते थे। वे बस पटरों पर पड़े, पीड़ा सहते हुए अपनी मौत का इंतजार करते रहते थे ।
चटर्जी के मुताबिक मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज ऑफ चैरिटी के केंद्रों में #गरीबों का जानबूझकर ठीक से इलाज नहीं किया जाता था । मदर टेरेसा पीड़ा को अच्छा मानती थी । उनका मानना था कि पीड़ा आपको जीसस के करीब लाती है जो मानवता के लिए सूली चढ़े थे , लेकिन जब वे खुद बीमार होती थी तो इलाज करवाने देश-विदेश के महंगे अस्पतालों में चली जाती थी।
अपनी किताब में चटर्जी ने यह तक कहा है कि मदर टेरेसा बीमार बच्चों की मदद करती थी लेकिन तभी जब उनके मां-बाप एक फॉर्म भरने के लिए तैयार हो जाते थे जिसमें लिखा होता था कि वे बच्चों से अपना दावा छोड़कर उन्हें मदर की संस्था को सौंपते हैं ।
अपनी किताब में चटर्जी ने यह तक कहा है कि मदर टेरेसा बीमार बच्चों की मदद करती थी लेकिन तभी जब उनके मां-बाप एक फॉर्म भरने के लिए तैयार हो जाते थे जिसमें लिखा होता था कि वे बच्चों से अपना दावा छोड़कर उन्हें मदर की संस्था को सौंपते हैं ।
1994 में मदर टेरेसा पर बनी एक चर्चित डॉक्यूमेंटरी हैल्स एंजल में भी कुछ ऐसे ही आरोप लगाए गए । ब्रिटेन के चैनल फोर पर दिखाई गई इस फिल्म की स्क्रिप्ट क्रिस्टोफर हिचेंस द्वारा लिखी गई थी । 1995 में हिचेंस ने एक किताब भी लिखी ।"द मिशनरी पोजीशन" मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस नाम की इस किताब में हिचेंस का कहना था कि मीडिया ने मदर टेरेसा का मिथक गढ़ दिया है जबकि सच्चाई इसके उलट है ।
लेख का सार यह था कि गरीबों की मदद करने से ज्यादा दिलचस्पी मदर टेरेसा की इसमें थी कि उनकी पीड़ा का इस्तेमाल करके रोमन कैथलिक #चर्च के कट्टरपंथी सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया जाए ।
परोपकार के लिए #भ्रष्टाचार का पैसा और वह भी पूरा खर्च नही....
चटर्जी की किताब में यह भी कहा गया है कि मदर टेरेसा को गरीबों की मदद करने के लिए अकूत पैसा मिला लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा उन्होंने खर्च ही नहीं किया । चटर्जी ने इस पर भी सवाल उठाया कि मदर टेरेसा ऐसे लोगों से भी फंडिंग लेती थी जिनकी आय के स्रोत संदिग्ध थे । इनमें भ्रष्ट तानाशाह और #बेईमान कारोबारी भी शामिल थे। जैसे उन्होंने चार्ल्स कीटिंग से भी पैसा लिया जिसने #अमेरिका में अपने घोटाले से खूब कुख्याति पाई थी ।
80 के दशक में #ब्रिटेन के चर्चित अखबार ब्रिटेन में छपे एक लेख में चर्चित नारीवादी और पत्रकार जर्मेन ग्रीअर ने भी कुछ ऐसी ही बातें कही थी । ग्रीअर ने मदर टेरेसा को एक धार्मिक साम्राज्यवादी कहा था जिसने सेवा को मजबूर गरीबों में ईसाई धर्म फैलाने का जरिया बनाया ।
#आपातकाल की तारीफ....
इससे पहले 1975 में भी मदर टेरेसा का एक ब्यान विवादों में रहा था । #इंदिरा_गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल पर उनका कहना था कि इससे लोग खुश हैं क्योंकि #नौकरियां बढ़ी हैं और हड़तालें कम हुई हैं ।
आखिरी सांसें गिन रहे लोगों को बपतिस्मा...
आखिर सांसें गिन रहे लोगों को बपतिस्मा देने के लिए भी मदर टेरेसा की खासी आलोचना हुई । बपतिस्मा यानी पवित्र जल छिड़ककर ईसाई धर्म में दीक्षा देने का कर्मकांड । आरोप लगे कि न तो उनका संगठन लोगों को यह बताता है कि इसका मतलब क्या है और न ही वह इसका ख्याल करता है कि उस व्यक्ति की धार्मिक आस्था क्या है ।
इस बारे में 1992 में अमेरिका के कैलीफोर्निया में एक भाषण के दौरान मदर टेरेसा का कहना था, 'हम उस आदमी से पूछते हैं, क्या तुम वह आशीर्वाद चाहते हो जिससे तुम्हारे पाप क्षमा हो जाएं और तुम्हें भगवान मिल जाए? किसी ने कभी मना नहीं किया ।'
दिवंगत होने के बाद भी विवाद जारी रहे !
मदर टेरेसा के 1997 में दिवंगत होने के बाद भी उन पर विवाद होते रहे । जिस कथित 'चमत्कार' के कारण 2003 में वेटिकन ने उन्हें धन्य घोषित किया उसे तर्कवादियों ने सिरे से खारिज कर दिया था ।
कहा गया था कि पेट के ट्यूमर से जूझ रही #पश्चिम_बंगाल की एक महिला मोनिका बेसरा ने एक दिन अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उनका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया लेकिन कई रिपोर्टों के मुताबिक जिन डॉक्टरों ने मोनिका बेसरा नाम की इस महिला का इलाज किया उनका कहना है कि मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद भी मोनिका दर्द सहती रही । हालांकि वेटिकन के धर्मगुरूओं ने इस कथित चमत्कार को मान्यता दे दी थी ।
कई बार हुआ दवाओं का परीक्षण...
जो लोग मदर टेरेसा की संस्था के पास बीमार आते थे, उनको जो दवायें फ्री दी जाती थी हकीकत में वे दवायें ही ट्रायल पर होती थी । लोगों पर दवाओं का ट्रायल हो रहा था । इसका धन भी मदर टेरेसा के पास आता था ।
साल 1989 में बड़ा सवाल उठाया कोलकाता में उनके साथ 9 साल काम करने वाली सुजैन शील्ड ने ।
सुजैन ने लिखा कि मदर को इस बात की बेहद चिंता थी कि हम खुद को गरीब बनाए रखें । पैसे खर्च करने से गरीबी खत्म हो सकती है । उनका मानना था इससे हमारी पवित्रता बनी रहेगी और पीड़ा झेलने से जीसस जल्दी मिलेंगे । यहां तक कि वह जिनकी सेवा करती थी उन्हें पुराने इंजेक्शन की सुई खराब हो जाने से दर्द होता था लेकिन वह नए #इंजेक्शन भी नहीं खरीदने देती थी ।
मदर टेरेसा ने भारत के पूर्व #प्रधानमंत्री #मोरारजी_देसाई को धर्म की आजादी का #कानून बनाते वक्त भी एक खत लिख कर इसका विरोध किया था ।
#एम_एस_चितकारा की किताब के मुताबिक मदर टेरेसा ने तत्कालीन मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री को 1978 में एक खुला खत लिखा था और इसकी प्रतियां #सांसदों में बांटी थी । खत का रिश्ता धार्मिक #स्वतंत्रता के कानून से था । मदर टेरेसा इसके विरोध में थी क्योंकि इससे धर्मांतरण की प्रक्रिया खतरे में पड़ सकती थी ।
#आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि ‘‘मदर टेरेसा की सेवा में एक उद्देश्य हुआ करता था कि जिसकी सेवा की जा रही है उसका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया जाए ।"
प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने वेटिकन के टेरेसा को संत घोषित करने के फैसले पर अफसोस जताते हुए अपने ट्वीट में लिखा था कि, “मदर टेरेसा को संत बनाया जाएगा, ऐसी औरत जिसने भ्रष्ट लोगों से पैसा ले लिया, जिसने गरीब व बीमार लोगों को बिना चिकित्सा उपलब्ध करवाए मरने के लिए छोड़ दिया वह अब संत हो जायेगी।”
#भाजपा #सांसद योगी #आदित्यनाथ ने कहा था कि मदर टेरेसा भारत के #ईसाईकरण की साजिश का हिस्सा थी । भारत के पूर्वोत्तर हिस्से में किए गए ईसाईकरण ने ही वहां अलगाव की स्थिति पैदा की ।
#अरविंद_केजरीवाल ने ट्वीट करके कहा था कि ‘मैंने कुछ महीने कोलकाता स्थित निर्मल हृदय आश्रम में मदर टेरेसा के साथ काम किया है । वह महान इंसान थी ।
कई लोग हैं जो मानते हैं कि मदर टेरेसा को संत बनाने के पीछे वेटिकन की मजबूरी भी है । चर्चों में लोगों का आना लगातार कम हो रहा है और ईसाई धर्म और इसके केंद्र वेटिकन में लोगों का विश्वास लौटाने के लिए ऐसा कदम उठाना जरूरी था ।
चलो हो सकता है वेटिकन की मजबूरी होगी पर भारत की क्या मजबूरी है जो
मदर टेरेसा को #संत घोषित करने के अवसर पर #भारतीय_डाक_विभाग, डाक आवरण, #सिक्का और प्रतिमा निकालेगा ?
मदर टेरेसा को #संत घोषित करने के अवसर पर #भारतीय_डाक_विभाग, डाक आवरण, #सिक्का और प्रतिमा निकालेगा ?
हमारी #भारतीय_संस्कृति इतनी महान है उसमें अनेको #साधु- संत हो गए जो दीन-दुखियों की अपने तन-मन-धन से सेवा, अच्छे #संस्कार भरते रहे हैं । भारत की दिव्य संस्कृति का प्रचार प्रसार करते रहे लेकिन कुछ #विदेशी_फंडेड #मीडिया ने उनको बदनाम कर दिया और कई महान संतो को तो झूठे #आरोपो में #जेल जाना पड़ा ।
उनको न तो कोई #पुरस्कार न कोई सन्मान...!!!
फिर भी वे हँसते खेलते लोग मांगल्य का कार्य करते रहे हैं । यही हमारी भारतीय #संस्कृति की महानता है कि यहाँ संत बनाये नही जाते अपितु जनता ही उनको संत घोषित कर देती है ।
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