#विश्वगुरु_भारत सदियों से था, है और रहेगा....!!!
हजारों वर्ष पहले से ही हमारे #ऋषि-मुनि विभिन्न क्षेत्रों में #ज्ञान की खोज में रत रहते थे । उनका मस्तिष्क सर्जनात्मक और बहुआयामी था । ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों में #संसार को उनकी कई महत्वपूर्ण देनें हैं, जिसके लिए पूरा विश्व,समाज आज भी उनका ऋणी है ।
#गणित : #विज्ञान की उन्नति विशेष रूप से गणित पर निर्भर है | अब्दुल-अल मसूदी एक अरबी विद्वान (९४३ ई.) ने भी यह माना है कि अंकलिपि का अविष्कार भारतीयों ने किया है ।
सौ (100) के ऊपर की गणना भारतीय मस्तिष्क की ही देन है ।
सौ (100) के ऊपर की गणना भारतीय मस्तिष्क की ही देन है ।
Jago Hindustani-India was, is and shall remain the world leader, forever! |
#यजुर्वेद_संहिता (अध्याय 17 मन्त्र 2) में तो 10 खरब (एक पर 12 शून्य) तक की संख्या का उल्लेख है जबकि यूनानी लोग दस हजार तक तथा रोमन लोग एक हजार तक की संख्या ही जानते थे ।
#आर्यभट्ट, #महावीर, #श्रीधर, #श्रीपति, #भास्कराचार्या आदि #गणितज्ञों ने वर्गमूल निकालने की रीतियाँ बतलायी हैं ।
#आर्यभट्ट ने अपनी पुस्तक "आर्यभटीय" में जो रीति 499 ई० में दी थी, वह यूरोप में 15 वीं शताब्दी में पहुँच पाई ।
#भारतीय #मनीषियों को जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्ग, घन और वर्गमूल आदि अष्टांग पद्धतियाँ ज्ञात थी । वर्गमूल और घनमूल की ये दोनो #रीतियाँ आठवीं #शताब्दी के मध्य में भारतवर्ष से अरबों के पास पहुँची और उनके द्वारा अन्य देशों में गयी ।
#बीजगणित :
#भारतीयों ने #बीजगणित में भी बड़ी दक्षता प्राप्त की थी । हरमन हेकल (एक पश्चिमी गणितज्ञ) तो भारतीय मनीषियों को ही बीजगणित का आदि रचयिता मानता है । 'विश्व शब्दकोष' के अनुसार भारतीय मनीषियों को यूनान के बीजगणितज्ञ डायोफैन्ट्स से कहीं अधिक विषय का ज्ञान था ।
#ब्रह्मगुप्त (628 ई.) ने 'समीकरण' खोज निकाला । #आर्यभट्ट ने वृत्त की परिधि और व्यास की निष्पत्ति का यथार्थ मान निकटतम चतुर्थ दशमलव अंक तक निकाला । मुहम्मद ईब्न मूसा ने 825 ई. में (पाई) का मान देते हुए लिखा है : "यह मान भारतीय ज्योतिषाचार्यों का दिया हुआ है।"
ज्यामिति :
#भारतीयों को भी #ज्यामिति का विशेष ज्ञान था । यज्ञ में वेदियों को बनाने में ज्यामिति का प्रयोग पुरातन काल से चला आ रहा है । एक प्राचीन ग्रंथ "शुल्वसूत्र" में वर्ग-आयन बनाने की विधि दी हुई है । भुजा से कर्ण का संबंध, वर्ग के समान आयत, वर्ग के समान वृत्त आदि प्रश्नों का विचार इस ग्रंथ में किया गया है ।
ज्योतिष :
#ज्योतिष के क्षेत्र में #हिंदुओं ने संसार को अमूल्य रत्न भेंट किए । वेली का मत है कि ईसा के हजारों वर्ष पूर्व भारतीय मनीषी वैज्ञानिक रूप से ग्रह-गणना करते थे । लैपलेस के मत में ईसा के 3000 वर्ष पूर्व ( आज से 5000 वर्ष पहले ) भारतीय ज्योतिषाचार्य ग्रहों का स्थान एक विकला ( समय का एक छोटा मान ) तक निकाल लेते थे ।
सर विलियम जेम्स के अनुसार भारतीय मनीषी ईसा से 1180 वर्ष पूर्व ( अर्थात् आज से करीब 3200 वर्ष पहले ) ग्रहों की ठीक-ठीक गणना करने में समर्थ थे ।
#ज्योतिषशास्त्र का #अध्ययन प्रारंभिक वैदिक काल में भी होता था । काल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अंश क्रति ( एक सेकंड के 34000 अंशों में से एक अंश के बराबर ) को भास्कराचार्य अपनी गणना में लाये हैं ।
#वैदिक_ऋषि यह जानते थे कि #सूर्य चन्द्र को प्रकाशित करता है । यह भी जानते थे कि #चन्द्रमा 27 दिन में अपनी परिक्रमा पूरी करके फिर उसी स्थान में आ जाता है । 30 दिनों का मास तथा 365 दिनों का वर्ष मानते थे । पर जब देखा गया कि 30-30 दिनों के 12 चान्द्रमासों से वर्ष के 365 दिन पूरे नहीं होते तो चन्द्र और सौर वर्षों का हिसाब ठीक रखने के लिए प्रति तीन वर्षों में एक मलमास जोड़ा गया ।
#पृथ्वी घूमती है इस कारण दिन और रात का भेद होता है – इस तथ्य को पहले आर्यभट्ट ने जाना, आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व । इसके वर्षों बाद यूरोप में कॉपरनिकस के द्वारा इसका #आविष्कार हुआ । #आर्यभट्ट सूर्य और चंद्रग्रहणों के कारण जानते थे, इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
उन्होंने यह भी कहा था कि चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों में अपना कोई प्रकाश नहीं है । सूर्य के प्रकाश से वे प्रकाशित होते हैं । ये ग्रह भी पृथ्वी के समान सूर्य की परिक्रमा करते हैं और इनका परिक्रमण पथ वृत्ताकार नहीं, प्रत्युत दीर्घवृत्ताकार है ।
#सूर्य-सिद्धान्त ग्रंथ में स्पष्ट कहा गया है कि यदि पृथ्वी का आकार वृत्त न माना जाय तो इस कथन का कुछ अर्थ ही न रह जायेगा कि सूर्योदय के पूर्व उषःकाल होता है । पृथ्वी के ऊपर वायुमण्डल के विस्तार के संबंध में उनके विचार आधुनिक ज्योतिशास्त्र से मिलते-जुलते हैं ।
वेदों में कहा गया है कि #ब्रह्माण्ड अनंत है और इसमें अनेकों लोक हैं । कुछ लोकों के विज्ञानी अपनी तश्तरी जैसे आकारवाले विमानों से हमारे धरा पर उतरते हैं और कुछ अनुसंधान करके फिर चले जाते हैं ।
ऐसी उड़न तश्तरियाँ इधर तीन-चार सौ वर्षों के बीच पश्चिम के विभिन्न देशों में अनेकों बार देखी गयी, जो वैज्ञानिकों के लिए एक विस्मयकारी घटना है ।
कुछ और जानने योग्य बातें...
🔷1. #त्रैराशिक का आविष्कार भारतीय गणितज्ञों ने किया ।
🔷2. #त्रिकोणमिति के #क्षेत्र में भारतीय मनीषियों ने जो काम किया है, वह बेजोड़ और मौलिक है । उन्होंने ज्या, कोटिज्या, और उत्क्रमज्या आविष्कृत की ।
🔷3. आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर, पद्मनाभ और भास्कराचार्य बीजगणित के ऐसे-ऐसे प्रश्न हल करते थे, जैसे 17वीं और 18वीं शताब्दी के पहले तक यूरोप के गणितज्ञ नहीं कर पाते थे ।
🔷4. भास्कराचार्य की ‘लीलावती’ में यह प्रमाणित किया गया है कि जब किसी अंक को शून्य से भाग दिया जाता है, तब उसका फल अनंत अंक आता है ।
🔷4. भास्कराचार्य की ‘लीलावती’ में यह प्रमाणित किया गया है कि जब किसी अंक को शून्य से भाग दिया जाता है, तब उसका फल अनंत अंक आता है ।
🔷5. #पाइथागोरस को इस सिद्धान्त का #आविष्कर्त्ता माना जाता है कि समकोण त्रिभुज की समकोणवाली भुजा पर स्थित वर्ग का क्षेत्र अन्य दो भुजाओं पर स्थित वर्गों के क्षेत्रों के योग के बराबर होता है । परंतु बोधायन ने पाइथागोरस से बहुत पहले ही अर्थात् आज से 2800 वर्ष पूर्व ही यह सिद्धान्त स्थापित किया था ।
🔷6. #गुरुत्वाकर्षण के नियम का आविष्कारक न्यूटन को माना जाता है । किन्तु इससे बहुत पहले ही भास्कराचार्य के ग्रन्थ ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ में यह लिखा जा चुका था कि भारी पदार्थ ( अपने भार से ) पृथ्वी पर गिरते मालूम होते हैं, पर यह पृथ्वी का आकर्षण है जो उन्हें नीचे खींच लाता है ।
🔷7. भारतीयों को पदार्थ #विज्ञान ( प्रकाश, उष्णता, ध्वनि, आकर्षण-धर्म और विद्युत आदि ) भली-भाँति ज्ञात था ।
🔷8. #रसायनशास्त्र संबंधी उनका कार्य #वैद्यकशास्त्र में स्पष्ट रूप से वर्णित है ।
🔷9. सूर्य किरणों को केन्द्रीभूत करने के लिए वे गोल और अंडाकार ‘लेंस’ तैयार करते थे ।
#विश्वगुरु_भारत
प्राचीन समय में भारतवर्ष में अनेक विद्वान व महापुरूष हुए ।समय समय पर इन विद्वानों ने अनेक लोगो का मार्गदर्शन किया । उस समय भारत मे वेद आयुर्वेद ,योग ,चिकित्सा आदि का विकास हो चुका था ।
#इतिहास पर नजर डाले तो पायेंगे कि विश्व के सबसे प्राचीन #विश्वविद्यालय भारत मे थे !
1.#नालन्दा_विश्वविद्यालय 2.#तक्षशिला विश्वविद्यालय 3. #विक्रमाशिला_विश्वविद्यालय 4. रत्नागिरी विश्वविद्यालय 5. #ललितगिरी विश्वविद्यालय 6. #जगददला_विश्वविद्यालय 7. #पुष्पागिरी_विश्वविद्यालय 8. उदयगिरी विश्वविद्यालय 9. #सोमापुरा_महावीरा 10. #उदांत_पुरी_विश्वविद्यालय 11. वल्लभी विश्वविद्यालय 12. #बिक्रम_गिरी_विश्वविद्यालय 13. नागार्जुनकोंडा ।
1.#नालन्दा_विश्वविद्यालय 2.#तक्षशिला विश्वविद्यालय 3. #विक्रमाशिला_विश्वविद्यालय 4. रत्नागिरी विश्वविद्यालय 5. #ललितगिरी विश्वविद्यालय 6. #जगददला_विश्वविद्यालय 7. #पुष्पागिरी_विश्वविद्यालय 8. उदयगिरी विश्वविद्यालय 9. #सोमापुरा_महावीरा 10. #उदांत_पुरी_विश्वविद्यालय 11. वल्लभी विश्वविद्यालय 12. #बिक्रम_गिरी_विश्वविद्यालय 13. नागार्जुनकोंडा ।
इन सभी विश्वविद्यालय मे वेद, #वेदांत और सांख्य पढ़ाये जाते थे। व्याकरण, दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, #योगशास्त्र तथा चिकित्साशास्त्र भी पाठ्यक्रम के अन्तर्गत थे ।
दुनिया के सभी ईसाई, मुस्लिम, बौद्ध और यहूदी देशों ने योग को मान्यता दी याने भारत को गुरु धारण किया।
योग सिर्फ #आसन-प्राणायाम नहीं है। आसान-प्राणायाम तो समाधि तक पहुंचने की पहली सीढ़ी है। यदि भारत की प्रेरणा से दो-तीन अरब लोग भी इस पहली सीढ़ी को पकड़ ले तो हमारी दुनिया का नक्शा ही बदल जाएगा।
पिछली दो-तीन सदियों में पश्चिम ने अपनी वैज्ञानिक प्रतिभा से दुनिया का बाहरी रुप एकदम बदल दिया है। लेकिन अब विश्व-सभ्यता को भारत की यह अनुपम देन होगी कि भारत योग के जरिए दुनिया के अंदरुनी रुप को बदल देगा ।
अंदरुनी रुप बदलने का अर्थ है, चित्त-शुद्धि । यदि मनुष्य का चित्त शुद्ध हो, निर्विकार हो तो हिंसा, आतंक, शोषण, दमन, भेदभाव आदि ये सब दोष कहाँ टिक पाएंगे..???
भारत के योग से प्रभावित नई दुनिया की जरा हम कल्पना करें।
यूँ तो योग पहले भी दुनिया के कई देशों में फैल चुका था लेकिन अब इसे विश्व-स्वीकृति मिल गई है।
यूँ तो योग पहले भी दुनिया के कई देशों में फैल चुका था लेकिन अब इसे विश्व-स्वीकृति मिल गई है।
हमारा #प्राचीन भारत ऋषि मुनियों एवं गुरुकुलों का देश रहा है । यहाँ के संतों, ऋषियों , मुनियों की जिह्वा पर साक्षात सरस्वती विराजती हैं। यहाँ तुलसीदास , सूरदास , कबीरदास एवं रहीम, चैतन्य महाप्रभु द्वारा ईश्वर की महिमा लोक कंठ में विद्यमान हैं ।
यहाँ #परमहंस-विवेकानंद, #द्रोणाचार्य-अर्जुन,विश्वामित् र-श्रीराम, चाणक्य- चन्द्रगुप्त आदि गुरु शिष्य की जोड़ी का गौरव भी रहा है ।
वैदिक गणित, पंचांग, नक्षत्र विज्ञान, ज्योतिष/ हस्तरेखा विज्ञान , वेदों एवं पुराणों के श्लोकों एवं सूत्रवाक्य,
मूर्तिकला, शिल्पकला, वास्तुकला ,पांडुलिपियों जैसी विलुप्त चीजों का संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना चाहिए ।
मूर्तिकला, शिल्पकला, वास्तुकला ,पांडुलिपियों जैसी विलुप्त चीजों का संरक्षण एवं संवर्धन किया जाना चाहिए ।
प्राचीन भारत में नालंदा एवं तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों की गरिमा लौटने के लिए एकजुट होकर कई स्तर पर सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है ।
इस पावन भूमि पर अनेक सकारात्मक एवं वैचारिक शक्तिपुंजों ने जन्म लिया है ।
सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुद्दीराम बोस, स्वामी दयानंद, भीमराव अम्बेडकर, पंडित मदन मोहन मालवीय, लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे साधकों, चिन्तकों एवं आंदोलनकर्मियों ने इस देश का नेतृत्व किया है ।
सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गाँधी, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, खुद्दीराम बोस, स्वामी दयानंद, भीमराव अम्बेडकर, पंडित मदन मोहन मालवीय, लाल बहादुर शास्त्री, राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे साधकों, चिन्तकों एवं आंदोलनकर्मियों ने इस देश का नेतृत्व किया है ।
#प्राचीन भारत की हमारी तमाम जीवन पद्धतियाँ , विधियाँ एवं संस्कार , परंपरा संतुलन का प्रतीक था और समावेशी या समग्र था जो आज नहीं है ।
उस समय वास्तव में प्रकृति का #संरक्षण किया जाता था, उसकी पूजा होती थी परन्तु आज हम प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि शोषण कर रहे हैं, जो कदापि उचित नहीं है ।
हमारी #संस्कृति संकीर्णता की नहीं बल्कि व्यापकता की रही है।
वसुधैव कुटुम्बकम, अतिथि सत्कार एवं निर्बलों को संबल देना, याचकों को भिक्षा, शरणार्थियों को शरण देना एवं दुश्मनों से उसकी प्राण रक्षा करना, हमारी संस्कृति रही है ।
चक्रवर्ती सम्राट दिलीप का गौ-रक्षा एवं दधिची का देहदान , महाराणा प्रताप एवं शिवाजी का त्याग और सूझ -बूझ आज भी प्रासंगिक है । हमारे देश के वैभव एवं पराक्रम का गूँज समस्त विश्व में विद्यमान रहा है ।
मूर्खो अपने पुरखों पर गर्व करो। भारत विश्वगुरु था और रहेंगा ।
मूर्खो अपने पुरखों पर गर्व करो। भारत विश्वगुरु था और रहेंगा ।
आधुनिक ऋषि हर्षवर्धन जी का दावा पृथा नाम के ऋषि ने दिया पाइथागोरस थेओरेम...
प्राचीन काल में #जम्बूद्वीप पर एकपृथा नाम के ऋषि थे, उन्हें गणित, बीज गणित और ज्यामिति में महारथ हासिल थी उन्होंने एक प्रमेय सिद्ध किया था जो जम्बूद्वीप में बहुत कम लोगो को ही पता था।
सिकंदर ने जब पुरु से #सिन्धु_नदी के तट पर युद्ध किया और उसे पराजित किया था तो पुरु ने पृथा ऋषि की सारी पांडुलिपियाँ सिकन्दर को दे दी। बाद में उसमें से उस प्रमेय पर काम हुआ जिसे यूनानी लोगों ने विश्व भर में पाइथागोरस थेओरेम के नाम से, अपना बता के दुनिया भर में वाहवाही लूटी। पर अब यह नही चलने देंगे। आधुनिक ऋषि हर्षवर्धन जी ने कल विश्व के सामने पाइथागोरस थेओरेम पर अपने उत्तराधिकार का दावा ठोक दिया है।
देश का #प्राचीन_विज्ञान
विश्व में सबसे पहले हमारे पुरखों ने ही स्टेम सेल क्लोनिंग की तकनीक से बच्चे पैदा किये थे।
विश्व में सबसे पहले हमारे पुरखों ने ही स्टेम सेल क्लोनिंग की तकनीक से बच्चे पैदा किये थे।
#महाभारत काल में ऋषि #वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से उत्पन्न मांस पिंड के एक सौ एक टुकड़े किये। फिर प्रत्येक टुकड़ों को एक घी से भरे मटके में रख दिया और नौ महीने पश्चात प्रत्येक मटके से एक बच्चा उत्पन्न हुआ। सौ कौरव उत्पन्न हुए और उनकी एक बहन दुश्शला भी उत्पन्न हुई । आज दुनिया जिस टेस्ट ट्यूब बेबी की तकनीक को सर चढ़ाये है इसका प्रयोग जम्बूद्वीप वासियों ने सदियों पहले करना शुरू कर दिया था।
इस तकनीक का सर्वप्रथम उपयोग त्रेतायुग में हुआ था जब राजा दशरथ को कोई संतान नहीं हो रही थी। तभी सुप्रसिद्ध वैद्य ऋषि वशिष्ठ ने उनको इस उच्च स्तरीय व्यवस्था से अवगत कराया था। ऋषि वशिष्ठ के प्रताप से, टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक से और प्रजा की शुभकामनाओं से राजा दशरथ को हजारों वर्ष पूर्व पितृ सुख प्राप्त हुआ था ।
न्यूटन नहीं ऋषि कणाद ने दिए गति के तीन नियम !
#करीब पांच हज़ार साल पहले ही जम्बूद्वीप पर ऋषि कणाद ने गति के तीन नियमों का पता लगा लिया था। न्यूटन को हमलोग बेकार में क्रेडिट देते हैं। हमारा सारा विज्ञान फिरंगियों ने चुरा लिया है।
भारत ही परमाणु बम का अविष्कारकर्ता है...!!!
महाभारत काल के पहले से ही भारत में परमाणु बम की तकनीक और परमाणु बम अस्तित्व में था । जिस तरह से आज हमारी सेनाओं के पास ब्रह्मोस मिसाइल है, उसी तरह से उस काल में ब्रह्मास्त्र होता था । उस काल के शुद्ध रक्त वाले हमारे आर्य पूर्वज अपने परमाणु बम को ब्रह्मास्त्र कहते थे, इसकी कोई काट होती नहीं थी, जब इसका विस्फोट होता था तो हजारों योजन की परिधि में समस्त जीव जंतु और वृक्ष पौधे जल कर नष्ट हो जाते थे, (योजन उस समय की दूरी नापने के काम आता था जैसे आजकल किलोमीटर होता है)
बाद में जर्मन लोग भारत आये, उन्होंने हमारे संस्कृत ग्रंथों को अपने देश ले जा के गहन अध्ययन किया, (वे लोग भी हमारे पूर्वजो की तरह गौर वर्ण और शुद्ध आर्य रक्त वाले थे), जर्मन नेता हिटलर ने अपनी प्रयोगशाला बना के वैज्ञानिकों को इस बम बनाने के कार्य में लगा दिया, पर जब द्वितीय विश्व युद्ध चल ही रहा था, जासूसी के जरिये अमेरिका ने उनके बम बनाने के रहस्य जान लिए और अपना बम बना लिया, अमेरिका ने बाद में यही बम हिरोशिमा और नागासाकी नाम के जापानी शहरों पर गिराए ।
बाद में जर्मन लोग भारत आये, उन्होंने हमारे संस्कृत ग्रंथों को अपने देश ले जा के गहन अध्ययन किया, (वे लोग भी हमारे पूर्वजो की तरह गौर वर्ण और शुद्ध आर्य रक्त वाले थे), जर्मन नेता हिटलर ने अपनी प्रयोगशाला बना के वैज्ञानिकों को इस बम बनाने के कार्य में लगा दिया, पर जब द्वितीय विश्व युद्ध चल ही रहा था, जासूसी के जरिये अमेरिका ने उनके बम बनाने के रहस्य जान लिए और अपना बम बना लिया, अमेरिका ने बाद में यही बम हिरोशिमा और नागासाकी नाम के जापानी शहरों पर गिराए ।
सभी को स्मरण रहना चाहिए कि हमने मानव सभ्यता के विकास में विश्वगुरु की भूमिका अदा की है, और आज भी जर्मनी, अमेरिका और जापान हमारी प्राचीन पुस्तकों के सहारे ही नए नए अविष्कार करते हैं, पर वे इतने दुष्ट हैं कि हमें इसका श्रेय नहीं देते हैं।
पर श्रेय से क्या लेना हमें, ज्ञान तो सार्वभौम होता है, सबका होता है और मानवमात्र के कल्याण के लिए होता है।
आप भी अपने गौरवशाली इतिहास को जानकर खुद भी भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार में लग जाओ।
🏻जय हिंद!!
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🇮🇳जागो हिन्दुस्तानी🇮🇳
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