Wednesday, August 10, 2016

पत्रकारिता हैं या मुनाफेवाला धंधा !!

🚩ये #पत्रकारिता हैं या मुनाफेवाला धंधा ?
🚩#बांग्लादेश #पुलिस ने एक #विमान हादसे में मौत की अफवाह फैलाने के मामले में एक #समाचार #वेबसाइट के #कार्यालय पर छापा मारकर तीन पत्रकारों को हिरासत में ले लिया है। इससे कुछ ही दिन पहले शेख हसीना #सरकार ने आपत्तिजनक सामग्री प्रकाशित करने के आरोप में कुछ समाचार पोर्टल समेत 32 समाचार बेवसाइटों को ब्लॉक कर दिया था। सरकार ने यहां एक कैफे में पिछले महीने हुए घातक हमले के बाद #आतंकवादी हमले के #टेलीविजन पर सीधे प्रसारण पर भी रोक लगा दी थी। इस हमले में 22 लोग मारे गए थे।
🚩#विदेशों में #पत्रकारिता की मनमानी पर सरकार रोक लगाने के लिए तुरंत कदम उठाती है लेकिन #भारत में #देशद्रोही खबरें चलने पर भी चैनल बंद नहीं किया जाता है । ऐसा क्यों हो रहा है इस #देश में । वास्तव में वर्तमान #भारतीय #मीडिया की दिशा व दशा धर्मनिरपेक्षता के आड़ में #हिन्दू विरोधी क्यों हो गया है ? कौन परदे के पीछे ये कर रहा है ?
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🚩पिछले दो दशकों के दौरान #भारतीय मीडिया के स्वरूप और चरित्र में भारी बदलाव आया है।  चाहे प्रिंट हो या टेलीविज़न दोनों ने जनता की नज़र में अपनी निष्पक्षता खोयी है । मीडिया के प्रति लोगों में अविश्वास बढ़ा रही-सही कसर पेड न्यूज़ ने पूरी कर दी। पिछले कुछ सालों में मीडिया की आज़ादी को जितनी बहस हुई है उतनी पहले कभी नहीं हुई। मीडिया ने इन सालों में अपनी आज़ादी का दुरुपयोग निजी स्वार्थ पूर्ति में ज्यादा किया है । परदे के पीछे से जैसा आदेश होता है उस तरह के न्यूज मीडिया के द्वारा जनता के सामने परोस दिया जाता है ।
🚩बड़े-बड़े नेता और उनके पुत्र पुत्रियां, मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी, #फिल्म_अभिनेता और #अभिनेत्रियां, बड़े #उद्योगपति, #फैशन डिजाइनर,और गायक-गायिकाएँ की ओर विशेष ध्यान दे, चैनलों पर #ज्योतिष के लंबे कार्यक्रम और हास्य के बेहद फूहड़ कार्यक्रम दिखाना और #देश के सामने खड़ी बड़ी-बड़ी समस्याओं की अनदेखी करना - ये कौन सी पत्रकारिता की श्रेणी में आता है ?
🚩आज मीडिया के लोग ही पत्रकारों को दलाल,भाड़ मीडिया, चोर-उचक्के क्यों बता रहे हैं? #लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार एवं ‘दृष्टांतङ्क पत्रिका के संपादक अनूप गुप्ता ने एक चर्चा के दौरान कहा कि ‘आज #वरिष्ठ_पत्रकार दलाली की खातिर #राजनेता, #अफसरों, #माफियाओं के तलवे चाट रहे हैं वहीं बड़े-बड़े मीडिया संस्थान भी सरकारों एवं #उद्योगपतियों, माफियाओं से अनैतिक लाभ अर्जित कर रहे हैं। मीडिया के नकाब में छिपे कथित पत्रकारों ने करोड़ों-अरबों की #अवैध सम्पत्ति अर्जित कर ली है। जिसके कारण आम पत्रकारों को गाली खाने पर मजबूर होना पड़ रहा है।‘
🚩क्यों एक महिला पत्रकार ने अपने साथियों से तंग आकर #आत्महत्या कर ली और क्या मजबूरी रही होगी उसकी जो उसने सुसाइड नोट में लिखा कि ‘कुछ भी बनना मगर पत्रकार नहीं बनना ।‘ ऐसा क्यों ? एबीपी न्यूज के संवाददाता मोहम्मद खालिक ने नीलांचल एक्सप्रेस के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली कारण था करियर संबंधी चिंताएं उन्हें परेशान कर रही थीं । ऐसे कई उदाहरण है ।
🚩ध्वस्त हो चुकी पत्रकारिता की दुनिया में वाकई सर्वाइव करना बेहद मुश्किल है। यहाँ #कनेक्शन से कलेक्शन होता है । श्री अनूप गुप्ता के मुताबिक भ्रष्ट पत्रकारों ने पूरी मीडिया को बदनाम करके रख दिया है।
🚩पूर्व सांसद नवीन जिंदल की कंपनी से 100 करोड़ रुपये की कथित उगाही के आरोपी ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी और ज़ी बिज़नेस के संपादक सीईओ समीर अहलूवालिया की आवाज
🚩फोरेंसिक जांच प्रयोगशाला #सीएफएल ने स्टिंग ऑपरेशन की सीडी में सही पाई है ।
🚩#प्रणय_रॉय, राजदीप सरदेसाई, #बरखा_दत्त, दीपक चौरसिया , #अरुण_पुरी, रजत शर्मा, #राघव_बहल, चंदन मित्रा, #एमजे_अकबर, अवीक सरकार, एन राम,जहांगीर पोचा और राजीव शुक्ला - ये पत्रकार हैं या व्यवसायी ? इनके चैनलों पर चल रही पक्षपाती न्यूज से पता चलता है कि अब ये लोग धंधेबाज हो गये हैं ।
🚩इन लोगों के लिए खबरें बिक्री की वस्तु के अलावा और कुछ नही हैं। इसलिए इनके चैनलों में संपादक की बजाय ब्रैंड मैनेजर हावी होते जा रहे हैं, जो तय करते हैं कि अखबार में वहीं खबर छपेगी, जो उनकी नजर में बिकाऊ हो।
🚩पत्रकार का धंधेबाज बन जाना इस पेशे की नैतिकता पर सवाल खड़ा करता है। व्यवसायी हमेशा पूंजी और मुनाफे की दौड़ में शामिल होता है। पत्रकार अगर #व्यवसायी बनेगा तो निश्चित तौर पर पत्रकारिता का इस्तेमाल मुनाफा कमाने के लिए होने लगेगा, इस बात में कोई शक नहीं।
🚩#पेड_न्यूज और #नीरा_राडिया परिघटना के सामने आने के बाद ये बात साबित हो गयी है कि हमारे यहां #पत्रकारिता, #धंधेबाजी का पर्याय बनती जा रही है। इस संकट का मूल कारण जहां मीडिया का धंधेबाज बनना है, वहीं धंधेबाज मीडिया ने कई पत्रकारों को भी दलालों में बदल दिया है। ऐसी मीडिया कंपनियों में उच्च पदों पर काम करने वाले पत्रकारों को बड़ी-बड़ी तनख्वाहों के साथ कंपनी के शेयर का एक हिस्सा भी दिया जाता है। जाहिर है कि ऐसा करके उसे कंपनी को मुनाफे में लाने के लिए बिकाऊ पत्रकारिता करने का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दबाव बनाया जाता है।
🚩अब ये सवाल उठाने का वक्त आ गया है कि कुछ साल पहले तक के सामान्य पत्रकार आखिर करोड़पति-अरबपति कैसे बने हैं। नेताओं से संपत्ति की #घोषणा करने और उसके स्रोत बताने की मांग करने वालों को अब ऐसे लोगों से भी सवाल पूछना पड़ेगा कि वे अपनी संपत्ति का ब्‍योरा दें।
🚩मीडिया की नैतिकता में आ रही गिरावट को अगर रोकना है तो एक छोटा सा कदम ये हो सकता है कि धंधेबाजों को धंधेबाजों के तौर पर ही पहचाना जाए। अखबारों और न्यूज चैनलों का धंधा करने वालों के लिए भी कड़े नियम बनाये जाएं ताकि वे पत्रकारिता का इस्तेमाल अपने दूसरे धंधों को चमकाने में न कर सकें और #कार्यपालिका, विधायिका व #न्यायापालिका ऐसा #कानून बनाये जिससे बिकाऊ पत्रकारिता पर रोक लग सकें ।
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