मानवमात्र के लिए अद्भुत ग्रंथ,
जिसने उन्नत की असंख्य लोगो की ज़िन्दगी!
आईये मिलकर मनायें हमसब
श्रीमद्भगवतगीता जयंती!!
श्रीमद्भगवद्गीता जयंती : 21 दिसम्बर
‘गीता’ में 18 अध्याय, 700 श्लोक 9456 शब्द है।विश्व की 578 भाषाओं में गीता का अनुवाद हो चुका है ।
जहाँ श्री गीता की पुस्तक होती है और जहाँ श्रीगीता का पाठ होता है वहाँ प्रयागादि सर्व तीर्थ निवास करते हैं | - भगवान श्रीविष्णु
इस छोटे-से ग्रंथ में जीवन की गहराईयों में छिपे हुए रत्नों को पाने की ऐसी कला है जिसे प्राप्त कर मनुष्य की हताशा-निराशा एवं दुःख-चिंताएँ मिट जाती हैं ।
गीता का अद्भुत ज्ञान मानव को मुसीबतों के सिर पर पैर रखकर उसके अपने परम वैभव को, परम साक्षी स्वभाव को, आत्मवैभव को प्राप्त कराने की ताकत रखता है ।
गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति, धर्म आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं ।
अधर्म, अन्याय एवं शोषकों का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है ।
गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, समता, सरलता, स्नेह, शांति, धर्म आदि दैवी गुण सहज ही विकसित हो उठते हैं ।
अधर्म, अन्याय एवं शोषकों का मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है ।
निर्भयता आदि दैवी गुणों को विकसित करनेवाला, भोग और मोक्ष दोनों ही प्रदान करने वाला यह ग्रंथ पूरे विश्व में अद्वितीय है ।
'गीता’ जी का स्वतंत्रता-संग्राम में योगदान...!!!
आजादी के पीछे भी ‘भगवद्गीता’ का सीधा हाथ है ।
आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ जाते थे।
आजादी के पीछे भी ‘भगवद्गीता’ का सीधा हाथ है ।
आजादी के समय स्वतंत्रता सेनानियों को जब फाँसी की सजा दी जाती थी, तब ‘गीता’ के श्लोक बोलते हुए वे हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ जाते थे।
अंग्रेज ऑफिसर ने कहा कि ‘भारतवासी आजादी चाहते हैं । उनका दमन करो । पकड़-पकड़ कर 5-10 को फाँसी के तख्त पर लटका दो, अपने-आप चुप हो जायेंगे।’
फिर अंग्रेज ऑफिसर ने पूछा : ‘अभी ये दबे कि नहीं दबे ? फाँसी पर लटकाने से दूसरे भाग गये कि नहीं भागे ?’
अंग्रेज बोले : अरे ! वे तो और भी शेर बन गये । चीते भी शेर बन गये! हिरण भी शेर बन गये ! इनके यहाँ तो ऐसा एक सद्ग्रन्थ है 'गीता जी ' जिसे सुनकर ये हँसते-हँसते फाँसी पर चढ़ जाते हैं।
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, इसको आग जला नहीं सकती, इसको जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकती।’
(गीता : २.२३)
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः।।
इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते, इसको आग जला नहीं सकती, इसको जल गला नहीं सकता और वायु सूखा नहीं सकती।’
(गीता : २.२३)
इस गीताज्ञान को पाकर स्वतंत्रता सेनानी कहते हैं : ‘हम भारतमाता को आजाद करा देंगे। अस्त्र-शस्त्र से मरे वह मैं नहीं हूँ। शरीर मरनेवाला है, मैं अमर आत्मा हूँ। ॐ ॐ ॐ... विट्ठल-विट्ठल-विट्ठल... हरि-हरि...’ इस प्रकार भगवान के नाम का गुंजन करते-करते फाँसी को गले लगा के जब ये शहीद हो जाते हैं तो दूसरे तैयार हो जाते हैं। एक जाता है तो उस इलाके में बीसों बहादुर खड़े हो जाते हैं।’
अंग्रेज ऑफिसरों ने कहा : ‘गीता के ज्ञान में ऐसा है तो गीता पर बंदिश लगा दो और गीता का ज्ञान जिसने बोला है उसको जेल में डाल दो।’
अब गीताकार श्रीकृष्ण को अंग्रेज कहाँ से जेल में डालेंगे ? और गीता पर बंदिश आते ही गीता का और प्रचार हुआ। देशवासियों का और हौसला बुलंद हुआ।
पूरे देश पर कृपा है वेदव्यासजी की कि उन्होंने ‘गीता’ जैसा ग्रंथरत्न हमें प्रदान किया, जिसने देश को स्वतंत्र बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है ।
गीता की जरूरत केवल अर्जुन को ही थी ऐसी बात नहीं है। शायद उससे भी ज्यादा आज के मानव को उसकी जरूरत है। (संत श्री आशाराम बापूजी के सत्संग-प्रवचन से)
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