कडवा सच कह डाला
विज्ञान के इतिहास में ब्रूनो का नाम निराली आभा से चमकता रहा है । उसका जन्म नेपल्स के निकट1548 में हुआ था । जब वह 15 साल का था तब उसके पिता ने उसे ईसाई मठ में भेज दिया । वहाँ उसे सर्वत्र दांभिकता दिखाई दी । वह ढोंगी जीवन की आलोचना करने लगा । वहाँ के धर्माधिकारी उस पर बहुत बिगडे ।
विज्ञान के इतिहास में ब्रूनो का नाम निराली आभा से चमकता रहा है । उसका जन्म नेपल्स के निकट1548 में हुआ था । जब वह 15 साल का था तब उसके पिता ने उसे ईसाई मठ में भेज दिया । वहाँ उसे सर्वत्र दांभिकता दिखाई दी । वह ढोंगी जीवन की आलोचना करने लगा । वहाँ के धर्माधिकारी उस पर बहुत बिगडे ।
अतः उसने वह जगह छोड दी और भ्रमण करने लगा । इसी समय उसने खगोलशास्त्री कोपर्निस का ग्रंथ पढा । तब से वह उन वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रचार करने लगा । रोम, वेनिस, पाडुआ आदि नगरों में व्याख्यान देता हुआ वह पेरिस आया ।
वह एक उत्कृष्ट वक्ता था । उसका व्यक्तित्व बहुत प्रभावी था । उसके तर्कों के सामने कोई नहीं टिकता था । पेरिस में नामी धर्म पंडित उसके सामने हार गये और हजारों युवक उसके अनुयायी बन गये वहाँ से वह इंग्लैंड गया । वहाँ वह 6 साल तक रहा फिर वह पेरिस आया और यूरोप में भ्रमण करने लगा ।
वह कहता था : ‘तुम्हारी बाइबल में कैसी कैसी गलत बातें लिखि हैं ! यह पृथ्वी विश्व का केन्द्र है, मनुष्य ईश्वर का लाडला है प्यारा है, उसके इिश ईश्वर ने चन्द्र, सूर्य, बनाये हैं इसलिए चन्द्र सूर्य धरती की परिक्रमा करते हैं आदि बातें मिथ्या हैं ।
विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह विश्व अनंत है, तुम्हारी यह धरती सूर्य की परिक्रमा करती है । सारे ब्रह्मांड में यह धरती धूलिकण के समान है ।
ब्रूनो की ये बातें सुनकर ईसाई धर्म के अधिकारी घबरा गये । रोम कैथोलिक पंथ के प्रमुख पोप क्रोधित हो गये । ब्रूनो को पकडने के लिए उन्होंने आदेश दिया ।
जब बू्रनो घूमता हुआ वैनिस पहुँचा तो उसे पकड लिया गया और कारागार में डाल दिया गया । वहाँ उसे बहुत पीडायें दी गयीं । उससे कहा कि ‘तुम लोकप्रिय रोमन कैथोलिक धर्म को मानो और पोप से माफी माँगो तो तुम्हें छोड दिया जायेगा ।
ब्रूनो बार-बार उत्तर देता : ‘नहीं, कभी नहीं । सामान्य जन तो अज्ञ और अंधश्रद्धालू होते हैं । उनकी मान्यता के लिए मैं शास्त्र से सिद्ध किये हुए सत्य को कभी नहीं छोडूगा ।
सन् 1599 ईसवी मेंं उस पर पाखंडी, ईश्वर विरोधी, लोक शत्रु धर्मद्रोही आदि झूठे आरोप लगाकर उसे न्यायालय में लाया गया । जज ने उसे जिंदा जलाने की सजा दी ।
उसने वहीं गरज कर कहा : ‘मुझे मृत्यु का भय नहीं है, मैं तो सत्य के लिए मर रहा हूँ । तुम तो असत्य के पुतले हो तुम्हारे पीछे यम का डंडा सदा रहेगा ।
27 फरवरी 1600 ईसवी को उसे चिता पर खडा किया गया और कहा गया कि ‘ईसाई धर्म मानो, क्रूस को चूमो । उसने कहा : ‘कभी नहीं ।
आग सुलगाई गयी । ज्वालाएँ धधक गयीं तब भी वह गरजकर बोला : ‘यश या अपयश मिलना यह संयोग की बात है परंतु हमारे वंशज इतना तो निश्चित कहेगें कि ब्रूनो डरा नहीं उसने निर्भयता से मृत्यु का स्वागत किया ।
सत्य के लिए उसने बलिदान दिया लेकिन असत्य की और ले जाने वाला ईसाइ धर्म नही अपनाया । डर के जीने की अपेक्षा निर्भयता के साथ मरना मैं श्रेष्ठ मानता हूँ ।
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