
भीष्मपंचक व्रत 21 से 25नवम्बर तक...

सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है । सुखी-सम्मानित रहना हो, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और उत्तम स्वास्थ्य व लम्बी आयु चाहिए, तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है ।

माँ गंगा के पुत्र भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे । अपने पिता की इच्छा पूर्ति के लिए आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य के पालन का दृढ संकल्प करने के कारण पिता की तरफ से उनको इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था।

कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूनम तक का व्रत ‘भीष्मपंचक व्रत कहलाता है । जो इस व्रत का पालन करता है, उसके द्वारा सब प्रकार के शुभ कृत्यों का पालन हो जाता है । यह महापुण्यमय व्रत महापातकों का नाश करनेवाला है । निःसंतान व्यक्ति पत्नीसहित इस प्रकार का व्रत करे तो उसे संतान की प्राप्ति होती है ।

कार्तिक एकादशी के दिन बाणों की शय्या पर पडे हुए भीष्मजी ने जल की याचना की थी । तब अर्जुन ने संकल्प कर भूमि पर बाण मारा तो गंगाजी की धार निकली और भीष्मजी के मुँह में आयी । उनकी प्यास मिटी और तन-मन-प्राण संतुष्ट हुए । इसलिए इस दिन को भगवान श्रीकृष्ण ने पर्व के रूप में घोषित करते हुए कहा कि ‘आज से लेकर पूर्णिमा तक जो अघ्र्यदान से भीष्मजी को तृप्त करेगा और इस भीष्मपंचक व्रत का पालन करेगा, उस पर मेरी सहज प्रसन्नता होगी ।

इन पाँच दिनों में निम्न मंत्र से भीष्मजी के लिए तर्पण करना चाहिए :
सत्यव्रताय शुचये गांगेयाय महात्मने । भीष्मायैतद् ददाम्यघ्र्यमाजन्मब्रह्मचारिणे ।।
‘आजन्म ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाले परम पवित्र, सत्य-व्रतपरायण गंगानंदन महात्मा भीष्म को मैं यह अघ्र्य देता हूँ ।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

अघ्र्य के जल में थोडा-सा कुमकुम, केवडा, पुष्प और पंचामृत (गाय का दूध, दही, घी, शहद और शक्कर) मिला हो तो अच्छा है, नहीं तो जैसे भी दे सकें । ‘मेरा ब्रह्मचर्य दृढ रहे, संयम दृढ रहे, मैं कामविकार से बचूँ... - ऐसी प्रार्थना करें ।
इन पाँच दिनों में अन्न का त्याग करें । कंदमूल, फल, दूध अथवा हविष्य (विहित सात्त्विक आहार जो यज्ञ के दिनों में किया जाता है) लें ।

जो अपना प्रभाव बढाना चाहते हैं, वैकुण्ठ चाहते हैं या इस लोक में सुख चाहते हैं उन्हें यह व्रत करने की सलाह दी गयी है ।

इन दिनों में पंचगव्य (गाय का दूध, दही, घी, गोझरण व गोबर-रस का मिश्रण) का सेवन लाभदायी है । पानी में थोडा-सा गोझरण डालकर स्नान करें तो वह रोग-दोषनाशक तथा पापनाशक माना जाता है । इन दिनों में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए ।

जो नीचे लिखे मंत्र से भीष्मजी के लिए अघ्र्यदान करता है, वह मोक्ष का भागी होता है :
वैयाघ्रपदगोत्राय सांकृतप्रवराय च । अपुत्राय ददाम्येतदुदकं भीष्मवर्मणे ।।
वसूनामवताराय शन्तनोरात्मजाय च । अघ्र्यं ददामि भीष्माय आजन्मब्रह्मचारिणे ।।
‘जिनका व्याघ्रपद गोत्र और सांकृत प्रवर है, उन पुत्ररहित भीष्मवर्मा को मैं यह जल देता हूँ । वसुओं के अवतार, शान्तनु के पुत्र, आजन्म ब्रह्मचारी भीष्म को मैं अघ्र्य देता हूँ ।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड, कार्तिक माहात्म्य)

इस व्रत का प्रथम दिन देवउठी एकादशी है। इस दिन भगवान नारायण जागते हैं । इस कारण इस दिन निम्न मंत्र का उच्चारण करके भगवान को जगाना चाहिए :
(ऋषि प्रसाद : नवम्बर २००७)

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