आज बड़े दुःख की बात है कि हमारे बीच हिन्दू संस्कृति रक्षक हिन्दूओं की शान श्री "अशोक सिंघल जी" हमें छोड़कर भगवद् धाम सिधार गये ।
आज के दिन "लाल लाजपतराय जी" ने भी अपना शरीर छोड़ दिया था ।
हमारे हिन्दू शेर ने श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन में सिंह गर्जना कर के बाबरी मस्जिद गिरा दिया ।
अशोक सिंघल का जन्म 27 सितम्बर 1926 और
निधन 17 नवम्बर 2015 (उम्र 89)
निधन 17 नवम्बर 2015 (उम्र 89)
अशोक सिंघल जीे (हिन्दू संगठन विश्व हिन्दू परिषद्) के 20 वर्षों तक अंतर्राष्ट्रीय राष्ट्रपति थे। दिसंबर 2011 में बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उन्हें अपना स्थान छोड़ना पड़ा और प्रवीण तोगड़िया ने उनका स्थान ग्रहण किया ।
उनका जन्म आगरा में हुआ था । उनके पिता श्री महावीर सिंहल शासकीय सेवा में उच्च पद पर थे । उनमें बालपन से ही हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम जाग्रत हो गया ।
1942 में प्रयाग में पढ़ते समय प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) ने उनका सम्पर्क राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कराया । उन्होंने अशोक जी की माता जी को संघ के बारे में बताया और संघ की प्रार्थना सुनायी । इससे माता जी ने अशोक जी को शाखा जाने की अनुमति दे दी ।
1947 में देश विभाजन के समय कुछ नेता सत्ता प्राप्ति की खुशी मना रहे थे, पर देशभक्तों के मन इस पीड़ा से सुलग रहे थे कि ऐसे सत्तालोलुप नेताओं के हाथ में देश का भविष्य क्या होगा?
श्री अशोक जी भी उन देशभक्त युवकों में थे । अतः उन्होंने अपना जीवन संघ कार्य हेतु समर्पित करने का निश्चय कर लिया । बचपन से ही अशोक जी की रुचि शास्त्रीय गायन में रही है। संघ के अनेक गीतों की लय उन्होंने ही बनायी है।
1948 में संघ पर प्रतिबन्ध लगा तो अशोक जी सत्याग्रह कर जेल गये। वहाँ से आकर उन्होंने बी.ई. अंतिम वर्ष की परीक्षा दी और प्रचारक बन गये। अशोक जी की सरसंघचालक श्री गुरुजी से बहुत घनिष्ठता रही । प्रचारक जीवन में लम्बे समय तक वे कानपुर रहे । यहाँ उनका सम्पर्क श्री रामचन्द्र तिवारी नामक विद्वान से हुआ । वेदों के प्रति उनका ज्ञान विलक्षण था। अशोक जी अपने जीवन में इन दोनों महापुरुषों का प्रभाव स्पष्टतः स्वीकार करते हैं।
1975 से 1977 तक देश में आपातकाल और संघ पर प्रतिबन्ध रहा । इस दौरान अशोक जी इंदिरा गांधी की तानाशाही के विरुद्ध हुए संघर्ष में लोगों को जुटाते रहे।
आपातकाल के बाद वे दिल्ली के प्रान्त प्रचारक बनाये गये। 1981 में डा. कर्णसिंह के नेतृत्व में दिल्ली में एक विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ; पर उसके पीछे शक्ति अशोक जी और संघ की थी । उसके बाद अशोक जी विश्व हिन्दू परिषद् के काम में लग गए ।
इसके बाद परिषद के काम में धर्म जागरण, सेवा, संस्कृत, परावर्तन, गौ-रक्षा.. आदि अनेक नये आयाम जुड़े। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण है श्रीराम जन्मभूमि मंदिर आन्दोलन, जिससे परिषद का काम गाँव-गाँव तक पहुँच गया। इसने देश की सामाजिक और राजनीतिक दिशा बदल दी। भारतीय इतिहास में यह आन्दोलन एक मील का पत्थर है। आज वि.हि.प. की जो वैश्विक ख्याति है, उसमें "अशोक सिंघल जी" का योगदान सर्वाधिक है।
अशोक सिंघल जी परिषद के काम के विस्तार के लिए विदेश प्रवास पर जाते रहे हैं। इसी वर्ष अगस्त सितम्बर में भी वे इंग्लैंड, हालैंड और अमरीका के एक महीने के प्रवास पर गये थे। परिषद के महासचिव श्री चम्पत राय जी भी उनके साथ थे।
पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में संक्रमण हो गया था। इससे सांस लेने में परेशानी हो रही थी। इसी के चलते 17 नवम्बर, 2015 को दोपहर में गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में उनका निधन हुआ ।
अंतिम स्वांस तक वे हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति के रक्षक संतों की दिलोजान से रक्षा की है ।
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