जागो हिन्दुस्तानी
‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ क्या है?,
इसे क्यों पढ़ा जाय ?
युवा पीढ़ी में संयम-सदाचार, ब्रह्मचर्य, मातृ-पितृभक्ति, देशभक्ति, ईश्वरभक्ति, कर्तव्यपरायणता आदि सद्गुणों का विकास हो - इस उद्देश्य से देशभर में ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश ज्ञान प्रतियोगिता’ का विद्यालयों-महाविद्यालयों में आयोजन किया जाता है ।
इस प्रतियोगिता में बच्चों को ‘बाल संस्कार’, ‘हमें लेने हैं अच्छे संस्कार’ आदि और बड़ी कक्षाओं के छात्रों को ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पुस्तक दी जाती है ।
‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पढ़ने से करोड़ों के जीवन में संयम-सदाचार, देश की संस्कृति में आस्था-विश्वास आदि सद्गुणों का विकास हुआ है ।
‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ पढ़ने से करोड़ों के जीवन में संयम-सदाचार, देश की संस्कृति में आस्था-विश्वास आदि सद्गुणों का विकास हुआ है ।
ब्रह्मचर्य, संयम, सदाचार की जो महिमा वेदों, संतों-महापुरुषों, धर्माचार्यों, आधुनिक चिकित्सकों और तत्त्वचिंतकों ने गायी है, वह इस पुस्तक मैं है । इसको अश्लील बोलना बेहद शर्मनाक है !
भोगवाद व अश्लीलता का खुलेआम प्रचार करनेवाले माध्यम इस पवित्र पुस्तक पर अश्लीलता फैलाने का बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं । ऐसे लोग जो अश्लील चलचित्रों, गंदे विज्ञापनों, यौन-वासना भड़कानेवाले सामयिकों एवं अश्लील वेबसाइटों के द्वारा निर्दोष व पवित्र किशोरों और युवावर्ग को चरित्रभ्रष्ट करनेवालों का विरोध नहीं करते अपितु अपने स्वार्थों के लिए उनको सहयोग देते हैं तथा उनके दुष्प्रभाव से पीड़ित लोगों को संयम-सदाचार का मार्ग बताकर युवावर्ग का चरित्र-निर्माण करनेवाले और टीनेज प्रेग्नेंसी, एड्स जैसे यौन-संक्रमित रोगों एवं उनके निवारण हेतु होनेवाले अरबों रुपयों के खर्च से देश को बचानेवाले संतों के ‘दिव्य प्रेरणा-प्रकाश’ जैसे सद्ग्रंथ का विरोध करते हैं वे समाज और राष्ट्र को घोर पतन की ओर ले जाना चाहते हैं या परम उत्थान की ओर, इसका निर्णय पाठक स्वयं करेंगे ।
और हिन्दू संस्कृति को नष्ट करनेवाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए ऐसे गद्दारों से स्वयं सावधान रहेंगे व औरों को भी सावधान करेंगे, यह हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है ।
और हिन्दू संस्कृति को नष्ट करनेवाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए ऐसे गद्दारों से स्वयं सावधान रहेंगे व औरों को भी सावधान करेंगे, यह हम सबका राष्ट्रीय कर्तव्य है ।
मीडियावालों की इन हरकतों से यह सिद्ध होता है कि वे हिन्दू संस्कृति को मिटाने के लिए हिन्दू संतों को बदनाम करके उनको षड्यंत्रों में फँसाकर एवं उनके उपदेशों से समाज को वंचित करके अपना उल्लू सीधा करनेवाली विदेशी ताकतों के मोहरे बने हुए हैं ।
कई प्रसिद्ध हस्तियों, मंत्रियों, अधिकारियों, प्राचार्यों, अध्यापकों, अभिभावकों व विद्यार्थियों ने दिव्य प्रेरणा-प्रकाश पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की है ।
अरबों डॉलर संयम की शिक्षा पर खर्च करने के बावजूद विदेशों में युवाओं की हालत दयनीय है जबकि ऋषि-ज्ञान को अपनाकर भारत में करोड़ों युवा सुखी-सम्मानित जीवन जी रहे हैं ।
ऋषि-मुनियों, शास्त्रों का ऐसा ज्ञान समाज तक पहुँचाने का राष्ट्र-हितकारी सेवाकार्य पूज्य संत श्री #आसारामजी बापू के आश्रम, सेवा-समितियाँ व सज्जन साधक कर रहे हैं । ऐसे राष्ट्र-हितकारी कार्य में विघ्न डालना क्या उचित है ?
वास्तविकता तो यह है कि केवल भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर के युवाओं को #दिव्य_प्रेरणा_प्रकाश जैसी संयम-सदाचार की ओर प्रेरित करनेवाली पुस्तकों की अत्यंत आवश्यकता है ।
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- https://youtu.be/EoxuQODAOmc
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