Thursday, September 3, 2020

हॉस्पिटल में चल रही है लूट, जानिए इन खबरों को और हो जाइए सावधान...

 

03 सितंबर 2020


कोई भी व्यक्ति बीमार होता है तो उसको सबसे पहले डॉक्टर याद आते हैं और डॉक्टर पर भरोसा करता है की वे मुझे ठीक कर देंगे लेकिन कुछ डॉक्टर और कुछ हॉस्पिटल ने लूट पाट के धंधे शुरु कर दिए हैं। वे ठीक तो नही करते हैं लेकिन मौत के घाट भी उतार देते हैं ऊपर से बड़े-बड़े बिल बनाकर थमा देते हैं इसके कारण आज लोगों को हॉस्पिटल से भरोसा उठ रहा है।




डिलीवरी फीस चुकाने के लिए नहीं रुपये, बच्चे को ही बेच दिया।

धरती पर डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है, लेकिन वो भगवान किसी माँ से उसके नवजात बच्चे को छीनकर बेच सकता है। ऐसा सुनने में थोड़ा सा अजीब लगता है। लेकिन ऐसा ही एक वाकया उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में सामने आय़ा है। जहां डिलीवरी के बाद एक दंपति ने करीब 35 हजार रुपए की फीस देने में अपनी असमर्थता जताई। आरोप है की अस्पताल वालों ने उससे जबरदस्ती बच्चा छीन लिया और एक कागज पर अंगूठा लगवा लिया।

दंपती का यह पांचवां बच्चा है और वे उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में शंभू नगर इलाके में किराए के कमरे में अपने पति शिवचरण के साथ रहती हैं। बता दें कि शिवचरण रिक्शा चालक है। रिक्शा चलाकर वो दिन के 200 से तीन सौ रुपए कमाता है। उनका सबसे बड़ा बेटा 18 साल का है। वह एक जूता कंपनी में मजदूरी करता है। कोरोना लॉकडाउन में उसकी फैक्ट्री बंद हो गई तो वह बेरोजगार हो गया।

हिन्दुस्तान की खबर के मुताबिक, 24 अगस्त एक आशा वर्कर उनके घर आई और बबिता को वह फ्री में डिलीवरी करवा देगी। शिवचरण ने कहा कि उन लोगों का नाम आयुष्मान भारत योजना में नहीं था, लेकिन आशा ने कहा कि फ्री इलाज करवा देगी। जब बबिता अस्पताल पहुंची तो अस्पताल वालों ने कहा कि सर्जरी करनी पड़ेगी। 24 अगस्त की शाम 6 बजकर 45 मिनट पर उसने एक लड़के को जन्म दिया। अस्पताल वालों ने उन लोगों को करीब 35 हजार रुपए का बिल थमाया।

डीएम ने कहा, कराएंगे जांच

शिवचरण ने कहा, 'मेरी पत्नी और मैं पढ़ लिख नहीं सकते हैं। हम लोगों का अस्पताल वालों ने कुछ कागजों में अंगूठा लगवा लिया। हम लोगों को डिस्चार्ज पेपर नहीं दिए गए। उन्होंने बच्चे को एक लाख रुपए में खरीद लिया।' वहीं, जब ये मामला आगरा जिले के डीएम प्रभूनाथ सिंह के संज्ञान में आया। तो उन्होंने कहा, 'यह मामला गंभीर है। इसकी जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाएगी।'

'लिखित समझौते का कोई मोल नहीं।'

उधर, बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस ने कहा कि अस्पताल के स्पष्टीकरण से उनका अपराध नहीं कम होता। हर बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण ने निर्धारित की है। उसी प्रक्रिया के तहत ही बच्चे को गोद दिया और लिया जाना चाहिए। अस्पताल प्रशासन के पास जो लिखित समझौता है, उसका कोई मूल्य नहीं है। उन्होंने अपराध किया है।'


ऐसे ही एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है उसमें एक महिला बता रही है, मेरे पिताजी को कोरोना पोजेटिव बताया गया और अस्पताल में भर्ती कर दिया 15 दिन के बाद बताया कि उनकी मौत हो गई है, वीडियो कॉल करवाने के लिए बताया था पर वो भी नही करवाया था और 14 लाख रुपये का बिल बना दिया, और 11 लाख रुपये देने पर भी उनकी डेड बॉडी नही दे रहे हैं।

मुंबई के वॉकहार्ट अस्पताल ने कोरोना के इलाज के लिए दाखिल एक शख्स को 18 लाख 80 हजार रुपए का बिल दिया है। इससे पहले  ऑटो रिक्शा ड्राइवर और मजदूर को  9-9 लाख से ज्यादा का बिल दिया गया जबकि एक व्यापारी को कोरोना संक्रमण के इलाज के लिए 15 लाख रुपए का बिल थमा दिया गया।


हादसों में घायल और खाने-पीने वाली वस्तुओं के मिलावट की वजह से लोग डॉक्टरों के पास जाते हैं। उनके पास और कोई चारा भी नहीं होता। अस्पताल का ही सहारा होता है। चाहे कोई गरीब हो या अमीर प्रत्येक घायल व बीमार के लिए डॉक्टर एक भगवान की तरफ से भेजा गया फरिश्ता ही होता है, जो कि मरीज को तंदुरुस्त करता है। मगर, आजकल इलाज को भी बहुत बड़ा व्यापार बना दिया है। हर बड़े व छोटे अस्पतालों में इतनी भीड़ होती है कि उन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे सारा शहर ही बीमार हो अस्पताल में आ गया हो। अगर बात की जाए सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की तो ज्यादातर अस्पतालों में इलाज के नाम पर इतनी अंधी लूट मची हुई है कि एक मरीज की वजह से पहले से ही परेशान उसके परिजन अस्पतालों के बड़े-बड़े बिलों का भुगतान कर जहां बेहद परेशान हो रहे है, वहीं वो आर्थिक तौर पर भी खोखले हो रहे हैं।

प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर की चेकअप पर्ची फीस भी 200 से ले 1000 तक हो चुकी है। चेकअप के बाद टेस्टों का दौर शुरू हो जाता है, जो कि ज्यादातर हजारों रुपये में होता है। फिर डॉक्टरों की तरफ से वहीं दवाई मरीज को लिख कर दी जाती है जो सिर्फ उन्हीं के अस्पताल में मौजूद होती है। मजबूरी में मरीजों को बड़े बड़े बिल दे वहां ठहरना पड़ता है।

इस लूट को बंद करवाने के लिए सबसे पहले हमें निरोग रहना होगा इसके लिए नियमित रूप से आसान-प्राणायाम करने होंगे उसके बाद आर्युवेद पर आना होगा और फास्टफूड बंद करके ताजा भोजन करना होगा और देशी गाय के दूध दही, मूत्र, गोबर आदि का उपयोग करके स्वस्थ रहना होगा नही तो ये लोग लूटते ही रहेंगे और सरकार को भी इनपर नियंत्रण लाना होगा और जो डॉक्टर की पढ़ाई में लाखों रुपये फीस हो रही है वे भी कम करना होगा इससे ईमानदार डॉक्टर होंगे तो भी लूटपाट बंद होगी।

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