Thursday, April 30, 2020

आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो वैश्‍विक संकट क्यों आता है? क्या इससे हम बच सकते हैं?

30 अप्रैल 2020

🚩कोरोना जैसी महामारी हो अथवा अन्य नैसर्गिक आपदा, हर कोई अपने ढंग से उसका कारण ढूंढता है। जैसे वैज्ञानिक हो, तो वह अपना तर्क बताते हैं कि यह आपदा क्यों आई और इसका परिणाम क्या होगा? जबकि पत्रकार अपना तर्क लगाते हैं। पर हमें आपदा का आध्यात्मिक परिपेक्ष्य देखना है। इसलिए कि बिना आध्यात्मिक परिपेक्ष्य समझे हम आपदाओं को समझ नहीं पाएंगे।

▪️आध्यात्मिक परिपेक्ष्य की विशेषता!

🚩क्योंकि सृष्टि का संचालन किसी सरकार या आर्थिक महासत्ता द्वारा नहीं होता। सृष्टि का संचालन परमात्मा द्वारा होता है। इस संचालन का विज्ञान यदि हम नहीं समझेंगे, तो वैश्‍विक संकट को और उसके समाधान को कैसे समझ पाएंगे? हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे धर्मग्रंथों में सृष्टि तथा उसके संचालन के विषय में स्थूल अध्ययन के साथ-साथ सूक्ष्म की भी स्पष्ट जानकारी दी गयी है।

🚩कौशिकपद्धति नामक ग्रंथ में आपातकाल के कारण का वर्णन है।

अतिवृष्टिः अनावृष्टिः शलभा मूषकाः शुकाः।
स्वचक्रं परचक्रं च सप्तैता ईतयः स्मृताः॥
इस श्‍लोक का अर्थ इस प्रकार है। राज्यकर्ता तथा प्रजा के धर्मपालन न करने से अतिवृष्टि, अनावृष्टि (अकाल), टिड्डियों का आक्रमण, चूहों अथवा तोतों (पोपट) का उपद्रव, एक-दूसरे में लडाइयां और शत्रु का आक्रमण, इस प्रकार के सात संकट राष्ट्र पर आते हैं।

🚩तात्पर्य : प्रजा एवं राजा, दोनों को धर्मपालन एवं साधना करनी चाहिए। तब ही आपातकाल की तीव्रता अल्प होकर आपातकाल सुसह्य होगा।

आध्यात्मिक परिपेक्ष्य के कुछ पहलु समझ लेते हैं।

▪️युगों का कालचक्र

🚩हमारे शास्त्रों में सतयुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और कलियुग, ऐसे चार युगों का स्पष्ट उल्लेख है। वर्तमान में कलियुग के अंतर्गत चल रहे पांचवें कलियुग के अंत का समय है। इसके बाद कलियुग के अंतर्गत एक छोटा सा सतयुग आएगा। अभी का समय छोटे कलियुग के अंत का है। कल्कि अवतार के समय के कलियुग का नहीं । वैसे कलियुग 432000 हजार वर्ष का होता है अभी करीब 5500 वर्ष हुए है इसलिए अभी चल रहे कलयुग में परिवर्तन आएगा फिर से सतयुग जैसा दिखाई देगा।

▪️उत्पत्ति, स्थिति एवं लय, यह कालचक्र का नियम

🚩युगपरिवर्तन, यह ईश्‍वरनिर्मित प्रकृति का एक नियम है। जो भी वस्तु उत्पन्न होती है, वह कुछ समय तक रहकर अंत में नष्ट हो जाती है। इसे उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का नियम कहते है। उदाहरण के रूप में, हिमालय पर्वत श्रृंखला की उत्पत्ति हुई, वह कुछ काल तक रहेगी और अंत में नष्ट हो जाएगी। इस का अर्थ यह है कि जब इस विश्‍व में किसी वस्तु की उत्पत्ति होती है, कुछ काल तक रहने के पश्‍चात वह अवश्य नष्ट होगी। केवल निर्माता अर्थात ईश्‍वर ही चिरंतन एवं अपरिवर्तनीय है।

🚩इस नियम के अनुसार अभी का समय कालचक्र में एक परिवर्तन का समय है। अर्थात दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आपत्तियों से प्रकृति अपना संतुलन बना रही है।

🚩इसमें समझना होगा कि आपत्तियों से जो नष्ट हो रहा है उसके अनेक मार्ग हैं, इसमें एक मार्ग है प्राकृतिक आपदाएं। नाश की इस प्रक्रिया में मानवजाति भी व्यवहार एवं आचरण द्वारा अपना योगदान देती है, जो युद्ध के रूप में सर्वनाश लाता है। इसकी मात्रा 70% होती है।

🚩इसमें, उत्पत्ति-स्थिति-लय (विनाश) इस कालचक्र के नियमानुसार रजोगुणी और तमोगुणी (पापी) लोगों की सबसे अधिक प्राणहानि होगी। इससे, वातावरण की एक प्रकार से शुद्धि ही होती है। इस काल का उल्लेख अनेक भविष्यवेत्ताआें ने भी अपनी भविष्यवाणियों में किया है।

▪️मनुष्य के कर्म तथा समष्टि प्रारब्ध!

🚩वर्तमान कलियुग में मनुष्य का 65 प्रतिशत जीवन प्रारब्ध के अनुसार और 35 प्रतिशत क्रियमाण कर्म के अनुसार होता है। 35 प्रतिशत क्रियमाण द्वारा हुए अच्छे-बुरे कर्मों का फल प्रारब्ध (भाग्य) के रूप में उसे भोगना पडता है। वर्तमान में धर्मशिक्षा और धर्माचरण के अभाव में समाज के अधिकांश लोगों से स्वार्थ या बढते तमोगुण के कारण समाज, राष्ट्र और धर्म की हानि हो रही है। यह गलत कर्म संपूर्ण समाज को भुगतने पडते हैं, क्योंकि समाज उसकी ओर अनदेखी करता है। इसी प्रकार, समष्टि के बुरे कर्मों का फल भी उसे प्राकृतिक आपदाओं के रूप में सहना पडता है। जैसे आग में सूखे के साथ गीला भी जल जाता है। उसी प्रकार यह है।

🚩इसके साथ ही समाज, धर्म और राष्ट्र का भी समष्टि प्रारब्ध होता है। 2023 तक के कालखंड में मनुष्यजाति को कठिन समष्टि प्रारब्ध भोगना पड सकता है।

▪️प्रकृति कैसे कार्य करती है?

🚩जिस प्रकार धूल तथा धुएं से स्थूल स्तर पर प्रदूषण होता है, उसी प्रकार बुद्धि अगम्य सूक्ष्म स्तर पर रज-तम का प्रदूषण होता है। समाज में सर्वत्र फैले अधर्म एवं साधना के अभाव के कारण मानव में रज-तम बढ जाने से वातावरण में भी रज-तम बढ गया है। इससे प्रकृति का ध्यान भी नहीं रखा जा रहा है।

🚩रज-तम बढने का अर्थ है, सूक्ष्म स्तर पर पूरे विश्‍व में बुद्धि अगम्य आध्यात्मिक प्रदूषण होना। जिस प्रकार हम जिस घर में रहते हैं, वहां की धूल-गंदगी समय-समय पर स्थूलरूप में निकालते रहते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी सूक्ष्म स्तर पर वातावरण में रज-तम के प्रदूषण को हटाने एवं स्वच्छ करने के लिए प्रतिसाद देती है।

🚩वास्तविकता यह है कि जब वातावरण में रज-तम का पलडा भारी होता है, तब यह अतिरिक्त रज-तम मूलभूत पांच वैश्‍विक तत्त्वों के माध्यम से (पंचमहाभूत) प्रभाव डालता है। इन पंचमहाभूतों के माध्यम से यह भूकंप, बाढ, ज्वालामुखी, चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि करता है।

🚩मूलभूत पृथ्वीतत्त्व प्रभावित होने से उसकी परिणति भूकंप में होती है। मूलभूत आपतत्त्व प्रभावित होने से पानी में वृद्धि (बाढ आना अथवा अतिरिक्त हिमवर्षा होकर हिमयुग आना) अथवा न्यूनता (उदा. अकाल) होती है।


🚩महाभारत के युद्ध समय भी देखा गया था कि कौरव की लाखों सेना मर गई थी पर 5 पांडव और धर्म का साथ देने वाले जीवित रहे थे इससे साफ होता है कि सनातन धर्म के अनुसार और साधु-संतों के बताए अनुसार अपना जीवन बनाया जाए और जीवन मे सत्वगुण बढ़ाया जाए तो इन आपदाओं से उनकी रक्षा होगी।


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