Monday, May 29, 2017

इंटेलिजेंस रिपोर्ट : भीम सेना को नक्सली एवं वामपंथी दलों का भारी समर्थन, जानिए कौन है वामपंथी

इंटेलिजेंस रिपोर्ट : भीम सेना को नक्सली एवं वामपंथी दलों का भारी समर्थन, जानिए कौन है वामपंथी

मई 29, 2017 

 उत्तर प्रदेश सहारनपुर में कई दिनों से बवाल चल रही है और जातीय हिंसा हुई, उसके लिए जिम्मेदार भीम आर्मी मानी जा रही है ।
Bhim Army

भीम आर्मी का संस्थापक चंद्रशेखर आजाद उर्फ रावण है। खुद को 'रावण' की उपाधि से पुकारा जाना पसंद करता है ये शख्स !!

रिपोट अनुसार भीम आर्मी को विभिन्न दलों के नेताओं के अलावा हवाला के जरिये भी फंडिंग की गई। पिछले दो महीने में भीम आर्मी के एकाउंट में एकाएक 40-50 लाख रुपये ट्रांसफर हुए हैं।

नौ मई को #भीम आर्मी के कार्यकर्ताओं ने सहारनपुर में आठ स्थानों पर पुलिस पर पथराव किया था।

श्री हनुमानजी की फोटो पर थूके और जूते फैंके,इसमें भी #भीम आर्मी के सदस्य नजर आये ।

इंटेलिजेंस की रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कई #वामपंथी दल भीम सेना के संयोजक चंद्रशेखर के समर्थन में थे और उससे लगातार संपर्क में बने हुए थे और नक्सलियों से संबंध होने की बात का खुलासा किया गया है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, #वामपंथी विचारधारा के ये संघटन भीम सेना को नक्सलियों सा #प्रशिक्षण देने के लिए उन्हें छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश के उन बस्तियों में भी ले जाया जाता, जहां नक्सली #प्रशिक्षण पाते रहे हैं। 

रिपोर्ट बताती है कि, भीम सेना के लोगों को नक्सलियों जैसा प्रशिक्षण देकर उनका उपयोग #वामपंथी संघटन अपने हित के लिए करने की तैयारी में हैं ।

आखिर कौन हैं #वामपंथी ??  
क्या है इनका इतिहास ??

इतने बड़े विचारकों, विश्व राजनीति-अर्थनीति की गहरी समझ, तमाम नेताओं की अप्रतिम ईमानदारी और विचारधारा के प्रति समर्पण के किस्सों के बावजूद भारत का वामपंथी आंदोलन क्यों जनता के बीच स्वीकृति नहीं पा सका? 
अब लगता है कि भारत की महान जनता इन राष्ट्रद्रोहियों को पहले से ही पहचानती थी, इसलिए इन्हें इनकी मौत मरने दिया। जो हर बार गलती करें और उसे ऐतिहासिक भूल बताएं, वही #वामपंथी हैं।

#वामपंथी वे हैं जिनके लिए 24 मार्च, 1943 को भारत के अतिरिक्त गृह सचिव रिचर्ड टोटनहम ने टिप्पणी लिखी कि ''भारतीय कम्युनिस्टों का चरित्र ऐसा कि वे किसी का विरोध तो कर सकते हैं, किसी के सगे नहीं हो सकते, सिवाय अपने स्वार्थों के।''

ये वही वामपंथी है जिन्हें 'हिन्दुत्व को कमजोर करने का सुख मिलता है। इसीलिए भारतीय #वामपंथ हर उस झूठ-सच पर कर्कश शोर मचाता है जिससे हिन्दू बदनाम हो सकें। न उन्हें तथ्यों से मतलब है, न ही देश-हित से। 

विदेशी ताकतें उनकी इस प्रवृत्ति को पहचानकर अपने हित में जमकर इस्तेमाल करती है। #मिशनरी एजेंसियाँ चीन या अरब देशों में इतने ढीठ या आक्रामक नहीं हो पाते, क्योंकि वहां इन्हें भारतीय #वामपंथियों जैसे स्थानीय सहयोगी उपलब्ध नहीं हैं। चीन सरकार विदेशी #ईसाई मिशनरियों को चीन की धरती पर काम करने देना अपने राष्ट्रीय हितों के विरूद्ध मानती है। किंतु हमारे देश में चीन-भक्त वामपंथियों का भी ईसाई #मिशनरियों के पक्ष में खड़े दिखना उनकी हिन्दू विरोधी प्रतिज्ञा का सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण है।

#वामपंथी दलों में आंतरिक कलह, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की पराकाष्ठा, पश्चिम बंगाल में राशन के लिए दंगा, देश की लगभग हर मुसीबत में विपरीत बातें करना, चरम पर भ्रष्टाचार, देशविरोधी हरकतें, विरोधी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की सरेआम हत्या जैसे वाक्यों को लेकर वामपंथ बेनकाब हो चुका है।

पाकिस्तान बनवाने के #आंदोलन में सक्रिय भागीदारी करने वाले भारतीय कम्युनिस्टों का हिन्दू-विरोध यथावत है। किंतु जैसे ही किसी गैर-हिन्दू समुदाय की उग्रता बढ़ती है-चाहे वह नागालैंड हो या कश्मीर-उनके प्रति कम्युनिस्टों की सहानुभूति तुरंत बढऩे लगती है। 
अत: प्रत्येक किस्म के कम्युनिस्ट मूलत: हिन्दू विरोधी हैं। केवल उसकी अभिव्यक्ति अलग-अलग रंग में होती है। 

पीपुल्स वार ग्रुप के आंध्र नेता रामकृष्ण ने कहा ही है कि 'हिन्दू धर्म को खत्म कर देने से ही हरेक समस्या सुलझेगी'। अन्य कम्युनिस्टों को भी इस बयान से कोई आपत्ति नहीं है। सी.पी.आई.(माओवादी) ने अपने गुरिल्ला दस्ते का आह्वान किया है कि वह कश्मीर को 'स्वतंत्र देश' बनाने के संघर्ष में भाग ले। भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में चल रहे प्रत्येक #अलगाववादी आंदोलन का हर गुट के #माओवादी पहले से ही समर्थन करते रहे हैं। अन्य कम्युनिस्ट पार्टियों की स्थिति भी बहुत भिन्न नहीं। माकपा के प्रमुख अर्थशास्त्री और मंत्री रह चुके अशोक मित्र कह ही चुके हैं, 'लेट गो आफ्फ कश्मीर'-यानी, कश्मीर को जाने दो।



वे वही है "जो पाकिस्तान निर्माण के समय "पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगा रहे थे। जो आज तक #JNU  में भी जारी है।

वे वही हैं जो चीन के साथ हुए युद्ध में भारत विरोध में खड़े रहे। क्योंकि चीन के  चेयरमैन माओ उनके भी चेयरमेन थे।

वे वही हैं जो आपातकाल के पक्ष में खड़े रहे।

वे वही हैं जो अंग्रेजों के मुखबिर बने और आज भी उनके बिगड़े शहजादे (माओवादी) जंगलों में आदिवासियों का जीवन नरक बना रहे हैं।

वे वही है, भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ #वामपंथी अंग्रेजों के साथ खड़े थे।

वे वही है, #मुस्लिम लीग की देश विभाजन की मांग का भारी समर्थन कर रहे थे।

वे वही है, आजादी के क्षणों में नेहरू को 'साम्राज्यवादियों' का दलाल वामपंथियों ने घोषित किया।

वे वही है , वामपंथियों ने कांग्रेस के गांधी को 'खलनायक' और जिन्ना को 'नायक' की उपाधि दे दी थी।

खंडित भारत को स्वतंत्रता मिलते ही वामपंथियों ने हैदराबाद के निजाम के लिए पाकिस्तान में मिलाने के लिए लड़ रहे मुस्लिम रजाकारों की मदद से अपने लिए स्वतंत्र #तेलंगाना राज्य बनाने की कोशिश की।

वामपंथियों ने भारत की क्षेत्रीय, भाषाई विविधता को उभारने की एवं इनके आधार पर देशवासियों को आपस में लड़ाने की रणनीति बनाई।

भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले गांधी और उनकी कांग्रेस को ब्रिटिश दासता के विरुद्ध भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व कर रहे जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे देशभक्तों पर वामपंथियों ने 'देशद्रोही' का ठप्पा लगाया। भले पश्चिम बंगाल में माओवादियों और साम्यवादी सरकार के बीच कभी दोस्ताना लडाई चल चुकी हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर दोनों के बीच समझौता था। चीन को अपना आदर्श मानने वाली कथित #लोकतंत्रात्क पार्टी माक्र्सवादी #काम्यूनिस्ट पार्टी और भारतीय काम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) एक ही आका के दो गुर्गे हैं।

भले चीन भारत के खिलाफ कूटनीतिक युद्ध लड़ रहा हो लेकिन इन दोनों #साम्यवादी धड़ों का मानना है कि चीन भारत का शुभचिंतक है लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत का नम्बर एक दुश्मन।

देश के सबसे बडे #साम्यवादी संगठन के नेता कामरेड प्रकाश करात ने चीन के बनिस्पत देश के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ज्यादा खतरनाक बताया है।

संत लक्ष्मणानंद की हत्या कम्युनिस्टों और ईसाई मिशनरी गठजोड़ का प्रमाण थी। 

केरल में, आंध्र प्रदेश में, उडीसा में, बिहार और झारखंड में, छातीसगढ में, त्रिपुरा में यानी जहाँ भी #साम्यवादी हावी हैं। वहां इनके टारगेट में राष्ट्रवादी हैं और आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्या इनके एजेंडे में शमिल है।

देश की अस्मिता की बात करने वालों को अमेरिकी एजेंट ठहराना और देश के अंदर #साम्यवादी चरंपथी, #इस्लामी जेहादी तथा ईसाई चरमपंथियों का समर्थन करना इस देश के साम्यवादियों की कार्य संस्कृति का अंग है।

ये वही #साम्यवादी हैं जिन्होंने सन 62 की लडाई में हथियार कारखानों में हडताल का षडयंत्र किया था, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने कारगिल की लडाई को भाजपा का षडयंत्र बताया था।

ये वही #साम्यवादी हैं जिन्होंने पाकिस्तान के निर्माण को जायज ठहराया था।

ये वही #साम्यवादी हैं जो यह मानते हैं कि आज भी देश गुलाम है और इसे चीन की ही सेना मुक्त करा सकती है। 

ये वही #साम्यवादी हैं जो बाबा पशुपतिनाथ मंदिर पर हुए माओवादी हमले का समर्थन कर रहे थे।

ये वही #साम्यवादी हैं जो महान संत लक्ष्मणानंद सरस्वती को आतंकवादी ठहरा रहे हैं।

ये वही #साम्यवादी हैं जो बिहार में पूंजीपतियों से मिलकर किसानों की हत्या करा रहे हैं, ये वही साम्यवादी हैं जिन्होंने महात्मा गांधी को बुर्जुवा कहा।

अतः राष्ट्रविरोधी #वामपंथी और उनके विचारधाराओं से सावधान रहें नही तो ये देश के टुकड़े कर देंगे ।

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