Tuesday, May 16, 2017

भारत को लूटने वाले क्रूर, बर्बर विदेशी शासक – एक तथ्य

भारत को लूटने वाले क्रूर, बर्बर विदेशी शासक – एक तथ्य


मई 16-2017


हमारे देश भारत को कभी सोने की चिड़िया कहा जाता था। कुछ दार्शनिक और विदेशी इतिहासकारों ने भारत में कभी गरीबी नहीं देखी थी। हम सब जानते है कि मध्य युग में भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए हमारा देश शुरू से ही विदेशी आक्रांताओं के निशाने पर रहा। सन् 187 ई० पू० में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास की राजनीतिक एकता बिखर गई।
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इस खंडित एकता के चलते देश के उत्तर-पश्चिमी मार्गों से कई विदेशी आक्रांताओं ने आकर अनेक भागों में एक ओर जहाँ लूटपाट की, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने-अपने राज्य स्थापित कर लिए। इन आक्रांताओं और लुटेरों में से कुछ तो महाक्रूर और बर्बर हत्यारे थे जिन्होंने भारतीय जनता को बेरहमी से कुचला।



आओं जानते हैं ऐसे कुछ बर्बर लुटेरों के बारे में ....


 *मुहम्मद बिन कासिम* (Muhammad Bin Qasim)
7वीं सदी के बाद अफगानिस्तान और पाकिस्तान भारत के हाथ से जाता रहा। भारत में इस्लामिक शासन का विस्तार 7वीं शताब्दी के अंत में मोहम्मद बिन कासिम के सिन्ध पर आक्रमण के बाद मुस्लिम शासकों द्वारा हुआ। लगभग  712 में इराकी शासक अल हज्जाज के भतीजे एवं दामाद मुहम्मद बिन कासिम ने 17 वर्ष की अवस्था में सिन्ध और बूच के अभियान का सफल नेतृत्व किया।


 #इस्लामिक खलीफाओं ने सिन्ध फतह के लिए कई अभियान चलाए। 10 हजार #सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिन्ध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। सिन्ध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया। 15वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया।


मुहम्मद बिन कासिम अत्यंत क्रूर यौद्धा था। सिंध के दीवान गुन्दुमल की बेटी ने सर कटवाना स्वीकर किया, पर मीर कासिम की पत्नी बनना नहीं। इसी तरह वहां के राजा दाहिर (679 ईस्वी में राजा बने) और उनकी पत्नियों और पुत्रियों ने भी अपनी मातृभूमि और अस्मिता की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। सिंध देश के सभी राजाओं की कहानियाँ बहुत ही मार्मिक और दुखदायी हैं। आज सिंध देश पाकिस्तान का एक प्रांत बनकर रह गया है। राजा दाहिर अकेले ही अरब और ईरान के दरिंदों से लड़ते रहे। उनका साथ किसी ने नहीं दिया बल्कि कुछ लोगों ने उनके साथ गद्दारी की।


 *महमूद गजनवी* (Mahmud Ghaznavi)

अरबों के बाद तुर्कों ने भारत पर आक्रमण किया। अलप्तगीन नामक एक तुर्क सरदार ने #गजनी में तुर्क साम्राज्य की स्थापना की। 177 ई. में अलप्तगीन के दामाद सुबुक्तगीन ने गजनी पर शासन किया। सबुक्तगीन ने मरने से पहले कई लड़ाईयाँ लड़ते हुए अपने राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान, खुरासान, बल्ख एवं पश्चिमोत्तर भारत तक फैला ली थी। सुबुक्तगीन की मुत्यु के बाद उसका पुत्र महमूद गजनवी गजनी की गद्दी पर बैठा। महमूद गजनवी ने बगदाद के खलीफा के आदेशानुसार भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करना शुरू किया ।


उसने भारत पर 1001 से 1016 ई. के बीच 17 बार आक्रमण किए। उसने प्रत्येक वर्ष भारत के अन्य हिस्सों पर आक्रमण करने की प्रतिज्ञा की। अपने 13वें अभियान में गजनवी ने बुंदेलखंड, किरात तथा लोहकोट आदि को जीत लिया। 14वां आक्रमण ग्वालियर तथा कालिंजर पर किया। अपने 15वें आक्रमण में उसने लोदोर्ग (जैसलमेर), चिकलोदर (गुजरात) तथा अन्हिलवाड (गुजरात) पर आक्रमण कर वहां खूब लूटपाट की।


माना जाता है कि #महमूद_गजनवी ने अपना 16वां आक्रमण (1025 ई.) सोमनाथ पर किया। उसने वहां के प्रसिद्ध मंदिरों को तोड़ा और वहां से अपार धन प्राप्त किया। इस मंदिर को लूटते समय महमूद ने लगभग 50,000 ब्राह्मणों एवं हिन्दुओं का कत्ल कर दिया। इसकी चर्चा पूरे देश में आग की तरह फैल गई। 17वां आक्रमण उसने सिन्ध और मुल्तान के तटवर्ती क्षेत्रों के जाटों के ऊपर किया। इसमें जाट पराजित हुए।


 *मुहम्मद गौरी*(Muhammad Ghori)

 #मुहम्मद_बिन_कासिम के बाद महमूद गजनवी और उसके बाद मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण कर अंधाधुंध कत्लेआम और लूटपाट मचाई। इसका पूरा नाम शिहाबुद्दीन उर्फ मुईजुद्दीन मुहम्मद गौरी था। भारत में तुर्क साम्राज्य की स्थापना करने का श्रेय मुहम्मद गौरी को ही जाता है। गौरी गजनी और हेरात के मध्य स्थित छोटे से पहाड़ी प्रदेश गौर का शासक था।


उसने पहला आक्रमण 1175 ईस्वी में मुल्तान पर किया, दूसरा आक्रमण 1178 ईस्वी में गुजरात पर किया। इसके बाद 1179-86 ईस्वी के बीच उसने पंजाब पर फतह हासिल की। इसके बाद उसने 1179 ईस्वी में पेशावर तथा 1185 ईस्वी में स्यालकोट अपने कब्जे में ले लिया। 1191 ईस्वी में उसका युद्ध पृथ्वीराज चौहान से हुआ। इस युद्ध में मुहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित होना पड़ा। इस युद्ध में गौरी को बंधक बना लिया गया, किंतु पृथ्वीराज चौहान ने उसे छोड़ दिया। इसे तराइन का प्रथम युद्ध कहा जाता था।


इसके बाद मुहम्मद गौरी ने अधिक ताकत के साथ पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। तराइन का यह द्वितीय युद्ध 1192 ईस्वी में हुआ था। अबकी बार इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान हार गए और उनको बंधक बना लिया गया। ऐसा माना जाता है कि बाद में उन्हें गजनी ले जाकर मार दिया गया। गौरी भारत में गुलामवंश का शासन स्थापित करके पुन: अपने राज्य लौट गया।


 *चंगेज खान*(Changez khan)

(मंगोलियाई नाम चिंगिस खान, सन 1162 से 18 अगस्त, 1227)। चंगेज खान ने मुस्लिम साम्राज्य को लगभग नष्ट ही कर दिया था। वह एक मंगोल शासक था। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था। हलाकू खान भी बौद्ध था। चंगेज अपनी संगठन शक्ति, बर्बरता तथा साम्राज्य विस्तार के लिए कुख्यात रहा। भारत सहित संपूर्ण रशिया, एशिया और अरब देश चंगेज खान के नाम से ही कांपते थे।


 #चंगेज_खान का जन्म 1162 के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका वास्तविक या प्रारंभिक नाम तेमुजिन (या तेमूचिन) था। उसके पिता का नाम येसूजेई था जो कियात कबीले का मुखिया था।


चंगेज खान ने अपने अभियान चलाकर ईरान, गजनी सहित पश्‍चिम भारत के काबुल, कन्धार, पेशावर सहित कश्मीर पर भी अधिकार कर लिया। इस समय चंगेज खान ने सिंधु नदी को पार कर उत्तरी भारत और असम के रास्ते मंगोलिया वापस लौटने की सोची। किंतु वह ऐसा नहीं कर पाया। इस तरह उत्तर भारत एक संभावित लूटपाट और वीभत्स उत्पात से बच गया।


एक नए अनुसंधान के अनुसार इस क्रूर मंगोल योद्धा ने अपने हमलों में इस कदर लूटपाट और खूनखराबा किया कि एशिया में चीन, अफगानिस्तान सहित उजबेकिस्तान, #तिब्बत और बर्मा आदि देशों की बहुत बड़ी आबादी का सफाया हो गया था। मुसलमानों के लिए तो चंगेज खान और हलाकू खान अल्लाह का कहर था।


 *तैमूर*(Timur Lang)

तैमूर लंग भी चंगेज खान जैसा शासक बनना चाहता था। सन 1369 ईस्वी में वह समरकंद का शासक बना। उसके बाद उसने अपनी विजय और क्रूरता की यात्रा शुरू की। मध्य एशिया के मंगोल लोग इस बीच में मुसलमान हो चुके थे और तैमूर खुद भी मुसलमान था।


क्रूरता के मामले में वह चंगेज खान की तरह ही था। कहते हैं, एक जगह उसने दो हजार जिन्दा आदमियों की एक मीनार बनवाई और उन्हें ईंट और गारे में चुनवा दिया।


जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया तब उत्तर भारत में तुगलक वंश का राज था। 1399 में तैमूर लंग द्वारा देहली पर आक्रमण के साथ ही तुगलक साम्राज्य का अंत माना जाना चाहिए। तैमूर मंगोलों की फौज लेकर आया तो उसका कोई कड़ा मुकाबला नहीं हुआ और वह कत्लेआम करता हुआ मजे के साथ आगे बढ़ता गया।


 #तैमूर के आक्रमण के समय हिन्दू और मुसलमान दोनों ने मिलकर जौहर की राजपूती रस्म अदा की थी, यानी युद्ध में लड़ते-लड़ते मर जाने के लिए बाहर निकल पड़े थे। देहली में वह 15 दिन रहा और उसने इस बड़े शहर को कसाईखाना बना दिया। बाद में कश्मीर को लूटता हुआ वह समरकंद वापस लौट गया। तैमूर के जाने के बाद देहली #मुर्दों का शहर रह गया था।


 *बाबर*(Babar)

मुगल वंश का संस्थापक बाबर एक लूटेरा था। उसने उत्तर भारत में कई लूट को अंजाम दिया। मध्य एशिया के समरकंद राज्य की एक बहुत छोटी सी #जागीर फरगना (वर्तमान खोकन्द) में 1483 ई. में बाबर का जन्म हुआ था। उसका पिता उमर शेख मिर्जा, तैमूरशाह तथा माता कुनलुक निगार खानम #मंगोलों की वंशज थी।


बाबर ने चगताई तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक ए बाबरी’ लिखी इसे इतिहास में #बाबरनामा भी कहा जाता है। बाबर का टकराव देहली के शासक #इब्राहिम लोदी से हुआ। बाबर के जीवन का सबसे बड़ा टकराव मेवाड़ के #राणा सांगा के साथ था। बाबरनामा में इसका विस्तृत वर्णन है। संघर्ष में 1927 ई. में खन्वाह के युद्ध में, अन्त में उसे सफलता मिली।


 #बाबर ने अपने विजय पत्र में अपने को मूर्तियों की नींव का खण्डन करने वाला बताया। इस भयंकर संघर्ष से बाबर को गाजी की उपाधि प्राप्त हुई। गाजी वह जो काफिरों का कत्ल करे। बाबर ने अमानुषिक ढंग से तथा क्रूरतापूर्वक हिन्दुओं का नरसंहार ही नहीं किया, बल्कि अनेक हिन्दू मंदिरों को भी नष्ट किया। बाबर की आज्ञा से मीर बाकी ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर निर्मित प्रसिद्ध #मंदिर को नष्ट कर मस्जिद बनवाई, इसी भांति ग्वालियर के निकट उरवा में अनेक जैन मंदिरों को नष्ट किया। उसने चंदेरी के प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों को भी नष्ट करवा दिया था, जो आज बस खंडहर है।


 *औरंगजेब*(Aurangzeb)

भारत में मुगल शासकों में सबसे क्रूर औरंगजेब था। मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब का जन्म 1618 ईस्वी में हुआ था। उसके पिता शाहजहाँ और माता का नाम मुमताज था।


बाबर का बेटा नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूं देहली के तख्त पर बैठा। हुमायूं के बाद जलालुद्दीन मुहम्मद अकबर, अकबर के बाद नूरुद्दीन सलीम जहांगीर, जहांगीर के बाद #शाहबउद्दीन मुहम्मद शाहजहां, शाहजहां के बाद मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब ने तख्त संभाला।


हिन्दुस्तान के इतिहास के सबसे जालिम शासक जिसने, अपने पिता को कैद किया, अपने सगे भाइयों और भतीजों की बेरहमी से हत्या की, गुरु तेग बहादुर का सर कटवाया, गुरु #गोविन्द सिंह के बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवाया, जिसने सैकड़ों मंदिरों को तुड़वाया, जिसने अपनी प्रजा पर बे-इन्तहा जुल्म किए और अपने शासन क्षेत्र में गैर-मुस्लिमों के लिए मुनादी करावा दी कि या तो आप इस्लाम कबूल कर ले या फिर मरने के लिए तैयार रहें। औरंगजेब एक तुर्क था। उसके काल में ही उत्तर भारत का तेजी से इस्लामी करण हुआ। अधिकतर ब्राह्मणों को या तो मुसलमान बनना पड़ा या उन्होंने प्रदेश को छोड़कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के गांवों में शरण ली।


उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध #इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली अनुसार मुगल शासक औरंगजेब ने अपनी सेना को सन् 1669 में जारी कर अपने एक हुक्मनामे पर हिंदुओं के सभी मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया था। इस दौरान सोमनाथ मंदिर, वाराणसी का मंदिर, मथुरा का केशव राय मंदिर के अलावा कई हिंदू देवी-देवताओं के प्रसिद्ध मंदिर तोड़ दिए गए थे।


 #औरंगजेब ने हिन्दू त्यौहारों को सार्वजनिक तौर पर मनाने पर प्रतिबन्ध लगाया और उसने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया । औरंगजेब ने दारुल हर्ब (काफिरों का देश भारत) को दारुल इस्लाम (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने का अपना महत्वपूर्ण लक्ष्य बनाया था। 1669 ई. में औरंगजेब ने बनारस के विश्वनाथ मंदिर एवं मथुरा के केशव राय मदिंर को तुड़वा दिया था।

*नादिर शाह* (Nadir Shah)

(जन्म 6 अगस्त, 1688 मृत्यु 17 जून, 1747) : #नादिरशाह का पूरा नाम नादिर कोली बेग था। यह ईरान का शासक था। उसने भारत पर आक्रमण कर कई तरह की लूटपाट और कत्लेआम को अंजाम दिया। देहली की सत्ता पर आसीन उस वक्त के मुगल बादशाह मुहम्मदशाह को हराने के बाद उसने वहां से अपार सम्पत्ति अर्जित की, जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था।


 #मुगल बादशाह #मुहम्मदशाह और नादिरशाह के मध्य करनाल का युद्ध 1739 ई. में लड़ा गया। काबुल पर कब्जा करने के बाद उसने देहली पर आक्रमण किया। करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई। इसमें नादिर की सेना मुगलों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फारसी सेना जीत गई।


हारने के बाद देहली के #सुल्तान #मोहम्मद शाह ने संभवत मार्च 1739 में देहली पहुंचने पर यह अफवाह फैलायी कि नादिर शाह मारा गया। इससे देहली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया। नादिर को जब यह पता चला तो उसने इसका बदला लेने के लिए देहली पर आक्रमण कर दिया। उसने देहली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में कई हजारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। इसके अलावा उसने शाह से भारी धनराशि भी लूट ली। मोहम्मद शाह ने सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिरशाह को दान में दे दी। हीरे जवाहरात का एक जखीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहिनूर (कूह-ए-नूर), दरियानूर और ताज-ए-मह नामक विख्यात हीरे शामिल थे।


 *अहमद शाह अब्दाली* (Ahmad Shah Abdali)



 #अहमदशाह अब्दाली को अहमदशाह दुर्रानी भी कहते हैं। सन 1747 में नादिर शाह की मौत के बाद वह अफगानिस्तान का शासक बना। अपने पिता की तरह अब्दाली ने भी भारत पर सन 1748 से 1758 तक कई बार आक्रमण किया और लूटपाट करके अपार धन संपत्ति को इकट्ठा किया।


सन 1757 में जनवरी के माह में उसने देहली पर आक्रमण किया। उसने अब्दाली से बहुत ही शर्मनाक संधि की, जिसमें एक शर्त देहली को लूटने की अनुमति देना भी था। अहमदशाह एक माह तक देहली में ठहरकर लूटमार और कत्लेआम करता रहा। वहां की लूट में उसे करोड़ों की संपदा हाथ लगी।


देहली लूटने के बाद अब्दाली का लालच बढ़ गया। वहां से उसने आगरा पर आक्रमण किया। आगरा के बाद बल्लभगढ़ पर आक्रमण किया। बल्लभगढ़ में उसने जाटों को हराया और बल्लभगढ़ और उसके आस-पास के क्षेत्रों को लूटा और व्यापक जन−संहार किया।


उसके बाद अहमदशाह ने अपने पठान सैनिकों को मथुरा लूटने और हिन्दुओं के सभी पवित्र स्थलों को तोड़ने के साथ ही हिन्दुओं का व्यापक पैमाने पर कत्लेआम करने का आदेश दिया। उसने अपने सिपाहियों से कहा प्रत्येक हिन्दू के एक कटे सिर के बदले इनाम दिया जाएगा।


मथुरा के इस जनसंहार के विस्तृत ब्यौरा आज भी मथुरा के इतिहास में दर्ज है। अब्दाली द्वारा मथुरा और ब्रज की भीषण लूट बहुत ही क्रूर और बर्बर थी। यह लेख यहां से लिया गया है।
– शिवम शर्मा भारतीय


स्त्रोत : इंडियन नोव्हा


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