जागो हिन्दुस्तानी
साजिश को सच का रूप देने की मीडिया द्वारा मनोवैज्ञानिक रणनीति
संत आसारामजी बापू के खिलाफ चल रहे पूर्वनियोजित षड्यंत्र को एक साइकोलॉजिस्ट होने के नाते मैं आपको बताना चाहती हूँ ।
इसके आठ मुख्य पहलू हैं जो आपको समझने में मदद करेंगे कि किन-किन चीजों का किस तरह उपयोग किया जा रहा है ताकि साजिश को सच का रूप दिया जा सके ।
(१) जनता के विशिष्ट वर्गों पर निशाना (Target population) : समाज के शिक्षित, जागरूक, उच्च एवं मुख्यतः युवा वर्ग को निशाना बनाया गया क्योंकि इनको विश्वास दिलाने पर ये तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं ।
(२) षड्यंत्र का मुद्दा (Topic of Conspiracy) : देश की ज्वलंत समस्या ‘महिलाओं पर अत्याचार’ को मुख्य टॉपिक बनाया है, इस भावनात्मक विषय पर हर कोई तुरंत प्रतिक्रिया करके विरोध दर्शाता है ।
(३) रणनीति (Strategy) : मार्केटिंग रणनीति का उपयोग करके दर्शकों को पूरी तरह से प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है । कंज्यूमर साइकोलॉजी के अनुसार कोई विज्ञापन अगर हमें पहली बार पसंद नहीं आता है लेकिन जब हम बार-बार उसे देखते रहते हैं तो हमें पता भी नहीं चलता है कि कब हम उस विज्ञापन को गुनगुनाने लग गये । बिल्कुल ऐसे ही आसाराम बापू के मामले को बार-बार दिखाने से दर्शकों को असत्य भी सत्य जैसा लगने लगता है ।
(४) प्रस्तुतीकरण का तरीका (Execution) : पेड मीडिया चैनलों के एंकर आपके ऊपर हावी होकर बात करना चाहते हैं । वे सिर्फ खबर बताना नहीं चाहते बल्कि आपको किसी भी तरीके से प्रभावित करना चाहते हैं ।
(५) भाषा (Language) : खबर को बहुत चटपटे शब्दों के द्वारा असामान्य तरीके से बताते हैं । ‘बात गम्भीर है, मामूली झड़प’ आदि शब्दों की जगह ‘संगीन, वारदात, गिरोह, बड़ा खुलासा, स्टिंग ऑपरेशन’ ऐसे शब्दों के सहारे मामूली मुद्दे को भी भयानक रूप दे देते हैं ।
(६) आधारहीन कहानियाँ बनाना (Making Baseless Stories) : ‘स्टिंग ऑपरेशन’ आदि आधारहीन कहानियाँ बनाकर मामले को रुचिकर बना के उलझाने की कोशिश करते हैं ।
(७) मुख्य हथियार (Major Tools) : बहुत सारे विडियो जो दिखाये जाते हैं वे तोड़-मरोड़ के बनाये जाते हैं । ऐसे ऑडियो टेप भी प्रसारित किये जाते हैं । यह टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग है । इसके अलावा कमजोर, नकारात्मक मानसिकतावालों को डरा के या प्रलोभन देकर उनसे बुलवाते हैं । आश्रम से निकाले गये २-४ भगोड़ों को मोहरा बनाते हैं ताकि झूठी विश्वसनीयता बढ़ायी जा सके ।
(८) मनोवैज्ञानिक वातावरण तैयार करना (Creating Psychological Environment) : आसाराम बापू की जमानत की सुनवाई से एक दिन पहले धमकियों की खबरें उछाली जाती हैं, कभी पुलिस को, कभी माता-पिता और लड़की को तो कभी न्यायाधीश को । ये खबरें कभी भी कुछ सत्य साबित नहीं हुर्इं ।
अब आप खुद से प्रश्न पूछिये और खुद ही जवाब ढूँढ़िये कि क्या ये आरोप सच हैं या एक सोची-समझी साजिस हैं
केवल पेड मीडिया चैनल ही नहीं बल्कि इसीके समान प्रिंट मीडिया भी खतरनाक तरीके से जनमानस को प्रभावित कर रहा है । इन दोनों से सावधान रहना चाहिए ।
-शिल्पा अग्रवाल,
प्रसिद्ध मनोविज्ञानी
-शिल्पा अग्रवाल,
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