Monday, March 16, 2020

कोरोना से डर है या उससे निर्भय हैं तो ये पढ़ लीजिये, क्या करना है अब ?

16 मार्च 2020

*🚩विश्‍वभर में जिस विषाणु ने उत्पात मचाया है, वह कोरोना विषाणु अब भारत में भी प्रवेश कर चुका है तथा दिल्ली, कर्नाटक, केरल, साथ ही महाराष्ट्र इन राज्यों में कोरोना ग्रस्त रोगी दिखाई दिए हैं । कोरोना विषाणु के कारण होनेवाला रोग संक्रमणकारी होने से नागरिकों में भय का वातावरण है । प्रसार माध्यम भी नागरिकों का भय बढाने का काम कर रहे हैं । इस विषाणु ने वैश्‍विक स्तर पर अर्थव्यवस्था, व्यापार, उद्योग, शिक्षा क्षेत्र आदि क्षेत्रों को भी प्रभावित किया है तथा विश्‍व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को महामारी घोषित किया है । इस पृष्ठभूमि पर कोरोना जैसे संकट के मूल में विद्यमान कारण और उसका मूलरूप से समाधान पर टिप्पणी करना आवश्यक होता है ।*

*🚩वास्तव में कोरोना विषाणु के फैलाव की गति भले ही अधिक हो; परंतु उसके कारण होनेवाली मृत्यु दर अधिक नहीं है; इसलिए नागरिकों को भयग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं है । विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के मतानुसार यह मृत्युदर केवल 3.5 प्रतिशत है । जिस देश में इस विषाणु की उत्पत्ति हुई, वह चीन भले ही भारत से सटा हुआ हो; परंतु विश्‍व के अन्य देशों की अपेक्षा भारत में कोरोना का संक्रमण इतने अधिक अनुपात में नहीं हुआ है, यह वास्तविकता है । इसका एक कारण भारत की भौगोलिक स्थिति हो; किंतु उसका प्रमुख कारण भारतीय संस्कृति के आचरण में भी है । सनातन हिन्दू धर्म ने जो धर्माचरण के कृत्य करने के लिए कहा है, वो कृत्य आध्यात्मिक, सामाजिक, साथ ही व्यक्तिगत स्तर पर लाभदायक है और वो विज्ञान की कसौटी पर भी खरे उतर रहे हैं । हाथ न मिलाकर हाथ जोडकर नमस्कार करने की अभिवादन की पद्धति उसी का एक अंग है ! कोरोना के भय के कारण से ही क्यों न हो; परंतु अभिवादन की इस पद्धति की वैश्‍विक स्तरपर प्रशंसा की जा रही है । केवल अभिवादन की पद्धति ही नहीं, अपितु भोजन की आदतें, भोजन बनाते समय उपयोग किए जानेवाले घटक, सोने की, दांत मांजने की और स्नान करने की पद्धति जैसे अनेक कृत्यों की नियमावली को आधुनिक भाषा में बताना हो, तो हिन्दू धर्म ने एस्ओपी#ज (मानक कार्यप्रणाली) बताई हैं । उनके आचरण में केवल व्यक्तिगत ही नहीं, अपितु सामाजिक और अंततः राष्ट्रीय हित भी समाहित है ।*

*••★अग्निहोत्र की आवश्यकता*

*🚩अधिकांश भारतीय शाकाहारी हैं । भारतीय खाद्य पदार्थों में हल्दी,आले जैसे संक्रमणविरोधी, साथ ही अन्य आयुर्वेदीय घटक समाहित होते हैं । खुलेपन के नाम पर पाश्‍चात्य लोग एक-दूसरे के बरतनों में स्थित बाईट (निवाला) लेने में भले ही स्वयं को धन्य मानते हों; परंतु भारतीय संस्कृति ने जूठा अन्न खाना अनुचित माना है । भोजन के पश्‍चात अथवा शौचकर्म के पश्‍चात टिश्यू पेपर से हाथ पोंछने की अपेक्षा भारतीयों को पानी से हाथ धोने की आदत है । बीच के एक कालखंड में आयुर्वेद, साथ ही भारतीय ज्ञान-परंपरा की बहुत उपेक्षा की गई; परंतु भारतीय समाज में आज भी धर्माचरण से जुडी कुछ पारंपरिक आदतें और पद्धतियां देखने को मिलती हैं । यदि सनातन हिन्दू धर्म द्वारा निर्देशित पद्धतियों के अनुसार तनिक भी आचरण करने से यदि इतना लाभ मिलता हो, तो संपूर्ण जीवनशैली को ही धर्माधिष्ठित बनाने का प्रयास किया, तो उससे कितना लाभ मिलेगा ? हिन्दू धर्म में वातावरण शुद्धि हेतु अग्निहोत्र बताया गया है । इस अग्निहोत्र में परमाणु विकिरण के संकट को भी टालने का सामर्थ्य है; परंतु अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति जैसे संगठन अभी भी अग्निहोत्र को अंधविश्‍वास कर उसका उपहास करते हैं । इससे बुद्धिवाद के ढोल पीटनेवाले अंनिसवालों का बौद्धिक दिवालियापन ही दिखाई देता है; परंतु उससे उनका कोई लेना-देना नहीं होता । जैसे किसी अंध व्यक्ति ने ‘सूरज नहीं है’, ऐसा कितना भी चिल्लाकर कहा, तो उससे वास्तविकता में कोई बदला नहीं होता, उसी प्रकार अंनिस जैसे स्वयं को आधुनिकतावादी माननेवाले संगठनों ने भारतीय संस्कृति पर चाहे कितना भी कीचड़ उछाला, तब भी उससे भारतीय संस्कृति में दोष उत्पन्न नहीं हो सकता । हिन्दू धर्म द्वारा बताई गई सभी बातें अनुभवजन्य हैं । उनका श्रद्धापूर्वक आचरण करनेवालों को उसका फल तो मिलता ही है । आजतक करोडों लोगों ने इसकी अनुभूति की है । भारतीय संस्कृति का प्रसार करने की, साथ ही विश्‍व को उसका महत्त्व विशद करने का यह एक अवसर पर है । कोरोना को एक हितकारी संकट मानकर भारत को इसका लाभ उठाना चाहिए ।*

*🚩ऐसी स्थिति में साधना ही तारणहार अनेक द्रष्ट संतों में आगामी काल में अनेक प्राकृतिक, साथ ही मनुष्यनिर्मित आपत्तियों की पहाड टूटने की भविष्यवाणी की है । ‘कोरोना’ का संक्रमण इसी की एक झलक है । इस संकटकाल का आरंभ होते ही सभी उपलब्ध तंत्रों के वेंटिलेटर पर जाने की स्थिति बनी है । इसलिए आगे भी जब इससे अधिक संकट आएंगे, तब क्या स्थिति होगी, इसकी केवल कल्पना ही की जा सकती है । किसे स्वीकार हो अथवा न हो; परंतु इस संकटकाल से पार होने हेतु केवल साधना ही तारणहार सिद्ध होगी, यह निश्‍चित है ! आजकल समाज में दिखाई देनेवाले संक्रामक रोग, महंगाई, युद्धजन्य स्थिति, बढता अपराधीकरण इनके तात्कालीन कारण प्रत्येक बार मिलेंगे ही; परंतु ‘कालचक्र’ ही इन सभी समस्याओं का वास्तविक मूल और उत्तर भी है ! स्थिर रहकर स्थिति का सामना करना संभव होने हेतु, साथ ही मन की स्थिरता को अखंडित बनाए रखने हेतु साधना ही महत्त्वपूर्ण होती है । साधना का बल हो, तो उससे व्यक्ति का आत्मिक बल तो बढता ही है; किंतु उसके साथ-साथ ईश्‍वर अथवा गुरु के प्रति की श्रद्धा किसी भी संकट का सामना करने का बल प्रदान कर व्यक्ति को निर्भय बनाती है । हिन्दुओं के पुराणों में दी गई कथाएं भी यही संदेश देते हैं । हिरण्यकशिपू द्वारा भक्त प्रह्लाद को बिना किसी कारण उबलते तेल में डाला जाना, उंची पहाडी से फेंका जाना तो प्रह्लाद के लिए भयावह स्थिति ही थी; परंतु भक्त प्रह्लाद के ईश्‍वरस्मरण में संलिप्त रहने से उन्हें इस संकट का दंश नहीं झेलना पडा । अतः इसी प्रकार से हमारे लिए भी ईश्‍वरभक्ति बढाना ही सभी समस्याओं का समाधान है ।*

*••★नमस्कार करें कोरोना से बचें !*

*🚩भारतीय संस्कृति के अनुसार व्यक्ति का अभिवादन दोनों हाथ जोडकर किया जाता है । हाथ मिलाकर (हैंडशेक कर) अभिवादन करने की पद्धति पश्‍चिमी है । नमस्कार करने से विषाणुओं के फैलने की संभावना बहुत घट जाती है ।*
*विश्‍व अब भारतीय संस्कृति के अनुसार नमस्कार करने का महत्त्व समझने लगा है । भारतीय भी अपनी संस्कृति का अनुसरण करें !*

*••★कोरोना विषाणु की बाधा से बचने के लिए ये करें !*

*🚩खांसते समय, छींकते समय चेहरे को टिश्यू पेपर अथवा रुमाल अथवा कुर्ते की बांह से ढंकें । (हाथ से बिलकुल स्पर्श न करें ।*

*🚩प्रयुक्त टिश्यू पेपर तुरंत कूडेदान में डालकर उसे ढंक दें ।*

*🚩रोगी की सेवा करनेवाले व्यक्ति को खांसी अथवा छींक आने पर वह हाथ को साबुन-पानी अथवा अल्कोहल मिश्रित घोल (सैनिटाइजर) से स्वच्छ करें ।*

*••★कोरोना विषाणुओं की बाधा से बचें !*

*🚩विषाणुओं से प्रदूषित परदेशगमन कक्ष में और टिकट कक्ष में जाने से बचें !*

*🚩सीढियों या उद्वाहक (लिफ्ट) के हैंडल्स को छूनेे के पश्‍चात बिना हाथ धोए चेहरा, आंखें अथवा नाक को स्पर्श न करें !*


*••★शंखध्वनि से कोरोना का खात्मा*

*🚩शंख की आकृति और पृथ्वी की संरचना समान है। नासा के अनुसार शंख बजाने से खगोलीय ऊर्जा का उत्सर्जन होता है, जो जीवाणु का नाश कर लोगों में ऊर्जा व शक्ति का संचार करता है। जहां तक शंख ध्वनि जाती है वहाँ तक हानिकारक बैक्टीरिया मूर्छित हो जाते हैं इसलिए अपने इलाके में शंख ध्वनि अवश्य करें।*

*🚩देशी गाय के गोबर में घी, कूपर आदि डालकर धूप करे जिससे वातावरण की शुद्धि होगी और हानिकारक बैक्टीरिया पनप नहीं पाएंगे।*

*🚩तुलसी, नीम और गिलोय के काढा भी जरूर पियें जिससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और कोरोना जैसे वायरस आप पर हमला नही कर पाएंगे।*


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