Sunday, June 30, 2019

मॉब लिंचिंग को हमेशा एक तरफा ही क्यों हाईलाइट किया जाता है ?


25 जून 2019
🚩देश में भीड़ द्वारा हत्या की जो घटनाएं सामने आई हैं, उसमें अधिकतर मरने वाले हिन्दू समुदाय से ही हैं और मारने वाले मुसलमान समुदाय से हैं, कुछ गिनी चुनी घटनाएं है जिसमें मरने वाले मुस्लिम हैं पर मीडिया और सेक्युलर लोग केवल तभी शोर शराबा करते हैं जब कोई मुसलमान मरता है, पर जब किसी हिन्दू की हत्या होती है तब एक छोटी सी खबर भी नहीं दिखाते हैं । भीड़ द्वारा किसी भी समुदाय के व्यक्ति की हत्या हुई हो उन सबका विरोध होना चाहिए, लेकिन यह जो दोगलापन है वह देश के लिए नुकसानदायक है, मीडिया ही धर्म के नाम पर उकसाती है और फिर बोलती है धर्म के नाम पर हत्या नहीं होनी चाहिए ।

🚩तबरेज़ अंसारी की घटना-
पिछले कुछ समय से तबरेज़ अंसारी का नाम मीडिया में छाया हुआ है । मोटरसाइकल चोरी के आरोप में तबरेज़ को भीड़ ने पीटा । घटना के 4 दिन बाद 22 जून को 24 साल के तबरेज़ की मृत्यु हो गई । इस घटना ने तूल पकड़ा मीडिया, सेक्युलर लोग शोर मचाने लगे । तबरेज़ अंसारी पर हमला करने वालों पर 302 (हत्या) और 295A (जानबूझ कर धार्मिक भावनाएं आहत करने और उसके खिलाफ हरकत करने) को लेकर धाराएं लगाई गई हैं ।
🚩दूसरी घटना गंगाराम की-
उत्तरप्रदेश पीपली उमरपुर निवासी गंगाराम की 15 वर्षीय बेटी 18/19 जून की रात को गायब हो गई थी । गंगाराम ने गांव के ही मुस्लिम समुदाय के युवक व उसके साथियों पर बेटी के अपहरण का आरोप लगाते हुए डिलारी पुलिस से शिकायत की थी । शिकायत पुलिस से करने पर आरोपियों ने उसके पिता गंगाराम को पीट-पीटकर मार डाला । गंगाराम के परिवार वालों की भी पिटाई की। पुलिस का कहना है कि किशोरी को गांव का ही नदीम फुसलाकर ले गया था । नदीम को गिरफ्तार कर किशोरी को बरामद कर लिया गया है।
🚩अब प्रश्न उठता है कि बेटी के अपहरण की शिकायत करने पर गंगाराम की पीटकर हत्या कर दी तो कोई खबर मीडिया में नहीं आई और ना ही किसी सेक्युलर ने शोर मचाया, लेकिन एक बाइक चोर को भीड़ पिटती है उसके बाद जेल जाता है और जेल जाने के बाद हॉस्पिटल में 4 दिन के बाद मौत होती है उसके लिए बहुत शोर मचाते हैं । नेता घर पहुँच जाते हैं पर गंगाराम के घर कोई नहीं जाता है और ना ही पूछता है।
🚩बता दें गाय का मांस घर में रखने वाले अखलाक पर बहुत शोर मचा था पर लस्सी के पैसे मांगने पर भरत यादव की पीटकर हत्या कर दी तब किसी ने भी आवाज नहीं निकाली । वैसे ही जम्मू की आसिफ़ा के केस में कई महीनों तक मीडिया ट्रायल चला पर ट्विंकल के लिए कोई मीडिया ट्रायल नहीं चला और ना ही कोई नेता घर गया और सेकुलर लोगों ने भी मौन धारण कर लिया ।
🚩जहां एक ओर तबरेज़ अंसारी को लेकर विवाद गहराता जा रहा है वहीं ट्विटर पर #BharatYadav ट्रेंड करने लगा था । भरत यादव मथुरा का वो लस्सी बेचने वाला था जिसे मुस्लिम भीड़ ने एक छोटे से विवाद के चलते मार डाला था।
🚩ट्विटर का ये सवाल एक तीखा प्रहार भी है । क्या वाकई भारत में अब सब कुछ मतलब से होने लगा है ? क्या सेक्युलर होना सिर्फ हिंदुओं को सिखाया जाता है ? जो भी घटनाएं हुईं वो गलत थी । चाहें वो हिंदू ने की या मुस्लिम की तरफ से हुई या ऐसी कोई घटना किसी और धर्म की तरफ से होती है तो भी वो गलत ही रहेगी ।
🚩पर Selective Outrage का मसला भारत में काफी समय से चला आ रहा है और इसे लेकर पहले भी काफी बहस हो चुकी है। जब तक इस तरह का सिलेक्टिव आउटरेज चलता रहेगा तब तक इस तरह की घटनाओं का होना चलता रहेगा। ट्विटर पर भरत यादव के ट्रेंड होने का भी यही कारण है।
🚩क्या ये ट्रेंड सही है?
ये एक बहुत बड़ी बहस का हिस्सा है और ये बिलकुल सहीं है कि अगर तबरेज़ को लेकर लोग दुःखी हो रहे हैं तो उन्हें भरत यादव को लेकर भी दुःखी होना चाहिए। दोनों ही मामलों में दो लोगों की जान गई है । अगर तबरेज़ को 'जय श्री राम' बोलने को कहा गया तो भरत यादव को भी 'काफिर' कहा गया । ये दोनों ही मामले एक ही जैसे थे । गलती किसकी, किसे दोष दिया जाए? भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता, लेकिन इन सब मामलों में कम से कम मरने वालों के लिए एक समान शोक तो व्यक्त किया ही जा सकता है। भरत यादव ने भी एक तरह से अपना काम ही किया था, लेकिन उसे किस बात की सज़ा मिली?
🚩बता दें कि 1 फरवरी 2018 को दिल्ली के अंकित सक्सेना को मार डाला गया था । बीच चौराहे उसका गला काट दिया गया था क्योंकि वो एक मुस्लिम लड़की से प्यार करता था । 23 साल का अंकित अपने घर में एकलौता लड़का था ।
दिल्ली में बेटी छेड़ने का विरोध करने पर पूरा परिवार मिलकर ध्रुव त्यागी और उसके बेटे को चाकुओं से गोद देता है जिसनें ध्रुव त्यागी की मृत्यु हो जाती है ।
🚩यूपी के शिकोहाबाद में दलित युवक विद्याराम की घर से खींचकर हत्या परवेज रेहान और युसूफ हत्या कर देते हैं।
कर्नाटक में गौ तस्करी विरोध करने पर शिवू को बस स्टैंड में फांसी पर लटकाकर मार देते हैं ।
🚩जहां एक ओर तबरेज़, मोहम्मद अखलाख, पहलू खान की मौत पर बाकायदा डिबेट होती है, मीडिया पर मुस्लिमों के खिलाफ होने वाले अपराधों को गिनवाया जाता है। पर हिंदुओं की हत्या क्यों नहीं गिनवाई जा रही है? वहां इतना सिलेक्टिव विरोध क्यों?
🚩मृत्यु चाहे जिस भी पक्ष के इंसान की हो हमला करने वाली तो भीड़ ही होती है । क्यों नहीं ये कहा जा सकता कि इन मामलों में मरने वाले इंसान थे । मीडिया, सेकुलर लोगों द्वारा जबतक एक तरफा रंग ऐसे मामलों को दिया जाता रहेगा तब तक ऐसे किस्से बढ़ते रहेंगे । ये सोचने वाली बात है कि क्या वाकई हम इसे रोकने के लिए प्रयास कर रहे हैं या फिर इस तरह के मुद्दों से अपना गुस्सा बढ़ा रहे हैं और नफरत पैदा कर रहे हैं?
🚩पहले तो ऐसे मामले होने नहीं चाहिए, अगर होते हैं तो उसको रोकने के लिए कानून है, उसे काम करने देना चाहिए । एक तरफा डिबेट बैठाकर हिंदुओं को नीचा दिखाना आपस मे लड़ना-भिड़ना यह उचित नहीं है। इसपर रोक लगनी चाहिए ।
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