Sunday, February 19, 2017

न्याय प्रणाली में सुधार कब : अक्षय कुमार

बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार ने न्यायप्रणाली को लेकर किया बड़ा खुलासा!!

DNA स्टूडियों में आये अभिनेता अक्षय कुमार ने बताया कि अक्सर जब भी लोग किसी एक्टर को देखते हैं तो सोचते हैं कि जरूर किसी फिल्म की प्रमोशन करने आया होगा । 
लेकिन मैं यहाँ एक जरुरी मुद्दे का प्रमोशन करने आया हूँ ।

हाल ही में मैंने एक फिल्म की है और इस फिल्म पर ध्यान देते हुए मैंने काफी रिसर्च किया । जाहिर सी बात है कि सारी बातें फिल्मों में जोड़ी नही जा सकती इसलिए मुझे लगा कि DNA का हिस्सा बने इंडिया के जुडिशल सिस्टम पर आपके साथ कुछ डिसकशन करूँ।
DNA: Exclusive talk with Akshay Kumar over judiciary

आज भी हिंदुस्तान में कोई अन्याय होता है या झगड़ा सुलझ नहीं पाता तो लोग ये कहते कि "I will see you in Court" अब मैं अदालत जाऊंगा और इंसाफ के लिए लड़ूंगा । 

जरा सोचो! ये जो लोग बातें करते हैं तो उनके मन में भारत के कानून और जुडिशरी के लिए कितनी इज्जत होगी!
कितना विश्वास होता है कि मुझे इंसाफ मिलेगा ।

लेकिन जब आप अदालत जाते हो तो क्या वो इंसाफ इतनी आसानी से आपको मिल जाता है..?? 

इस सवाल का जवाब हाँ भी है और ना भी है । 
कुछ लोगो को इंसाफ मिल भी जाता है कुछ को नहीं भी मिलता । हमारे देश में इंसाफ पाने का रास्ता मुश्किल भी है और लंबा भी । 
जिस देश में साढ़े तीन करोड़ मुकदमें लटके हुए हों उस देश में इंसाफ सदा रेड लाइट पर खड़ा रहता है । मुकदमों का ये ट्राफिक जाम कब और कैसे खुलेगा ?? 

यही बड़ा सवाल है !!

हालांकि मुझे विश्वास है खुलेगा जरूर!
इस सवाल पर ही हम बात करेंगे ।

आज मैं आपका ध्यान इस मुद्दे पर लाना चाहता हूँ कि कुछ तो है जो ठीक नहीं हो रहा और कुछ है जो ठीक करना पड़ेगा, बदलना पड़ेगा ।

आज मैं आपको ऐसा कुछ दिखाऊंगा जो आपकी आंखें हमेशा-हमेशा के लिए खोल देगा। मैं निराशा में विश्वास नहीं रखता हूँ आशावादी हूँ मैं ।

मैं आपको भारत की न्यायपालिका से जुड़े कुछ आंकड़े बताना चाहता हूँ ।

 अभी इस देश में अदालत में 3 करोड़ से भी अधिक मुकदमें लटके हुए हैं ❗❗ यानि कि pending ❗❗

 इसमें से करीब 60,000 cases सुप्रीम कोर्ट में, जबकि देश के हाई कोर्ट में 2013 तक 41 लाख 53 हजार मुकदमों पर फैसला नही हो पाया ।

देश में जजों की इतनी कमी है कि अगर इंसाफ समय पर मिल जाय तो वो रिसर्च का विषय बन जाये ।

आपको जान कर हैरानी होगी कि हर 10 लाख लोगों पर सिर्फ 17 जज हैं । जबकि 1987 में ही LOW कमीशन ने 10 लाख लोगों पर 50 जज होने की सिफारिश की थी । देशभर की अदालतों में judges के 5 हजार 433 पद खाली है । देश भर की अदालतों में 10% केस ऐसे हैं जो 10 सालों से भी ज्यादा समय से pending हैं ❗❗

ये आंकड़े बताते है कि देश की अदालतें और जज मुकदमों के बोझ से दबे हुए हैं । अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि विदेशों में क्या हालत है । हम अपनी न्यायव्यवस्था को कैसे बेहतर बना सकते हैं।

भारत में 10 लाख लोगों पर सिर्फ 17 जज हैं । लेकिन अमेरिका में 10 लाख लोगों पर 107 जज हैं, केनेडा में 10 लाख लोगों पर 75 जज हैं और ऑस्ट्रेलिया में 10 लाख लोगों पर 42 जज ।

ये बताना भी जरुरी है कि इन देशों की पाप्यूलेशन भारत से बहुत कम है । कम पॉप्युलेशन के बावजूद इन देशों में जजो की संख्या भारत से कई ज्यादा है ।

यहाँ चीन का example आपको काफी हैरान कर देगा चीन की पॉपुलेशन भारत से ज्यादा है पर आपको ये जान कर हैरानी होगी कि चीन में हर 10 लाख लोगों पर करीब 140 जज हैं । यानि भारत के मुकाबले Ratio  करीब 8 गुना ज्यादा है । 

कहने का मतलब ये है कि अगर भारत चाहे तो बहुत कुछ कर सकता है और हमें इस दिशा में बड़े कदम उठाने ही होंगे ।

मैं एक एक्टर हूँ और आज मैं अपनी और फिल्म इंडस्ट्री की भी एक बात करना चाहता हूँ । आपने ध्यान दिया होगा कि हमारे देश में जितनी भी फिल्में बनती है उनमें से ज्यादातर फिल्मों में कोर्ट का कोई न कोई सीन जरूर होता है । क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों है? 

इसका कारण यही है कि कोर्ट हमारे जीवन का एक हिस्सा बन चुका है । आप में से कई लोगों ने कोर्ट कचेरी के चक्कर लगाये होंगे । अगर आपका कोर्ट से वास्ता नहीं पड़ा होगा तो आपके आस-पास कई लोग ऐसे होंगे जो आपको जुडिशरी के कड़वे अनुभव बताते होंगे ।

ज्यादातर लोग यही सलाह देते होंगे कि यार कोर्ट कचेरी के चक्कर से जितना दूर रहो उतना ही अच्छा है । सवाल ये है कि आजादी के 69 साल बाद भी ऐसी स्थिति क्यों बनी है ❓❓

जब आम आदमी बेसिस सिस्टम से नहीं जीत पाता,जब आम आदमी बहु बलि से हारने लगता है, जब आम आदमी की कोई नही सुनता तो उसे अदालत की शक्ल में एक उम्मीद दिखाई देती है ।
 वो उम्मीद जिसके सहारे वो अपनी खोई हुई इज्जत पा सकता है ।
 वो उम्मीद जिससे वो बेईमानों को उसकी असली जगह पहुँचा सकता है।
 वो उम्मीद जो उसे सफेद झूठ बोलने वालों से लड़ने की प्रेरणा देती है ।

लेकिन उम्मीदों का गठ्ठर उठाये जब आम आदमी अदालत के दरवाजे पहुँचता है तब पता चलता है कि उसे अदालतों के फैसले और अपनी जीत के बीच लंबा सफर तय करना होगा।
 इस सफर के दौरान वकील बहरे हो जाते हैं , जज बदल जाते हैं ,फाइलें मोटी हो जाती हैं , अदालतों की दीवारें पुरानी होने लगती है,मौसम आने-जाने लगते हैं पर अदालत से आस लगाने वालों का आँगन सूखा ही रहता है ।

कई बार तो फैसले आने से पहले ही गुहार लगानेवाला इस दुनिया से चला जाता है  । लेकिन अदालतें अपना काम करती है कोर्ट कचेरी के चक्कर पर चक्कर लगाना । कोई नहीं चाहता पर हारा हुआ आदमी कोर्ट में मिलने की ही धमकी देता है ।

अदालतें भी ये सब देख रही हैं । आँसू सिर्फ अदालतों के चक्कर काटनेवालों की आँखों में ही नहीं । बल्कि ये दर्द उन लोगो का भी है जिनके कन्धों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी है यानि न्याय देने की जिम्मेदारी । फैसला सुनाने की जिम्मेदारी,इंसाफ देने की जिम्मेदारी ।

मुझे याद है जब मैं छट्ठी क्लास में था तब मेरे गणित के पेपर में एक सवाल पूछा गया था कि एक सड़क 5 आदमी 10 दिन में बनाते हैं अगर वही सड़क एक दिन में बनानी हो तो कितने आदमी चाहिए ? उसका जवाब है 50 आदमी चाहिए ।

38 लाख और 66 हजार cases इनको निपटाने के लिए कितने आदमी चाहिए ? 
कितने जज चाहिए? 
ये बात हम क्यों नहीं समझते ??

अदालतें मिनटों में न्याय नहीं कर सकती, न्याय संभल कर किया जाता है, सभी तथ्यों को जानने के बाद । लेकिन अब न्याय देनेवालों की संख्या इतनी कम होगी तो इंसाफ का रास्ता लंबा होता जाएगा । शायद इसलिए ही कहते हैं - "justice delay is justice denied"

1950 में 10 लाख लोगों के लिए 8 जज थे,1215 cases और एक दशक बाद 1960 में 14 जज थे 3247 cases !!

1977 में जज की संख्या 18 हुई तो cases 14,301 हुए !!

1986 में जज 26 हुए तो मुकदमें 27,881 !!

2009 में जज 31 हुए तो केस बढ़कर 77,151 हो गए !!

2014 में जजो की संख्या नहीं बड़ी पर केस 81,553 हो गए !!

कानून के हाथ जरूर लंबे होते हैं पर न्याय दिलानेवाले वकीलों का दिल बड़ा नहीं होता । वो मोटी फीस तो जरूर वसूलते हैं लेकिन न्याय दिलाने में अक्सर देर लगा देते हैं । 
हाँ,अगर न्याय मांगने वाला अमीर और वसूलदार हो तो बिना जंग लड़े जस्टिस मिल जाता है ।

जबकि बाकियों की उम्मीदों को सिस्टम की दीवारों पर लगा तिमिर खा जाता है ।

लेकिन फिर भी आम आदमी की उम्मीद खत्म नहीं होती । क्योंकि न्याय देने वाली बेबी जिनकी आँखों पर पट्टी बंधी है बिना किसी भेदभाव के न्याय दिलाएगी । उसका तराजू सबूतों को तोलता है आदमी के मंसूबो को नहीं । उसकी तलवार अन्याय को काटती है,उम्मीदों को नहीं । 

और उसका फैसला कार्यवाही के मुताबिक ही होता है उम्मीदों के नहीं!!

यहाँ मैं आपको एक हैरान करने वाली बात यह भी बताना चाहता हूँ कि काला कोट पहनकर, हाथ में कानून की मोटी किताब उठाकर, कचेरी में टहलनेवाला हर व्यक्ति सच में वो वकील ही हो इसकी कोई गारंटी नहीं है ❗❗

 Bar conscill of india आज कल देश की अलग अलग अदालतों में प्रेक्टिस करनेवाले वकीलों को verify कर रही है । इस प्रोसेस में Bar conscill of india ने अनुमान लगाया है कि हमारे देश में कम से कम 40% वकील नकली हैं । ऐसे वकीलों में से कुछ वकील फर्जी डिग्री के आधार पर अदालत में प्रेक्टिस कर रहें हैं और कुछ ऐसे भी है जिन्होंने कभी भी कानून की कोई शिक्षा हासिल ही नहीं की । verification की ये प्रोसेस अभी जारी है इसीलिए ये बता पाना मुश्किल है कि देश में किस हिस्से में सबसे ज्यादा फर्जी वकील है । पर इतना तो जरूर है कि हमारे सिस्टम में बड़े पैमाने पर बेईमानी जरूर हो रही है ।

आपने देखा होगा कि हमारे देश में बहुत वकील ऐसे हैं जो लोगो को इंसाफ दिलाने की जगह अपराधियों को बचाने में जुट जाते हैं । इसलिए सबूतों को मिटाया जाता है गवाहों को पीटा जाता है, कई बार चालाकी से मुकदमों को लटकाया जाता है लंबा खीचा जाता है । इन सब के बीच जो इंसाफ के लिए कोर्ट में गया होता है, वो निराश हो जाता है । ऐसे बईमान वकील अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते । यहाँ मैं साफ कर देना चाहता हूँ सारे वकील बुरे नहीं होेते । बुरे लोगों के बीच अच्छे वकील भी जरूर होते है वो अपना काम पूरी ईमानदारी से करते है..!!


अक्षय कुमार ने सच ही कहा है कि निर्दोष व्यक्ति को न्याय नही मिल रहा और अपराधी को सजा नही मिल रही ।
 न्याय मिलता भी है तो इतना देरी से कि जब निर्दोष न्याय की उम्मीद ही खो चुका होता है।

हमारी पंगु न्याय व्यवस्था के शिकार कब तक निर्दोष लोग होंगे ?

न्याय व्यवस्था में हो जल्द सुधार!
निर्दोष को न्याय और दोषी को मिले सजा!
सुव्यवस्थित हो प्रशासन की चाल-ढाल!!

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