
गंगा की महिमा
(गंगा दशहरा : 5 से 14 जून)

#कपिल_मुनि के कोप से सगर राजा के पुत्रों की #मृत्यु हो गयी । राजा सगर को पता चला कि उनके पुत्रों के उद्धार के लिए माँ गंगा ही समर्थ हैं ।

अतः गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए सगर के पौत्र #अंशुमान, अंशुमान के पुत्र #दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ घोर #तपस्या में लगे रहे ।


आखिरकार #भगीरथ सफल हुए गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में । इसलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी भी है । जिस दिन गंगा पृथ्वी पर #अवतरित हुर्इं वह दिन ‘गंगा दशहरा के नाम से जाना जाता है ।

जगद्गुरु आद्य शंकराचार्यजी, जिन्होंने कहा है : एको ब्रह्म द्वितियोनास्ति । द्वितियाद्वैत भयं भवति ।। उन्होंने भी ‘#गंगाष्टक लिखा है, गंगा की महिमा गायी है ।

#रामानुजाचार्य, #रामानंद स्वामी, #चैतन्य महाप्रभु और स्वामी रामतीर्थ ने भी गंगाजी की बडी महिमा गायी है ।

कई #साधु-संतों, #अवधूत-मंडलेश्वरों और जती-जोगियों ने गंगा माता की कृपा का अनुभव किया है, कर रहे हैं तथा बाद में भी करते रहेंगे ।

अब तो #विश्व के #वैज्ञानिक भी गंगाजल का परीक्षण कर दाँतों तले उँगली दबा रहे हैं ! उन्होंने दुनिया की तमाम नदियों के जल का परीक्षण किया परंतु #गंगाजल में रोगाणुओं को नष्ट करने तथा आनंद और सात्त्विकता देने का जो अद्भुत गुण है, उसे देखकर वे भी #आश्चर्यचकित हो उठे ।

#हृषिकेश में #स्वास्थ्य-अधिकारियों ने पुछवाया कि यहाँ से हैजे की कोई खबर नहीं आती, क्या कारण है ? उनको बताया गया कि यहाँ यदि किसीको हैजा हो जाता है तो उसको गंगाजल पिलाते हैं । इससे उसे दस्त होने लगते हैं तथा हैजे के #कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और वह स्वस्थ हो जाता है । वैसे तो हैजे के समय घोषणा कर दी जाती है कि पानी उबालकर ही पियें किंतु #गंगाजल के पान से तो यह रोग मिट जाता है और केवल हैजे का रोग ही मिटता है ऐसी बात नहीं है, अन्य कई रोग भी मिट जाते हैं ।

तीव्र व दृढ #श्रद्धा-भक्ति हो तो गंगास्नान व गंगाजल के पान से जन्म-मरण का रोग भी मिट सकता है ।

सन् #1947 में जलतत्त्व विशेषज्ञ कोहीमान भारत आया था । उसने #वाराणसी से गंगाजल लिया । उस पर अनेक परीक्षण करके उसने विस्तृत लेख लिखा, जिसका सार है - ‘इस जल में #कीटाणु-रोगाणुनाशक विलक्षण शक्ति है।'

#दुनिया की तमाम नदियों के जल का विश्लेषण करनेवाले बर्लिन के डॉ. जे. ओ. लीवर ने सन् 1924 में ही #गंगाजल को विश्व का सर्वाधिक स्वच्छ और #कीटाणु-रोगाणुनाशक जल घोषित कर दिया था ।

‘आइने अकबरी में लिखा है कि ‘#अकबर गंगाजल मँगवाकर आदरसहित उसका पान करते थे । वे #गंगाजल को #अमृत मानते थे ।

#औरंगजेब और #मुहम्मद #तुगलक भी गंगाजल का पान करते थे । शाहनवर के नवाब केवल गंगाजल ही पिया करते थे ।

#कलकत्ता के हुगली जिले में पहुँचते-पहुँचते तो बहुत सारी #नदियाँ, झरने और नाले #गंगाजी में मिल चुके होते हैं ।

#अंग्रेज यह देखकर हैरान रह गये कि हुगली जिले से भरा हुआ गंगाजल दरियाई मार्ग से #यूरोप ले जाया जाता है तो भी कई-कई दिनों तक वह बिगड़ता नहीं है । जबकि यूरोप की कई बर्फीली नदियों का पानी हिन्दुस्तान लेकर आने तक खराब हो जाता है ।

अभी #रुड़की #विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक कहते हैं कि ‘गंगाजल में जीवाणुनाशक और हैजे के कीटाणुनाशक तत्त्व विद्यमान हैं ।
एक बार मैंने #गंगोत्री से गंगाजल भरा । उसके बाद मैं आबू गया । आबू की गुफा में रहकर मैं साधना करता था, वहाँ दो-तीन #वर्षों के बाद भी उस जल में कोई काई या जीवाणु नहीं दिखे । पानी एकदम #साफ-स्वच्छ रहा ।

#फ्रांसीसी चिकित्सक हेरल ने देखा कि गंगाजल से कई रोगाणु नष्ट हो जाते हैं । फिर उसने गंगाजल को #कीटाणुनाशक #औषधि मानकर उसके #इंजेक्शन बनाये और जिस रोग में उसे समझ न आता था कि इस रोग का कारण #कौन-से #कीटाणु हैं, उसमें #गंगाजल के वे #इंजेक्शन #रोगियों को दिये तो उन्हें लाभ होने लगा !

#संत #तुलसीदासजी कहते हैं :
गंग सकल मुद मंगल मूला । सब सुख करनि हरनि सब सूला ।।
(श्रीरामचरित. अयो. कां. : ८६.२)

सभी सुखों को देनेवाली और सभी शोक व दुःखों को हरनेवाली #माँ_गंगा के तट पर स्थित तीर्थों में पाँच #तीर्थ विशेष आनंद-उल्लास का अनुभव कराते हैं :
गंगोत्री, हर की पौडी (#हरिद्वार), प्रयागराज #त्रिवेणी, #काशी और गंगासागर

#गंगा_दशहरे के दिन #गंगा में गोता मारने से सात्त्विकता, प्रसन्नता और विशेष पुण्यलाभ होता है ।
(संटी श्री आसारामजी आश्रम से प्रकाशित #ऋषि_प्रसाद से)
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