#महात्मा #कबीर का जीवन परिचय
20 जून 2016 #जयंती
जन्म-काल
#महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब #भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की #राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक #अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी।
20 जून 2016 #जयंती
जन्म-काल
#महात्मा कबीर का जन्म ऐसे समय में हुआ, जब #भारतीय समाज और धर्म का स्वरुप अधंकारमय हो रहा था। भारत की #राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक #अवस्थाएँ सोचनीय हो गयी थी।
एक तरफ #मुसलमान #शासकों की #धर्मान्धता से #हिन्दू त्राहि- त्राहि कर रहे थे और दूसरी तरफ कई हिंदूओं के कर्मकांडों, विधानों एवं पाखंडों से धर्म- बल का ह्रास हो रहा था।
जनता के भीतर भक्ति- भावनाओं का सम्यक प्रचार नहीं हो रहा था। सिद्धों के पाखंडपूर्ण वचन, समाज में वासना को प्रश्रय दे रहे थे।
#नाथपंथियों के अलख निरंजन में लोगों का ह्रदय रम नहीं रहा था। ज्ञान और भक्ति दोनों तत्व केवल ऊपर के कुछ धनी, पढ़े- लिखे लोगों की बपौती के रुप में दिखाई दे रहा था।
ऐसे नाजुक समय में एक बड़े एवं भारी समन्वयकारी महात्मा की आवश्यकता समाज को थी, जो राम और रहीम के नाम पर आज्ञानतावश लड़ने वाले लोगों को सच्चा रास्ता दिखा सकें। ऐसे ही संघर्ष के समय में, मस्तमौला कबीर जी का प्रार्दुभाव हुआ।
जन्म...
महात्मा कबीर के जन्म के विषय में भिन्न- भिन्न मत हैं। "कबीर कसौटी' में इनका जन्म संवत् 1455 दिया गया है।
""भक्ति- #सुधा- बिंदु- स्वाद'' में इनका जन्मकाल संवत् 1451 से संवत् 1552 के बीच माना गया है।
""कबीर- चरित्र- बाँध'' में इसकी चर्चा कुछ इस तरह की गई है, संवत् चौदह सौ पचपन (1455) विक्रमी ज्येष्ठ सुदी पूर्णिमा सोमवार के दिन, एक प्रकाश रुप में सत्य पुरुष काशी के "लहर तारा'' (लहर तालाब) में उतरे।
उस समय पृथ्वी और आकाश प्रकाशित हो गये। समस्त तालाब प्रकाश से जगमगा गया। हर तरफ प्रकाश ही प्रकाश दिखने लगा, फिर वह प्रकाश तालाब में ठहर गया। उस समय तालाब पर बैठे अष्टानंद वैष्णव आश्चर्यमय प्रकाश को देखकर आश्चर्य- चकित हो गये। लहर तालाब में महा- ज्योति फैल चुकी थी। #अष्टानंद जी ने यह सारी बातें #स्वामी #रामानंद जी को बतलायी, तो स्वामी जी ने कहा कि वह प्रकाश एक ऐसा प्रकाश है, जिसका फल शीघ्र ही तुमको देखने और सुनने को मिलेगा तथा देखना उसकी धूम मच जाएगी ।
एक दिन वह प्रकाश एक बालक के रुप में जल के ऊपर कमल- पुष्पों पर बच्चे के रुप में पाँव फेंकने लगा।
इस प्रकार एक #पुस्तक कबीर के जन्म की चर्चा करती है :-
""चौदह सौ पचपन गये, चंद्रवार, एक ठाट ठये।
जेठ सुदी बरसायत को पूनरमासी प्रकट भये।।''
जेठ सुदी बरसायत को पूनरमासी प्रकट भये।।''
जन्म स्थान
कबीर ने अपने को काशी का जुलाहा कहा है। कबीर #पंथी के अनुसार उनका निवास स्थान काशी था। बाद में कबीर एक समय #काशी छोड़कर मगहर चले गए थे। ऐसा वह स्वयं कहते हैं :-
""सकल जनम शिवपुरी गंवाया।
मरती बार मगहर उठि आया।।''
मरती बार मगहर उठि आया।।''
कहा जाता है कि कबीर का पूरा जीवन काशी में ही गुजरा, लेकिन वह मरने के समय मगहर चले गए थे।
वह न चाहकर भी मगहर गए थे।
वह न चाहकर भी मगहर गए थे।
""अबकहु राम कवन गति मोरी।
तजीले बनारस मति भई मोरी।।''
तजीले बनारस मति भई मोरी।।''
कहा जाता है कि निंदकों ने उनको मगहर जाने के लिए मजबूर किया था। वह चाहते थे कि आपकी मुक्ति न हो पाए, परंतु कबीर तो काशी मरन से नहीं, राम की भक्ति से मुक्ति पाना चाहते थे :-
""जौ काशी तन तजै कबीरा
तो रामै कौन निहोटा।''
तो रामै कौन निहोटा।''
कबीर के माता- पिता
कुछ लोगों के अनुसार वे रामानन्द स्वामी के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे, जिसको भूल से रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया था। ब्राह्मणी उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक आयी।
कबीर के माता- पिता के विषय में एक राय निश्चित नहीं है कि कबीर "नीमा' और "नीरु' की वास्तविक संतान थे या नीमा और नीरु ने केवल इनका पालन- पोषण ही किया था। कहा जाता है कि नीरु जुलाहे को यह बच्चा लहरतारा ताल पर पड़ा पाया, जिसे वह अपने घर ले आये और उसका पालन-पोषण किया। बाद में यही बालक कबीर कहलाया।
कबीर ने स्वयं को जुलाहे के रुप में प्रस्तुत किया है -
"जाति जुलाहा नाम कबीरा
बनि बनि फिरो उदासी।'
बनि बनि फिरो उदासी।'
#ग्रंथ साहब के एक पद से विदित होता है कि कबीर अपने वयनकार्य की उपेक्षा करके हरिनाम के रस में ही लीन रहते थे।
पत्नी और संतान...
कबीरजी की पत्नी का नाम लोई था।
जनश्रुति के अनुसार कबीर के एक पुत्र कमल तथा पुत्री कमाली थी। इतने लोगों की परवरिश करने के लिये उन्हें अपने घर पर काफी काम करना पड़ता था। साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था।
जनश्रुति के अनुसार कबीर के एक पुत्र कमल तथा पुत्री कमाली थी। इतने लोगों की परवरिश करने के लिये उन्हें अपने घर पर काफी काम करना पड़ता था। साधु संतों का तो घर में जमावड़ा रहता ही था।
कबीर जी की दीक्षा
श्री रामानंदजी से दीक्षा लेने के लिए एक दिन कबीर #पञ्चगंगा घाट की सीढ़ियों पर सो गए थे, रामानन्द जी उसी समय गंगास्नान करने के लिये सीढ़ियाँ उतर रहे थे कि उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल `राम-राम' शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मन्त्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में- `हम का सही में प्रकट भये हैं, रामानन्द चेताये'।
उस समय हिंदु जनता पर #मुस्लिम आतंक का कहर छाया हुआ था। कबीर ने अपने पंथ को इस ढंग से सुनियोजित किया जिससे मुस्लिम मत की ओर झुकी हुई जनता सहज ही इनकी अनुयायी हो गयी। उन्होंने अपनी भाषा सरल और सुबोध रखी ताकि वह आम आदमी तक पहुँच सके। इससे दोनों सम्प्रदायों के परस्पर मिलन में सुविधा हुई। इनके पंथ मुसलमान-#संस्कृति और गोभक्षण के विरोधी थे।
अन्य जनश्रुतियों से ज्ञात होता है कि कबीर ने हिंदु-मुसलमान का भेद मिटा कर हिंदू-भक्तों तथा मुसलमान फक़ीरों का #सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को आत्मसात कर लिया।
आप के समस्त विचारों में रामनाम की महिमा प्रतिध्वनित होती है। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के विरोधी थे।
कबीर के नाम से मिले ग्रंथों की संख्या भिन्न-भिन्न लेखों के अनुसार भिन्न-भिन्न है। एच.एच. विल्सन के अनुसार कबीर के नाम पर आठ ग्रंथ हैं। विशप जी.एच. वेस्टकॉट ने कबीर के ८४ ग्रंथों की सूची प्रस्तुत की तो रामदास गौड ने `हिंदुत्व' में ७१ पुस्तकें गिनायी हैं।
कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- रमैनी, सबद और सारवी यह #पंजाबी, #राजस्थानी, खड़ी बोली, #अवधी, पूरबी, व्रजभाषा आदि कई #भाषाओं की खिचड़ी है।
कबीर परमात्मा को मित्र, माता, पिता और पति के रूप में देखते हैं। यही तो मनुष्य के सर्वाधिक निकट रहते हैं। वे कभी कहते हैं-
`हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया' तो कभी कहते हैं, `हरि जननी मैं बालक तोरा'
119 वर्ष की अवस्था में मगहर में कबीर का देहांत हो गया। कबीरदास जी का व्यक्तित्व संत कवियों में अद्वितीय है। हिन्दी साहित्य के 1200 वर्षों के इतिहास में गोस्वामी तुलसीदास जी के अतिरिक्त इतना प्रतिभाशाली व्यक्तित्व किसी कवि का नहीं है।
कबीरजी जैसे संत का भी निंदकों ने किया था #दुष्प्रचार
कबीरजी को निंदक लोग कहते थे कि तुम बिगड गये । 'बिगड गये... बिगड गये प्रचार करके कबीरजी के यहाँ #षडयंत्रकारियों ने एक वेश्या भेजी । कबीरजी उस समय सत्संग कर रहे थे । भरी सभा के बीच आकर वेश्या कहती है : "क्यों बलमा ! रात भर तो बिस्तर पर मेरे साथ थे और अभी संत होकर बैठे हो ! तुमने कहा था कि तेरा हाथ नहीं छोडूँगा और अभी भूल गये, बलमा !
कबीरजी समझ गये कि यह कुप्रचार करनेवालों की भेजी हुई कठपुतली है । वे बोले : "नहीं... हम हाथ क्यों छोडेंगे ?
वेश्या : "तो फिर चलो न मेरे साथ ।
कबीरजी ने 'चलो कहकर वेश्या का हाथ पकड लिया । आज तक तो निंदक अफवाह फैलाते थे कि 'कबीर #मांसाहारी है... कबीर #वेश्यागामी है... कबीर शराबी है... लेकिन आज तो सचमुच में कबीरजी ने वेश्या का हाथ पकड लिया और बाजार में निकल पडे एक हाथ में बोतल है और दूसरे हाथ में #वेश्या का हाथ ।
निंदकों को कुप्रचार का और मौका मिल गया । उन्होंने काशीनरेश को जाकर बहकाया : "आप जिसको गुरु मानते हो, देखो जरा उसके कारनामें । आपकी बुद्धि, मति भी मलिन हो गई है । ऐसे आदमी को गुरु मानकर उसकी पूजा करने से आपके राज्य का अनिष्ट होनेवाला है । धर्म का नाश कर दिया है आपने । धर्म खतरे में है ।
संत कबीरजी के ऊपर लांछन लगे काशीनरेश कहता है कि "महाराज ! अभी भी सुधर जाओ तो मैं आपको माफ कर सकता हूँ । पण्डे आज तक तो आपके खिलाफ बकवास करते थे लेकिन आज तो आपके एक हाथ में वेश्या का हाथ और दूसरे हाथ में शराब की बोतल देखकर मुझे कहना पडता है कि महाराज ! आप क्यों बिगड गये ? आपकी इज्जत का सवाल है । मेरे जैसा शिष्य, मेरे जैसा काशीनरेश आपके आगे मस्तक झुकाता है और फिर आप वेश्या का हाथ पकडे हुए, शराब की बोतल हाथ में लिये हुए हैं !...
कबीरजी बोलते हैं :
सुनो मेरे भाइयो ! सुनो मेरे मितवा !
कबीरो बिगड गयो रे ।
दही संग दूध बिगड्यो, मक्खनरूप भयो रे ।
पारस संग भाई ! लोहा बिगड्यो,
कंचनरूप भयो रे । कबीरो बिगड गयो रे ।
संतन संग दास कबीरो बिगड्यो-२
संत कबीर भयो रे । कबीरो बिगड गयो रे ।
अपनी मान्यता का जो अहं था वह बिगड गया । अहं बिगड गया तो आदमी का चित्त परमात्मा में स्थिर हो जाता है । संत कबीरजी कह रहे हैं काशीनरेश की सभा में... इतने में कबीरजी के हाथ में जो बोतल थी दारू की, दारू तो थी नहीं दारू की जगह पानी भरा था, कबीरजी ने उसकी धार कर दी ।
काशीनरेश ने पूछा :"महाराज ! यह क्या किया, दारू क्यों गिरा दी ?
बोले :"#जगन्नाथपुरी में भगवान का प्रसाद बनानेवाले रसोइये के कपडों में आग लगी है, जरा मैं वह बुझा रहा हूँ ।
"जगन्नाथपुरी और यहाँ... !
बोले :"हाँ ।
आदमी भेजे गये तो देखा कि जगन्नाथपुरी में वास्तव में आग लगी थी और एकाएक कुछ गीला-गीला-सा हो गया और वह आदमी बच गया । फिर काशीनरेश को अपनी गलती महसूस हुई कि यह संत को बदनाम करने का कोई #षड्यंत्र था । उसने कबीरजी से माफी माँगी ।
कबीर को शांतिमय जीवन प्रिय था और वे #अहिंसा, #सत्य, #सदाचार आदि गुणों के #प्रशंसक थे। वे सरलता, #साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के थे । लेकिन हर युग में संतों के विरोधी आ ही जाते है उस समय जब कबीर जी का चारों तरफ अपार यश हो रहा था तब दुष्टों ने उनपर चारित्रिक लांछन लगाये, जनता को उनके विरोध में कर दिया, उनकी बहुत निंदा की ।
लेकिन संत हमेशा समत्व भाव में रहते है वे दुष्ट निंदक कौन से नरक में होंगे पता नही लेकिन आज भी कबीर जी सबके ह्रदय में स्थान रखते है । चारोँ तरफ अपार यश कीर्ति है आज विदेशों में भी उनका समादर हो रहा है।
भाग्यशाली है वो समाज जो हयात संतो के सानिंध्य में अपने जीवन को उचित दिशा दे पाया है ।
किसी भी सच्चे संत के जीवन चरित्र पर दृष्टि डाले तो हम देखते है कि उनके लाखों करोड़ो प्रशंसको के साथ-साथ उनके हयाती काल में उनके निंदक भी थे । जिन्होंने संत की निंदा करके उनके यश को अपयश में बदलने का प्रयास किया पर सच्चे संतो का बाल भी बांका नही कर पाये इसका प्रयत्क्ष उदहारण है संत कबीर जी का यश...!!!
Jago hindustani Visit Official
🏼🏼🏼🏼🏼
🏼🏼🏼🏼🏼
Youtube - https://goo.gl/J1kJCp
Wordpress - https://goo.gl/NAZMBS
Blogspot - http://goo.gl/1L9tH1
Twitter - https://goo.gl/iGvUR0
FB page - https://goo.gl/02OW8R
🇮🇳जागो हिन्दुस्तानी🇮🇳
No comments:
Post a Comment