श्री गुरु अर्जुन देव जी शहीदी दिवस 8 जून
#श्री_गुरु_अर्जुन_देव जी को शहीदों का सरताज कहा जाता है। वो सिख धर्म के पहले शहीद थे।
#भारतीय #दशगुरु परम्परा के #पंचम #गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी गुरु #रामदास के #सुपुत्र थे। उनकी माता का नाम बीवी भानी जी था।
उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। प्रथम सितंबर, 1581 को वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 8 जून 1606 को उन्होंने #धर्म व सत्य की रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
उनका जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई. को हुआ था। प्रथम सितंबर, 1581 को वे गुरु गद्दी पर विराजित हुए। 8 जून 1606 को उन्होंने #धर्म व सत्य की रक्षा के लिए 43 वर्ष की आयु में अपने प्राणों की आहुति दे दी।
#अकबर की #मौत के बाद उसका पुत्र #जहांगीर गद्दी पर बैठा जो बहुत ही कट्टर विचारों वाला था। अपनी आत्मकथा ‘#तुजुके_जहांगीरी’ में उसने स्पष्ट लिखा है कि वह गुरु अर्जुन देव जी के बढ़ रहे प्रभाव से बहुत दुखी था। इसी दौरान जहांगीर का पुत्र #खुसरो बगावत करके आगरा से पंजाब की ओर आ गया।
,जहांगीर को यह सूचना मिली थी कि गुरु अर्जुन देव जी ने खुसरो की मदद की है इसलिए उसने15 मई 1606 ई. को #बादशाह ने गुरु जी को परिवार सहित पकड़ने का हुक्म जारी किया।
गुरु अर्जुन देव जी को लाहौर में 8 जून 1606 ई. को भीषण गर्मी के दौरान ‘यासा’ के तहत लोहे की गर्म तवी पर बिठाकर #शहीद कर दिया गया। यासा के अनुसार किसी व्यक्ति का #रक्त #धरती पर गिराए बिना उसे यातनाएं देकर शहीद कर दिया जाता है।
गुरु जी के शीश पर #गर्म-गर्म रेत डाली गई। जब गुरु जी का शरीर #अग्नि के कारण बुरी तरह से जल गया तो आप जी को ठंडे पानी वाले रावी दरिया में नहाने के लिए भेजा गया जहां गुरु जी का #पावन #शरीर रावी में आलोप हो गया। गुरु अर्जुन देव जी ने लोगों को #विनम्र रहने का #संदेश दिया। आप विनम्रता के पुंज थे। कभी भी आपने किसी को #दुर्वचन नहीं बोले।
#गुरबाणी में आप फर्माते हैं :
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’
‘तेरा कीता जातो नाही मैनो जोग कीतोई॥
मै निरगुणिआरे को गुण नाही आपे तरस पयोई॥
तरस पइया मिहरामत होई सतगुर साजण मिलया॥
नानक नाम मिलै ता जीवां तनु मनु थीवै हरिया॥’
गुरु अर्जुन देव जी का #संगत को एक और बड़ा संदेश था कि #परमेश्वर की रजा में राजी रहना। जब आपको जहांगीर के आदेश पर अग्नि से तप रही तवी पर बिठा दिया, उस समय भी आप परमेश्वर का शुक्राना कर रहे थे :
‘तेरा कीया मीठा लागै॥
हरि नामु पदारथु नानक मांगै॥’
हरि नामु पदारथु नानक मांगै॥’
श्री गुरु अर्जुनदेव जी की #शहादत के समय दिल्ली में मध्य एशिया के मुगल वंश के जहांगीर का राज था और उन्हें राजकीय कोप का ही शिकार होना पड़ा। जहांगीर ने श्री गुरु अर्जुनदेव जी को मरवाने से पहले उन्हें अमानवीय यातानाएं दी।
मसलन चार दिन तक #भूखा रखा गया। ज्येष्ठ मास की तपती दोपहर में उन्हें तपते रेत पर बिठाया गया। उसके बाद खोलते पानी में रखा गया। परन्तु श्री गुरु अर्जुनदेव जी ने एक बार भी उफ तक नहीं की और इसे परमात्मा का विधान मानकर स्वीकार किया।
#बाबर ने तो श्री गुरु नानक जी को भी कारागार में रखा था। लेकिन श्री गुरु #नानकदेव जी ने तो पूरे देश में घूम-घूम कर हताश हुई जाति में नई प्राण चेतना फूंक दी। जहांगीर के अनुसार उनका परिवार #मुरतजाखान के हवाले कर लूट लिया गया। इसके बाद गुरु जी ने #शहीदी प्राप्त की। अनेक कष्ट झेलते हुए गुरु जी शांत रहे, उनका मन एक बार भी कष्टों से नहीं घबराये।
तपता तवा उनके शीतल स्वभाव के सामने सुखदाई बन गया। तपती रेत ने भी उनकी निष्ठा भंग नहीं की। गुरु जी ने प्रत्येक कष्ट हंसते-हंसते झेलकर यही अरदास की-
तेरा कीआ मीठा लागे॥ हरि नामु पदारथ नाटीयनक मांगे॥
जहांगीर द्वारा श्री गुरु अर्जुनदेव जी को दिए गए #अमानवीय #अत्याचार और अन्त में उनकी मृत्यु जहांगीर की योजना का हिस्सा था। श्री गुरु अर्जुनदेव जी जहांगीर की असली योजना के अनुसार ‘#इस्लाम के अन्दर’ तो क्या आते, इसलिए उन्होंने विरोचित शहादत के मार्ग का चयन किया। इधर जहांगीर की आगे की तीसरी पीढ़ी या फिर मुगल वंश के बाबर की छठी पीढ़ी औरंगजेब तक पहुंची। उधर श्री #गुरुनानकदेव जी की दसवीं पीढ़ी श्री गुरु गोविन्द सिंह तक पहुंची।
यहां तक पहुंचते-पहुंचते ही श्री नानकदेव की दसवीं पीढ़ी ने मुगलवंश की नींव में #डायनामाईट रख दिया और उसके नाश का इतिहास लिख दिया।
#संसार जानता है कि मुट्ठी भर मरजीवड़े सिंघ रूपी खालसा ने 700 साल पुराने विदेशी वंशजों को मुगल राज सहित सदा के लिए #ठंडा कर दिया।
100 वर्ष बाद महाराजा #रणजीत सिंह के नेतृत्व में भारत ने पुनः स्वतंत्रता की सांस ली। शेष तो कल का #इतिहास है, लेकिन इस पूरे संघर्षकाल में पंचम गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी की #शहादत सदा सर्वदा सूर्य के ताप की तरह प्रखर रहेगी।
गुरु जी शांत और गंभीर स्वभाव के स्वामी थे। वे अपने युग के सर्वमान्य #लोकनायक थे । मानव-कल्याण के लिए उन्होंने आजीवन शुभ कार्य किए।
गुरु जी के शहीदी पर्व पर उन्हें याद करने का अर्थ है, उस धर्म- निरपेक्ष विचारधारा को मान्यता देना, जिसका समर्थन गुरु जी ने #आत्म-बलिदान देकर किया था। उन्होंने संदेश दिया था कि महान जीवन मूल्यों के लिए आत्म-बलिदान देने को सदैव तैयार रहना चाहिए, तभी कौम और #राष्ट्र अपने गौरव के साथ जीवंत रह सकते हैं।
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