अद्भुत जीवन चरित्र...
धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे...
धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे...
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रम सवंत 1571 को पुरंदगढ़ में स्वराज्य के दूसरे छत्रपति शम्भुराजा का जन्म हुआ ।
संभाजी #राजा ने अपनी अल्पायु में जो अलौकिक कार्य किए, उससे पूरा हिंदुस्थान प्रभावित हुआ । इसलिए प्रत्येक #हिन्दू को उनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए ।
उन्होंने साहस एवं निडरता के साथ #औरंगजेब की आठ लाख सेना का सामना किया तथा अधिकांश मुगल सरदारों को #युद्ध में पराजित कर उन्हें भागने के लिए विवश कर दिया ।
शम्भाजी (1657-1689) #मराठा
#सम्राट और #छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी थे ।
#सम्राट और #छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी थे ।
उस समय मराठाओं के सबसे प्रबल शत्रु
#मुगलबादशाह औरंगजेब
बीजापुर औरगोलकुण्डा का शासन
#हिन्दुस्तान से समाप्त करने में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे ।
#मुगलबादशाह औरंगजेब
बीजापुर औरगोलकुण्डा का शासन
#हिन्दुस्तान से समाप्त करने में प्रमुख भूमिका निभा रहे थे ।
सम्भाजी अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। सम्भाजी ने अपने कम समय के शासन काल मे 120 युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध मे पराभूत नहीं हुई।
इस तरह का पराक्रम करने वाले वह शायद एकमात्र योद्धा होंगे। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने कसम खायी थी कि जब तक छत्रपति संभाजी पकड़े नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा।
#छत्रपति संभाजी नौ वर्ष की अवस्था में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रसिद्ध आगरा यात्रा में साथ गये थे।
औरंगजेब के बंदीगृह से निकल, छत्रपति शिवाजी महाराज के महाराष्ट्र वापस लौटने पर, मुगलों से समझौते के फलस्वरूप, संभाजी मुगल सम्राट् द्वारा राजा के पद तथा पंचहजारी मंसब से विभूषित हुए।
औरंगाबाद की मुगल छावनी में, मराठा सेना के साथ उनकी नियुक्ति (1668) हुई ।
#युगप्रवर्तक राजा के पुत्र रहते उनको यह नौकरी मान्य नहीं थी। किन्तु स्वराज्य स्थापना की शुरू के दिन होने के कारण और पिता के आदेश के पालन हेतु केवल 9 साल के उम्र में ही इतनी जिम्मेदारी का ही नही बल्कि अपमान जनक कार्य उन्होंने धीरता से किया।
उन्होंने केवल 14 साल में बुधाभुषणम, नखशिख, नायिकाभेद तथा सातशातक यह #संस्कृत ग्रंथ लिखे थे।
#छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के बाद स्थापित अष्टप्रधान मंत्रीमंडल में से कुछ लोगों के राजकारण के वजह से यह संवेदनशील युवराज काफी क्षतिग्रस्त हुए थे। पराक्रमी होने के बावजूद उन्हें अनेक लड़ाईयों से दूर रखा गया।
स्वभावत: संवेदनशील रहने वाले संभाजी अपना पराक्रम दिखाने की कोशिश में मुगल सेना से जा मिले (16 दिसम्बर 1678) । किन्तु कुछ ही समय में जब उनको अपनी गलती समझ आई तब वो वहां से पुन: स्वराज्य में आये। मगर इस प्रयास में वो अपने पुत्र शाहू, पत्नी रानी येसूबाई और बहन गोदावरी को अपने साथ लाने में असफल रहे।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु (20 जुलाई 1680) के बाद कुछ लोगों ने संभाजी के अनुज राजाराम को सिंहासनासीन करने का प्रयत्न किया। किन्तु सेनापति मोहिते के रहते यह कारस्थान नाकामयाब हुआ और 10 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ।
संभाजी को मुग़ल, पोर्तुगीज, अंग्रेज़ तथा अन्य शत्रुओं से लड़ने के साथ-साथ अंतर्गत शत्रुओं से भी लड़ना पड़ा।
1683 में उन्होंने पुर्तगालियों को पराजित किया। इसी समय वह किसी राजकीय कारण से संगमनेर में रहे थे।
बहनोई गणोजी शिर्के की बेईमानी एवं मुगलों द्वारा संभाजी राजा का घेराव....
येसुबाई के वरिष्ठ बंधु अर्थात #शम्भु राजा के बहनोई गणोजी शिर्के हिंदवी स्वराज्य से बेईमान हो गए । जुल्पिकार खान #रायगढ़ पर #आक्रमण करने आ रहा है यह समाचार मिलते ही शम्भुराजा सातारा-वाई-महाड मार्ग से होते हुए रायगढ़ लौटने वाले थे।परंतु मुकर्रबखान कोल्हापुर तक आ पहुंचा । इसलिए शम्भु राजा ने संगमेश्वर मार्ग के चिपलन-खेड मार्ग से रायगढ़ जाने का निश्चय किया ।
शम्भुराजे के स्वयं संगमेश्वर आने की वार्ता आसपास के क्षेत्र में हवा समान फैल गई । शिर्के के दंगों के कारण उद्ध्वस्त लोग अपने परिवाद लेकर संभाजी राजा के पास आने लगे । जनता के परिवाद को समझकर उनका समाधान करने में उनका समय व्यय हो गया एवं उन्हें संगमेश्वर में 4-5 दिन तक निवास करना पड़ा ।
उधर राजा को पता चला कि कोल्हापुर से मुकर्रबखान निकलकर आ रहा है । कोल्हापुर से संगमेश्वर की दूरी 90 मील की थी तथा वह भी सह्याद्रि की घाटी से व्याप्त कठिन मार्ग था ।
इसलिए न्यूनतम 8-10 दिन के अंतर वाले संगमेश्वर को बेईमान गणोजी शिर्के मुकर्रबखान को समीप के मार्ग से केवल 4-5 दिन में ही ले आया ।
संभाजी से प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से शिर्के ने बेईमानी की थी तथा अपनी जागीर प्राप्त करने हेतु यह कुकर्म किया ।
अतः 1 फरवरी 1689 को मुकर्रबखान ने अपनी 4 हजार सेना की सहायता से शम्भुराजा को घेर लिया ।
संभाजीराजा का घेरा तोड़ने का असफल प्रयास...
जब संभाजीराजे को ध्यान में आया कि संगमेश्वर में जिस सरदेसाई के बाडे में वे निवास के लिए रुके थे, उस बाडे को खान ने घेर लिया, तो उनको आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन्हें ज्ञात था कि इतने अल्प दिनों में खान का वहां आना असंभव था; परंतु यह चमत्कार केवल बेईमानी का था, यह भी उनके ध्यान में आया ।
संभाजीराजा ने पूर्व से ही अपनी फौज रायगढ़ के लिए रवाना की थी तथा केवल 300 सैन्य ही अपने पास रखे थे । अब खान का घेराव तोड़ कर रायगढ़ की ओर प्रयाण करना राजा के समक्ष एकमात्र यही पर्याय शेष रह गया था ।
इसलिए राजा ने अपने सैनिकों को शत्रुओं पर आक्रमण करने का आदेश दिया । इस स्थिति में भी शंभुराजे, संताजी घोरपडे एवं खंडोबल्लाळ बिना डगमगाए शत्रु का घेराव तोड़कर रायगढ़ की दिशा में गति से निकले ।
दुर्भाग्यवश इस घमासान युद्ध में मालोजी घोरपडे की मृत्यु हो गई; परंतु संभाजीराजे एवं कवि कलश घेराव में फंस गए । इस स्थिति में भी संभाजीराजा ने अपना घोडा घेराव के बाहर निकाला था; परंतु पीछे रहने वाले कवि कलश के दाहिने हाथ में मुकर्रबखान का बाण लगने से वे नीचे गिरे एवं उन्हें बचाने हेतु राजा पुनः पीछे मुड़े तथा घेराव में फंस गए ।
इस अवसर पर अनेक #सैनिकों के मारे जाने के कारण उनके घोड़े इधर-उधर भाग रहे थे । सर्वत्र धूल उड़ रही थी । किसी को भी स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा था । इसका लाभ उठाकर शंभूराजा ने पुनः सरदेसाई के बाडे में प्रवेश किया । वहां पर मात्र उनका घोडा था । धूल स्थिर होने पर गणोजी शिर्के ने #शंभुराजा के घोडे को पहचान लिया; क्योंकि राजाओं के घोडे के पांव में सोने का तोड़ा रहता था, यह शिर्के को ज्ञात था; इसलिए उन्होंने खान की सेना को समीप में ही संभाजी को ढूंढने की सूचना की ।
अंततोगत्वा #मुकर्रबखान के लड़के ने अर्थात् इरवलासखान ने शम्भुराजा को नियंत्रण में ले लिया ।
अपनों की बेईमानी के कारण अंत में सिंह का शावक #शत्रु के हाथ लग ही गया ।
जंग-जंग पछाड़कर भी निरंतर 9 वर्षों तक जो सात लाख सेना के हाथ नहीं लगा, जिसने बादशाह को कभी स्वस्थ नहीं बैठने दिया, ऐसा पराक्रमी योद्धा अपने लोगों की बेईमानी के कारण मुगलों के जाल में फंस गया ।
दोनों को #मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब ने कई कोशिशें की। किन्तु धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश ने धर्म परिवर्तन से इन्कार कर दिया।
औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आँखें निकाल दी किन्तु अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा।
11 मार्च 1689 हिन्दू नववर्ष दिन को दोनों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर औरंगजेब ने हत्या कर दी।
किन्तु ऐसा कहते है कि हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा कि मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता।
जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकड़े तुलापुर की नदी में फेंकें गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने वो इकठ्ठा कर के सिला के जोड़ दिए (इन लोगों को आज " शिवले " नाम से जाना जाता है) जिस के उपरांत उनका विधिपूर्वक अंतिम संस्कार किया।
औरंगजेब ने सोचा था कि मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु पश्चात ख़त्म हो जाएगा। छत्रपति संभाजी महाराज के हत्या की वजह से मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे ।
सेना की संख्या दो लाख तक पहुंच गई । सभी ओर प्रत्येक स्तर पर मुगलों का घोर विरोध होने लगा ।
अंत में 27 वर्ष के निष्फल युद्ध के उपरांत औरंगजेब को दक्खन में ही प्राणत्याग करना पड़ा।
उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो गया और मुगलों की सत्ता शक्ति क्षीण होने लगी एवं हिंदुओं के शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ ।
कैसे कैसे महान वीर हुए भारत की इस धरा पर...
🏻शत-शत नमन उनके चरणों में...
🏻जय माँ भारती!!!
Jago hindustani
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