Tuesday, August 11, 2020

माता देवकीजी के गर्भ में जाने से पूर्व श्री विष्णु ने ये कहा था? किस तरह जन्में थे श्रीकृष्ण?

 

 11 अगस्त 2020


साधारण जीव जब जन्म लेता है तो कर्मों के परिणामस्वरूप माता-पिता के रज-वीर्य के मिश्रण से जन्मता है परंतु भगवान जब अवतार लेते है तो चतुर्भुजी रूप में दर्शन देते हैं। फिर माँ और पिता को तपस्याकाल में संतुष्ट करने के लिए जो वरदान दिया था, उस वरदान के फलस्वरूप नन्हें से हो जाते हैं।

सुतपा प्रजापति और पृश्नि ने पूर्वकाल में वरदान में भगवान जैसा पुत्र माँगा था तब भगवान ने कहा थाः "मेरे जैसा तो मैं ही हूँ। तुम जैसा पुत्र माँगते हो वैसा मैं दे नहीं सकता। अतः एक बार नही वरन् तीन बार मैं तुम्हारा पुत्र होकर आऊँगा।"



भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में मथुरा के अत्याचारी राजा कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भाद्रपद मास की कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में रात की बारह बजे जन्म लिया था। गर्भ में प्रवेश के दौरान भगवान विष्णु ने प्रकट होकर देवकी और वसुदेवजी को अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन कराकर रहस्य की बातें बताई थीं।

कारागार में वसुदेव-देवकीजी के सामने जब श्रीभगवान विष्णु चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए तो उन्होंने कहा, हे माता! आपके पुत्र रूप में मेरे प्रकट होने का समय आ गया है। तीन जन्म पूर्व जब मैंने आपके पुत्र रूप में प्रकट होने के लिए वरदान दिया था।

तब श्रीकृष्ण भगवान वसुदेव और देवकी के पूर्व जन्म की कथा बताते हैं और कहते हैं कि आप दोनों ने स्वायम्भुव मन्वन्तर में प्रजापति सुतपा और देवी वृष्णी के रूप में किस तरह मुझे प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। फिर मैंने तीन बार तथास्तु कहा था इसलिए मैं आपके तीन जन्म में आपके पुत्र के रूप में प्रकट हुआ। पहले जन्म में वृष्णीगर्भ के नाम से आपका पुत्र हुआ। फिर दूसरे जन्म में जब आप देव माता अदिति थी तो मैं आपका पुत्र उपेंद्र था। मैं ही वामन बना और राजा बलि का उद्धार किया।

अब इस तीसरे जन्म में मैं आपके पुत्र रूप में प्रकट होकर अपना वचन पूरा कर रहा हूं। यदि आपको मुझे पुत्र रूप में पाने का पूर्ण लाभ उठाना है तो पुत्र मोह त्यागकर मेरे प्रति आप ब्रह्मभाव में ही रहना। इससे आपको इस जन्म में मोक्ष मिलेगा।

यह सुनकर माता देवकी कहती हैं कि हे जगदीश्वर यदि मुझमें मोक्ष की लालसा होती तो उसी दिन में मोक्ष न मांग लेती! नहीं प्रभु, मुझे मुक्ति नहीं चाहिए। मुझे तो आपके साथ मां बेटे का संबंध चाहिए। यह सुनकर प्रभु प्रसन्न हो जाते हैं। फिर माता देवकी कहती हैं कि इस चतुर्भुज रूप को हटाकर आप मेरे सामने नन्हें बालक के रूप में प्रकट हों। मुझे तो केवल मां और पुत्र का संबंध ही याद रहे बस। तब श्रीकृष्ण कहते हैं तथास्तु।

फिर माता योगमाया प्रकट होती है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरी माया के प्रभाव से आपको ये सब बातें याद नहीं रहेंगे। आप पुत्र मोह, वात्सल्य और पीड़ा का अनुभव करेंगी। फिर देवकी और वसुदेव माया के प्रभाव से पुन: सो जाते हैं तब प्रभु श्रीकृष्ण बाल रूप में देवकी के पास प्रकट हो जाते हैं। योगमाया उन्हें नमस्कार करती हैं।

शेषनाग ने जब किया गर्भ धारण, कंस पहुंचा वध करने कुछ देर बाद योगमाया वसुदेव को जगाती है। वसुदेव जागते हैं तो वह कहती हैं कि कंस के आने के पहले तुम इस बालक को लेकर गोकुल चले जाओ। वसुदेव बालक को प्रणाम करते हैं और फिर योगमाया से कहते हैं कि परंतु देवी माता मैं जाऊंगा कैसे? मेरे हाथ में तो बेड़ियां पड़ी हैं और चारों और कंस के पहरेदार भी खड़े हैं। तब देवी माता कहती हैं कि तुम स्वतंत्र हो जाओगे। गोकुल जाकर तुम यशोदा के यहां इस बालक को रख आओ और वहां से अभी-अभी जन्मी बालिका को उठाकर यहां लेकर आ जाओ।

पहरेदारों को नींद आ जाती है, वसुदेवजी की बेड़ियां खुल जाती हैं और फिर वे बालक को उठाकर कारागार से बाहर निकल जाते हैं। बाहर आंधी और बारिश हो रही होती है। चलते-चलते वे यमुना नदी के पास पहुंच जाते हैं। तट पर उन्हें एक सुपड़ा पड़ा नजर आता है जिसमें बालक रूप श्रीकृष्ण को रखकर पैदल ही नदी पार करने लगते हैं। तेज बारिश और नदी की धार के बीच वे गले गले तक नदी में डूब जाते हैं तभी शेषनाग बालकृष्ण के सहयोग के लिए प्रकट हो जाते हैं। 

भगवान श्रीकृष्ण ने आगे की 7 तिथियाँ और पीछे की 7 तिथियाँ छोड़कर बीच की अष्टमी तिथि को पसंद किया, वह भी भाद्रपद मास (गुजरात-महाराष्ट्र के अनुसार श्रावण मास) के रोहिणी नक्षत्र में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी। शोषकों ने समाज में अंधेरा मचा रखा था और समाज के लोग भी उस अंधकार से भयभीत थे, अविद्या में उलझे हुए थे।अतः जैसे, कीचड़ में गिरे व्यक्ति को निकालने के लिए निकालने वाले को स्वयं भी कीचड़ में जाना पड़ता है, वैसे ही अंधकार में उलझे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए भगवान ने भी अंधकार में अवतार ले लिया।

भगवान के जन्म और कर्म तो दिव्य हैं ही परंतु उनकी प्रेम शक्ति, माधुर्य शक्ति तथा आह्लादिनी शक्ति भी दिव्य है। जिसने एक बार भी भगवान के माधुर्य का अनुभव किया या सुना वह भगवान का ही हो जाता है। 

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