Saturday, October 19, 2019

धर्म की रक्षा करने वालों की हो रही है हत्या या फिर जेल

16 अक्टूबर 2019

क्रांतिकारियों से नफरत करने वाले एक अंग्रेज उच्च अधिकारी ने, सेवानिवृत्ति के बाद, कुछ अंग्रेज टाईप भारतीयों को लेकर 1885 में “इंडियन नेशनल कांग्रेस” की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य अर्द्ध अंग्रेज अर्द्ध भारतीय लोगों का सहारा लेकर, जनता के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कम करना था। ए. ओ. ह्युम की यह चाल कामयाब रही और लगभग बीस साल तक कोई क्रांतिकारी घटना नहीं हुई।

1905 में 16 अक्टूबर के दिन अंग्रेजों ने मुसलमानों को खुश करने के लिए, हिन्दू -मुस्लिम आबादी के घनत्व के आधार पर बंगाल का विभाजन कर दिया। यह बात देशभक्त हिन्दुओं को बर्दाश्त नहीं हुई और अंग्रेजों के खिलाफ माहौल बनने लगा। बंग-भंग का बहुत बिरोध हुआ।*

हालांकि अंग्रेजों के खिलाफ बंगाल पहले ही जागने लगा था। 1902 से ही अनुशीलन समिति और युगांतर जैसी संस्थाए उभरने लगी थीं, जो सशत्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजों को भगा देना चाहती थीं, लेकिन इनको जन समर्थन नही मिलता था। ए.ओ. ह्युम की कांग्रेस ने इतना बढ़िया काम किया था कि भारत की आम जनता भी अंग्रेजों के खिलाफ कुछ नहीं सुनती थी। बंग-भंग के बाद युगांतर और अनुशीलन समिति ने अंग्रेजों के खिलाफ कार्यवाहियां तीव्र कर दीं, इनका उद्घोष था “वन्देमातरम” बंगाल के समस्त लोग चाहे वो हिन्दू हों या मुस्लिम वन्देमातरम का उद्घोष करने लगे। ये लोग बम बनाने, युवाओं को पर्शिक्षण देने का काम करते थे और मौक़ा मिलने पर अंग्रेजों और उनके चापलूसों का बध करने से नहीं चूकते थे।*

उन दिनों हिन्दू और मुस्लिम सभी “वन्देमातरम” का उद्घोष करते थे। तब इन लोगों ने बड़ी चालाकी से मुसलमानों को समझाना शुरू किया कि-वन्देमातरम का उद्घोष इस्लाम बिरोधी है। उनकी यह चाल भी काफी हद तक कामयाब रही और मुस्लिम क्रान्ति से दूर हो गए, इसी लिए द्वितीय स्वाधीनता संग्राम में बहुत ढूँढने पर इक्का दुक्का मुस्लिम नाम दिखाई देंगे। मदनलाल धींगरा द्वारा कर्नल वायली का बध करने पर सावरकर की आलोचना की, कि युवाओं को आतंकवाद का गलत रास्ता दिखा रहे हैं। नाशिक के कलेक्टर जैक्सन के बध के लिए भी सावरकर को दोषी बताया।*

अंग्रेज अथवा अंग्रेज के चापलूस भारतीय के वध पर, यह लोग आलोचना करते थे लेकिन अंगेजों द्वारा किसी क्रांतिकारी की हत्या, फांसी अथवा कालापानी की सजा पर चुप्पी साध लिया करते थे। अंग्रेजों ने जैक्सन की हत्या का षड्यंत्र करने का आरोप लगाकर, 4 जुलाई 1911 को द्वितीय स्वाधीनता संग्राम के सूत्रधार सावरकर को कालापानी की सजा दे दी। जब 1905 में मजहबी आधार पर बंगाल का विभाजन किया गया तब मुसलमानों सहित समाज के सभी वर्गों के लोग जुड़ें, इस हेतु किसी प्रकार का तुष्टीकरण न करते हुए धरती व परम्परा के प्रति विशुद्ध प्रेम का आह्वान किया गया।*

दूसरी ओर बंग-भंग आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले लोगों का अदम्य विश्वास तथा अविचल निष्ठा थी। जिसकी झलक हमें तब दिखाई देती है जब बंग-भंग के जनक लार्ड कर्जन ने अहंकार से कहा “दि पार्टीशन आफ बंगाल इज ए सेटिल्ड फैक्ट”, (बंगाल का विभाजन एक निर्णायक तथ्य है) इस पर राष्ट्र ऋषि सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कहा “आई विल अनसेटिल द सेटिल्ड फैक्ट” (मैं इस निर्णायक तथ्य को पलट कर रख दूंगा). यह विश्वास व विशुद्ध राष्ट्रवादी आह्वान ही इस कृत्रिम विभाजन को मिटाने का कारण बना।*

आज उस दिवस से सबको बड़ी शिक्षा लेते हुए भविष्य को सुधारने का संकल्प लेने का समय है। 16 अक्टूबर का भारत के इतिहास से रिश्ता बुरा ही सही पर बताना था पूर्ववर्ती लोगों को पर चाटुकारिता से लिखा गया कई पन्नो का इतिहास अक्सर वो अपराध कर देता है समाज के साथ जो बंगाल को बांटने वाले भी नहीं कर पाए। - सुदर्शन न्यूज*

अंग्रेज़ो ने बंगाल को बांट दिया लेकिन वामपंथी और ममता सरकार वोटबैंक के कारण देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया है , बंगलादेशी और आतंकी रोहिंग्याओं को बसाकर देश को खतरा पैदा किया है।*

आज बंगाल में हिंसा की जड़ में क्या है?*

आज पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या, आजादी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है। 1941 में पश्चिम बंगाल में 29 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्या थी। आज ये आंकडा 27 प्रतिशत पहुंच गया है। जबकि देश के बंटवारे के बाद 1951 में पश्चिम बंगाल में केवल 19.5 प्रतिशत मुसलमान थे। बंटवारे के बाद बडी तादाद में मुसलमान, पाकिस्तान चले गए थे।*

हम मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी के आंकडों पर गौर करें तो चौंकानेवाली बातें सामने आती हैं ! 2001 से 20111 के बीच पश्चिम बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या 1.77 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ी। जबकि देश के बाकी हिस्सों में मुस्लिम जनसंख्या 0.88 प्रतिशत की दर से बढ़ी !*

यूं तो राजनीति में आंकड़ों की बहुत बात होती है। परंतु पश्चिम बंगाल की तेजी से बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या की आेर से सब ने आंखें मूंद रखी थीं। सियासी फायदे के लिए देशहित की कुर्बानी दे दी गई। अगर हम आंकड़ों पर ध्यान देते तो फौरन बात पकड़ में आ जाती कि जिस बंगाल में कारोबार ठप पड़ रहा था, उद्योग बंद हो रहे थे, वहां लोग रोजगार की नीयत से तो जा नहीं रहे थे !

आज की तारीख में हम घुसपैठ के सियासी असर की बात करें तो, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों में मुसलमान बहुमत में हैं। लगभग 100 विधानसभा सीटों के नतीजे मुसलमानों के वोट तय करते हैं। यानी मुस्लिम वोट, पश्चिम बंगाल की सियासत के लिहाज से आज बेहद अहम हो गए हैं। इसीलिए राज्य में ममता बनर्जी जमकर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति कर रही हैं। उनसे पहले वामपंथी दल यही कर रहे थे !*

*🚩तुष्टीकरण की गंदी सियासत का नमूना हमने 2007 के चुनावों में देखा था। उस समय अपनी तरक्कीपसंद राजनीति के बावजूद वामपंथी सरकार ने बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को कोलकाता से बाहर जाने पर मजबूर किया। इसकी वजह ये थी कि बंगाल के कट्टरपंथी मुसलमान, तस्लीमा के शहर में रहने का विरोध कर रहे थे। आज का पश्चिम बंगाल सांप्रदायिक रूप से और भी संवेदनशील हो गया है !*

*🚩ममता बनर्जी ने सांप्रदायिकता को अपना सबसे बडा सियासी हथियार बना लिया है। उनका आदर्शवाद सत्ता में रहते हुए उड़न-छू हो चुका है। राज्य के 27 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या को लुभाने के लिए ममता किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखती हैं। इसीलिए वो नूर-उल-रहमान बरकती जैसे मौलवियों को शह देती हैं !*

*🚩ये वही बरकती है जिसने पीएम मोदी के विरोध में फतवा दिया था। बरकती ने कई भड़काऊ बयान दिए। वो लालबत्ती पर रोक के बावजूद खुले तौर पर अपनी गाडी में लालबत्ती लगाकर चलता था। परंतु ममता ने उसके विरोध में कोई एक्शन नहीं लिया। बाद में कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के ट्रस्टियों ने बरकती को इमाम पद से जबरदस्ती हटाया।*

*🚩इसी तरह ममता बनर्जी ने मालदा के हरिश्चंद्रपुर कस्बे के मौलाना नासिर शेख की आेर से आंखें मूंद लीं। इस मौलाना ने टीवी, संगीत, फोटोग्राफी और गैर मुसलमानों से मुसलमानों के बात करने पर पाबंदी लगा दी थी। राज्य के धर्मनिरपेक्ष नियमों के विरोध में जाकर ममता ने इमामों और मौलवियों को उपाधियां और पुरस्कार दिए हैं !*

*🚩ममता ने मुस्लिम तुष्टीकरण की सारी हदें तोड दी हैं ! तभी तो दुर्गा पूजा के बाद 4 बजे के बाद मूर्ति विसर्जन पर, मुहर्रम का जुलूस निकालने के लिए रोक लगा देती हैं। उन्हें आम बंगालियों की धार्मिक भावनाओं का खयाल तक नहीं आता। कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी सरकार के इस फैसले को अल्पसंख्यकों का अंधा तुष्टीकरण कहा था !*

*🚩क्या ममता बनर्जी को ये समझ में आएगा कि मुस्लिम तुष्टीकरण से बंगाल में अब काजी नजरुल इस्लाम जैसे लोग नहीं पैदा होगे। बल्कि इससे इमाम बरकती और नसीर शेख जैसे मौलवियों को ही ताकत मिलेगी ! ये वही लोग हैं जो मुसलमानों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं, मगर उन्हीं के हितों को चोट पहुंचाते हैं। ये सांप्रदायिकता फैलाते हैं !*

*आज बंगाल में जो हो रहा है वो तुष्टीकरण की नीतियों का ही नतीजा है। कल यही हाल कोलकाता का भी हो सकता है !*

*🚩ममता बनर्जी सांप्रदायिकता की ऐसी आग से खेल रही हैं, जिस पर काबू पाना उनके बस में भी नहीं होगा ! स्त्रोत : फर्स्ट पोस्ट*

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