
विश्व में #पत्रकारिता_का_आरंभ सन् 131 ईस्वी पूर्व #रोम में हुआ था ।

उस समय पत्थर या धातु की पट्टी होती थी, जिस पर समाचार अंकित होते थे ।

15वीं शताब्दी में अख़बार छापने की मशीन का #अविष्कार किया गया ।

भारत में #पहला_अख़बार 1776 में प्रकाशित हुआ । इसका प्रकाशक ईस्ट इंडिया कंपनी का भूतपूर्व अधिकारी विलेम बॉल्ट्स था । यह अख़बार #कोलकाता से अंग्रेजी में छपता था ।

1819 में बंगाली #भारतीय_भाषा में पहला समाचार-पत्र प्रकाशित हुआ था। ।

1822 में गुजराती और 1826 में हिंदी में प्रथम समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ ।

अंग्रजों ने तो देश को तोड़ने के लिए पत्रकारिता शुरू की थी । लेकिन देशभक्तों ने पत्रकारिता इसलिए शुरू की ताकि जनता तक सही ख़बरें पहुँच सके और समय-समय पर देश की आंतरिक स्थिति से #जनता को अवगत कराकर #जागरूक किया जा सकें तथा देश में हो रही #अन्यायपूर्ण_गतिविधियों क खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठाई जा सकें ।
🔸जिससे देश की संस्कृति सुरक्षित रहें और देश में अमन चमन बना रहें ।

परन्तु समय के हेर-फेर में #पत्रकारिता में कुछ स्वार्थी और बेईमान लोग घुस गए, जिन्हें #देश_की_अस्मिता से कुछ लेना-देना नही, बस केवल पैसों और अपने नाम के लिए काम करने लगे ।

ऐसे स्वार्थी लोग आज अन्न भारत देश का खाते है और काम विदेशी #NGO'S के लिए करते है ।

इतिहास में वर्णित है क़ि हमारी भारतीय संस्कृति को मिटाने का प्रयास तो समय-समय पर होता ही आया है ।

भारत के गौरवपूर्ण #इतिहास पर दृष्टि डालें तो पता चलता है क़ि भारत की गरीमा बढ़ाने वाले यहाँ के #साधु-#संत है । जिन्होंने समाज को सही मार्गदर्शन देकर भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर किया है ।

अब अगर #भारतीय #संस्कृति को नष्ट करना है तो यहाँ के साधु-संतो के प्रति जनता के मन में नफरत पैदा करनी होगी तभी भारतीय संस्कृति को नष्ट किया जा सकता है ।

इसलिए संत और समाज के बीच विदेशी फंड से चलने वाली #भारतीय_पत्रकारिता ने खाई का काम किया है ।

आज आप देख सकते हैं कि जितना #समाजसेवी #सुप्रतिष्ठित #हस्तियों और #साधु-संतो के खिलाफ बोला जाता है और बड़े से बड़े #देशद्रोही के पक्ष में बोला जाता है तो कई #समझदार_लोग भी आज अपनी बुद्धि का उपयोग न करके पत्रकारों की बातों पर #आँख_बंद_करके_विश्वास कर लेते है ।जो आगे चलकर हमारे लिए ही खतरनाक साबित हो सकता है ।

कई सालों से देश में #विदेशी #NGO'S ने अपना काम शुरू कर दिया है।

1984 में विदेशी ये NGO'S भारत में
में टी.वी. लेकर आये । पहले टी.वी. के माध्यम से #भारत_की_जनता को #धार्मिक_सीरियल दिखाना चालू किया और #DD_न्यूज़ शुरू हुआ । जिससे लोगो में टीवी देखने और न्यूज़ द्वारा देश की गतिविधियाँ जानने की रूचि बढ़े ।

फिर जब जनता को टीवी देखने की आदत पड़ गई तब #देश_की_संस्कृति_को_तोड़ने के इरादे से धीरे-धीरे प्यार भरी फिल्में चालू की गई । उसके बाद #अर्धनग्न अवस्था वाली #फिल्में, #संस्कृति_विरोधी_सीरियल और #साधु_संतों, #हिन्दू_संगठनों तथा #देश की #संस्कृति_विरोधी_न्यूज़ की शुरूवात कर दी गई ।

ऐसा सब दिखाकर #भारतीय_संस्कृति को नीचा और विदेशी संस्कृति को ऊँचा दिखाकर लोगों का ब्रेनवाश किया गया । इसी कारण आज के युवावर्ग में अपनी संस्कृति के प्रति नफरत तथा पाश्चत्य सभ्यता के प्रति आकर्षण बढ़ गया है।

आज समाज में खुलेआम गन्दी फिल्में, #भारतीय_संस्कृति विरोधी न्यूज़ दिखाई जाती है क्योंकि 90% भारत न्यूज़ चैनल के मालिक विदेशी है । उनको भारत की जनता का ब्रेनवाश करने के लिए ईसाई मिशनरियों और मुस्लिम संगठनो द्वारा खूब पैसा मिल रहा है ।

अतः मेरे भारतवासियों सावधान हो जाओ...!!!

अपनी संस्कृति की गरिमा पहचानों...!!!

याद करो वो दिन...जब #मुगल और #अंग्रजो ने अनेको साल हम पर राज किया था । भारत के #मंदिर तोड़े गए, हमारी माँ-बहनों की #इज्जत लूटी गई, हमारी #देश_की_सम्पति लूटी गई थी ।

उस समय शिवाजी, महाराणा प्रताप , भगत सिंह , चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रन्तिकारी आये और देश को आज़ाद करवाया ।

हे #भारतवासियों ! भारत के लाखों लोगो ने जो देश की आज़ादी के लिए जो अपना बलिदान दिया है उसको खोने न देना ।

आज जो देश की अस्मिता बनाये रखने में सबसे बड़ी दुश्मन बन कर खड़ी है वो है

#विदेशी_फंड_से_चलने_वाली_भारती
य_पत्रकारिता ।
#PresstitutesDay

अतः सबसे पहले ऐसी बिकाऊ मीडिया का बहिष्कार कर सिर्फ और सिर्फ भारतीय चैनल सुदर्शन न्यूज़ ही देखें जो कि निष्पक्ष और सच्चाई समाज तक पहुँचाने में आगे आया है ।

जय हिन्द ...
जय भारत

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