सन्तों से है संस्कृति शोभित,संतो से उन्नत समाज है।
निर्दोष संतो को सताने से,होना संस्कृति का विनाश है।

स्वामी ज्ञानानंद जी कहते है कि संत श्री आशारामजी बापू के प्रति जो यह वातावरण बहुत दिनों से बना हुआ है और दिन-प्रतिदिन इसे और अधिक उछाला जा रहा है, यह किसी भी दृष्टि से न राष्ट्रहित में है, न समाजहित में और न ही आस्तिकता के हित में है।

संत आसारामजी बापू ने जो हिन्दू संस्कृति के लिए किया है वो अति प्रशंसनीय है । बिना ठोस सबूत के उन्हें इतने लंबे समय तक जेल में रखना न्याय की दृष्टि से उचित नही है। आज एक तरफा कानून के कारण संतगण और सज्जन पीड़ित है। कानून सबके लिए समान होना चाहिए।

सरकार और प्रशासन को निश्चित रूप से इस पर पुनर्विचार करना चाहिए और दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत बने संत आसारामजी बापूजी को जल्द से जल्द न्याय देना चाहिए।

अपनी दिव्य संस्कृति की महिमा व उसमें बापूजी जैसे उच्च कोटि के संतों के योगदान को महत्त्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संस्कृति बहुत से विदेशी आक्रमणों के पश्चात् भी पूरे विश्व की प्रेरणास्रोत बनी हुई है। इसके पीछे निश्चित और निःसंदेह ही संतों का त्याग और तप है। लेकिन भारत में कुछ समय से ईसाई मिशनरियों और विदेशी कम्पनियों द्वारा हमारी संस्कृति और सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति कुठाराघात की स्थितियाँ और उसी क्रम में संतों के प्रति भी जिस ढंग से वातावरण बनाया जा रहा है, इससे पूरे समाज में एक प्रश्नचिह्न खड़ा हो रहा है। यह निश्चित रूप से अनुचित है, सरकार व मीडिया को किसी भी स्थिति में एकपक्षीय नहीं होना चाहिए।

खुले चिंतन के साथ विचारपूर्वक हर स्थिति को देख के सरकार व मीडिया को समाज के सामने एक सकारात्मक सोच व पक्ष रखना चाहिए, जिससे समाज की अपनी संस्कृति के प्रति आस्था बढ़े।

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