कैसे वीर थे वो अलबेले,कैसी अमर है उनकी कहानी।
सरदार गोकुल सिंह जी की,आओ याद करें कुर्बानी।।
सन् 1666 का समय था और इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारोँ से हिँदू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरोँ को तोड़ा जा रहा था, हिँदू स्त्रियोँ की इज़्ज़त लूटकर उन्हेँ मुस्लिम बनाया जा रहा था।औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिँदू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
सरदार गोकुल सिंह जी की,आओ याद करें कुर्बानी।।
सन् 1666 का समय था और इस्लामिक राक्षस औरंगजेब के अत्याचारोँ से हिँदू जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। मंदिरोँ को तोड़ा जा रहा था, हिँदू स्त्रियोँ की इज़्ज़त लूटकर उन्हेँ मुस्लिम बनाया जा रहा था।औरंगजेब और उसके सैनिक पागल हाथी की तरह हिँदू जनता को मथते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे।
हिँदुओं को दबाने के लिए औरंगजेब ने अब्दुन्नवी नामक एक कट्टर मुसलमान को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। अब्दुन्नवी के सैनिकों का एक दस्ता मथुरा जनपद में चारों ओर लगान वसूली करने निकला।
सिनसिनी गाँव के सरदार गोकुल सिंह के आवाहन पर किसानों ने लगान देने से इंकार कर दिया, परतन्त्र भारत के इतिहास में वह "पहला असहयोग आन्दोलन" था ।
दिल्ली के सिँहासन के नाक तले समरवीर धर्मपरायण हिन्दू वीर योद्धा गोकुल सिंह और उनकी किसान सेना ने आतताई औरंगजेब को हिँदुत्व की ताकत का अहसास दिलाया।
मई 1669 मेँ अब्दुन्नवी ने सिहोरा गाँव पर हमला किया। उस समय वीर गोकुल सिंह गाँव मेँ ही थे। भयंकर युद्ध हुआ लेकिन इस्लामी शैतान अब्दुन्नवी और उसकी सेना सिहोरा के वीर हिन्दुओं के सामने टिक ना पाई और सारे इस्लामिक पिशाच गाजर-मूली की तरह काट दिए गए।
गोकुल सिंह की सेना मेँ जाट, राजपूत, गुर्जर, यादव, मेव, मीणा इत्यादि सभी जातियों के हिन्दू थे। इस विजय ने मृतप्राय हिन्दू समाज मेँ नए प्राण फूँक दिए थे।
औरंगजेब ने सैफ शिकन खाँ को मथुरा का नया फौजदार नियुक्त किया और उसके साथ रदांदाज खान को गोकुल का सामना करने के लिए भेजा।
लेकिन इस बार भी असफल होने पर औरंगजेब ने महावीर गोकुल सिंह को संधि प्रस्ताव भेजा। गोकुल सिंह ने औरंगेजब का प्रस्ताव अस्वीकार करते हुए कहा कि "औरंगजेब कौन होता है हमें माफ करने वाला, माफी तो उसे हम हिन्दुओं से मांगनी चाहिए उसने अकारण ही हिन्दू धर्म का बहुत अपमान किया है।
अब औरंगजेब दिल्ली से चलकर खुद आया गोकुल सिंह से लङने के लिए। औरंगजेब ने मथुरा मेँ अपनी छावनी बनाई और अपने सेनापति हसन अली खान को एक मजबूत एवं विशाल सेना के साथ युद्ध के लिए भेजा।
औरंगजेब की तोपोँ, धर्नुधरोँ, हाथियोँ से सुसज्जित 3 लाख की विशाल सेना और गोकुल सिंह की किसानोँ की 20000 हजार की सेना मेँ भयंकर युद्ध छिड़ गया।
4 दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारोँ के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारोँ से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी।
इस लड़ाई मेँ सिर्फ पुरुषोँ ने ही नही बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया।
4 दिन तक भयंकर युद्ध चलता रहा और गोकुल सिंह की छोटी सी अवैतनिक सेना अपने बेढंगे व घरेलू हथियारोँ के बल पर ही अत्याधुनिक हथियारोँ से सुसज्जित और प्रशिक्षित मुगल सेना पर भारी पड़ रही थी।
इस लड़ाई मेँ सिर्फ पुरुषोँ ने ही नही बल्कि उनकी स्त्रियों ने भी पराक्रम दिखाया।
4 दिन के युद्ध के बाद जब गोकुल की सेना युद्ध जीतती हुई प्रतीत हो रही थी तभी हसन अली खान के नेतृत्व मेँ 1 नई विशाल मुगलिया टुकङी आ गई और इस टुकङी के आते ही गोकुल की सेना हारने लगी। युद्ध मेँ अपनी सेना को हारता देख हजारोँ नारियोँ जौहर की पवित्र अग्नि मेँ खाक हो गई।
गोकुल सिंह और उनके ताऊ उदय सिँह को 7 हजार साथियोँ सहित बंदी बनाकर आगरा में औरंगजेब के सामने पेश किया गया। औरंगजेब ने कहा "जान की खैर चाहते हो तो इस्लाम कबूल कर लो और रसूल के बताए रास्ते पर चलो। बोलो क्या इरादा है इस्लाम या मौत?"
अधिसंख्य धर्म-परायण हिन्दुओं ने एक सुर में कहा - "औरंगजेब, अगर तेरे खुदा और रसूल मोहम्मद का रास्ता वही है जिस पर तू चल रहा है तो धिक्कार है तुझे,
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"
हमें तेरे रास्ते पर नहीं चलना l"
इतना सुनते ही औरंगजेब के संकेत से गोकुल सिंह की बलशाली भुजा पर जल्लाद का बरछा चला।
गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बङे ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो।
दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खङी जनता आंर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद मेँ गिरा तो मथुरा मेँ केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिँह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया ।
गोकुल सिंह ने एक नजर अपने भुजाविहीन रक्तरंजित कंधे पर डाली और फिर बङे ही घमण्ड के साथ जल्लाद की ओर देखा और कहा दूसरा वार करो।
दूसरा बरछा चलते ही वहाँ खङी जनता आंर्तनाद कर उठी और फिर गोकुल सिंह के शरीर के एक-एक जोड़ काटे गए। गोकुल सिंह का सिर जब कटकर धरती माता की गोद मेँ गिरा तो मथुरा मेँ केशवराय जी का मंदिर भी भरभराकर गिर गया। यही हाल उदय सिँह और बाकि साथियों का भी किया गया। उनके छोटे- छोटे बच्चों को जबरन मुसलमान बना दिया गया ।
1 जनवरी 1670 ईसवी का दिन था वह।
ऐसे अप्रतिम वीर का इतिहास में कहीं भी कोई नाम नही है।
क्या वो सम्मान के अधिकारी नही है ???
क्यों उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना।
कितना अहसान फ़रामोश कितना कृतघ्न है हिंदू समाज....!!!
क्या वो सम्मान के अधिकारी नही है ???
क्यों उनके नाम पर न कोई विश्वविद्यालय है और न कोई केन्द्रीय या राजकीय परियोजना।
कितना अहसान फ़रामोश कितना कृतघ्न है हिंदू समाज....!!!
कैसे वीर हुए इस धरा पर,जिन्होंने धर्म के लिए प्राण न्यौछावर कर दिये पर इस्लाम नही अपनाया।
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