गुरु गोविंद सिंह जयंती - दिनांक 5 जनवरी
मुगल दरबार में विशेष हलचल मची हुई थी ।
संधि-वार्ता हेतु सिखों के सम्माननीय गुरु गोविंद सिंह जी आमंत्रण पर पधारे थे ।
मुगल दरबार में विशेष हलचल मची हुई थी ।
संधि-वार्ता हेतु सिखों के सम्माननीय गुरु गोविंद सिंह जी आमंत्रण पर पधारे थे ।
उनकी ‘गुरु उपाधि' से एक मौलवी के मन में बडा रोष था । वह सोचता था कि संतों ,सद्गुरुओं को तो सादे वस्त्र ही पहनने चाहिए। सेना-संचालन, युद्ध आदि के कार्यों से गुरु का क्या संबंध...???
उसने उनके आध्यात्मिक स्तर पर चोट करने के विचार से प्रश्न किया :
मौलवी- महाराज। आप गुरु हैं। अपने नाम की सार्थकता के उपयुक्त कुछ चमत्कार दिखलायें ।
गुरु गोविंदसिंह जी- मौलवी जी ! चमत्कार तथा आध्यात्मिकता का कोई संबंध नहीं है । गुरु का काम चमत्कार दिखाना नहीं, शिष्यों का सही मार्गदर्शन करना होता है । गुरु सर्व समर्थ होते हुए भी प्रकृति के नियमों में प्रयत्नपूर्वक छेड़छाड़ नहीं करते । जब वे किसी की पीड़ा देखकर द्रवित होते हैं या किसी की भगवान में श्रद्धा बढ़ाना चाहते हैं तब उनके द्वारा लीला हो जाती है ।
परंतु मौलवी कुछ अड़ियल स्वभाव का था । उसने पुनः आग्रह किया : ‘‘कोई चमत्कार तो दिखायें ही ।
गुरु गोविंद सिंह जी -चमत्कार ही देखना है तो आँखें खोलकर देख लो, ईश्वर की सृष्टि में चारों ओर चमत्कार ही चमत्कार है। पृथ्वी, आकाश, तारे, वायु सभी ईश्वरीय शक्ति के चमत्कार ही है।
पर मौलवी का आग्रह था मानुषी चमत्कार दिखाने हेतु इसलिए उसने पुनः आग्रह किया।
गोविंद सिंह जी- अपने शहंशाह का चमत्कार देख लो न।
किस प्रकार एक व्यक्ति की शक्ति पूरे राज्य में काम करती है।
किस प्रकार एक व्यक्ति की शक्ति पूरे राज्य में काम करती है।
मौलवी -वह नहीं, अपनी सीमा में कुछ चमत्कार दिखायें ।
अब गुरु गोविंद सिंह जी उठ खडे हुए, म्यान से तलवार निकाल कर वीरता भरी वाणी में बोले : ‘‘मेरे हाथ का चमत्कार देखने की शक्ति यदि तुझमें है तो देख। अभी एक हाथ से तेरा सिर अलग हो रहा है ।
मौलवी को पसीना छूट गया । यदि शहंशाह स्वयं गुरु गोविंदसिंह जी को नम्रतापूर्वक रोक कर हाथ पकड़ कर अपनी बगल में न बिठाते तो मौलवी साहब मानुषी चमत्कार देखते-देखते दोजख के दरबार में पहुँच चुके होते ।
संत सताये तीनों जायें, तेज बल और वंश ।
ऐसे -ऐसे कई गया, रावण कौरव जैसे कंस।
ऐसे -ऐसे कई गया, रावण कौरव जैसे कंस।
सद्गुरु की महिमा का गान करते है वेद और पुराण।
ऐसे सद्गुरु की लीला समझना नही है आसान।।
ऐसे सद्गुरु की लीला समझना नही है आसान।।
सद्गुरुओं को समझना आसान नही होता। सद्गुरु कभी मानुषी चमत्कार नही करते फिर भी उनके द्वारा कभी कुछ ऐसा विलक्षण हो जाता है क़ि दुनिया उनकी ओर दौड़ी चली आती है।
गुरु गोविन्दसिंहजी के नारा था : ‘चिडियों से मैं बाज़ लडाऊँ, सवा लाख से एक लडाऊँ ।
धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए ऐसे गुरु गोविंद सिंह को शत्- शत् नमन।
धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए ऐसे गुरु गोविंद सिंह को शत्- शत् नमन।
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