ऊपर जिसका अंत नहीं उसे आसमान कहते है, इस संसार में जिसका अंत नहीं उसे '#माँ' कहते है...!!!
माँ...
जिसकी कोई #परिभाषा नहीं..
जिसकी कोई सीमा नहीं...
जो मेरे लिए #भगवान से भी बढ़कर है...
जो मेरे #दुःख से दुखी हो जाती है...
और मेरी #खुशी को अपना सबसे बड़ा सुख समझती है...
जिसकी #छाया में मैं अपने आप को #महफूज़ समझता हूँ...
माँ...
जिसकी कोई #परिभाषा नहीं..
जिसकी कोई सीमा नहीं...
जो मेरे लिए #भगवान से भी बढ़कर है...
जो मेरे #दुःख से दुखी हो जाती है...
और मेरी #खुशी को अपना सबसे बड़ा सुख समझती है...
जिसकी #छाया में मैं अपने आप को #महफूज़ समझता हूँ...
जो मेरा #आदर्श है, जिसकी #ममता और प्यार भरा #आँचल मुझे #दुनिया से सामना करने की #शक्ति देता है...
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथ देती है...
जो साया बनकर हर कदम पर
मेरा साथ देती है...
#चोट मुझे लगती है तो #दर्द उसे होता है...
मेरी हर परीक्षा जैसे उसकी अपनी परीक्षा होती है...
मेरी हर परीक्षा जैसे उसकी अपनी परीक्षा होती है...
माँ एक पल के लिए भी दूर होती है तो जैसे कहीं कोई #अधूरापन सा लगता है...
हर पल एक सदी जैसा #महसूस होता है...
हर पल एक सदी जैसा #महसूस होता है...
वाकई #माँ का कोई विस्तार नहीं
मेरे लिए माँ से बढ़कर कुछ नहीं....!!!
मेरे लिए माँ से बढ़कर कुछ नहीं....!!!
संसार का हर #रिश्ता जन्म के बाद जुड़ता है पर एक माँ है जिससे हमारा रिश्ता हमारे जन्म के 9 महीनें पहले से जुड़ जाता है । एक अटूट #निस्वार्थ रिश्ता ऐसा #रिश्ता जिसमें न स्वार्थ होता है, न ही कोई अपेक्षा...!!!
कुछ कहें बिना जो सबकुछ #समझ जाये वो है माँ...
संसार में अगर कोई निस्वार्थ रिश्ता है तो वो है माँ...
जिसकी हर #डाँट में हमारी भलाई छुपी होती है वो है माँ...
शिव-पुराण में आता हैः
जो पुत्र #माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे #पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है। जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थयात्रा के लिए जाता है, वह माता-पिता की हत्या से मिलने वाले पाप का भागी होता है क्योंकि पुत्र के लिए माता-पिता के चरण-सरोज ही महान तीर्थ हैं। अन्य #तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं परंतु धर्म का साधनभूत यह तीर्थ तो पास में ही सुलभ है। #पुत्र के लिए (माता-पिता) और स्त्री के लिए (पति) सुंदर तीर्थ घर में ही विद्यमान हैं।
जो पुत्र #माता-पिता की पूजा करके उनकी प्रदक्षिणा करता है, उसे #पृथ्वी-परिक्रमाजनित फल सुलभ हो जाता है। जो माता-पिता को घर पर छोड़ कर तीर्थयात्रा के लिए जाता है, वह माता-पिता की हत्या से मिलने वाले पाप का भागी होता है क्योंकि पुत्र के लिए माता-पिता के चरण-सरोज ही महान तीर्थ हैं। अन्य #तीर्थ तो दूर जाने पर प्राप्त होते हैं परंतु धर्म का साधनभूत यह तीर्थ तो पास में ही सुलभ है। #पुत्र के लिए (माता-पिता) और स्त्री के लिए (पति) सुंदर तीर्थ घर में ही विद्यमान हैं।
माता का गौरव #पृथ्वी से भी अधिक है और पिता आकाश से भी ऊँचे (श्रेष्ठ) हैं - महाभारत
#लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी #फूलना नहीं।
सेवा बिना सब राख है, मद में कभी #फूलना नहीं।
माता-पिता को दुःखी करने वाले व्यक्ति का वंश नष्ट हो जाता है - महर्षि याज्ञवल्क्यजी
आप अपना कल्याण चाहते हो तो माँ-बाप को कभी #वृद्धाश्रम कभी न भेजिए ।
किसी भी इंसान के जीवन में "माँ-बाप का क्या महत्व है इसे शब्दों में #ब्यान करना मुश्किल ही नही #असम्भव है...!!!
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