आजीवन अपनी #मातृभूमि भारत की $स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले #नरकेसरी #वीर #छत्रपति #शिवाजी #जयंती
(दिनांक अनुसार : 19 फरवरी
तिथि अनुसार : 8 मार्च)शिवाजी #महाराज जो न स्वयं कभी #प्रमादी हुए और न ही उन्होंने देश के दुश्मनों को चैन से सोने दिया । वे कुशल #राजनीतिज्ञ के साथ-साथ #बुद्धिचातुर्य में भी अद्भुत थे। वीरता के साथ #विद्वता के भी #उत्तम धनी थे।
(दिनांक अनुसार : 19 फरवरी
तिथि अनुसार : 8 मार्च)शिवाजी #महाराज जो न स्वयं कभी #प्रमादी हुए और न ही उन्होंने देश के दुश्मनों को चैन से सोने दिया । वे कुशल #राजनीतिज्ञ के साथ-साथ #बुद्धिचातुर्य में भी अद्भुत थे। वीरता के साथ #विद्वता के भी #उत्तम धनी थे।
शिवाजी के जीवन में ऐसे कई प्रसंग आये जिनमें उनके इन #गुणों का संगम देखने को मिलता है। इसमें से एक मुख्य प्रसंग है -आदिलशाह के सेनापति अफज़लखान के विनाश का ।
शिवाजी के साथ #युद्ध करके उन्हें जीवित ही पकड़ लेने के उद्देश्य से इस खान सरदार ने बहुत बड़ी सेना को साथ में लिया था । तीन साल चले इतनी युद्ध-सामग्री लेकर वह #बीजापुर से निकला था । इतनी विशाल सेना के सामने टक्कर लेने हेतु शिवाजी के पास इतना बडा सैन्यबल नही था ।
शिवाजी ने खान के पास #संदेश भिजवाया : ‘मुझे आपके साथ नहीं लड़ना है । मेरे व्यवहार से #आदिलशाह को बुरा लगा हो तो आप उनसे मुझे माफी दिलवा दीजिये । मैं आपका आभार मानूँगा और मेरे अधिकार में आनेवाला मुल्क भी मैं आदिलशाह को खुशी से सौंप दूँगा ।
#अफज़लखान समझ गया कि शिवाजी मेरी सेना देखकर ही डर गया है । उसने अपने #वकील कृष्ण भास्कर को शिवाजी के साथ बातचीत करने के लिए भेजा । शिवाजी ने #कृष्ण भास्कर का सत्कार किया और उसके द्वारा कहलवा भेजा : ‘मुझे आपसे मिलने आना तो चाहिए लेकिन मुझे आपसे डर लगता है । इसलिए मैं नहीं आ सकता हूँ ।'
इस संदेश को सुनकर कृष्ण भास्कर की सलाह से ही खान ने स्वयं शिवाजी से मिलने का विचार किया और इसके लिए शिवाजी के पास संदेश भी भिजवा दिया ।
शिवाजी ने इस मुलाकात के लिए खान का आभार माना और उसके सत्कार के लिए बड़ी तैयारी की । जावली किले के आस-पास की झाड़ियाँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे । अफज़लखान जब अपने सरदारों के साथ आया तब शिवाजी ने पुनः कहला भेजा : ‘मुझे अब भी भय लगता है । अपने साथ दो सेवक ही रखियेगा । नहीं तो आपसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं होगी ।
शिवाजी ने इस मुलाकात के लिए खान का आभार माना और उसके सत्कार के लिए बड़ी तैयारी की । जावली किले के आस-पास की झाड़ियाँ कटवाकर रास्ता बनाया तथा जगह-जगह पर मंडप बाँधे । अफज़लखान जब अपने सरदारों के साथ आया तब शिवाजी ने पुनः कहला भेजा : ‘मुझे अब भी भय लगता है । अपने साथ दो सेवक ही रखियेगा । नहीं तो आपसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं होगी ।
#खान ने संदेश स्वीकार कर लिया और अपने साथ के सरदारों को दूर रखकर केवल दो तलवारधारी सेवकों के साथ मुलाकात के लिए बनाये गये तंबू में गया । शिवाजी को तो पहले से ही खान के #कपट की #गंध आ गयी थी, अतः अपनी स्वरक्षा के लिए उन्होंने अपने अँगरखे की दायीं तरफ #खंजर छुपाकर रख लिया था और बायें हाथ में #बाघनखा पहनकर मिलने के लिए तैयार खडे रहे ।
जैसे ही खान दोनों हाथ लंबे करके शिवाजी को आलिंगन करने गया, त्यों ही उसने शिवाजी के मस्तक को बगल में दबा लिया । शिवाजी सावधान हो गये । उन्होंने तुरंत खान के पाश्र्व में खंजर #भोंक दिया और #बाघनखे से पेट चीर डाला ।
खान के दगा दगा... की चीख सुनकर उसके #सरदार तंबू में घुस आये । शिवाजी एवं उनके सेवकों ने उन्हें सँभाल लिया । फिर तो दोनों ओर से घमासान #युद्ध छिड गया ।
जब खान के शव को पालकी में लेकर उसके सैनिक जा रहे थे, तब उनके साथ लडकर शिवाजी के सैनिकों ने #मुर्दे का सिर काट लिया और धड़ को जाने दिया ।
खान का पुत्र फाजल खान भी घायल हो गया । खान की सेना की भी बड़ी बुरी हालत हो गयी एवं शिवाजी की सेना जीत गयी । इस युद्ध में शिवाजी को करीब 75 #हाथी, 7000#घोडे, 1200 के करीब #ऊँट, बडा #तोपखाना, 2-3 हजार #बैल, 10-12 #लाख #सोने की मुहरें, 2000 गाड़ी भरकर कपडे एवं तंबू वगैरह का सामान मिल गया था ।
यह शिवाजी की वीरता एवं #बुद्धिचातुर्य का ही परिणाम था । जो काम बल से असंभव-सा था उसे उन्होंने युक्ति से कर लिया ।
कैसे #वीर #योद्धा हो गए अपने देश में, जिन्होंने अपने बुद्धि चातुर्य से वो कर दिखाया जिसकी कल्पना सर्व साधारण की बुद्धि से परे है।
आज देश का #अन्न खाकर जो देश से गद्दारी कर रहे है उन गद्दारों के खिलाफ हर हिन्दू को #शिवाजी से प्रेरणा लेकर #लोहा लेना चाहिए।
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