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राजस्थान पत्रिका के संपादक को प्रेस परिषद् की फटकार
(स्रोत: न्यूज़ भारती हिंदी तारीख: 07 Aug 2015 14:29:24)
नई दिल्ली, अगस्त ७: भारतीय प्रेस परिषद् ने राजस्थान के प्रमुख हिंदी अख़बार राजस्थान पत्रिका के संपादक को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहनराव भागवत के भाषण को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किये जाने और उस पर सम्पादकीय टिप्पणी करने का दोषी करार देते हुए उसकी भर्त्सना की हैं और उसे फटकार लगायी है।
जयपुर के डॉ रमेश चन्द्र अग्रवाल द्वारा २९ अप्रैल २०१३ को प्रेस परिषद को इस आशय की शिकायत भेजी गयी थी जिसमें राजस्थान पत्रिका के संपादक पर डॉ भागवत के इंदौर के भाषण को तोड़-मरोड़कर प्रकाशित करने का और उस पर सम्पादकीय टिप्पणी करने का आरोप लगाया था. प्रेस परिषद ने अपने ८ जुलाई २०१५ के आदेश में राजस्थान पत्रिका को दोषी करार देते हुए परनिन्दा (Admonition) का निर्णय दिया है।
राजस्थान पत्रिका से अपने पत्र को अपेक्षित प्रतिसाद न मिलने के बाद ही डॉ अग्रवाल ने प्रेस परिषद का दरवाजा खटखटाया था और उस अख़बार के खिलाफ करवाई करने की मांग की थी.
राजस्थान पत्रिका ने “बेशर्मशीर्ष” शीर्षक से लिखे एक सम्पादकीय टिप्पणी में संघ के सरसंघचालक डॉ भागवत के इंदौर के वक्तव्य के कुछ अंश सन्दर्भ के बिना उद्धृत किये थे जिसके कारण एक विवाह जैसे पवित्र सम्बन्ध के बारे में एक गलत सन्देश समाज में गया था. राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित वह वक्तव्य इस प्रकार था: “लोग जिसको विवाह कहते हैं वह तो पति और पत्नी के बीच एक करार होता है। किसी कारण से अगर वह करार पूर्ण नहीं होता है तो पत्नी पति को या पति पत्नी को छोड़ सकता है।"
वास्तव में डॉ भागवत का यह वक्तव्य उनके इंदौर में दिए गए भाषण का एक अंश है। यह भाषण २००-३०० साल पुराने सामाजिक करार (Social Contract Theory) के सिद्धांत की समीक्षा पर था. अपने भाषण के दौरान संघ के प्रमुख ने भारतीय और पाश्चात्य तत्वज्ञान और सिद्धांतों के अनेकों उदाहरण दे कर अपने मुद्दे को अधिक स्पष्ट करने का प्रयास किया था.
उनके इस वक्तव्य को सन्दर्भ के बिना प्रकाशित कर राजस्थान पत्रिका ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठन को और उसके सम्माननीय प्रमुख डॉ भागवत को अपमानित किया है, ऐसा शिकायतकर्ता ने कहा था.
यह उल्लेखनीय है की इस भाषण को जब सारा मिडिया तोड़ मरोड़ कर दिखा रहा था तब भी न्यूज भारती ने उस भाषण को सही तथ्यों के साथ प्रकाशित किया था।
डॉ अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका के संपादक को एक पत्र लिख कर गलती को दुरुस्त करने की प्रार्थना की थी और उनके द्वारा भेजे गए स्पष्टीकरण को प्रकाशित करने की विनती की थी. पर उन्हें उचित प्रतिसाद नहीं मिला जिसके चलते २९ अगस्त २०१३ को डॉ अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका को ‘कारण बताओ’ नोटिस जारी किया था. पर उसको भी कोई प्रतिसाद नहीं मिला.
उलटे, इस अख़बार ने अपने लिखित बयान में शिकायतकर्ता के शिकायत को आधारहीन और असत्य बताया. अख़बार ने कहा की उन्होंने जो प्रकाशित किया हैं वह पूर्णतः ‘सत्यता’ पर ही आधारित है। अपने समर्थन में अख़बार ने यह भी कहा की देश के अन्य कई अख़बारों ने इसी प्रकार डॉ भागवत के वक्तव्य को प्रकाशित किया है।
पर डॉ अग्रवाल ने राजस्थान पत्रिका के इस युक्तिवाद को खारिज कर दिया और ३१ मार्च २०१५ को फिर से प्रेस परिषद की समिति के सामने अख़बार के खिलाफ करवाई की मांग को दोहराया.
इस प्रकरण में अंतिम बार ६ अप्रैल २०१५ को जब प्रेस परिषद की जाँच समिति की बैठक हुई तो उस में शिकायतकर्ता की ओर से श्री जी एस गिल और श्री हरभजन सिंह तथा अखबर की ओर से श्री अंकित आर कोठारी ने अपने-अपने पक्ष रखे.
शिकायतकर्ता के वकीलों ने दलील दी कि श्री भागवत ने अपने विचारों को अधिक सुस्पष्ट करने हेतु पाश्चात्य तत्वज्ञान में प्रचलित सामाजिक करार के सिद्धांत को उद्धृत किया था जिसे अख़बार ने शब्दशः श्री भागवत का वक्तव्य हैं ऐसा प्रकाशित किया.
सम्पादकीय टिपण्णी यह दर्शाती है कि श्री भागवत सामाजिक करार के सिद्धांत के समर्थक हैं जबकि ऐसा नहीं है।अतः अखबार ने उनके वक्तव्य को गलत ढंग से और बिना संदर्भ के प्रकाशित किया हैं.
संपादकीय टिप्पणी और श्री भागवत के भाषण को सटीक पढने के बाद जाँच समिति ने कहा कि भारतीय तत्वज्ञान तथा पाश्चात्य तत्वज्ञान के भेद स्पष्ट करते हुए डॉ भागवत ने सामाजिक करार के सिद्धांत का उदाहरण दिया था।समिति का यह मानना था कि राजस्थान पत्रिका ने सन्दर्भ को छोड़ कर केवल उतने अंश को ही प्रकाशित किया और ऐसा कर अख़बार ने डॉ भागवत के वक्तव्य को गलत ढंग से और गलत तरीके से प्रतिपादित किया है।
अपने इस निष्कर्ष पर आधारित समिति ने राजस्थान पत्रिका के संपादक को परनिन्दा करने का और उक्त निर्णय को अख़बार में प्रकाशित करने का निर्देश दिया और प्रेस परिषद को इस निर्णय की जानकारी दी. समिति के निर्णय को स्वीकार करते हुए प्रेस परिषद ने संघ के सरसंघचालक के भाषण के गलत समाचार देने और सम्पादकीय टिप्पणी करने के आरोप में राजस्थान पत्रिका के संपादक की भर्त्सना की और फटकार लगायी.
हाल ही में संघ के शीर्षस्थ नेताओं के भाषणों को तोड़-मरोड़कर प्रकाशित करने और उस माध्यम से जनता में भ्रम पैदा करने की कोशिशें समाचार पत्रों और टीवी चैनलों द्वारा की जाने के अनेक उदहारण दिखाई देते हैं।डॉ भागवत के इंदौर के इस भाषण के सन्दर्भ में भी यही हुआ हैं. राजस्थान पत्रिका के केस में प्रेस परिषद का यह निर्णय ऐसे सभी समाचार पत्रों एवं टीवी चैनलों के लिए सीख की एक मिसाल है।
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