Sunday, September 4, 2016

गणपतिजी का श्रीविग्रह हमें क्या सन्देश देता है ?

🚩#गणेश_चतुर्थी : 5 सितम्बर
#गणपतिजी का श्रीविग्रह - मुखिया का आदर्श
🚩गणेश चतुर्थी... एक पावन पर्व... विघ्नहर्ता प्रभु गणेश के पूजन-आराधन का पर्व...
गणों का जो स्वामी है, उसे ‘#गणपति’ कहते हैं । शास्त्रों में कथा आती है कि माँ #पार्वती ने अपने योगबल से एक बालक प्रकट किया और उसे आज्ञा दी कि ‘मेरी आज्ञा के बिना कोई भी कक्ष के भीतर प्रवेश न करे ।’
🚩इतने में शिवजी आये, तब उस बालक ने उन्हें प्रवेश करने के लिए मना किया । शिवजी और वह बालक, दोनों भिड़ पड़े और शिवजी ने त्रिशूल से बालक का शिरोच्छेद कर दिया । बाद में माँ पार्वती से सारी हकीकत जानकर उन्होंने अपने गणों से कहा : ‘जाओ, जिसका भी मस्तक मिले, ले आओ ।’
🚩गण ले आये हाथी का मस्तक और शिवजी ने उसे बालक के सिर पर स्थापित कर बालक को जीवित कर दिया । वही बालक ‘भगवान गणपति’ कहलाये । 

Jago Hindustani - Ganesh Chaturthi

🚩यहाँ पर एक शंका हो सकती है कि बालक के धड़ पर हाथी का मस्तक कैसे स्थापित हुआ होगा ?
इसका समाधान यह है कि देवताओं की आकृति भले मनुष्य सदृश हो परंतु उनकी काया मानुषी काया से विशाल होती है ।
🚩अभी रूस के कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोग किया, जिसमें एक कुत्ते के सिर को काटकर दो कुत्तों के सिर लगा दिये गये । वह कुत्ता दोनों मुखों से खाता है और जीवित है । जब आज का विज्ञान शल्यक्रिया द्वारा कुत्ते को एक सिर की जगह दो सिर लगाने में सफल हो सकता है तो इससे भी लाखों-करोड़ों वर्ष पहले शिवजी के संकल्प द्वारा बालक के धड़ पर गज का मस्तक स्थित हो जाय, इसमें शंका नहीं करनी चाहिए । शिवजी अपने संकल्प, योग व सामर्थ्य के द्वारा समाज में आश्चर्य, कुतूहल और जिज्ञासा जगाकर हमें सत्प्रेरणा देना चाहते हैं । इस समय भी कुछ ऐसे महापुरुष हैं जो चाँदी की अँगूठी या लोहे के कड़े को हाथ में लेकर उसे अपने यौगिक सामर्थ्य से स्वर्णमय बना देते हैं । स्वामी विशुद्धानंद परमहंस जैसे महापुरुष के इससे भी अद्भुत यौगिक प्रयोग पंडित गोपीनाथ कविराज ने देखे थे ।
छोटी मति-गति के लोग श्री गणपतिजी के लिए कुछ भी कह दें और अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए अश्रद्धा पैदा कर दें परंतु सच्चे, समझदार, अष्टसिद्धि व नवनिधि के स्वामी, इन्द्रियजित, व्यासजी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उनके द्वारा रचित 18 हजार श्लोकोंवाले ‘#श्रीमद्भागवत’ का लेखनकार्यकरनेवाले, लोक-मांगल्य के मूर्त स्वरूप श्री गणपतिजी के विषय में भगवान विष्णु ने कहा है : न पार्वत्याः परा साध्वी न गणेशात्परो वशी...
🚩‘#पार्वतीजी से बढ़कर कोई #साध्वी नहीं और गणेशजी से बढ़कर कोई संयमी नहीं है ।’
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गण. खंड : 44.75)
🚩भगवान तो उपदेश के द्वारा हमारा कल्याण करते हैं, जबकि गणपति भगवान तो अपने श्रीविग्रह से भी हमें प्रेरणा देते हैं और हमारा कल्याण करते हैं ।
🚩उनकी सूँड़ लंबी होती है, जिसका तात्पर्य है कि समाज में या कुटुंबादि में जो बड़ा हो उसे दूर की गंध आनी चाहिए ।
🚩गणेशजी की आँखें हाथी जैसी छोटी-छोटी होती हैं । जैसे #हाथी छोटी आँखें होते हुए भी सुई जैसी बारीक चीज उठा लेता है, वैसे ही समाज आदि के आगेवान की, मुखिया की दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए ।
🚩गणेशजी के कान हाथी जैसे (सूप की नाईं) होते हैं, जो इस बात की ओर इंगित करते हैं कि ‘समाज के गणपति’ अर्थात् अगुआ के कान भी सूप की तरह होने चाहिए, जो बातें तो भले कई सुने किंतु उनमें से सार-सार उसी तरह अपना ले जिस तरह सूप से धान-धान बच जाता है और कचरा-कचरा उड़ जाता है ।
🚩गणपतिजी के दो दाँत हैं - एक बड़ा और एक छोटा । बड़ा दाँत दृढ़ श्रद्धा का और छोटा दाँत विवेक का प्रतीक है । अगर मनुष्य के पास दृढ़ श्रद्धा हो और विवेक की थोड़ी कमी हो, तब भी श्रद्धा के बल से वह तर जाता है ।
🚩गणपतिजी के हाथों में मोदक और दंड है अर्थात् जो साधन-भजन करके उन्नत होते हैं उन्हें वे मधुर प्रसाद देते हैं और जो वक्रदृष्टि रखते हैं उन्हें वक्रदृष्टि दिखाकर, दंड से उनका अनुशासन करके आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं ।
🚩गणपतिजी का पेट बड़ा है - वे लम्बोदर हैं । उनका बड़ा पेट यह प्रेरणा देता है कि जो कुटुंब या समाज का प्रमुख है उसका पेट बड़ा होना चाहिए ताकि वह इस-उसकी बात सुन तो ले किंतु जहाँ-तहाँ उसे कहे नहीं, अपने पेट में ही समा ले ।
🚩गणेशजी के पैर छोटे हैं जो इस बात की ओर संकेत करते हैं कि ‘धीरा सो गंभीरा, उतावला सो बावला ।’ कोई भी कार्य उतावलेपन से नहीं, बल्कि सोच-विचारकर करें, ताकि विफल न हों ।
🚩गणपतिजी का वाहन है - चूहा । इतने बड़े गणपतिजी और #वाहन #चूहा ! हाँ, माता पार्वती का सिंह जिस-किसीसे नहीं हार सकता, #शिवजी का बैल नंदी भी जिस-किसीके घर नहीं जा सकता, परंतु चूहा तो हर जगह घुसकर भेद ला सकता है । इस तरह #क्षुद्र-से-क्षुद्र प्राणी चूहे तक को #भगवान गणपति ने सेवा सौंपी है । छोटे-से-छोटे व्यक्ति से भी बड़े-बड़े काम हो सकते हैं क्योंकि छोटा व्यक्ति कहीं भी जाकर वहाँ की गंध ले आ सकता है ।
🚩इस प्रकार गणपतिजी का श्रीविग्रह समाज या कुटुंब के गणपति अर्थात् मुखिया को प्रेरणा देता है कि ‘जो भी कुटुंब का, समाज का अगुआ है, नेता है उसे गणपतिजी की तरह लंबोदर बनना चाहिए, उसकी दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए, कान विशाल होने चाहिए और गणपतिजी की नाईं वह अपनी इन्द्रियों पर (गणों पर) अनुशासन कर सके ।’
🚩कोई भी शुभ कर्म हो - चाहे #विवाह हो या #गृह-प्रवेश, चाहे विद्यारंभ हो या #भूमिपूजन, चाहे शिव की पूजा हो या #नारायण की पूजा - किंतु सबसे पहले गणेशजी का पूजन जरूरी है ।
गणेश #चतुर्थी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से भगवान गणपति का व्रत-उपवास करवाया था ताकि युद्ध में सफलता मिल सके।

🚩#विघ्नविनाशक भगवान श्री गणपतिजी
जिस प्रकार अधिकांश वैदिक मंत्रों के आरम्भ में ‘ॐ’ लगाना आवश्यक माना गया है, वेदपाठ के आरम्भ में ‘हरि ॐ’ का उच्चारण अनिवार्य माना जाता है, उसी प्रकार प्रत्येक शुभ अवसर पर श्री गणपतिजी का पूजन अनिवार्य है । #उपनयन, #विवाह आदि सम्पूर्ण #मांगलिक_कार्यों के आरम्भ में जो श्री गणपतिजी का पूजन करता है, उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है ।
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश उपासना का विशेष महत्त्व है । इस दिन गणेशजी की प्रसन्नता के लिए इस ‘गणेश #गायत्री’ मंत्र का जप करना चाहिए :
🚩महाकर्णाय विद्महे, #वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्तिः प्रचोदयात् ।
श्रीगणेशजी का अन्य मंत्र, जो समस्त कामनापूर्ति करनेवाला एवं सर्व सिद्धिप्रद है :
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं गणेश्वराय ब्रह्मस्वरूपाय चारवे । सर्वसिद्धिप्रदेशाय विघ्नेशाय नमो नमः ।।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खंड : 13.34)
🚩गणेशजी #बुद्धि के देवता हैं । विद्यार्थियों को प्रतिदिन अपना अध्ययन-कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान गणपति, माँ सरस्वती एवं सद्गुरुदेव का स्मरण करना चाहिए । इससे बुद्धि शुद्ध और निर्मल होती है ।
विघ्न निवारण हेतु
🚩गणेश चतुर्थी के दिन ‘#ॐ_गं_गणपतये_नमः ।’ का #जप करने और गुड़मिश्रित जल से गणेशजी को स्नान कराने एवं दूर्वा व सिंदूर की आहुति देने से विघ्नों का निवारण होता है तथा मेधाशक्ति बढ़ती है ।
🚩- पूज्य #संत श्री #आशारामजी बापू के सत्संग-प्रवचन से
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