ये #नेता #भारत क्या भला करेगा ?
#राहुल गांधी का जन्म 19 जून 1970 को #नई दिल्ली में हुआ था। राहुल गांधी ने शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के #मॉडर्न_स्कूल से की है। इसके बाद राहुल गांधी पढ़ने के लिए देहरादून के दून #स्कूल चले गए।
1989 में राहुल गांधी ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज में एडमिशन लिया, यहां पढ़ाई छोड़कर पढ़ाई के लिए वे यूएस चले गए।
- दिल्ली से पढ़ाई छोड़ने के बाद राहुल गांधी ने #हार्वर्ड_यूनिवर्सिटी में एडमिशन लिया, लेकिन उसके एक साल बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सिक्युरिटी के कारण यहां भी पढ़ाई छोड़नी पड़ी।
- हार्वर्ड से पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने फ्लोरिडा के रोलिन्स कॉलेज में दाखिला लिया और 1994 में आर्ट्स से #ग्रैजुएशन पूरा किया।
Jago Hindustani - Rahul Gandhi |
- 1995 में राहुल गांधी #कैम्ब्रिज यूनवर्सिटी के #ट्रिनिटी_कॉलेज से #एमफिल की #डिग्री ली।
#सुब्रह्मणयम_स्वामी ने दावा किया कि 2001 में राहुल गांधी #अमेरिका में 1.60 लाख डॉलर और ड्रग्स के साथ पकड़े गये थे। उस वक्त #सोनिया गांधी ने तत्कालीन #प्रधानमंत्री अटल बिहारी #वाजपेयी से मदद मांगी थी। स्वामी ने कहा कि उस वक्त वाजपेयी ने राष्ट्रपति जॉर्ज बुश को संदेश भेज का राहुल को छुडवाया था।
राहुल गांधी 2002 में भारत आ गए । राहुल ने मार्च 2004 में #पॉलिटिक्स में एंट्री ली और मई2004 में अपने पिता राजीव गांधी के संसदीय क्षेत्र अमेठी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता।
#इंडिया स्पेंड नाम की #वेबसाइट के हवाले से बड़ा खुलासा ये हुआ है कि सोलहवीं यानी मौजूदा लोकसभा में #कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी ने एक भी सवाल नहीं पूछा है ।
राहुल गांधी 2004 से लोकसभा के सदस्य हैं । राहुल गांधी जब पहली बार लोकसभा सदस्य बने थे तो उन्होंने उस दौरान कुछ सवाल पूछे थे, लेकिन 2009 के बाद उन्होंने प्रश्नकाल में सवाल पूछना करीब-करीब बंद कर दिया । मौजूदा लोकसभा के दो साल गुजर हैं, लेकिन अब तक एक सवाल भी नहीं पूछा है ।
जब चुनाव में हार जाते है तो #देश छोड़कर #विदेश भाग जाते है । बजट सत्र से पहले 56 दिन की छुट्टी पर विदेश चुपके से चले जाते है ।
विदेशों में पढ़ाई करनेवाले राहुल गांधी को सोने की एक बेहतरीन आदत है तभी तो महत्वपूर्ण मुद्दे पर वे सोते नजर आते है ।
9 जुलाई 2014 को सदन में महंगाई पर बहस चल रही थी। राहुलजी उस समय सो रहे थे ।
12 अगस्त, 2015 ललित मोदी के मुद्दे पर सदन में बहस हो रही थी, तब भी राहुल सोते नजर आए।
अब 20 जुलाई 2016 को गुजरात में दलितों पर हमले के मुद्दे पर बहस हो रहा था और राहुल गांधी चैन की नींद सो रहे थे ।
इस पर कुछ उनके चमचे का दलील है कि राहुल गांधी अपने #मोबाइल फोन को चेक कर रहे थे । तो कुछ का कहना था कि बाहर बहुत गर्मी है। जब लोग #संसद के अंदर पहुंचते हैं, तो चूंकि वहां एसी लगा हुआ है, इसलिए लोग अपनी आंखें बंद करके थोड़ा रिलैक्स करते हैं।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा- " वे सो नहीं रहे थे। नीचे देखते हुए अपना इनबॉक्स चेक कर रहे थे। ऐसा करना क्राइम नहीं है।"
कैसी बेतुकी बात है ? जनता के पसीने की कमाई करोड़ों रूपये खर्च होती है सांसदों की सुख-सुविधा पर । वह इसलिए कि वह जनता के दुःखदर्द को समझे वह उसका समाधान ढूढे न कि बाहर जनता के सामने चिल्लाये की हम जनता के बहुत बड़े हितैषी है और संसद भवन में आराम से सोये ।
कुछ लोग इन्हें भविष्य के प्रधानमंत्री देखना चाहते है । क्या ऐसे जिम्मेदार व्यक्ति को देश का प्रधानमंत्री बनाया जाय ?
देश को चलाने के लिए एक जागरुक नेता व जनता दोनों की जरुरत होती हैं और कहते हैं कि एक जागरुक हो तो दूसरे को जगा सकता है । नेता को जागरुक होना बहुत जरुरी हैं तभी वो देश को चलाने में सक्षम होगा लेकिन हमारे नेता अगर सदन में युहीं सोते रहे जब जगे तब साथियों के साथ वाक आउट करते रहे तो पता नहीं देश किस दिशा मे जायेगा ?
कभी #सांप्रदायिक #दंगा, तो कभी आरक्षण का दंगा, कभी दलित प्रेम पर हंगामा, तो कभी #गौमांस पर शोरगुल मचवाना तो कभी निर्भया कांड को लेकर पूरे देश में हंगामा कराना और संसद भवन में इस मुद्दे पर हंगामा कर देश की जनता को नींद हराम करना – इस तरह की नियमित नौटंकी देश राजनेताओं द्वारा हो रहा है । पप्पू, फेंकू, मफलर, चारा चोर, स्पेक्ट्रम घोटालाबाज, गुंडे-हत्यारा नेताओं के भरोसे हम कबतक अपने देश को सुरक्षित समझते रहेंगे । आज सभी देशवासियों को जरूरत है हकीकत को समझने की । प्रजातंत्र हमें वोट तो डालने का हक देती है पर अच्छे उम्मीदवार हमीं में से आगे आना भी जरूरी है ।’ #लोकतंत्र की मूलभूत कमी है -‘जागरूक जनता की #लोकतन्त्र में भागीदारी न होना ।’ हम अपने #नेताओं और #पार्टियों को जिस दिन अनुशासित और नियन्त्रित करना शुरु कर देंगे, उस दिन इनमें से किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वे हम पर अपनी मनमर्जी थोप सकें । नेता को हम कभी नहीं टोकते - ‘क्या पता इस नेता से हमें कब काम पड़ जाए ?’ जब तक हम इस भावना से मुक्त नहीं होते, हमें पार्टियों की और नेताओं की यह मनमर्जी झेलनी ही पड़ेगी । यदि हम परिवर्तन चाहते हैं तो वह हमे ही लाना होगा - अपने आप नहीं आएगा ।
#लोकतन्त्र केवल अधिकर नहीं है । वह जिम्मेदारी है । बल्कि जिम्मेदारी पहले है और अधिकार बाद में । यह जिम्मेदारी निभाने के लिए हमें (हममें से प्रत्येक को), ‘अहर्निश-अनवरत’, सजग, सतर्क, सावधान रहते हुए निरन्तर सक्रिय और प्रयत्नशील बने रहना होगा ।
देश में जब एक बार जागृति फैल जाए तब देश ज्यादा दिन तक सोया नहीं रह सकता। कुछ ही दिनों बाद जनता बहुत जोश के साथ उठती तथा अपनी आवाज बुलंद करती है । आज हिन्दुस्तान में फिर एक सबल और सकारात्मक वैचारिक क्रांति लाने की आवश्यकता है । इसके लिए देशप्रेमी जनता को आगे आना होगा नहीं तो देश फिर गुलामी हो सकता है । जरा सोचिये ऐसा आप चाहते है क्या ?
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🇮🇳जागो हिन्दुस्तानी🇮🇳
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