जानिए क्यों मनाया जाता है #गुरुपूर्णिमा महोत्सव?
19 जुलाई 2016
गुरुपूर्णिमा #भारत में #अनादिकाल से मनायी जाती है तथा कई #देशों - जैसे #दक्षिण_अमेरिका, #यूरोप, #मिस्र, #मेसोपोटेमिया, तिब्बत, #चीन,#जापान आदि में भी मनायी जाती थी ।
परंतु वहाँ परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए #व्यासजी जैसे महापुरुष और उनके उद्देश्य को ठीक से समझनेवाला समाज नहीं हो पाया । भारत में ही ऐसे #महापुरुषों की परम्परा बनी रही और महापुरुषों से लाभ लेकर अपनी सात पीढ़ियाँ तारनेवाले सत्पात्र भी इसी देश में होते रहे हैं, इसलिए अभी भी भारत में #व्यासपूर्णिमा का महोत्सव सुरक्षित है ।
#माता-पिता की सेवा करना सन्तान का धर्म है । पर गुरु की महत्ता उनसे भी बड़ी है क्योंकि माता पिता केवल शरीर को जन्म देते हैं । शरीर का रक्षण और पोषण करते हैं पर गुरु द्वारा आत्मा का विकास, कल्याण एवं बन्धन मुक्ति का जो महान कार्य सम्पन्न किया जाता है, उसकी महत्ता शरीर पोषण की अपेक्षा असंख्यों गुनी अधिक है। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर-मनुष्य जीवन में आध्यात्मिकता को समझने वाले ऋषियों ने गुरुपूर्णिमा का पुनीत पर्व की शुरुआत की ।
gurupurnima- jago hindustani, |
#हिन्दू_धर्म में प्रचलित अन्य सभी #त्यौहारों की अपेक्षा गुरु पूर्णिमा का महत्व अधिक माना गया है। क्योंकि सन्मार्ग के प्रेरक सभी व्रतों पर्वों त्यौहारों से लाभ उठाया जा सकना तभी सम्भव है जब #सद्गुरुओं द्वारा उनकी उपयोगिता एवं आवश्यकता सर्व साधारण को अनुभव कराई जा सके। यदि मार्गदर्शक एवं प्रेरक सद्गुरुओं का अभाव हो जाए, उनकी बात पर ध्यान न दें तो पर्व त्यौहारों एवं #धर्म #शास्त्रों से लाभ उठा सकना जनता के लिए सम्भव न हो पायेगा। #धर्मग्रन्थ घरों में रखे तो रहेंगे, उनके पाठ पूजन भी होते रहेंगे पर उनमें वर्णित तथ्यों में अभिरुचि तो गुरु प्रेरणा बिना कैसे उत्पन्न हो सकेगी? इसी प्रकार सारे त्यौहारों की चिन्ह पूजा होती रहेगी, लोग उन अवसरों पर मिठाई मलाई खाते रहेंगे, हँसी खुशी मनाते रहेंगे पर उनके द्वारा जो कल्याणात्मक प्रवृत्तियाँ विकसित होनी चाहिएं वे गुरु के बिना सम्भव न हो सकेंगी।
#महाभारत, #ब्रह्मसूत्र, #श्री मद् भागवत आदि के रचयिता #महापुरुष #वेदव्यासजी के #ज्ञान का मनुष्यमात्र लाभ ले, इसलिए #गुरुपूनम को देवताओं ने वरदानों से सुसज्जित कर दिया कि जो सत्शिष्य सद्गुरु के द्वार जायेगा, उनके उपदेशों के अनुसार चलेगा उसे 12 महीनों के व्रत-उपवास करने का फल इस पूनम के व्रत-उपवास मात्र से मिल जायेगा ।
ब्रह्मवेत्ताओं के हम ऋणी हैं, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए तथा उनकी शिक्षाओं का स्मरण करके उन पर चलने की प्रतिज्ञा करने के लिए हम इस पवित्र पर्व गुरुपूर्णिमा को मनाते हैं ।
#राष्ट्रीय पर्व के रूप में क्यों नहीं मनाया जाय गुरुपूर्णिमा?
#स्कूली #छात्रों में दिन-दिन बढ़ रही उद्दंडता, अनुशासन की हीनता और धर्म पथ के पथिकों में बढ़ रही अवज्ञा और अनास्था को देखकर देश में सभी विचार शील लोग चिन्तित हैं और इसका समाधान गुरु-शिष्य परम्परा से ही हो सकता है । राष्ट्र निर्माण के लिए आज जिस प्रकार वर्तमान में केन्द्र व राज्य सरकार विभिन्न योजना के अंतर्गत विकास का कार्य कर रही है उसी प्रकार युग निर्माण के लिए भी हमें अपनी #सांस्कृतिक परम्पराओं को पुनः सुव्यवस्थित करना होगा । इसके लिए गुरुतत्व की महिमा को अक्षुण्य रखना एवं उसकी महत्ता से जन साधारण को परिचित कराना भी एक आवश्यक कदम होगा । इससे जहाँ जनमानसमें अपने मार्ग दर्शकों के प्रति पनपने वाली अनास्था एवं कृतघ्नता घटेगी ।
गुड फ्राइडे के दिन छुट्टी हो, ईद के दिन छुट्टी हो, क्रिसमस-डे के दिन छुट्टी हो, विभिन्न दिवसों पर भी सरकारी छुट्टी घोषित की जाती है । हमें मनाही नहीं लेकिन इतने बड़े पर्व जो जनमानस को अंधकार से प्रकाश की ओर प्रेरित करता है । उसके लिए छुट्टी की घोषणा नहीं होनी चाहिए ? इसे राष्ट्रीय पर्व के रूप में नहीं मनाया जाना चाहिए ? वर्तमान समाज में गुरु-शिष्य परम्परा अति ही आवश्यक है । इस परम्परा को संत-महापुरुषों पल्वित-पुष्पित करते हैं । लेकिन वर्तमान में #षड्यंत्र के तहत इन महापुरुषों पर झूठे आरोप लगाकर बदनाम व जेल में डाल दिया जा रहा है । इसका बहुत ही बड़े उदाहरण है। #शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती जी, स्वामी #असीमानन्द, संत #आशारामजी बापू, साध्वी प्रज्ञा, स्वामी अमृतानन्द जी ।
इस तरह के #संस्कृति पर हो रहे प्रहार से #भारतीय संस्कृति को गहरा आघात पहुँच रहा है । ऐसे षड्यंत्र को समझना होगा और जनमानस को इसके खिलाफ आवाज भी उठानी होगी । भारतवासी अब नहीं जागोगे तो कब जागोगे ?
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