
प्राचीन काल में ऋषियों के पास इतनी संपत्ति होती थी, कि बड़े बड़े राजा जब आर्थिक संकट में आ जाते थे, तब उनसे लोन लेकर अपने राज्य की अर्थ व्यवस्था ठीक करते थे ।

कौत्स ब्राह्मण ने अपने गुरु वर्तन्तु को 14 करोड स्वर्ण मुद्रा गुरु दक्षिणा में दी थी ।

साधू संतो के पास संपत्ति नहीं होगी तो वे धर्म प्रचार का कार्य कैसे करेंगे


प्राचीन काल में राज्य से धर्म प्रचार के लिए धन दिया जाता था । भगवान बुद्ध के प्रचार के लिए सम्राट अशोक जैसे राजाओं ने अपनी सारी संपत्ति लगा दी और आज के समय में सरकार मंदिरों व आश्रमो की संपत्ति और आय को हड़प कर लेती है और उसे चर्च एवं मस्जिदों में खर्च करती है लेकिन हिंदू धर्म के प्रचार के लिए पैसा खर्च नहीं करती ।

आम हिंदू समाज भी अपने परिवार के लिए ही सब धन खर्च करना जानता है, धर्म की सेवा के लिए 10% आय भी लगाता नहीं और लोगों के अपवित्र जीवन और उदासीनता के कारण भिक्षा वृत्ति भी अब संभव नहीं है ।

इसलिए आश्रमवासियों के लिए भोजन बनाने के लिए भी संतों को व्यवस्था करनी पड़ती है । उनको व्यापारी मुफ्त में तो दाल, चावल, शक्कर, आदि नहीं देंगे ।

अपरिग्रह की बात सिर्फ हिंदू साधुओं के लिए ही सिखाई जाती है ।

बिकाऊ मीडिया को हिंदू साधुओं की संपत्ति पर ही बार-बार स्टोरी बनाकर दिखाते है, ईसाई पादरिओ की नही जबकि उनके पास दुनिया में सबसे ज्यादा संपत्ति है और उसमें से 17 हजार करोड़ डॉलर हर साल ईसाई धर्मांतरण पर खर्च किया जाता है ।
जिसके बारे में आम लोगों को पता भी नहीं चलता ।

इसपर मीडिया चुप क्यों ?
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