To Get Education in Mother Tongue is the Birthright!
जागो हिन्दुस्तानी
अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करना जन्मसिद्ध अधिकार है !
राष्ट्रभाषा-दिवस : १४ सितम्बर
लॉर्ड मैकाले ने कहा था : ‘मैं यहाँ की शिक्षा-पद्धति में ऐसे कुछ संस्कार डाल जाता हूँ कि आनेवाले वर्षों में भारतवासी अपनी ही संस्कृति से घृणा करेंगे... मंदिर में जाना पसंद नहीं करेंगे... माता-पिता को प्रणाम करने में तौहीन महसूस करेंगे... वे शरीर से तो भारतीय होंगे लेकिन दिलोदिमाग से हमारे ही गुलाम होंगे...
हमारी शिक्षा-पद्धति में उसके द्वारा डाले गये संस्कारों का प्रभाव आज स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है । आज के विद्यार्थी पढ-लिख के ग्रेजुएट होकर बेरोजगार हो नौकर बनने के लिए भटकते रहते हैं ।
महात्मा गांधी के शब्दों में : ‘‘लोगों को अंग्रेजी की शिक्षा देना उन्हें गुलामी में डालने जैसा है । मैकाले ने शिक्षा की जो बुनियाद डाली, वह सचमुच गुलामी की बुनियाद थी । यह क्या कम जुल्म की बात है कि अपने देश में अगर मुझे इंसाफ पाना हो तो मुझे अंग्रेजी भाषा का उपयोग करना पडे ! हम ऐसी शिक्षा के शिकार होकर मातृद्रोह करते हैं ।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भी मातृभाषा को बडे सम्मान से देखा और कहा था कि ‘‘अपनी भाषा में शिक्षा पाना जन्मसिद्ध अधिकार है । ‘जिस तरह हमने माँ की गोद में जन्म लिया है, उसी तरह मातृभाषा की गोद में जन्म लिया है । ये दोनों माताएँ हमारे लिए सजीव और अपरिहार्य हैं ।
आज अपनी मानसिक गुलामी की वजह से ही हम यह मानने लगे हैं कि अंग्रेजी के बिना हमारा काम चल नहीं सकता ।
विद्यार्थियों को मातृभाषा में शिक्षा देना मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप से अति आवश्यक है, क्योंकि विद्यालय आने पर बच्चे यदि अपनी भाषा को व्यवहार में आयी हुई देखते हैं तो वे विद्यालय में आत्मीयता का अनुभव करने लगते हैं । साथ ही उन्हें सब कुछ यदि उन्हींकी भाषा में पढाया जाता है तो उनके लिए सारी चीजों को समझना बहुत ही आसान हो जाता है ।
जापान देश में जितनी उन्नति हुई है, वह वहाँ की अपनी भाषा जापानी के ही कारण है । जापान ने अपनी भाषा की क्षमता पर भरोसा किया और अंग्रेजी के प्रभुत्व से जापानी भाषा को बचाकर रखा ।
जापानी इसके लिए धन्यवाद के पात्र हैं क्योंकि वे अमेरिका जाते हैं तो वहाँ भी अपनी मातृभाषा में ही बातें करते हैं । ...और हम भारतवासी ! भारत में रहते हैं फिर भी अपनी हिन्दी आदि भाषाओं में अंग्रेजी के शब्दों की मिलावट कर देते हैं । गुलामी की मानसिकता ने ऐसी गंदी आदत डाल दी है कि उसके बिना रहा नहीं जाता । आजादी मिले ६८ वर्ष से भी अधिक समय हो गया; बाहरी गुलामी की जंजीर तो छूटी लेकिन भीतरी गुलामी, दिमागी गुलामी अभी तक नहीं गयी ।
अतः अपनी मातृभाषा की गरिमा को पहचानें । अपने बच्चों को अंग्रेजी(कन्वेंट स्कूलो) में शिक्षा दिलाकर उनके विकास को अवरुद्ध न करें । उन्हें मातृभाषा(गुरुकुलो) में पढने की स्वतंत्रता देकर उनके चहुमुखी विकास में सहभागी बनें । ऋषि प्रसाद : अगस्त २०११ देखिये वीडियो Official Jago hindustani Visit Youtube - https://goo.gl/J1kJCp Wordpress - https://goo.gl/NAZMBS Blogspot - http://goo.gl/1L9tH1 Twitter - https://goo.gl/iGvUR0 FB page - https://goo.gl/02OW8R
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