वीर सावरकर को गद्दार बोलने वाली कांग्रेस इस लेख को ठीक से पढ़ ले तो सच पता चल जायेगा...!!!
#वीर सावरकर पहले #क्रांतिकारी #देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में #ब्रिटेन की रानी #विक्टोरिया की #मृत्यु पर #नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?
क्या किसी #भारतीय महापुरुष के निधन पर #ब्रिटेन में शोक सभा हुई है...???
#वीर सावरकर पहले #क्रांतिकारी #देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में #ब्रिटेन की रानी #विक्टोरिया की #मृत्यु पर #नासिक में शोक सभा का विरोध किया और कहा कि वो हमारे शत्रु देश की रानी थी, हम शोक क्यूँ करें?
क्या किसी #भारतीय महापुरुष के निधन पर #ब्रिटेन में शोक सभा हुई है...???
वीर सावरकर पहले देशभक्त थे जिन्होंने एडवर्ड सप्तम के #राज्याभिषेक समारोह का उत्सव मनाने वालों को #त्र्यम्बकेश्वर में बड़े बड़े पोस्टर लगाकर कहा था कि #गुलामी का उत्सव मत मनाओ।
वीर सावरकर पहले ऐसे #क्रांतिकारी थे जिन्होंने #विदेशी #वस्त्रों का दहन किया, तब बाल #गंगाधर तिलक ने अपने पत्र #केसरी में उनको शिवाजी के समान बताकर उनकी प्रशंसा की थी जबकि इस घटना की दक्षिण अफ्रीका के अपने पत्र 'इन्डियन ओपीनियन' में गाँधी ने निंदा की थी।
विदेशी वस्त्रों की पहली होली पूना में 7 अक्तूबर 1905 को वीर सावरकर ने जलाई थी।
सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।
सावरकर द्वारा विदेशी वस्त्र दहन की इस प्रथम घटना के 16 वर्ष बाद गाँधी उनके मार्ग पर चले और 11 जुलाई 1921 को मुंबई के परेल में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया।
वीर सावरकर पहले भारतीय थे जिनको 1905 में विदेशी वस्त्र दहन के कारण #पुणे के फर्म्युसन #कॉलेज से निकाल दिया गया और दस रूपये जुर्माना किया गया। इसके #विरोध में हड़ताल भी हुई।
स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
स्वयं तिलक जी ने 'केसरी' पत्र में सावरकर के पक्ष में सम्पादकीय लिखा...
वीर सावरकर ऐसे पहले #बैरिस्टर थे जिन्होंने 1909 में ब्रिटेन में ग्रेज-इन परीक्षा पास करने के बाद #ब्रिटेन के राजा के प्रति $वफादार होने की शपथ नही ली... इस कारण उन्हें बैरिस्टर होने की उपाधि का पत्र कभी नही दिया गया।
वीर सावरकर पहले ऐसे लेखक थे जिन्होंने #अंग्रेजों द्वारा गद्दार कहे जाने वाले संघर्ष को '1857 का स्वातंत्र्य समर' नामक ग्रन्थ लिखकर सिद्ध कर दिया...
वीर सावरकर पहले ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनके लिखे '1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक पर ब्रिटिश संसद ने प्रकाशित होने से पहले प्रतिबन्ध लगाया था।
'1857 का स्वातंत्र्य समर' विदेशों में छापा गया और भारत में भगत सिंह ने इसे छपवाया था जिसकी एक-एक प्रति तीन-तीन सौ रूपये में बिकी थी।
भारतीय क्रांतिकारियों के लिए यह पवित्र गीता थी... #पुलिस छापों में देशभक्तों के घरों में यही पुस्तक मिलती थी।
वीर सावरकर पहले #क्रान्तिकारी थे जो समुद्री जहाज में बंदी बनाकर ब्रिटेन से भारत लाते समय 8 जुलाई 1910 को समुद्र में कूद पड़े थे और तैरकर फ्रांस पहुँच गए थे।
वीर सावरकर पहले क्रान्तिकारी थे जिनका मुकद्दमा अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग में चला, मगर ब्रिटेन और फ्रांस की मिलीभगत के कारण उनको न्याय नही मिला और बंदी बनाकर भारत लाये गए।
वीर सावरकर विश्व के पहले क्रांतिकारी और भारत के पहले राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सरकार ने दो जन्म कारावास की सजा सुनाई थी।
वीर सावरकर पहले ऐसे देशभक्त थे जो दो जन्म कारावास की सजा सुनते ही हंसकर बोले- "चलो, ईसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म सिद्धांत को मान लिया।"
वीर सावरकर पहले राजनैतिक बंदी थे जिन्होंने काला पानी की सजा के समय 10 साल से भी अधिक समय तक आजादी के लिए कोल्हू चलाकर 30 पोंड तेल प्रतिदिन निकाला।
वीर सावरकर काला पानी में पहले ऐसे कैदी थे जिन्होंने काल कोठरी की दीवारों पर कंकर कोयले से कवितायें लिखी और 6000 पंक्तियाँ याद रखी।
वीर सावरकर पहले देशभक्त लेखक थे, जिनकी लिखी हुई पुस्तकों पर आजादी के बाद कई वर्षों तक प्रतिबन्ध लगा रहा।
वीर सावरकर पहले विद्वान लेखक थे जिन्होंने हिन्दू को परिभाषित करते हुए लिखा कि-
'आसिन्धु सिन्धुपर्यन्ता यस्य भारत भूमिका।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है।
पितृभू: पुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितीस्मृतः.'
अर्थात समुद्र से हिमालय तक भारत भूमि जिसकी पितृभू है जिसके पूर्वज यहीं पैदा हुए हैं व यही पुण्य भू है, जिसके तीर्थ भारत भूमि में ही हैं, वही हिन्दू है।
वीर सावरकर प्रथम राष्ट्रभक्त थे जिन्हें अंग्रेजी सत्ता ने 30 वर्षों तक जेलों में रखा तथा आजादी के बाद 1948 में नेहरु सरकार ने गाँधी हत्या की आड़ में लाल किले में बंद रखा पर न्यायालय द्वारा आरोप झूठे पाए जाने के बाद सह-सम्मान रिहा कर दिया... देशी-विदेशी दोनों सरकारों को उनके राष्ट्रवादी विचारों से डर लगता था।
जब उनका 26 फरवरी 1966 को स्वर्गारोहण हुआ तब भारतीय संसद में कुछ सांसदों ने शोक प्रस्ताव रखा तो यह कहकर रोक दिया गया कि वे संसद सदस्य नही थे जबकि चर्चिल की मौत पर शोक मनाया गया था...
वीर सावरकर पहले क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त स्वातंत्र्य वीर थे जिनके मरणोपरांत 26 फरवरी 2003 को उसी संसद में मूर्ति लगी जिसमे कभी उनके निधन पर शोक प्रस्ताव भी रोका गया था।
वीर सावरकर ऐसे पहले राष्ट्रवादी विचारक थे जिनके चित्र को संसद भवन में लगाने से रोकने के लिए कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा लेकिन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने सुझाव पत्र नकार दिया और वीर सावरकर के चित्र अनावरण राष्ट्रपति ने अपने कर-कमलों से किया...
वीर सावरकर पहले ऐसे राष्ट्रभक्त हुए जिनके शिलालेख को अंडमान द्वीप की सेल्युलर जेल के कीर्ति स्तम्भ से UPA सरकार के मंत्री मणिशंकर अय्यर ने हटवा दिया था और उसकी जगह गांधी का शिलालेख लगवा दिया..
वीर सावरकर ने दस साल आजादी के लिए काला पानी में कोल्हू चलाया था ।
वीर सावरकर माँ भारती के पहले सपूत थे जिन्हें जीते जी और मरने के बाद भी आगे बढ़ने से रोका गया।
पर आश्चर्य की बात यह है कि इन सभी विरोधियों के घोर अँधेरे को चीरकर आज भी वीर सावरकर के राष्ट्रवादी विचारों का सूर्य उदय हो रहा है.........
जय वीर सावरकर
जय वीर सावरकर
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