महाराणा प्रताप स्मृतिदिन - 7 फरवरी
राजपूतों की सर्वोच्चता एवं स्वतंत्रता के प्रति दृढ-संकल्पवान वीर शासक एवं महान #देशभक्त #महाराणा_प्रताप का नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित है।
#महाराणा प्रताप महान व्यक्ति थे। उनके गुणों के कारण सभी उनका सम्मान करते थे।
महाराणा प्रताप स्मृतिदिन - 7 फरवरी |
ज्येष्ठ शुक्ल तीज सम्वत् 9 मई 1540 को #मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर जन्मे उनके #ज्येष्ठ #पुत्र महाराणा प्रताप को बचपन से ही अच्छे संस्कार, #अस्त्र-शस्त्र का #ज्ञान और #धर्म की #रक्षा की प्रेरणा अपने #माता-पिता से मिली।
सादा जीवन और दयालु स्वभाव वाले #महाराणा प्रताप की वीरता और स्वाभिमान तथा #देशभक्ति की भावना से #अकबर भी बहुत प्रभावित हुआ था।
#महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो, लम्बाई 7'5”थी, दो म्यान वाली तलवार और 80 किलो का भाला रखते थे ।
जब मेवाड़ की सत्ता राणा प्रताप ने संभाली, तब आधा मेवाड़ #मुगलों के अधीन था और शेष मेवाड़ पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये अकबर प्रयासरत था।
#राजस्थान के कई परिवार #अकबर की शक्ति के आगे घुटने टेक चुके थे, किन्तु #महाराणा प्रताप अपने वंश को कायम रखने के लिये संघर्ष करते रहे और अकबर के सामने #आत्मसर्मपण नही किये।
महाराणा प्रताप ने अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा प्रताप से डरकर उनको समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा।
जलाल खान कोरची (सितम्बर 1572)
मानसिंह (1573)
भगवान दास (सितम्बर–अक्टूबर 1573)
टोडरमल (दिसम्बर 1573)
हल्दीघाटी का युद्ध
यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड तथा मुगलों के मध्य हुआ था। हल्दीघाटी युद्ध में 20,0000 राजपूतों को साथ लेकर राणा प्रताप ने अकबर की 80,000 की सेना का सामना किया । यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गए।
इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम खाँ सूरी।
इस युद्ध में मुगल अकबर सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनी ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में शत्रु सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके उनके जीवन की रक्षा की ।
वहीं ग्वालियर नरेश 'राजा रामशाह तोमर' भी अपने तीन पुत्रों 'कुँवर शालीवाहन', 'कुँवर भवानी सिंह 'कुँवर प्रताप सिंह' और पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैंकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गए।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजयी नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजयी हुए । अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर टिक पाते पर एेसा कुछ नहीं हुआ । ये युद्ध पूरे एक दिन चला ओेैर राजपूतों ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिये थे ,सबसे बड़ी बात यह है कि युद्ध आमने-सामने लड़ा गया था। महाराणा की सेना ने मुगल की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।
#हल्दीघाटी की मिट्टी का रंग हल्दी की तरह पीला है। यही पर महाराणा प्रताप की सेना ने अकबर की #फौज को नाको चने चबाने मजबूर कर दिया था।
वीर #योद्धा महाराणा प्रताप और #अकबर के बीच हल्दीघाटी में हुए युद्ध के बाद अकबर #मानसिक रूप से बहुत विचलित हो गया था।
कई दौर में हुए इस युद्ध के बारे में कहा जाता है कि अकबर महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल से इतना घबरा गया था कि उसे सपने में महाराणा प्रताप दिखते थे।
अकबर अपने महल में जब वह सोता था तब रात में #नींद में कांपने लगता था । अकबर की हालत देख उसकी #पत्नियां भी घबरा जाती, इस दौरान वह जोर-जोर से महाराणा प्रताप का नाम लेता था।
महाराणा प्रताप के #हल्दीघाटी के युद्ध के बाद का समय पहाड़ों और जंगलों में व्यतीत हुआ। अपनी #पर्वतीय युद्ध नीति के द्वारा उन्होंने अकबर को कई बार मात दी।
यद्यपि #जंगलो और #पहाड़ों में रहते हुए महाराणा प्रताप को अनेक प्रकार के #कष्टों का सामना करना पड़ा किन्तु उन्होंने अपने आदर्शों को नही छोड़ा ।
हल्दीघाटी के युद्ध में उन्हें भले ही पराजय का सामना करना पड़ा किन्तु हल्दीघाटी युद्ध के बाद अपनी शक्ति को संगठित करके, शत्रु को पुनः चुनौती देना प्रताप की युद्ध नीति का एक अंग था।
महाराणा प्रताप ने #भीलों की शक्ति को पहचान कर उनके अचानक धावा बोलने की कारवाई को समझा और अपनी छापामार युद्ध पद्धति से अनेक बार मुगल सेना को कठिनाइयों में डाला था।
महाराणा प्रताप ने अपनी #स्वतंत्रता का संघर्ष । जीवनपर्यन्त जारी रखा था। वे अपने #शौर्य, उदारता तथा अच्छे गुणों से जनसमुदाय में प्रिय थे।
महाराणा प्रताप सच्चे क्षत्रिय योद्धा थे, उन्होने अमरसिंह द्वारा पकड़ी गई बेगमों को सम्मानपूर्वक वापस भिजवाकर अपने विशाल #ह्रदय का परिचय दिया।
जंगल-जंगल भटकते हुए तृण-मूल व घास-पात की रोटियों में गुजर-बसर कर #पत्नी व #बच्चे को विकराल परिस्थितियों में अपने साथ रखते हुए भी उन्होंने कभी #धैर्य नहीं खोया।
पैसे के अभाव में सेना के टूटते हुए #मनोबल को पुनर्जीवित करने के लिए दानवीर भामाशाह ने अपना पूरा खजाना #समर्पित कर दिया। तो भी महाराणा प्रताप ने कहा कि सैन्य आवश्यकताओं के अलावा मुझे आपके खजाने की एक पाई भी नहीं चाहिए।
सफलता और अवसान
महाराणा ने ई.पू. 1585 में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को और भी तेज कर लिया । महाराणा की सेना ने मुगल चौकियां पर आक्रमण शुरू कर दिए और तुरंत ही उदयपुर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया , उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था , पूर्ण रूप से उतने ही भूमि भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त कराने मे सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित हुआ।
महाराणा प्रताप को स्थापत्य, #कला, #भाषा और साहित्य से भी लगाव था। वे स्वयं विद्वान तथा कवि थे। उनके शासनकाल में अनेक विद्वानो एवं साहित्यकारों को आश्रय प्राप्त था।
अपने शासनकाल में उन्होंने युद्ध में उजड़े गाँवों को पुनः व्यवस्थित किया। नवीन राजधानी चावण्ड को अधिक आकर्षक बनाने का श्रेय महाराणा प्रताप को जाता है। #राजधानी के भवनों पर कुम्भाकालीन स्थापत्य की अमिट छाप देखने को मिलती है। पद्मिनी चरित्र की रचना तथा दुरसा आढा की कविताएं महाराणा प्रताप के युग को आज भी #अमर बनाये हुए हैं।
महाराणा प्रताप में अच्छे सेनानायक के गुणों के साथ-साथ अच्छे व्यस्थापक की विशेषताएँ भी थी। अपने सीमित साधनों से ही अकबर जैसी शक्ति से दीर्घ काल तक टक्कर लेने वाले वीर महाराणा प्रताप के स्वर्गवास पर अकबर भी दुःखी हुआ था।
महाराणा प्रताप सिंह के डर से अकबर अपनी राजधानी लाहौर लेकर चला गया और महाराणा के स्वर्ग सिधारने के बाद आगरा ले आया।
अकबर के अनुसार - महाराणा प्रताप के पास साधन सीमित थे, किन्तु फिर भी वो झुके नही, डरे नही।
महाराणा प्रताप के मजबूत इरादों ने अकबर के सेनानायकों के सभी प्रयासों को नाकाम बना दिया। उनके #धैर्य और साहस का ही असर था कि 30 वर्ष के लगातार प्रयास के बावजूद अकबर महाराणा प्रताप को बन्दी न बना सका।
महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय #घोड़ा ‘#चेतक‘ था जिसने अंतिम सांस तक अपने स्वामी का साथ दिया था।
अकबर भी महाराणा प्रताप की अदम्य वीरता, दृढ़साहस और उज्जवल कीर्ति को परास्त न कर सका । आखिरकार शिकार के दौरान लगी चोटों की वजह से महारणा प्रताप का स्वर्गवास 19 जनवरी 1597 (माघ शुक्ल पक्ष एकादशी ) को चावंड में हुआ ।
'एक सच्चे राजपूत, शूरवीर, देशभक्त, योद्धा, मातृभूमि के रखवाले के रूप में महाराणा प्रताप दुनिया में सदैव के लिए अमर हो गए।
महाराणा प्रताप सिंह के मृत्यु पर अकबर की प्रतिक्रिया
महाराणा प्रताप के स्वर्गावसान के वक्त अकबार लाहौर में था महाराणा प्रताप के स्वर्गवास पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के गुणों का प्रशंसक था और अकबर जानता था कि महाराणा जैसा वीर कोई नहीं है इस धरती पर। यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आंसू आ गए।
आज भी महाराणा प्रताप का नाम असंख्य भारतीयों के लिये #प्रेरणास्रोत है। राणा प्रताप का स्वाभिमान भारत माता की पूंजी है। वह अजर अमरता के गौरव तथा मानवता के विजय सूर्य है। राणा प्रताप की देशभक्ति, पत्थर की अमिट लकीर है। ऐसे #पराक्रमी भारत माँ के वीर सपूत महाराणा प्रताप को #राष्ट्र का #शत्-शत् नमन।
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