न्यायालयों में 2.81 करोड़ मामले प्रलंबित, 5000 न्यायाधीशों की कमी !
देश भर की जिला न्यायालयों में 2.8 करोड़ मामले लंबित हैं और इन न्यायालयों में करीब 5000 न्यायिक #अधिकारियों की कमी है जो बेहद चिंताजनक स्थिति है। इस स्थिति के मद्देनजर उच्चतम न्यायालय की दो रिपोर्टों में न्यायिक अधिकारियों की संख्या को कम से कम सात गुना बढ़ाने की सिफारिश की गई है ताकि आगामी कुछ वर्षों में करीब 15000 से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति कर इस संकट से उबरा जा सके।
न्यायालयों में 2.81 करोड़ मामले प्रलंबित, 5000 न्यायाधीशों की कमी ! |
न्यायालय की दो रिपोर्टों ‘भारतीय न्यायपालिका वार्षिक रिपोर्ट 2015-16 ’ एवं ‘भारत की अधीनस्थ अदालतें: न्याय तक पहुंच पर रिपोर्ट 2016’ में ये सुझाव दिए गए हैं और कई तीखी टिप्पणियां की गई हैं।
इसमें कहा गया है कि इस चिंताजनक स्थिति से उबरने के लिए आगामी तीन वर्षों में 15000 से अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होगी।
आंकड़ों में दिखाया गया है कि देश भर की जिला न्यायालयों में एक जुलाई 2015 से 30 जून 2016 के बीच 2,81,25,066 #दीवानी एवं आपराधिक मामले लंबित हुए हैं। इसी अवधि में 1, 89,04,222 की बड़ी संख्या में मामलों का निपटारा किया गया है।
हिन्दूजागृति के सम्पादक ने लिखा है कि
कछुएं की गति से चलनेवाली #न्यायप्रणाली ! यदि एेसी स्थिती रही, तो जनता को न्याय कब मिलेगा ?
बात सही है क्योंकि जब #असमाजिक तत्वों द्वारा निर्दोष लोगों पर झूठे आरोप लगने से पुलिस गिरफ्तार करके उनको जेल में डाल देती है फिर उनको जमानत तक नही मिल पाती है वो निर्दोष अपनी जमीन, गहने, घर बेचकर और अपना काम धंधा छोड़कर न्याय पाने के लिए जीवन भर कोर्ट में #चक्कर लगाता रहता है लेकिन उसको न्याय नही मिलता है तो आखिर वो जिंदगी से निराश हो जाता है ।
दूसरी ओर जिनके साथ सच में अपराध हुआ है और उसके सामने अपराध करने वाले अपराधी को भी सजा नही मिलती है तो वो भी अपनी जिंदगी में निराश ही रहता है ।
एक तरफ निर्दोष न्याय की आस में बैठे हैं दूसरी ओर न्यायालयों में न्यायधीश ही नही हैं इसके लिए पूर्व #चीफ #जस्टिस टी. एस ठाकुर ने कई बार केंद्र सरकार से सिफारिश की लेकिन उनकी कोशिश नाकाम ही रही ।
#राष्ट्रपति #प्रणब मुखर्जी ने भी निर्दोषों को न्याय नही मिलने पर सवाल उठाये थे उन्होंने कहा था कि देश में कई मामलों को सुलझाने के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाये जा रहे हैं । आजकल कई मामलों पर सुनवाई न होने के कारण शिकायत कर्ताओ का विश्वास कानून से टूटता जा रहा है। जिससे भारतीय न्याय व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं ।
कई मामले ऐसे भी हैं जिन पर तुरंत कार्यवाही न होने के कारण लोग #आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं । जिससे कि देश की एकता और अखंडता पर सवाल खड़े हो रहे है।
पूर्व मुख्य #न्यायाधीश टी.एस.ठाकुर ने भी कहा था कि एक संस्था के तौर पर न्यायपालिका विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रही है, जो उसके खुद के लिए एक चुनौती है। उन्होंने #न्यायाधीशों से अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत रहने को कहा। काफी संख्या में मामलों के लंबित होने पर भी चिंता जताई थी ।
आज भारत की #न्याय व्यवस्था पर प्रश्न उठ रहे हैं, सालों से निर्दोष जेल के अंदर होने के कारण #न्यायपालिका अपनी विश्वसनीयता लोगों के मन से खोती चली जा रही है।
आज हम सोशल मीडिया पर भी गलत कानून के द्वारा फंसे निर्दोष लोगों पर कई प्रकार के हैशटैग द्वारा ट्रेंड बनते देख रहे है। जैसे-
#न्याय_की_आस
#निर्दोष_को_न्याय_मिले
#पक्षपाती_न्याय
#IsHumanRightAlive
#निर्दोष_को_जेल_क्यों आदि !!
हमारे संविधान में लिखा है कि "चाहे सौ गुनाहगार छूट जाये,पर एक #निर्दोष को सजा नही होनी चाहिए"
पर आज कहाँ है वो कानून...???
आज कहाँ है वो कानून...जो निर्दोषों के साथ न्याय करें...???
आज कहाँ है वो कानून जो #भ्रष्टाचारियों को दण्डित करें...???
आज कहाँ है वो कानून जो निर्दोष संतो के साथ न्याय करें...???
सब जगह #भ्रष्टाचार ही भ्रष्टाचार व्याप्त है...!!!
आज हर आम #इंसान #कानून के पक्षपाती रवैये को भाप रहा है कि कैसे बड़े से बड़े गुनाहगार को जमानत और बरी किया जा रहा है।
जबकि सालों से निर्दोष जेल में बिना वजह सजा काट रहे है।
आखिर कब देगा कानून #इंसाफ #निर्दोषो को...इसी ओर आज हर भारतवासी का ध्यान केंद्रित है।
जय हिन्द!!
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🇮🇳 आज़ाद भारत🇮🇳
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