मुगल काल में बलिदान के कई ऐसे किस्से हैं जिन्हें उंगलियों पर गिनाया जा सकता है औरंगजेब के समय में हिंदुओं पर ऐसा कहर ढाया गया कि धरती कांप उठी और आसमान थराने लगा था जिहाद के नाम पर हिंदुओं को बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जा रहा था औरंगजेब कि सेना को सरे राह जो भी हिंदु या सिक्ख मिलता उसे हिंदुत्व छोडऩे के लिए बाध्य किया जाता इनकार करने पर उसे यातनाएं दी जाती और फिर उसका सिर कलम कर दिया जाता धर्म परिवर्तन के लिए हिंदुओं को बकरों की तरह काटा जाता ।
Do not change religion on the life of religion, know the great saga of sacrifice |
औरंगजेब ने इस उद्देश्य के लिए कश्मीर को चुना क्योंकि उन दिनों कश्मीर हिन्दू सभ्यता संस्कृति का गढ़ था वहाँ के पण्डित हिन्दू धर्म के विद्धानों के रूप में विख्यात थे औरंगजेब ने सोचा कि यदि वे लोग इस्लाम धारण कर लें तो बाकी अनपढ़ व मूढ़ जनता को इस्लाम में लाना सहज हो जायेगा और ऐसे विद्वान समय आने पर इस्लाम के प्रचार में सहायक बनेंगे और जनसाधारण को दीन के दायरे में लाने का प्रयत्न करेंगे अतः उसने इफ़तखार ख़ान को शेर अफगान का खिताब देकर कश्मीर भेज दिया और उसके स्थान पर लाहौर का राज्यपाल,गवर्नर फिदायर खान को नियुक्त किया।
लेकिन गुरु तेगबहादुर के पास जब कश्मीर से हिन्दू औरंगजेब के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने कि प्रार्थना करने आये तो वे उससे मिलने दिल्ली चल दिये।
लेकिन गुरु तेगबहादुर के पास जब कश्मीर से हिन्दू औरंगजेब के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने कि प्रार्थना करने आये तो वे उससे मिलने दिल्ली चल दिये।
दिल्ली जाते समय मार्ग में आगरा में ही उनके साथ भाई मतिदास, भाई सतिदास तथा भाई दयाला को बन्दी बना लिया गया। इनमें से पहले दो सगे भाई थे। हिन्दू का स्वाभिमान नष्ट होता जा रहा था। उनकी अन्याय एवं अत्याचार के विरुद्ध प्रतिकार करने कि शक्ति लुप्त होती जा रही थी आगरे से हिन्दुओं पर अत्याचार कि खबर फैलते फैलते लाहौर तक पहुंच गयी हिन्दू स्वाभिमान के प्रतीक भाई मतिराम कि आत्मा यह अत्याचार सुन कर तड़प उठी उन्हें विश्वास था कि उनके प्रतिकार करने से ,उनके बलिदान देने से निर्बल और असंगठित हिन्दू जाति में नवचेतना का संचार होगा।
भाई मतिराम तत्काल लाहौर से दिल्ली के लिए निकले लेकिन आगरे में इस्लामी मतांध तलवार के सामने सर झुकाए हुए मृत्यु के भय से अपने पूर्वजों के धर्म को छोडऩे को तैयार हिंदुओं को देखा और उन्होंने कायर हिन्दुओ को ललकार कर कहा- कायर कहीं के मौत के डर से अपने प्यारे धर्म को छोडऩे में क्या तुमको लज्जा नहीं आती ! भाई मतिराम कि बात सुनकर मतांध मुसलमान हंस पड़े और उससे कहाँ कि कौन हैं तू, जो मौत से नहीं डरता? भाई मतिराम ने कहाँ कि अगर तुझमें वाकई दम हैं तो मुझे मुसलमान बना कर दिखाओ।
भाई मतिराम जी को बंदी बना लिया गया उन्हें अभियोग के लिए आगरे से दिल्ली भेज दिया गया।
तब हाकिम ने बोला तो तुम्हे अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा तब मतिराम ने कहा कि मुझे धर्म छोडऩे कि अपेक्षा अपना शरीर छोडऩा स्वीकार है।हाकिम ने फिर कहा कि मतिराम फिर से सोच लो। मतिराम ने फिर कहा कि मेरे पास सोचने का वक्त नहीं हैं हाकिम,तुम केवल और केवल मेरे शरीर को मार सकते हो मेरी आत्मा को नहीं क्योंकि आत्मा अजर ,अमर है। न उसे कोई जला सकता हैं न कोई मार सकता है मतिराम को इस्लाम कि अवमानना के आरोप में आरे से चीर कर मार डालने का हाकिम ने दंड दे दिया।चांदनी चौक के समीप खुले मैदान में लोहे के सीखचों के घेरे में मतिराम को लाया गया।
भाई मतिराम को दो जल्लाद उनके दोनों हाथों में रस्से बांधकर उन्हें दोनों ओर से खींचकर खड़े हो गए, दोनों ने उनकी ठोड़ी और पीठ थामी और उनके सर पर आरा रखा । लकड़ी के दो बड़े तख्तों में जकड़कर उनके सिर पर आरा चलाया जाने लगा। जब आरा दो तीन इंच तक सिर में धंस गया तो काजी ने उनसे कहा - मतिदास, अब भी इस्लाम स्वीकार कर ले। शाही जर्राह तेरे घाव ठीक कर देगा। तुझे दरबार में ऊँचा पद दिया जाएगा और तेरी पाँच शादियाँ कर दी जायेंगी।
भाई मतिदास ने व्यंग्यपूर्वक पूछा – काजी, यदि मैं इस्लाम मान लूँ तो क्या मेरी कभी मृत्यु नहीं होगी ? काजी ने कहा कि यह कैसे सम्भव है। जो धरती पर आया है उसे मरना तो है ही। भाई जी ने हँसकर कहा – यदि तुम्हारा इस्लाम मजहब मुझे मौत से नहीं बचा सकता तो फिर मैं अपने पवित्र हिन्दू धर्म में रहकर ही मृत्यु का वरण क्यों न करूँ ?
उन्होंने जल्लाद से कहा कि अपना आरा तेज चलाओ जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ। यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे।
उन्होंने जल्लाद से कहा कि अपना आरा तेज चलाओ जिससे मैं शीघ्र अपने प्रभु के धाम पहुँच सकूँ। यह कहकर वे ठहाका मार कर हँसने लगे।
काजी ने कहा कि वह मृत्यु के भय पागल हो गया है। भाई जी ने कहा – मैं डरा नहीं हूँ। मुझे प्रसन्नता है कि मैं धर्म पर स्थिर हूँ। जो धर्म पर अडिग रहता है उसके मुख पर लाली रहती है; पर जो धर्म से विमुख हो जाता है, उसका मुँह काला हो जाता है। कुछ ही देर में उनके शरीर के दो टुकड़े हो गये। भाई मतिदास गुरू हर गोबिंद सिंह के शिष्य थे उनका जन्म पंजाब के जिला जेलम में ब्राह्मण परिवार में हुआ था अन्याय के खिलाफ उन्होंने गुरू हरगोविंद के साथ मिलकर कई लड़ाइयां लड़ी थीं उन्होंने नीर्भीक होकर अपने प्राण दे दिए थे लेकिन इस्लाम को कबूल नहीं किया था।
औरंगजेब चाहता था कि गुरुजी भी मुसलमान बन जायें। उन्हें डराने के लिए इन तीनों को तड़पा-तड़पा कर मारा गया पर गुरुजी विचलित नहीं हुए।
औरंगजेब ने सबसे पहले 9 नवम्बर, 1675 को भाई मतिदास को आरे से दो भागों में चीरने को कहा।
अगले दिन 10 नवम्बर को उनके छोटे भाई सतिदास को रुई में लपेटकर जला दिया गया। भाई दयाला को पानी में उबालकर मारा गया। 11 नवम्बर को चाँदनी चौक में गुरु तेगबहादुर का भी शीश काट दिया गया।
ग्राम करयाला, जिला झेलम (वर्तमान पाकिस्तान) निवासी भाई मतिदास एवं सतिदास के पूर्वजों का सिख इतिहास में विशेष स्थान है। उनके परदादा भाई परागा जी छठे गुरु हरगोविन्द के सेनापति थे। उन्होंने मुगलों के विरुद्ध युद्ध में ही अपने प्राण त्यागे थे। उनके समर्पण को देखकर गुरुओं ने उनके परिवार को ‘भाई’ की उपाधि दी थी। भाई मतिदास के एकमात्र पुत्र मुकुन्द राय का भी चमकौर के युद्ध में बलिदान हुआ था।
भाई मतिदास के भतीजे साहबचन्द और धर्मचन्द गुरु गोविन्दसिंह के दीवान थे। साहबचन्द ने व्यास नदी पर हुए युद्ध में तथा उनके पुत्र गुरुबख्श सिंह ने अहमदशाह अब्दाली के अमृतसर में हरिमन्दिर पर हुए हमले के समय उसकी रक्षार्थ प्राण दिये थे। इसी वंश के क्रान्तिकारी भाई बालमुकुन्द ने 8 मई, 1915 को केवल 26 वर्ष की आयु में फाँसी पायी थी। उनकी साध्वी पत्नी रामरखी ने पति की फाँसी के समय घर पर ही देह त्याग दी।
लाहौर में भगतसिंह आदि सैकड़ों क्रान्तिकारियों को प्रेरणा देने वाले भाई परमानन्द भी इसी वंश के तेजस्वी नक्षत्र थे।
हिन्दू धर्म छोडऩे के लिए जब बकरों कि तरह काट दिए जाते थे इन्सान । आखिर वामपंथी इतिहासकारो कि क्या मज़बूरी थी कि उन्होंने इन बातो का जिक्र इतिहास कि किताबो में नही किया ??? और ऐसे नीच मुगलों को महान बताया ।
किसी ने ठीक ही कहा है -
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत
पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत ।।
कहते हैं की प्रतिदिन सवा मन हिंदुओं के जनेऊ कि होली फूंक कर ही औरंगजेब भोजन करता था....!!
सूरा सो पहचानिये, जो लड़े दीन के हेत
पुरजा-पुरजा कट मरे, तऊँ न छाड़त खेत ।।
कहते हैं की प्रतिदिन सवा मन हिंदुओं के जनेऊ कि होली फूंक कर ही औरंगजेब भोजन करता था....!!
आज हिंदुस्तान में मुगल काल के गुणगान हो रहे हैं इनके नाम कि सङके व इमारते हैं धिक्कार है उनको जो ऐसे क्रुर, हत्यारे मुगलों का गुणगान करते है ।
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