अभिषेक मनु सिंघवी का हाथ जैसे ही उस अर्द्धनग्न महिला के कमर के उपर पहुँचा उस महिला ने चिहुँकते हुए बड़े प्यार से पूछा- "जज कब बना रहे हो?" .....बोलो ना डियर "जज कब बना रहे हो" ...???
अब साहब ने जो भी उत्तर दिया था वह सारा का सारा सीन उस सेक्स-सीडी में रिकॉर्ड हो गया .....
और यही सीडी कांग्रेस के उस बड़े नेता और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के राजनीतिक पतन का कारण बना।
पिछले 70 सालों से जजों कि नियुक्ति में सेक्स, पैसा , ब्लैक मेल एवं दलाली के जरिए जजों को चुना जाता रहा है।
अजीब बिडम्बना है कि हर रोज दुसरों को सुधरने कि नसीहत देने वाले लोकतंत्र के दोनों स्तम्भ मीडिया और न्यायपालिका खुद सुधरने को तैयार नही हैं।
Sex, money, black mail in the appointment of judges for 70 years: Janardhan Mishra |
जब देश आज़ाद हुआ तब जजों कि नियुक्ति के लिए ब्रिटिश काल से चली आ रही "कोलेजियम प्रणाली" भारत सरकार ने अपनाई.... यानी सीनियर जज अपने से छोटे अदालतों के जजों कि नियुक्ति करते है।
इस कोलेजियम में जज और कुछ वरिष्ठ वकील भी शामिल होते है। जैसे सुप्रीमकोर्ट के जज हाईकोर्ट के जज कि नियुक्ति करते है और हाईकोर्ट के जज जिला अदालतों के जजों कि नियुक्ति करते है ।
इस प्रणाली में कितना भ्रष्टाचार है उनलोगों ने अभिषेक मनु सिंघवी कि सेक्स सीडी में देखी थी.... अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीमकोर्ट कि कोलेजियम के सदस्य थे और उन्हें दिल्ली हाईकोर्ट के लिए जजों कि नियुक्ति करने का अधिकार था...
उस सेक्स सीडी में वो वरिष्ठ वकील अनुसुइया सालवान को जज बनाने का लालच देकर उसके साथ इलू इलू करते पाए गए थे वो भी कोर्ट परिसर के ही किसी खोपचे में।
कोलेजियम सिस्टम से कैसे लोगो को जज बनाया जाता है और उसके द्वारा राजनितिक साजिशें कैसे कि जाती है उसके दो उदाहरण देखिये .......
*पहला उदाहरण ....*
किसी भी राज्य के हाईकोर्ट में जज बनने कि सिर्फ दो योग्यता होती है, वो भारत का नागरिक हो और 10 साल से किसी हाईकोर्ट में वकालत कर रहा हो या किसी राज्य का महाधिवक्ता हो ।
वीरभद्र सिंह जब हिमाचल में मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने सारे नियम कायदों को ताक पर रखकर अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हिमाचल का महाधिवक्ता नियुक्त कर दिया फिर कुछ दिनों बाद सुप्रीमकोर्ट के जजों के कोलेजियम में उन्हें हाईकोर्ट के जज कि नियुक्ति कर दी और उन्हें गुजरात हाईकोर्ट में जज बनाकर भेज दिया गया।
तब कांग्रेस, गुजरात दंगो के बहाने मोदी को फंसाना चाहती थी और अभिलाषा कुमारी ने जज कि हैसियत से कई निर्णय मोदी के खिलाफ दिया ... हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने बाद में उसे बदल दिया था।
*दूसरा उदाहरण....*
1990 में जब लालूप्रसाद बिहार के मुख्यमंत्री थे तब कट्टरपंथी मुस्लिम आफ़ताब आलम को हाईकोर्ट का जज बनाया गया....बाद में उन्हे प्रोमोशन देकर सुप्रीमकोर्ट का जज बनाया गया... उनकी नरेंद्र मोदी से इतनी दुश्मनी थी कि तीस्ता शीतलवाड़ और मुकुल सिन्हा गुजरात के हर मामले को इनकी ही बेंच में अपील करते थे...इन्होने नरेद्र मोदी को फँसाने के लिए अपना एक मिशन बना लिया था।
बाद में आठ रिटायर जजों ने जस्टिस एम बी सोनी कि अध्यक्षता में सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलकर आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो के किसी भी मामलो कि सुनवाई से दूर रखने कि अपील की थी
जस्टिस सोनी ने आफ़ताब आलम के दिए 12 फैसलों का डिटेल में अध्ययन करके उसे सुप्रीमकोर्ट के चीफ जस्टिस को दिया था और साबित किया था कि आफ़ताब आलम चूँकि मुस्लिम है इसलिए उनके हर फैसले में भेदभाव स्पष्ट नजर आ रहा है।
फिर सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस आफ़ताब आलम को गुजरात दंगो से किसी भी केस कि सुनवाई से दूर कर दिया।
जजों के चुनाव के लिए कोलेजियम प्रणाली के स्थान पर एक नई विशेष प्रणाली कि जरूरत महसूस कि जा रही थी।
जब वर्तमान सरकार आई तो तीन महीने बाद ही संविधान का संशोधन ( 99 वाँ संशोधन) करके एक कमीशन बनाया गया जिसका नाम दिया गया NationalJudicial Appointments Commission (NJAC)
इस कमीशन के तहत कुल छः लोग मिलकर जजों की नियुक्ति कर सकते थे।
*A.* इसमें एक सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश ,
*B.* सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हों ,
*C.* भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री ,
*D.* और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे तीन लोग मिलकर चुनेंगे।( प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता) ।
*B.* सुप्रीम कोर्ट के दो सीनियर जज जो मुख्य न्यायाधीश से ठीक नीचे हों ,
*C.* भारत सरकार का कानून एवं न्याय मंत्री ,
*D.* और दो ऐसे चयनित व्यक्ति जिसे तीन लोग मिलकर चुनेंगे।( प्रधानमंत्री , मुख्य न्यायाधीश एवं लोकसभा में विपक्ष का नेता) ।
परंतु एक बड़ी बात तब हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कमीशन को रद्द कर दिया वैसे इसकी उम्मीद भी कि जा रही थी।
इस वाकये को न्यायपालिका एवं संसद के बीच टकराव के रूप में देखा जाने लगा...भारतीय लोकतंत्र पर सुप्रीम कोर्ट के कुठाराघात के रूप में इसे लिया गया।
यह कानून संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पारित किया गया था जिसे 20 राज्यों कि विधानसभा ने भी अपनी मंजूरी दी थी।
सुप्रीम कोर्ट यह भूल गया थी कि जिस सरकार ने इस कानून को पारित करवाया है उसे देश कि जनता ने पूर्ण बहुमत से चुना है।
सिर्फ चार जज बैठकर करोड़ों लोगों कि इच्छाओं का दमन कैसे कर सकते हैं ?
क्या सुप्रीम कोर्ट इतना ताकतवर हो सकता है कि वह लोकतंत्र में जनमानस कि आकांक्षाओं पर पानी फेर सकता है ?
जब संविधान कि खामियों को देश कि जनता परिमार्जित कर सकती है तो न्यायपालिका कि खामियों को क्यों नहीं कर सकती ?
यदि NJAC को सुप्रीम कोर्ट असंवैधानिक कह सकता है तो इससे ज्यादा असंवैधानिक तो कोलेजियम सिस्टम है जिसमें ना तो पारदर्शिता है और ना ही ईमानदारी ?
कांग्रेसी सरकारों को इस कोलेजियम से कोई दिक्कत नहीं रही क्योंकि उन्हें पारदर्शिता कि आवश्यकता थी ही नहीं।
मोदी सरकार ने एक कोशिश की थी परंतु सुप्रीम कोर्ट ने उस कमीशन को रद्दी कि टोकरी में डाल दिया।
शूचिता एवं पारदर्शिता का दंभ भरने वाले सुप्रीम कोर्ट को तो यह करना चाहिए था कि इस नये कानून (NJAC) को कुछ समय तक चलने देना चाहिए था...ताकि इसके लाभ हानि का पता चलता । खामियाँ यदि होती तो उसे दूर किया जा सकता था ...परंतु ऐसा नहीं हुआ।
जज अपनी नियुक्ति खुद करे ऐसा विश्व में कहीं नहीं होता है सिवाय भारत के।
क्या कुछ सीनियर IAS आॅफिसर मिलकर नये IAS कि नियुक्ति कर सकते हैं?
क्या कुछ सीनियर प्रोफेसर मिलकर नये प्रोफेसर कि नियुक्ति कर सकते हैं ?
यदि नहीं तो जजों कि नियुक्ति जजों द्वारा क्यों कि जानी चाहिए ?
आज सुप्रीम कोर्ट एक धर्म विशेष का हिमायती बना हुआ है
सुप्रीम कोर्ट गौरक्षकों को बैन करता है ...सुप्रीम कोर्ट जल्लीकट्टू को बैन करता है ...सुप्रीम कोर्ट दही हांडी के खिलाफ निर्णय देता है ....सुप्रीम कोर्ट दस बजे रात के बाद डांडिया बंद करवाता है .....सुप्रीम कोर्ट दीपावली में देर रात पटाखे को बैन करता है।
लेकिन ....
सुप्रीम कोर्ट आतंकियों कि सुनवाई के रात दो बजे अदालत खुलवाता है ....सुप्रीम कोर्ट पत्थरबाजी को बैन नहीं करता है....सुप्रीम कोर्ट गोमांश खाने वालों पर बैन नहीं लगाता है ....ईद - बकरीद पर कुर्बानी को बैन नहीं करता है .....मुस्लिम महिलाओं के शोषण के खिलाफ तीन तलाक को बैन नहीं करता है।
और कल तो सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कह दिया कि तीन तलाक का मुद्दा यदि मजहब का है तो वह हस्तक्षेप नहीं करेगा। ये क्या बात हुई ?
आधी मुस्लिम आबादी कि जिंदगी नर्क बनी हुई है और आपको यह मुद्दा मजहबी दिखता है ? धिक्कार है आपके उपर ....।
अभिषेक मनु सिंघवी के विडियो को सोशल मीडिया , यू ट्यूब से हटाने का आदेश देते हो कि न्यायपालिका कि बदनामी ना हो ? ....पर क्यों ऐसा ? ...क्यों छुपाते हो अपनी कमजोरी ?
जस्टिस कर्णन जैसे पागल और टूच्चे जजों को नियुक्त करके एवं बाद में छः माह के लिए कैद कि सजा सुनाने कि सुप्रीम कोर्ट को आवश्यकता क्यों पड़नी चाहिए ?
अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजों की नियुक्ति का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
अभिषेक मनु सिंघवी जैसे अय्याशों को जजों की नियुक्ति का अधिकार क्यों मिलना चाहिए ?
क्या सुप्रीम कोर्ट जवाब देगा ..?????
https://goo.gl/RVMSYw
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लोग अब तक सुप्रीम कोर्ट कि इज्जत करते आए हैं कहीं ऐसा ना हो कि जनता न्यायपालिका के विरुद्ध अपना उग्र रूप धारण कर लें उसके पहले उसे अपनी समझ दुरुस्त कर लेनी चाहिए। सत्तर सालों से चल रही दादागीरी अब बंद करनी पड़ेगी .. यह "लोकतंत्र" है और "जनता" ही इसका "मालिक" है। संदर्भ : जनार्दन मिश्रा
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