मेरे विरुद्ध कोई सबूत नहीं : साध्वी प्रज्ञासिंह
सब फर्जी सबूत है :कर्नल पुरोहित
मुंबई – 2008 के मालेगांव बम विस्फोट प्रकरण में कथित आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने मुंबर्इ उच्च न्यायालय को गुरुवार को बताया कि इस प्रकरण में उनके शामिल या लिप्त होने के सरकार के पास कोई प्रमाण नहीं हैं और पहले ही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने मुझे क्लीन चिट दे दी है। इस आधार पर उन्होंने न्यायालय से जमानत पर मुक्त करने की मांग की।
कर्नल पुरोहित ने एटीएस पर लगाया फर्जी सबूतों का आरोप..!! |
यह मांग साध्वीजी के वकील आकाश गुप्ता ने न्यायाधीश रंजीत मोरे और न्यायालय प्रमुख जज शालिणी फणसलकर-जोशी के समक्ष रखी। इस पर न्यायालय ने 19 जनवरी को सुनवाई रखी है। साध्वी के वकील ने न्यायालय को बताया कि उनकी मुवक्किल एक महिला है और वह पिछले 8 साल से जेल में है। इसके अलावा, वे कैंसर से पीड़ित हैं और इसी आधार पर वे जमानत की मांग कर रही हैं। अपनी याचिका में साध्वीजी ने यह भी दावा किया है कि विशेष एनआईए न्यायालय ने पिछले साल 28 जून को उनकी जमानत याचिका रद्द कर दी थी, किंतु ‘पिछले दिनों जो नए तथ्य सामने’ आए हैं उस पर न्यायालय ने अभी तक विचार नहीं किया है।
नवंबर,2015 में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद साध्वीजी ने विशेष एनआईए न्यायालय में अपनी जमानत याचिका रखी थी और इसे न्यायालय ने नामंजूर करते हुए कहा था कि प्रारंभिक दृष्टि से ऐसा लगता है कि उनके विरुद्ध लगे आरोपों में दम है। लेकिन मई, 2016 में एनआईए ने जो चार्ज शीट दायर की थी उसमें सभी दोषों से साध्वीजी को मुक्त कर दिया गया था। एनआईए ने उनके विरुद्ध लगे ‘मकोका’ के सभी आरोपों को वापस ले लिया था।
कर्नल पुरोहित ने एटीएस पर लगाया फर्जी सबूतों का आरोप..!!
मुंबई – वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले में बन्दी बनाए गए पूर्व लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने बुधवार को मुंबर्इ उच्च न्यायालय में आरोप लगाया कि महाराष्ट्र आतंकवाद रोधी दल (एटीएस) ने उनके खिलाफ फर्जी सबूत जुटाए और यहां तक कि राष्ट्रीय जांच दल (एनआईए) भी एटीएस की जांच से असहमत है।
न्यायमूर्ति आरवी मोरे और न्यायमूर्ति शालिनी फणसालकर जोशी की खंडपीठ उनकी जमानत याचिका खारिज करने के न्यायालय के आदेश के खिलाफ पुरोहित की अपील पर सुनवाई कर रही थी। कर्नल पुरोहित को मालेगांव विस्फोट प्रकरण में गिरफ्तार किया गया था । याचिका में आरोप लगाया गया कि, पुरोहित को एटीएस ने गैर-कानूनी रूप से निलंबित किया और उन पर अत्याचार किए।
3 नवंबर, 2008 को एटीएस अधिकारियों ने एक कमरे में आरडीएक्स रख दिए और दावा किया कि इस कमरे के बारे में पुरोहित ने उस समय बताया जब उनसे पूछताछ हो रही थी। यह भी आरोप लगाया गया कि, अनेक गवाहों को एटीएस ने झूठे वक्तव्य देने के लिए बाध्य किया जिन्हें बाद में एनआईए ने बेनकाब किया। यह भी कहा गया कि, एटीएस निर्दोष लोगों को झूठे मामले में फंसाने के लिए कुख्यात है। इसी मामले में सीबीआई ने कुछ एटीएस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की थी क्योंकि इन अधिकारियों ने कुछ गवाहों को गायब ही कर दिया था।
जांच पहले एटीएस ने संभाली थी लेकिन बाद में इसे एनआईए को सौंप दिया गया। एनआईए ने इस मामले से मकोका के कठोर प्रावधान हटा दिए थे और मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा सिंह सहित कुछ आरोपियों को क्लीन चिट दी थी। पुरोहित के वकील श्रीकांत शिवडे ने आरोप लगाया कि एटीएस ने उनके मुवक्किल के खिलाफ झूठे और फर्जी सबूत जुटाए और एनआईए के आरोपपत्र के सबूतों से यह साफ है। (नवभारत टाइम्स)
इस देश में जमानत तो एक आतंकवादी को भी मिल जाती है लेकिन हिन्दू संतों एवं हिन्दू कार्यकर्ताओं को सामान्य जमानत तक भी नही मिलती है ।
ये कौन सा कानून है?
ऐसा तो नही है देश में सर्वोपरि माना जाने वाला कानून भी देशविरोधी ताकतों के इशारे पर काम कर रहा हो..?
इसलिये ऐसा लग रहा है कि बम बनाकर विस्फोट करने वाले टुंडा जैसे आतंकी को भी रिहा किया जाता है लेकिन कैंसर से पीड़ित, बिना सबूत, क्लीन चिट मिलने पर भी 8 साल से जेल में बन्द साध्वी प्रज्ञा को जमानत नही मिल पा रही है इसलिए संशय होता है कि क्या कानून केवल हिन्दुओं को ही प्रताड़ित करने के लिए बनाया है???
कर्नल पुरोहित पर भी मालेगांव विस्फ़ोट में NIA द्वारा मकोका हटा दी गई है ।
एनआइए के प्रमुख शरद कुमार ने कहा है कि समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के खिलाफ कोई प्रमाण नहीं है ।
आपको बता दें कि जॉइंट इंटेलीजेंस कमेटी के पूर्व प्रमुख और पूर्व उपराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डॉ. एस डी प्रधान ने देश में भगवा आतंक की थ्योरी को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं।
जिसमे उन्होंने बताया है कि मालेगांव और समझौता एक्सप्रेस बम ब्लास्ट का हमें पहले से ही पता था और हमने गृहमंत्रालय को भी बताया था और साध्वी प्रज्ञा एवं स्वामी असीमानंद आदि हिंदुत्वनिष्ठों का ब्लास्ट में नाम ही नही था और ब्लास्ट पाकिस्तान द्वारा ही करवाया गया था । इसका पुख्ता सबूत होने पर भी पूर्व गृहमंत्री चिंदमर ने राजनीतिक फायदे के लिए साध्वी प्रज्ञा और स्वामी असीमानन्द जैसे हिंदुत्व निष्ठों को जेल भेजा था।
अब बड़ा सवाल यह है कि टुंडा जैसे आतंकी के खिलाफ इतने अहम सबूत होने पर भी वह आसानी से बरी हो जाता है लेकिन इन हिन्दू संतों के खिलाफ सबूत नही होने पर भी जेल में रहते है
तो क्या हिंदुत्व-निष्ठ होना गुनाह है..???
ऐसे ही संत आसारामजी बापू को भी क्लीन चिट मिल चुकी है लेकिन उनको भी अभीतक जमानत तक नही मिल पा रही है ऐसे ही श्री धनंजय देसाई को भी बिना सबूत जेल में रखा हुआ है ।
हिन्दूवादी सरकार आने पर भी इन हिंदुत्व निष्ठों को जमानत तक नही मिलना और खूंखार आतंकी टुंडा जैसे का बरी हो जाना।
कितना बड़ा आश्चर्य है..!!!
क्या इन संतों ने ईसाई धर्मान्तरण पर रोक लगाई थी इसलिए उनको टारगेट बनाकर जेल भेज दिया गया है?
निर्दोष हिन्दू संतों को कब मिलेगा न्याय???
"क्या देर से न्याय मिलना अन्याय का ही रूप नहीं ?"
सोचो हिन्दू !!!
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